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जौ की 5 बेहतरीन उन्नत किस्में (5 Best Improved Varieties of Barley)
रबी सीजन की शुरुआत के साथ ही किसान फसलों की बुवाई में लग गए हैं। जौ, जो चावल, गेहूं और मक्का के बाद दुनिया की चौथी सबसे महत्वपूर्ण फसल है, भारत में उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में प्रमुख रबी फसल के रूप में जानी जाती है। इसका उपयोग आटे, बेकरी उत्पादों, हेल्दी ड्रिंक्स, दवाइयों और माल्ट एवं बीयर निर्माण में बड़े पैमाने पर किया जाता है। साथ ही, यह दुधारू पशुओं के लिए हरा चारा, भूसी और फीड के रूप में भी बेहद उपयोगी है। हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब और राजस्थान जैसे राज्यों में जौ की खेती बड़े पैमाने पर होती है। यदि किसान जौ की उन्नत किस्मों का चयन करें, तो वे न केवल उच्च उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं बल्कि अच्छा मुनाफा भी कमा सकते हैं। इस लेख में जौ की 5 बेहतरीन उन्नत किस्मों की जानकारी दे रहे हैं।
जौ की 5 मुख्य किस्में कौन सी हैं? (What are the 5 main barley varieties?)
डी डब्ल्यू आर बी 160 (DWRB 160)
- डी डब्ल्यू आर बी 160 जौ की एक उन्नत किस्म है, जो विशेष रूप से माल्ट उत्पादन के लिए उपयुक्त है। इसे भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान (IARI), करनाल द्वारा विकसित किया गया है। यह किस्म अपनी उच्च उत्पादन क्षमता और रोग प्रतिरोधक गुणों के कारण किसानों के लिए एक अच्छा (option) विकल्प है।
- फसल की अवधि: यह किस्म बुवाई के 86 दिनों बाद बालियां देना शुरू कर देती है और 131 दिनों में फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
- उपज: इसकी औसत उपज 21.5 क्विंटल प्रति एकड़ है, जबकि संभावित उत्पादन क्षमता 28 क्विंटल प्रति एकड़ तक है।
- उपयुक्त क्षेत्र: यह पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली जैसे क्षेत्रों के लिए बेहद उपयुक्त है। इसके रोग प्रतिरोधक गुण इसे उत्तर-पश्चिमी भारत के मैदानी क्षेत्रों में सफलतापूर्वक उगाने के लिए उपयुक्त बनाते हैं।
डी.बी.डब्लू-111 (DBW-111):
- DBW-111 एक उन्नत और उच्च उत्पादन वाली गेहूं की किस्म है, जिसे देहात के शोध कार्य के तहत विकसित किया गया है। यह किस्म किसानों को उच्च गुणवत्ता और अधिक पैदावार प्रदान करती है। इसके अलावा, रिसर्च जौ की किस्मों में DBW-111-137 एक प्रमुख विकल्प के रूप में जानी जाती है, जो अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता और बेहतर उत्पादकता के लिए प्रसिद्ध है।
- पौधों की ऊंचाई: मध्यम।
- उत्पादन क्षमता: उच्च उपज देने वाली किस्म।
- बीज का भार: प्रति 1000 बीज का वजन 47 ग्राम।
- बुवाई का समय: मध्य अक्टूबर से नवंबर तक।
- रोग प्रतिरोधक क्षमता: यह पीले रतुआ (स्ट्राइप रस्ट) रोग के प्रति सहनशील (tolerant) है।
करण-201, 231 और 264 (Karan-201, 231 & 264)
- करण श्रृंखला की इन किस्मों को आईसीएआर द्वारा विकसित किया गया है। ये किस्में रोटी और व्यावसायिक खेती के लिए उपयुक्त हैं। इनका उपयोग विशेष रूप से उन क्षेत्रों में किया जाता है जहां मिट्टी और जलवायु जौ की खेती के लिए आदर्श है।
- उपज: करण-201: औसत उपज 15 क्विंटल प्रति एकड़, करण-231: औसत उपज 17 क्विंटल प्रति एकड़, करण-264: औसत उपज 18.5 क्विंटल प्रति एकड़।
- उपयुक्त क्षेत्र: ये किस्में मध्य प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा के कुछ जिलों में उगाई जाती हैं। इनकी उच्च उपज क्षमता और गुणवत्ता इन्हें किसानों के लिए लाभदायक बनाती है।
डी डब्ल्यू आर बी 92 (DWRB 92)
- यह भी एक उन्नत किस्म है जो माल्ट उत्पादन के लिए विशेष रूप से विकसित की गई है। डी डब्ल्यू आर बी 92 रोग प्रतिरोधक है और उत्तरी भारत के मैदानी क्षेत्रों में उच्च गुणवत्ता का उत्पादन देती है।
- फसल की अवधि: यह किस्म बुवाई के बाद 131 दिनों में तैयार हो जाती है।
- पौधों की ऊंचाई: पौधों की औसत ऊंचाई लगभग 95 सेमी होती है, जो इसे कटाई के लिए आसान बनाती है।
- उपज: इसकी औसत उपज 26 क्विंटल प्रति एकड़ है।
- उपयुक्त क्षेत्र: उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्र इस किस्म के लिए सबसे उपयुक्त है। यह किस्म अपनी स्थिरता और रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए जानी जाती है।
आर.डी-2899 (RD-2899)
- आरडी-2899 मध्य भारत के लिए विशेष रूप से उपयुक्त एक उन्नत किस्म है। यह जल्दी पकने वाली किस्म है और किसानों के लिए समय की बचत करती है।
- फसल की अवधि: यह फसल मात्र 110 दिनों में तैयार हो जाती है, जिससे किसानों को रबी सीजन में अन्य फसलों की बुवाई के लिए समय मिल जाता है।
- उपज: आर.डी-2899 का उत्पादन 25-30 क्विंटल प्रति एकड़ तक होता है, जो इसे अन्य किस्मों की तुलना में अधिक फायदेमंद बनाता है।
- रोग प्रतिरोधकता: यह तापमान और पीली रोली रोग के प्रति सहनशील है, जो इसे खराब मौसम में भी स्थिर उपज देने में सक्षम बनाती है।
क्या आप जौ की खेती करते हैं? अगर हाँ, तो आप कौन-सी किस्म का चुनाव करते हैं? अपना जवाब हमें कमेंट में जरूर बताएं। अगर यह पोस्ट पसंद आई हो, तो इसे लाइक करें और अपने किसान दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें। इसी तरह की अन्य रोचक और महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'कृषि ज्ञान' चैनल को फॉलो करें।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (Frequently Asked Questions - FAQs)
Q: जौ की कौन सी किस्म सबसे अच्छी होती है?
A: जौ की सबसे अच्छी किस्में उनके उपयोग और क्षेत्र पर निर्भर करती हैं। यदि आप माल्ट उत्पादन के लिए खेती करना चाहते हैं, तो डी डब्ल्यू आर बी 160 और डी डब्ल्यू आर बी 92 बेहतर विकल्प हैं। जल्दी पकने वाली किस्म के लिए आरडी-2899 और अधिक उपज के लिए करण-264 या रत्ना का चयन किया जा सकता है।
Q: जौ को कितनी बार पानी देना चाहिए?
A: जौ की फसल को अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती। पहली सिंचाई बुवाई के 21-25 दिन बाद करें। दूसरी सिंचाई बालियां आने के समय (लगभग 65-70 दिन पर) और तीसरी सिंचाई दाना भरने के समय (85-90 दिन पर) करें। कुल मिलाकर 2-3 सिंचाई पर्याप्त होती हैं।
Q: जौ कितने दिन में उगता है?
A: जौ का अंकुरण बुवाई के 5-7 दिनों के भीतर शुरू हो जाता है। पूर्ण विकास और कटाई के लिए यह किस्म पर निर्भर करते हुए 110 से 130 दिन लेती है।
Q: जौ की बुवाई का सही समय क्या है?
A: जौ की बुवाई का आदर्श समय अक्टूबर के अंतिम सप्ताह से लेकर नवंबर के मध्य तक है। इस समय पर बुवाई से पौधों का विकास और उपज दोनों बेहतर होती हैं।
Q: जौ की खेती कहां होती है?
A: जौ की खेती भारत के उत्तर, पश्चिम और मध्य भागों में प्रमुख रूप से होती है। खासतौर पर हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में जौ की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। ये क्षेत्र जौ की उपज के लिए उपयुक्त माने जाते हैं क्योंकि यहां की जलवायु और मिट्टी जौ के विकास के लिए अनुकूल होती है। जौ की खेती रबी सीजन में की जाती है, जब मौसम ठंडा होता है और पर्याप्त बारिश भी होती है।
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