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अरहर की खेती: प्रमुख कीट, लक्षण, बचाव एवं नियंत्रण | Arhar cultivation: Major Pests, Symptoms, Prevention and Control
भारत में आंध्र प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में अरहर की खेती प्रमुखता से की जाती है। अरहर की फसल में कई तरह के कीट आक्रमण करते हैं। सही समय पर इन कीटों पर नियंत्रण नहीं किया गया तो पूरी फसल नष्ट हो सकती है। इससे किसानों काफी नुकसान का सामना करना पड़ सकता है। इस पोस्ट में दिए गए गए उपायों को अपना कर आप अरहर में लगने वाले कीट पर नियंत्रण प्राप्त सकते हैं और फसल की पैदावार भी बढ़ा सकते हैं।
अरहर की फसल में लगने वाले प्रमुख कीट | Major pests affecting pigeon pea crop
फली छेदक कीट से होने वाले नुकसान: इस कीट का लार्वा फलियों में छेद करके अंदर के दानों को खाते हैं। प्रभावित फलियों पर छोटे-छूटे छेद देखे जा सकते हैं। गंभीर रूप से फली छेदक कीट का प्रकोप बढ़ने पर अरहर की उपज में 80% तक कमी हो सकती है।
फली छेदक कीट पर नियंत्रण के तरीके
- इस कीट पर नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ खेत में 4-5 फेरोमोन ट्रैप लगाएं।
- प्रति एकड़ खेत में 54-88 ग्राम इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एस.जी. (देहात इल्लीगो, धानुका इ.एम. 1, अदामा अम्नोन) का प्रयोग करें।
- 80 मिलीलीटर थियामेथोक्सम 12.6% + लैम्ब्डा साइहलोथ्रिन 9.5% जेड सी (देहात एंटोकिल) को 200 लीटर पानी में मिला कर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
- 200 लीटर पानी में 120 मिलीलीटर डेल्टामेथ्रिन 2.8% ईसी (बायर डेसीस 2.8) मिला कर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- 200 लीटर पानी में 80 मिलीलीटर क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 18.5% w/w एससी (एफएमसी कोराजन) मिला कर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- 200 लीटर पानी में 300 मिलीलीटर नोवलूरॉन 5.25% + इंडोक्साकार्ब 4.5% w/w एससी (अडामा प्लेथोरा) मिला कर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
तना छेदक कीट से होने वाले नुकसान: तना छेदक कीट यानी स्टेम बोरर कीट का लार्वा पौधे के तने में छेद करता है। जिससे प्रभावित पौधे मुरझाने लगता है। इस कीट पर नियंत्रण नहीं करने से पौधे नष्ट हो सकते हैं। इस कीट के कारण होने वाली क्षति गंभीर हो सकती है, कुछ मामलों में अरहर के कीट के कारण उपज में 50% तक कमी हो सकती है।
तना छेदक कीट पर नियंत्रण के तरीके
- प्रति एकड़ खेत में 54-88 ग्राम इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एस.जी. (देहात इल्लीगो, धानुका इ.एम. 1, अदामा अम्नोन) का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 400 मिलीलीटर क्विनलफॉस 25% ईसी (धानुका धानुलक्स, सिन्जेंटा एकालक्स, हाईफील्ड डिफेंडर, सुमिटोमो कैमलॉक्स) का प्रयोग करें।
ब्लिस्टर बीटल कीट से होने वाले नुकसान: इसे फूलों का टिड्डा के नाम से भी जाना जाता है। यह कीट फूलों को खाता है। जिससे पौधों में फलियों की मात्रा कम हो जाती है। इस कीट का प्रकोप बढ़ने पर पौधों में फलियां नहीं बनती हैं। फलस्वरूप पैदावार में भी भारी कमी देखने को मिलती है।
ब्लिस्टर बीटल कीट पर नियंत्रण के तरीके
- यदि संभव हो तो व्यस्क कीटों को हाथों से नष्ट करें।
- प्रति एकड़ खेत में 10 फेरोमोन ट्रैप लगाएं।
- रासायनिक नियंत्रण के लिए निम्नलिखित में से किसी एक दवा का छिड़काव करें।
- 200 लीटर पानी में 300 मिलीलीटर अजाडिराक्टिन 01.00% ईसी 10000 पीपीएम (मार्गो इकोनीम प्लस) मिला कर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- प्रति एकड़ खेत में 200 मिलीलीटर डेल्टामेथ्रिन 2.8 ईसी. (बायर- डेसिस 2.8) का प्रयोग करें।
- 200 लीटर पानी में 100 ग्राम इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एस जी (देहात इल्लीगो) मिला कर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
- 200 लीटर पानी में 100 मिलीलीटर थियामेथोक्सम 12.6% + लैम्ब्डा साइहलोथ्रिन 9.5% जेड सी (देहात एंटोकिल) मिला कर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
- 300 मिलीलीटर डाइमेथोएट 30% ईसी (टाटा टैफगोर) को 200 लीटर पानी में मिला कर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- प्रति एकड़ खेत में 200 लीटर पानी 400 मिलीलीटर फेनवेलरेट 10% ईसी (टाटा रैलिस फेन) मिला कर छिड़काव करें।
- 200 लीटर पानी में 300 मिलीलीटर फेनप्रोपेथ्रिन 10% ईसी (सुमिटोमो डेनिटोल) मिला कर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
पत्ती लपेटक कीट से होने वाले नुकसान: यह पीले रंग की सुंडी होती है जो पत्तियों को लपेट कर सफेद जाल बनाती हैं। उस जल के अंदर छुप कर यह पत्तियों को खाती हैं। पत्तियों के साथ यह फूलों और फलियों को भी खाती हैं।
पत्ती लपेटक कीट पर नियंत्रण के तरीके
- इस कीट पर नियंत्रण के लिए 200 लीटर पानी में 100 ग्राम थियामेथोक्सम 25%डब्ल्यू.जी (देहात एसियर) का छिड़काव करें।
- प्रति एकड़ खेत में 400 ग्राम ऐसफेट 50% + इमिडाक्लोप्रिड 1.8% एसपी (यूपीएल लांसर गोल्ड) का प्रयोग करें।
एफिड्स से होने वाले नुकसान: ये कीट पौधे के कोमल हिस्सों का रस चूसते हैं। जिससे पौधों की पत्तियां मुड़ने लगती हैं और पौधों के विकास में बाधा आती है। एफिड्स हनीड्यू नामक चिपचिपे पदार्थ का उत्सर्जन भी करते हैं, जिससे पौधे पर राख जैसी फफूंदी का विकास हो सकता है। इस कीट के कारण अरहर की पैदावार में भारी कमी देखी जा सकती है।
एफिड्स पर नियंत्रण के तरीके
- इन कीटों पर नियंत्रण के नीचे दी गई दवाओं में से किसी एक का प्रयोग करें।
- इस कीट पर नियंत्रण के लिए 200 लीटर पानी में 100 ग्राम थियामेथोक्सम 25%डब्ल्यू.जी (देहात एसियर) का छिड़काव करें।
- 80 मिलीलीटर थियामेथोक्सम 12.6% + लैम्ब्डा साइहलोथ्रिन 9.5% जेड सी (देहात एंटोकिल) को 150-200 लीटर पानी में मिला कर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
सफेद मक्खी से होने वाले नुकसान: सफेद मक्खियां पौधे पत्तियों, कोमल शाखाओं, फूल एवं फलियों का रस चूसती हैं। जिससे पौधों का विकास अवरुद्ध हो जाता है और उपज भी कम हो जाती है। ये कीट वायरस को भी प्रसारित करते। इस तरह इस कीट से फसल को भारी क्षति पहुंच सकती है।
सफेद मक्खी पर नियंत्रण के तरीके
- 300 मिलीलीटर क्लोपाइरीफोस 50% + साइपरमेथ्रिन 5% ईसी (देहात सी-स्क्वायर ) को 150-200 लीटर पानी में मिला कर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
- 1200 लीटर पानी में 300 ग्राम ऐसफेट 50% + इमिडाक्लोप्रिड 1.8% एसपी (यूपीएल लांसर गोल्ड) मिला कर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- प्रति एकड़ खेत में 200 लीटर पानी में 80 ग्राम एसिटामिप्रिड 20% एसपी (टाटा रैलिस माणिक) का प्रयोग करें।
आपके खेत में अरहर की फसल में किस कीट का प्रकोप अधिक होता है? अपने जवाब हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। इसके साथ ही इस पोस्ट को लाइक और शेयर करना न भूलें। फसलों को विभिन्न कीटों एवं रोगों से बचाने की अधिक जानकारियों के लिए ' किसान डॉक्टर ' चैनल को तुरंत फॉलो करें।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न | Frequently Asked Questions (FAQs)
Q: अरहर में कौन सी दवा डालें?
A: अरहर की फसल में दवाओं का प्रयोग कीटों एवं रोगों के अनुसार करें। दवाओं के इस्तेमाल के समय उसकी मात्रा का भी विशेष ध्यान रखें। आवश्यकता से अधिक मात्रा में रासायनिक दवाओं का प्रयोग फसलों को भी नुकसान पहुंचा सकता है।
Q: अरहर की अधिक उपज कैसे प्राप्त करें?
A: अरहर की पैदावार बढ़ाने के लिए, उच्च गुणवत्ता वाले बीजों का उपयोग करना, उचित भूमि तैयारी का अभ्यास करना और उपयुक्त उर्वरकों और सिंचाई विधियों का उपयोग करना महत्वपूर्ण है। फलीदार फसलों के साथ फसल चक्र अपनाने से भी मिट्टी की उर्वरता में सुधार करने में मदद मिल सकती है। इसके अतिरिक्त, समय पर कीट और रोग प्रबंधन और उचित कटाई तकनीक भी उच्च पैदावार में योगदान कर सकती है।
Q: अरहर की बुवाई कब होती है?
A: भारत में, अरहर की बुवाई आमतौर पर वर्षा के मौसम के दौरान की जाती है, जो जून से जुलाई तक होता है। स्थान और मौसम की स्थिति के आधार पर सटीक समय भिन्न हो सकता है। यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि बीज अंकुरित होने और ठीक से स्थापित होने के लिए मिट्टी में पर्याप्त नमी हो।
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