पोस्ट विवरण
गन्ने की फसल में पोक्का बोइंग का प्रकोप और नियंत्रण के उपाय
पोक्का बोइंग गन्ने की फसल में होने वाला एक फफूंद जनित रोग है। जिसका प्रकोप सामान्य तौर पर बरसात के महीने या जून से सितम्बर तक देखा जाता है। पोक्का बोइंग फ्यूजेरियम मोनिलिफोर्मी कवक के द्वारा फैलता है। देखने में यह आया है इस रोग के लक्षण चोटी भेदक कीट के जैसे होने के कारण किसान इसकी बेहतर ढंग से पहचान नहीं कर पाते हैं और गलत कवकनाशी का उपयोग कर लेते हैं। जिसके कारण रोग के संक्रमण से गन्ने में अधिकतम 80 प्रतिशत तक नुकसान देखा गया है। जबकि रोग के शुरुआती दौर में ही नियंत्रण के उचित तरीके अपनाकर किसान काफी हद तक नुकसान को कम कर सकते हैं। गन्ने की फसल में पोक्का बोइंग रोग के लक्षण और रोकथाम से जुड़ी जानकारी के लिए पोस्ट को पूरा पढ़ें।
पोक्का बोइंग से फसल पर होने वाले नुकसान
-
रोग के शुरुआती दौर में ऊपर की पत्तियां तने के जुड़ाव की ओर से पीली और सफेद होने लगती हैं और कुछ दिनों बाद लाल भूरी होकर सूख जाती हैं।
-
रोग का अधिक प्रकोप होने के कारण पत्तियां आपस में उलझ कर सड़कर गिरने लगती हैं।
-
फसल में प्रकाश संश्लेषण की की क्रिया प्रभावित हो जाती है और पौधों की वृद्धि रुक जाती है।
रोकथाम के उपाय
-
रोगग्रस्त पौधों को उखाड़ कर फेंक दें।
-
हेक्साकोनाजोल की 250 मिलीलीटर मात्रा को 150 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ की दर से छिड़कें।
-
500 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड और 500 ग्राम रोको दवा को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
-
500 ग्राम थायोफिनेट मिथाइल का छिड़काव प्रति एकड़ की दर से करें।
-
अधिक संक्रमण होने पर 15 दिन के अंतराल पर दोबारा छिड़काव करें।
यह भी पढ़ें:
ऊपर दी गयी जानकारी पर अपने विचार और कृषि संबंधित सवाल आप हमें कमेंट बॉक्स में लिख कर भेज सकते हैं। यदि आपको आज के पोस्ट में दी गई जानकारी पसंद आई हो तो इसे लाइक करें और अन्य किसान मित्रों के साथ शेयर करें। जिससे अधिक से अधिक किसान इस जानकारी का लाभ उठा सकें। साथ ही कृषि संबंधित ज्ञानवर्धक और रोचक जानकारियों के लिए जुड़े रहें देहात से।
जारी रखने के लिए कृपया लॉगिन करें
फसल चिकित्सक से मुफ़्त सलाह पाएँ