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3 Mar
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बैंगन में खरपतवार प्रबंधन | Weeds Management in Brinjal (Eggplant)

बैंगन में खरपतवार प्रबंधन | Weeds Management in Brinjal (Eggplant)

खरपतवार बैंगन की फसल की उपज और गुणवत्ता को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकते हैं। ये खेत में मौजूद पोषक तत्वों को ग्रहण करके बैंगन की फसल में उपज में करीब 50% तक कमी हो सकती है। यदि खरपतवारों की सही पहचान नहीं है तो खेत में खरपतवारों की समस्या होने पर आप कृषि विशेषज्ञों से परामर्श कर सकते हैं। इन दिनों बाजार में कई तरह के कृषि उपकरण उपलब्ध हैं जिससे बहुत आसानी से खरपतवारों की समस्या से छुटकारा मिल जाता है। इस पोस्ट के माध्यम से आप खरपतवारों से होने वाले नुकसान, इन पर नियंत्रण के विभिन्न तरीके और खरपतवार नाशक के प्रयोग के समय ध्यान में रखने वाले बातों की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

बैंगन की फसल में में खरपतवारों से होने वाले नुकसान | Damage caused by weeds in brinjal

  • पोषक तत्वों की कमी: खेत में पनपने वाले खरपतवार मिट्टी से पोषक तत्वों को ग्रहण कर लेते हैं, जिससे बैंगन के पौधों को सही मात्रा में पोषण नहीं मिलता है।
  • फूल और फलों में कमी: खरपतवार की अधिकता से बैंगन के पौधों में फूल और फलों की संख्या में कमी हो सकती है।
  • फलों का आकार: खरपतवारों के कारण फलों पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो पाते हैं। जिससे फलों का आकार छोटा रह सकता है।
  • रोग एवं कीटों का प्रकोप: कई तरह के कीट एवं फफूंद खरपतवारों पर पहले पनपते हैं और बाद में मुख्य फसल में हमला करते हैं। जिससे फसल पर नकारात्मक प्रभाव होता है।
  • फसल की उपज में कमी: खरपतवार से होने वाले नुकसान के कारण बैंगन की उपज में कमी हो सकती है, जिससे किसानों को मुनाफे की जगह नुकसान का सामना करना पड़ता है।
  • लागत में वृद्धि: खरपतवार नाशक का उपयोग करने पर कृषि में होने वाली लागत में वृद्धि होती है। इसके साथ कीट एवं रोगों पर नियंत्रण के लिए भी विभिन्न दवाओं के प्रयोग से लागत बढ़ती है।
  • आपूर्ति में कमी: खरपतवारों के कारण फसल का सही आपूर्ति नहीं हो पाता है। जिससे बाजार में बैंगन की कमी हो सकती है और किसानों को मुनाफा की जगह नुकसान उठाना पड़ सकता है। आपूर्ति में कमी बैंगन की कीमत में वृद्धि का भी कारण बन सकती है।

खरपतवारों पर नियंत्रण के विभिन्न तरीके | Different methods of weed control

निराई-गुड़ाई के द्वारा खरपतवारों पर नियंत्रण

  • निराई-गुड़ाई एक प्रमुख तकनीक है जो खरपतवारों को नियंत्रित करने में सहायक हो सकती है।
  • बुआई के बाद, पहली निराई-गुड़ाई को 20 से 25 दिनों के बाद किया जा सकता है।
  • इसके बाद, आवश्यकता के अनुसार इस प्रक्रिया को दोहराया जा सकता है।
  • निराई-गुड़ाई करने से फसल को अच्छी तरह से पोषण मिलता है और खरपतवारों को कम करने में मदद मिलती है।

मल्चिंग के द्वारा खरपतवारों पर नियंत्रण

  • खेत में खरपतवार के नियंत्रण के लिए मल्चिंग अथवा 'पलवार' एक उन्नत विधि है।
  • खेत में लगे पौधों की जमीन को चारों तरफ से प्लास्टिक कवर, पुआल या पत्तों आदि के द्वारा सही तरीके से ढकने को मल्चिंग कहते हैं।
  • इससे खरपतवार का अंकुरण या विकास नहीं हो पाता है। इस तकनीक से फसल को लंबे समय तक खरपतवारों से सुरक्षित रखा जा सकता है।

खरपतवारों पर नियंत्रण के लिए रासायनिक दवाओं का प्रयोग

  • खरपतवारों के खिलाफ रासायनिक दवाओं का प्रयोग भी एक अन्य प्रमुख उपाय है।
  • इसके लिए पौधों की रोपाई से पहले, प्रति एकड़ भूमि में 250 ग्राम पेंडीमेथिलीन 38.7% CS (धानुका- धनुटॉप सुपर, यूपीएल- दोस्त सुपर, बीएएसएफ- स्टॉम्प एक्स्ट्रा) का प्रयोग करें।
  • चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के लिए, पौधों की रोपाई से 1 सप्ताह पहले या रोपाई के 15 दिनों बाद प्रति एकड़ खेत में 200 ग्राम मेट्रिब्यूज़िन 70% डब्ल्यूपी (धानुका- बैरियर, बायर- सेंकोर, इंदोरामा- शक्तिमान मेट्रिमैन, शिवालिक क्रॉप साइंस- सैकोन) का प्रयोग करें।

दवाओं के छिड़काव के समय रखें इन बातों का ध्यान | Consider these factors when applying herbicide

खरपतवार नाशक दवाओं के छिड़काव के समय कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है।

  • खरपतवार नाशक दवा का प्रयोग करते समय, मिट्टी में नमी की कमी नहीं होनी चाहिए, जिससे दवा सही रूप से फसल तक पहुंच सके।
  • खरपतवार नाशक दवाओं का छिड़काव सुबह या शाम के समय करना चाहिए।
  • छिड़काव करते समय, खरपतवार नाशक दवा का सही मात्रा में छिड़काव करना चाहिए, जिससे फसल पर कोई अतिरिक्त प्रभाव ना हो।

खरपतवार नाशक दवा के साथ किसी भी तरह के कीटनाशक या फफूंदनाशक को मिलाना नहीं चाहिए। इससे खरपतवार नाशक दवा का असर कम हो सकता है।

बैंगन की फसल में खरपतवारों पर नियंत्रण के लिए आप किस विधि का प्रयोग करते हैं? अपने जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। खरपतवार प्रबंधन में सहायता प्राप्त करने के लिए आप टोल-फ्री नंबर 1800-1036-110 पर संपर्क कर सकते हैं और अपनी समस्या का समाधान प्राप्त कर सकते हैं। इस तरह की अधिक जानकारियों के लिए 'खरपतवार जुगाड़' चैनल को तुरंत फॉलो करें। इसके साथ ही इस पोस्ट को लाइक और शेयर करना न भूलें। जिससे विभिन्न किसान अपने अनुभवों को साझा कर सकें और एक दूसरे को सहायता कर सकें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Question (FAQs)

Q: निराई कैसे की जाती है?

A: खेत में पनपने वाले खरपतवारों पर नियंत्रण के लिए निराई की जाती है। निराई के लिए खुरपी, कुदाल या हैरो का इस्तेमाल किया जाता है। इस प्रक्रिया में खरपतवारों को जड़ से उखाड़ कर या भूमि की ऊपरी सतह के पास से काट कर निकाला जाता है। इस प्रक्रिया में समय एवं श्रम की आवश्यकता अधिक होती है। इसलिए बड़े खेतों की तुलना में छोटे खेतों में इस विधि का प्रयोग अधिक किया जाता है।

Q: खरपतवार नियंत्रण की कितनी विधियां हैं?

A: खरपतवार नियंत्रण के कई तरीके हैं जिनका उपयोग कृषि में किया जा सकता है। सबसे आम तरीकों में सांस्कृतिक, यांत्रिक, रासायनिक और जैविक नियंत्रण शामिल हैं। सांस्कृतिक नियंत्रण में खरपतवार की वृद्धि को रोकने के लिए फसल चक्र अपनाया जाता है, इंटरक्रॉपिंग और मल्चिंग जैसी प्रक्रियाएं भी की जाती हैं। यांत्रिक नियंत्रण में हाथ से निराई-गुड़ाई और घास की कटाई के द्वारा खरपतवारों को हटाया जाता है। रासायनिक नियंत्रण में खरपतवारों को मारने के लिए शाकनाशी का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा जैविक उत्पादों का प्रयोग करके भी खरपतवारों से छुटकारा मिल सकता है।

Q: खरपतवार को कैसे रोके?

A: खेत में खरपतवारों को पनपने से रोकने के लिए फसल को लगाने से पहले गहरी जुताई करें। इससे खेत में पहले से मौजूद खरपतवार नष्ट हो जाएंगे। बुवाई के लिए उच्च गुणवत्ता वाले बीज का चयन करें। बुवाई से पहले बीज को अच्छे से साफ करें। इस बात को सुनिश्चित करें की फसलों के बीज के साथ खरपतवारों के बीज न हों। खेत में मल्चिंग करना भी इस समस्या से निजात दिलाता है। इसके साथ ही बुवाई के बाद 2 दिनों के अंदर रासायनिक खरपतवार नाशक का प्रयोग कर के भी हम इस समस्या से बच सकते हैं।

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