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Saffron
कृषि ज्ञान
15 July
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जानें कैसे की जाती है केसर की खेती | Saffron Cultivation

केसर एक सुगंधित पौधा है। इसे सैफरन के नाम से भी जाना जाता है। भारत में इसकी खेती केवल जम्मू के किश्तवाड़ और कश्मीर के पामपुर (पंपोर) में की जाती है। यह एक बहुवर्षीय पौधा है। इसकी खेती कंद की रोपाई के द्वारा की जाती है। इसके कंद प्याज के कंद की तरह होते हैं। हर वर्ष अक्टूबर से दिसंबर महीने तक पौधों में फूल निकलते हैं। एक फूल से केसर के केवल तीन धागे प्राप्त किए जा सकते हैं। राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय बाजार में महंगी कीमतों पर बिक्री के कारण केसर की खेती करने वाले किसान लाखों का मुनाफा कमा सकते हैं। आइए केसर की खेती से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां विस्तार से प्राप्त करें।

केसर की खेती कैसे करें? | How to cultivate Saffron?

  • केसर की खेती के लिए उपयुक्त समय: केसर की खेती के लिए जुलाई-अगस्त का महीना सर्वोत्तम है। कुछ क्षेत्रों में मई-जून के महीने में भी कंदों की रोपाई की जाती है।
  • उपयुक्त जलवायु: केसर की खेती समुद्र तल से करीब 2,000 मीटर की ऊंचाई पर की जाती है। केसर की खेती के लिए ठंडी, शुष्क और शीतोष्ण जलवायु की आवश्यकता होती है। वातावरण में आर्द्रता कम होनी चाहिए। केसर की खेती के लिए आदर्श तापमान 20 डिग्री सेल्सियस से 25 डिग्री सेल्सियस के बीच होता है। पौधों में फूल खिलने के बाद पाला या ओले पड़ने से पूरी फसल नष्ट हो सकती है। पौधों को प्रति दिन सूर्य के प्रकाश की भी आवश्यकता होती है।
  • उपयुक्त मिट्टी: पौधों के बेहतर विकास के लिए इसकी खेती दोमट मिट्टी में करनी चाहिए। इसके अलावा रेतीली चिकनी बलुई मिट्टी में भी इसकी खेती की जा सकती है। इसकी खेती के लिए सूखी एवं कार्बनिक पदार्थों से भरपूर मिट्टी का चयन करें। मिट्टी कंकड़, पत्थर आदि से मुक्त होनी चाहिए। मिट्टी का पीएच स्तर 6.0 से 8.0 के बीच होना चाहिए। मिट्टी की जल धारण क्षमता अच्छी होनी चाहिए।
  • खेत तैयार करने की विधि: खेत तैयार करते समय जल निकासी की उचित व्यवस्था करें। जल जमाव होने पर फसल बर्बाद हो जाती है। खेत तैयार करने के लिए सबसे पहले खेत में 3 से 4 बार जुताई करके मिट्टी को भुरभुरी बना लें। आखिरी जुताई के समय प्रति एकड़ खेत में 8 टन गोबर की खाद मिलाएं। इसके अलावा प्रति एकड़ खेत में 58 किलोग्राम यूरिया,,52 किलोग्राम डीएपी एवं 33 किलोग्राम एमपी का प्रयोग करें। कंद की रोपाई कंद की रोपाई के लिए खेत में 6 से 7 सेंटीमीटर की गहराई में गड्ढे तैयार करें। सभी गड्ढों के बीच करीब 10 सेंटीमीटर की दूरी रखें। सभी गड्ढों में कंद की रोपाई करके मिट्टी से भरें।
  • बीज एवं बुवाई की विधि: प्रति एकड़ आवश्यक बीजों की संख्या कॉर्म के आकार और रोपण घनत्व पर निर्भर करती है। औसतन, 1 किलोग्राम केसर के तार में लगभग 200-250 कॉर्म होते हैं। प्रति एकड़ भूमि के लिए 2,00,000 कॉर्म की आवश्यकता होती है। प्रत्येक कॉर्म का वजन करीब 8 ग्राम होना चाहिए। बड़े आकार के कॉर्म के लिए 20*10 सेंटीमीटर की दूरी आदर्श मानी जाती है। कॉर्म की बुवाई 12-15 सेंटीमीटर की गहराई और 10-12 सेंटीमीटर की दूरी पर करें। बुवाई से पहले कॉर्म को मैंकोजेब या कार्बेंडाजिम से उपचारित करें।
  • सिंचाई प्रबंधन: कंदों की रोपाई के कुछ दिनों बाद हल्की वर्षा होने पर सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। वर्षा नहीं होने पर 15 दिनों के अंतराल पर 2 से 3 बार सिंचाई करें। सिंचाई के समय इस बात का ध्यान रखें कि खेत में जल जमाव की स्थिति न हो।
  • खरपतवार नियंत्रण : केसर की फसल में अक्सर जंगली घास पनपते हैं। इन पर नियंत्रण के लिए कुछ समय के अंतराल पर निराई गुड़ाई करते रहें। खरपतवारों की समस्या अधिक होने पर आप रासायनिक खरपतवार नाशक दवाओं का प्रयोग कर सकते हैं। रासायनिक खरपतवार नाशक का प्रयोग करने से पहले कृषि विशेषज्ञों से परामर्श अवश्य करें।
  • रोग एवं कीट नियंत्रण: केसर के पौधे विभिन्न रोगों और कीटों के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं। जिनमें पत्ती झुलसा रोग, कंद सड़न रोग, एफिड्स, थ्रिप्स, सफेद ग्रब कीट, घुन, केसर मक्खी, आदि शामिल है। उच्च गुणवत्ता की केसर प्राप्त करने के लिए इन रोगों एवं कीटों पर नियंत्रण करना बहुत जरूरी है। पौधों में किसी भी रोग एवं कीटों के प्रकोप का लक्षण नजर आने पर तुरंत उचित दवाओं का प्रयोग करें या कृषि विशेषज्ञों से परामर्श करें।
  • केसर के फूलों की तुड़ाई: रोपाई के करीब 3 से 4 महीने बाद पौधों में फूल आने लगते हैं। हर वर्ष अक्टूबर से दिसंबर महीने तक पौधों में फूल खिलते हैं। फूलों की पंखुड़ियां लाल या केसरिया रंग की हो जाए तब फूलों की तुड़ाई करनी चाहिए। फूलों के खिलने के दूसरे दिन ही इसकी तुड़ाई कर लें।
  • फूलों की तुड़ाई का सही तरीका एवं उपज: केसर के फूल खिलने के दूसरे दिन ही फूलों को तोड़ लेना चाहिए। फूलों को तोड़ने के बाद इन्हें किसी छांव वाले स्थान पर रखें। सोलर ड्रायर या हॉट एयर ड्रायर में करीब 40-50 डिग्री सेल्सियस तापमान में फूलों को सूखने में 4 से 7 घंटे का समय लगता है। फूलों के सूखने के बाद फूलों से केसर के धागे निकाल लिए जाते हैं। केसर के एक फूल से केसर के केवल तीन धागे प्राप्त होते हैं। कश्मीरी मोंगरा केसर के करीब 1,50,000 फूलों से 1 किलोग्राम केसर प्राप्त किया जा सकता है।

क्या आपके क्षेत्र में केसर की खेती की जाती है? अपने जवाब एवं केसर की खेती से जुड़े अपने अनुभव हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। इस तरह की अधिक जानकारियों के लिए ‘कृषि ज्ञान’ चैनल को तुरंत फॉलो करें। इसके साथ ही इस पोस्ट में दी गई जानकारी को अधिक किसानों तक पहुंचाने के लिए इस पोस्ट को लाइक और शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: केसर की खेती कहां और कैसे होती है?

A: केसर मुख्य रूप से भारत में कश्मीर घाटी में उगाया जाता है। यह एक श्रम-गहन फसल है जिसके लिए एक विशिष्ट जलवायु और मिट्टी की स्थिति की आवश्यकता होती है। केसर क्रोकस फूल शरद ऋतु में खिलते हैं, और मसाले का उत्पादन करने के लिए कलंक को हाथ से उठाया और सुखाया जाता है।

Q: केसर की खेती कौन से महीने में की जाती है?

A: भारत में केसर की खेती मई से अगस्त महीने के बीच की जाती है। क्षेत्रों एवं मौसम के अनुसार कंदों की रोपाई के समय में थोड़ा परिवर्तन हो सकता है।

Q: केसर साल में कितनी बार खिलता है?

A: केसर के फूल वर्ष में केवल एक बार ही खिलते हैं। केसर के फूल शरद ऋतु में लगभग दो सप्ताह की अवधि के लिए खिलते हैं, जो भारत में अक्टूबर और नवंबर के आसपास होता है। केसर की कटाई आमतौर पर इस समय के दौरान होती है।

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