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29 Sep
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मसूर में खरपतवार प्रबंधन (Weed Management in Lentils)


मसूर रबी मौसम की सबसे महत्वपूर्ण प्रोटीन से भरपूर दलहनी फसलों में से एक है। मसूर की फसल में प्रमुख खरपतवार जैसे बथुआ, चनौरी, सेन्जी, कासनी, अकरी, कृष्णनील, हिरनखुरी, चटरी-मटरी, अकरा-अकरी, जंगली गाजर, गजरी, प्याजी, खरतुआ, और सत्यानाशी प्रमुख रूप से नुकसान पहुंचाते हैं। भारत में मसूर की फसल में खरपतवारों को नियंत्रित करना आवश्यक है, क्योंकि ये उपज को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

मसूर की फसल में खरपतवार से नुकसान (Impact of Weeds on Lentil Crop)

  • अंकुरण में कठिनाई: मसूर की फसल में खरपतवारों के कारण बीज के अंकुरण में कठिनाई होती है। खरपतवारों की समस्या बढ़ने पर कई बार बीज अंकुरित नहीं हो पाते हैं, जिससे पौधों की संख्या में कमी आ सकती है।
  • कमजोर पौधे: खरपतवार मिट्टी में मौजूद पोषक तत्वों को ग्रहण कर लेते हैं, जिससे मसूर के पौधे कमजोर हो जाते हैं। इससे पौधों की बढ़वार प्रभावित होती है और वे सही ढंग से विकसित नहीं हो पाते।
  • बढ़वार में कमी: मसूर की फसल में खरपतवारों के प्रकोप से फसल की बढ़वार धीमी हो जाती है। खरपतवारों की उपस्थिति के कारण फसल को आवश्यक पोषक तत्व और जल नहीं मिल पाता, जिससे उनकी वृद्धि रुक जाती है।
  • उपज में कमी: मसूर की फसल में खरपतवारों से होने वाले नुकसान के कारण इसकी पैदावार में 40 प्रतिशत तक कमी हो सकती है। खरपतवारों की अधिकता के कारण फसल को पूर्ण पोषण और स्थान नहीं मिल पाता, जिससे उपज में कमी आती है।
  • रोग और कीट प्रकोप: खरपतवार कई तरह के रोगों एवं कीटों के पनपने का कारण बनते हैं। खरपतवारों के कारण खेत में नमी बनी रहती है, जो कीटों और रोगों के फैलाव में मददगार होती है।
  • पोषक तत्वों की कमी: खरपतवार भूमि में मौजूद आवश्यक पोषक तत्व एवं नमी का बड़ा हिस्सा अवशोषित कर लेती हैं, जिससे पौधों को उचित पोषक तत्व नहीं मिल पाते हैं। यह फसल की बढ़वार और उपज को प्रभावित करता है।
  • प्रकाश और स्थान की कमी: खरपतवार आवश्यक प्रकाश एवं स्थान से फसल को वंचित कर देते हैं, जिससे पौधों के विकास में बाधा आती है। खरपतवारों के कारण फसल को सूर्य का प्रकाश और विकास के लिए आवश्यक स्थान नहीं मिल पाता।
  • रोग और कीट: खेत में विभिन्न घास के पनपने के कारण कई तरह के रोगों और कीटों के होने का खतरा बना रहता है। खरपतवारों के कारण खेत में नमी और छाया बनी रहती है, जो रोगों और कीटों के विकास में सहायक होती है।

मसूर की फसल में खरपतवार नियंत्रण के तरीके (Weed control methods in lentil crop)

  • फसल चक्र: मसूर की फसल में खरपतवारों के दबाव को कम करने के लिए फसल चक्र अपनाना प्रभावी तरीका है। विभिन्न फसलों को बदल-बदल कर उगाने से खरपतवारों के बढ़ने की संभावना कम होती है, जिससे मसूर की फसल को बेहतर विकास मिलता है।
  • इंटरक्रॉपिंग: मसूर के साथ अन्य फसलों का मिलाजुला खेती (इंटरक्रॉपिंग) करने से खरपतवारों पर नियंत्रण पाया जा सकता है। यह विधि फसल के लिए संसाधनों की प्रतिस्पर्धा को कम करती है और खरपतवारों की वृद्धि को सीमित करती है।
  • समय पर रोपण: मसूर की बुवाई सही समय पर करने से पौधे खरपतवारों से पहले ही बढ़ जाते हैं, जिससे खरपतवारों के साथ प्रतिस्पर्धा कम होती है। इससे मसूर की फसल को अधिक पोषक तत्व और जल मिलता है, जिससे उसकी वृद्धि में सुधार होता है।
  • एकीकृत खरपतवार प्रबंधन: खरपतवार नियंत्रण के लिए एकीकृत खरपतवार प्रबंधन का उपयोग करना अत्यधिक प्रभावी हो सकता है। इसमें उपरोक्त विधियों का संयोजन किया जाता है, जैसे कि फसल चक्र, इंटरक्रॉपिंग, और समय पर रोपण, जिससे खरपतवारों पर प्रभावी नियंत्रण प्राप्त किया जा सकता है।
  • गहरी जुताई: मसूर की फसल में खरपतवारों को नष्ट करने के लिए 1-2 बार गहरी जुताई करना लाभकारी होता है। यह विधि खेत में पहले से मौजूद खरपतवारों की जड़ों को ऊपर लाकर तेज धूप में नष्ट करने में मदद करती है।
  • निराई-गुड़ाई: फसल में खरपतवारों पर नियंत्रण के लिए निराई-गुड़ाई एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। बुवाई के 20-25 दिनों बाद पहली निराई-गुड़ाई करें। दूसरी निराई-गुड़ाई बुवाई के 40-45 दिनों के बाद करें, जिससे खरपतवारों को प्रभावी तरीके से नष्ट किया जा सके।
  • मसूर की बुवाई के तुरंत पहले मिट्टी में फ्लूक्लोरैलीन 45 ई.सी. दवा को 400 से 750 मिली प्रति एकड़ खेत में घोल बनाकर छिड़काव करें।
  • इमेजेथापायर 10% SL (बी.ए.एस.एफ परस्यूट, देहात ग्रास आउट) 30 से 40 ग्राम दवा के साथ MSO एडजुवेंट को 2 एम.एल. एक लीटर पानी के अनुसार मिलाकर छिड़काव करें।
  • पेंडीमेथालिन 30% ईसी (पेन्डेक्स, धानुका धानुटोप) दवा को बुवाई के तुरन्त बाद (48 घंटे के अंदर) 300 से 400 मिली /एकड़ छिड़काव करना चाहिए।

आप मसूर में खरपतवार नियंत्रण के लिए क्या जुगाड़ करते हैं? अपना जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट करके बताएं। इसी तरह की अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'खरपतवार जुगाड़' चैनल को अभी फॉलो करें। अगर पोस्ट पसंद आयी तो इसे लाइक करके अपने किसान दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: खरपतवारनाशी का छिड़काव करते समय क्या सावधानियां बरतनी चाहिए?

A: खरपतवारनाशी में कई हानिकारक रसायन होते हैं, जो मनुष्यों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर डाल सकते हैं। छिड़काव करते समय अपने चेहरे को कपड़े से अच्छी तरह ढक कर रखें और हाथों में दस्ताने पहनें। दवाओं के छिड़काव के बाद हाथों को अच्छी तरह साफ करें। शाकनाशी के खाली पैकेट पशुओं के लिए हानिकारक हो सकते हैं, इसलिए उन्हें इधर-उधर ना फेकें।

Q: खरपतवार नाशक का छिड़काव कब करना चाहिए?

A: खरपतवारों का छिड़काव सुबह या शाम के समय करना चाहिए। शाक नाशक के छिड़काव के समय मिट्टी में उपयुक्त नमी होनी चाहिए। वर्षा की संभावना होने पर दवाओं का छिड़काव न करें।

Q: निराई कैसे की जाती है?

A: खेत में पनपने वाले खरपतवारों पर नियंत्रण के लिए निराई की जाती है। इसके लिए खुरपी, कुदाल या हैरो का उपयोग किया जाता है। इस प्रक्रिया में खरपतवारों को जड़ से उखाड़ कर या भूमि की ऊपरी सतह के पास से काटकर निकाला जाता है। यह विधि समय और श्रम की अधिक मांग करती है, इसलिए छोटे खेतों में इसका उपयोग अधिक होता है।

Q: मसूर में कितने दिन में पानी देना चाहिए?

A: मसूर की खेती असिंचित और बरानी क्षेत्रों में सफलतापूर्वक की जा सकती है। यदि सर्दियों में एक बार वर्षा हो जाती है, तो सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। सिंचाई की व्यवस्था हो तो पहली सिंचाई बुवाई के 40-45 दिन बाद और दूसरी सिंचाई फलियों में दाने भरते समय करें।

Q: मसूर की बुवाई कब की जाती है?

A: मसूर की बुवाई का उचित समय रबी के मौसम में होता है, जो मध्य अक्टूबर से लेकर नवंबर के पहले पखवाड़े तक होता है। बुवाई का सही समय फसल की वृद्धि और उपज पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है, इसलिए इसे समय पर करना चाहिए।

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