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16 July
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एलोवेरा: रोग, लक्षण, बचाव एवं उपचार | Aloe Vera: Diseases, Symptoms, Prevention and Treatment

एलोवेरा, जिसे घृतकुमारी भी कहा जाता है, एक प्रसिद्ध औषधीय पौधा है जो अपने औषधीय गुणों और बहु उपयोगिता के कारण विश्व भर में लोकप्रिय है। इसका उपयोग औषधियों, सौंदर्य प्रसाधनों, खाद्य पदार्थों और अन्य उद्योगों में व्यापक रूप से किया जाता है। एलोवेरा के पत्तों के साथ एलोवेरा जेल, जूस, और पाउडर की मांग भी अधिक है। भारत में गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में इसकी व्यावसायिक खेती की जाती है। किसानों को अधिक लाभ देने वाला यह पौधा कई तरह के रोगों के प्रति संवेदनशील है। आइए इस पोस्ट के माध्यम से हम एलोवेरा के पौधों में लगने वाले कुछ प्रमुख रोग एवं इन पर नियंत्रण की विस्तृत जानकारी प्राप्त करें।

एलोवेरा के पौधों में लगने वाले कुछ प्रमुख रोग | Some major diseases affecting aloe vera plants

लीफ स्पॉट रोग से होने वाले नुकसान: लीफ स्पॉट एक कवक रोग है, जिसे कुछ क्षेत्रों में पत्ती धब्बा रोग भी कहा जाता है। इस रोग के कारण शुरुआत में एलोवेरा के पत्तों पर भूरे रंग के गोलाकार धब्बे उभरने लगते हैं। धीरे-धीरे धब्बे बड़े होने लगते हैं और पूरे पत्ते को ढक लेते हैं। यह रोग पत्तियों के पीलेपन और परिगलन का कारण बनता है। यह पौधे की प्रकाश संश्लेषक क्षमता को कम कर सकता है। जिससे उपज एवं गुणवत्ता बुरी तरह प्रभावित होती है। वारावरण में आर्द्रता होने पर यह रोग तेजी से फैलता है।

लीफ स्पॉट रोग पर नियंत्रण के तरीके:

  • प्रति लीटर पानी में 1 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाजोल 18.3% एस.सी. (देहात एजीटॉप) का छिड़काव करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 200 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 18.2% +डिफेनोकोनाजोल 11.4% एस.सी (देहात सिनपैक्ट, गोदरेज बिलियर्ड्स, बीएसीएफ एड्रोन) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 600-800 ग्राम प्रोपिनेब 70% डब्ल्यू.पी. (देहात जिनेक्टो, बायर एंट्राकोल) का प्रयोग करें।

जड़ सड़न रोग से होने वाले नुकसान: यह एक कवक जनित रोग है जो एलोवेरा के पौधों की जड़ों को प्रभावित करता है। इस रोग के होने पर पौधों की पत्तियां पीली होने लगती हैं। कुछ समय बाद पत्तियां मुरझाने लगती हैं। प्रभावित पौधों के विकास में बाधा आती है। गीली मिट्टी में या खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था नहीं होने के कारण यह रोग तेजी से पनपते एवं फैलते हैं।

जड़ सड़न रोग पर नियंत्रण के तरीके:

  • प्रति एकड़ खेत में 400 ग्राम थियोफानेट मिथाइल 70% डब्ल्यूपी (बायोस्टैड रोको) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 400 ग्राम कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% डब्ल्यू.पी (देहात साबू) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 300 मिलीलीटर मेटालैक्सिल 3.3% + क्लोरोथालोनिल 33.1% एससी (सिंजेंटा फोलियो गोल्ड) का प्रयोग करें।

एन्थ्रेक्नोज रोग से होने वाले नुकसान: इस रोग के होने का मुख्य कारण कवक का प्रकोप है। ये कवक मिट्टी में काफी लम्बे समय तक जीवित रहते हैं। यह रोग पानी के छींटे, हवा, कीड़े और दूषित उपकरण का प्रयोग करने से तेजी से फैलता है। इस रोग से प्रभावित पौधों के पत्तों पर गहरे, धंसे हुए धब्बे उभरने लगते हैं। रोग बढ़ने के साथ धब्बों का आकार भी बढ़ने लगता है। पत्ते पूरी तरह भूरे हो कर सूख जाते हैं।

एन्थ्रेक्नोज रोग पर नियंत्रण के तरीके:

  • इस रोग से बचने के लिए फसल चक्र अपनाएं।
  • अत्यधिक सिंचाई या जल जमाव की स्थिति से बचने के लिए जल निकासी की उचित व्यवस्था करें।
  • संक्रमित पौधों के मलबे को खेत से बाहर निकाल कर नष्ट कर दें।
  • प्रति एकड़ खेत में 200 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 18.2% +डिफेनोकोनाजोल 11.4% एस.सी (देहात सिनपैक्ट) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 300 ग्राम कासुगामाइसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 45% डब्ल्यूपी (धानुका कोनिका) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 450 ग्राम कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% डब्लूपी (देहात साबू) का प्रयोग करें।

तना सड़न रोग से होने वाले नुकसान: इस रोग के होने का मुख्य कारण कवक है। एलोवेरा के पौधे इस रोग के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। इस रोग के कारण भूमि की सतह से सटे तने धीरे-धीरे सड़ने लगते हैं। प्रभावित तनों पर भूरे रंग के धब्बे देखे जा सकते हैं। इस रोग के कारण तने कमजोर हो कर टूट सकते हैं।

तना सड़न रोग पर नियंत्रण के तरीके:

  • बुवाई से पहले प्रति किलोग्राम कंदों को 4 ग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडी से उपचारित करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 250-320 मिलीलीटर फ्लुसिलाज़ोल 12.5% + कार्बेन्डाजिम 25% एसई (धानुका लस्टर) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 200 मिलीलीटर इमिडाक्लोप्रिड 18.5% + हेक्साकोनाज़ोल 1.5% एफएस (टाटा रेलीज का नियोनिक्स) का प्रयोग करें।

आपके एलोवेरा के पौधों में किस रोग का प्रकोप अधिक होता है और रोगों पर नियंत्रण के लिए आप किन दवाओं का प्रयोग करते हैं? अपने जवाब हमें कमेंट के द्वारा बताएं। कृषि संबंधी जानकारियों के लिए देहात के टोल फ्री नंबर 1800-1036-110 पर सम्पर्क करके विशेषज्ञों से परामर्श भी कर सकते हैं। इसके अलावा, 'किसान डॉक्टर' चैनल को फॉलो करके आप फसलों के सही देखभाल और सुरक्षा के लिए और भी अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इसके साथ ही इस पोस्ट को लाइक एवं शेयर करके आप इस जानकारी को अन्य किसानों तक पहुंचा सकते हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: घृतकुमारी की खेती कैसे करें?

A: भारत में घृतकुमारी की खेती इसके तने की कटिंग को अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में लगा कर की जा सकती है। मिट्टी का पीएच स्तर 7-8 के बीच होना चाहिए। इसके पौधों को मध्यम धूप और पानी की आवश्यकता होती है। पौधों को लगाने के करीब 8-10 महीनों के बाद काटा जा सकता है।

Q: एलोवेरा को कैसे उगाया जाता है?

A: एलोवेरा आमतौर पर 7-8 के पीएच के साथ अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में अपने तने की कटिंग लगाकर उगाया जाता है। इसकी व्यावसायिक खेती के लिए ऐसे स्थान का चयन करें जहां जल जमाव की समस्या न हो और प्रति दिन अच्छी धूप आती हो। एलोवेरा को घर के अंदर या बाहर गमलों या कंटेनरों में भी उगाया जा सकता है। इस बात का ध्यान रखें कि गमलों या कंटेनरों को ऐसे स्थान पर रखें जहां खुली धूप आती है। मिट्टी में नमी के अनुसार सिंचाई करें। आवश्यकता से अधिक मात्रा में सिंचाई करने से तने सड़ने लग सकते हैं।

Q: एलोवेरा में कौन सी खाद डालनी चाहिए?

A: एलोवेरा के पौधों के उचित विकास के लिए नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश युक्त उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए। बेहतर परिणाम के लिए उर्वरकों की मात्रा मिट्टी में मौजूद पोषक तत्वों के अनुसार करें।

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