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20 July
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हींग: रोग, लक्षण, बचाव एवं उपचार | Asafoetida: Diseases, Symptoms, Prevention and Treatment

हींग में कई तरह के एंटीऑक्सीडेन्ट्स पाए जाते हैं। इस कारण इसका प्रयोग आयुर्वेदिक दवाओं के निर्माण में किया जाता है। पेट दर्द, दांत दर्द, सिर दर्द, खांसी, त्वचा रोग से निजात दिलाने के साथ हींग का प्रयोग रक्तचाप को नियंत्रित करने में भी किया जाता है। इतने रोगों में राहत दिलाने वाले हींग के पौधे भी कई तरह के रोगों की चपेट में आ जाते हैं। जिससे पौधों से निकलने वाले राल की गुणवत्ता कम हो जाती है। हींग के पौधों में लगने वाले कुछ प्रमुख रोगों के लक्षण एवं नियंत्रण की विस्तृत जानकारी के लिए इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ें।

हींग के पौधों में लगने वाले कुछ प्रमुख रोग | Some major diseases affecting asafoetida plants

मृदुरोमिल आसिता से होने वाले नुकसान: कुछ क्षेत्रों में इस रोग को डाउनी मिल्ड्यू रोग भी कहा जाता है। इस रोग से प्रभावित पत्तियों की ऊपरी सतह पर पीले से भूरे रंग के धब्बे उभरने लगते हैं। पत्तियों की निचली सतह पर सफेद या भूरे रंग के धब्बे देखे जा सकते हैं। इस रोग के कारण पौधे कमजोर हो जाते हैं और उनके विकास में बाधा आती है।

मृदुरोमिल आसिता पर नियंत्रण के तरीके:

  • इस रोग को फैलने से रोकने के लिए रोग से प्रभावित पौधों को नष्ट कर दें।
  • इस रोग पर नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ खेत में 600-800 ग्राम मैंकोजेब 75% डब्लूपी (देहात डेम 45, कात्यायनी के जेब एम-45) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 350-400 ग्राम बेनालैक्सिल 8% + मैंकोजेब 65% डब्लूपी (फैंटिक एम) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 200 मिलीलीटर एज़ोक्सीस्ट्रोबिन 23% एससी का प्रयोग करें।

खस्ता फफूंदी रोग से होने वाले नुकसान: कुछ क्षेत्रों में इस रोग को पाउडरी मिल्ड्यू रोग और चूर्णिल आसिता रोग के नाम से भी जाना जाता है। इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों और फूलों सफेद रंग के पाउडर की तरह पदार्थ से ढक जाते हैं। इस रोग के बढ़ने पर प्रभावित पत्तियां पीली हो कर गिरने लगती हैं। इस रोग के कारण पौधों के विकास में बाधा उत्पन्न होती है।

खस्ता फफूंदी रोग पर नियंत्रण के तरीके:

  • इस रोग को फैलने से रोकने के लिए प्रभावित पत्तों को तोड़ कर नष्ट कर दें।
  • खस्ता फफूंदी रोग पर नियंत्रण के लिए नीचे दी गई दवाओं में से किसी एक का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 300 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.3% एस.सी. (देहात एजीटॉप) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 200 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 18.2% +डिफेनोकोनाजोल 11.4% एस.सी (देहात सिनपैक्ट) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 300 ग्राम टाटा ताकत (कैप्टन 70% + हेक्साकोनाज़ोल 5% WP) का प्रयोग करें।

पत्ती धब्बा रोग से होने वाले नुकसान: इस रोग को लीफ स्पॉट रोग के नाम से भी जाना जाता है। इस रोग की शुरुआत में पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे उभरने लगते हैं। ये धब्बे आकार में गोल होते हैं। रोग बढ़ने के साथ धब्बे भी बड़े होने लगते हैं और पूरी पत्तियों को ढक लेते हैं। कुछ समय बाद पत्तियां गिरने लगती हैं। वारावरण में अधिक आर्द्रता होने पर यह रोग तेजी से फैलता है।

पत्ती धब्बा रोग पर नियंत्रण के तरीके:

  • प्रति लीटर पानी में 1 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाजोल 18.3% एस.सी. (देहात एजीटॉप) का छिड़काव करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 200 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 18.2% +डिफेनोकोनाजोल 11.4% एस.सी (देहात सिनपैक्ट, गोदरेज बिलियर्ड्स, बीएसीएफ एड्रोन) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 600-800 ग्राम प्रोपिनेब 70% डब्ल्यू.पी. (देहात जिनेक्टो, बायर एंट्राकोल) का प्रयोग करें।

तना सड़न रोग से होने वाले नुकसान: यह एक कवक जनित रोग है। हींग के पौधे इस रोग के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। इस रोग के कारण पौधों के तने धीरे-धीरे सड़ने लगते हैं। प्रभावित तनों पर भूरे रंग के धब्बे देखे जा सकते हैं। कुछ समय बाद तने कमजोर हो कर टूट सकते हैं।

तना सड़न रोग पर नियंत्रण के तरीके:

  • बुवाई से पहले प्रति किलोग्राम कंदों को 4 ग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडी से उपचारित करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 250-320 मिलीलीटर फ्लुसिलाज़ोल 12.5% + कार्बेन्डाजिम 25% एसई (धानुका लस्टर) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 200 मिलीलीटर इमिडाक्लोप्रिड 18.5% + हेक्साकोनाज़ोल 1.5% एफएस (टाटा रेलीज का नियोनिक्स) का प्रयोग करें।

जड़ गलन रोग से होने वाले नुकसान: यह एक फफूंद जनित रोग है। खेत में जल जमाव होने के कारण भी इस रोग के होने की संभावना बढ़ जाती है। इस रोग के कवक मिट्टी में कई वर्षों तक जीवित रह सकते हैं और मिट्टी को लगभग 7 फीट की गहराई तक संक्रमित कर सकते हैं। इस रोग से प्रभावित पौधों के निचले तनों पर सफेद रंग के फफूंद नजर आने लगते हैं। पौधों की पत्तियां पीली से भूरी होने लगती हैं। कुछ समय बाद पत्तियां झड़ने लगती हैं। रोग बढ़ने पर पौधे पर अनियमित आकार के धब्बे उभरने लगते हैं। पौधे आसानी से उंखड़ जाते हैं और उसकी जड़ें गली हुई सी नजर आती हैं।

जड़ गलन रोग पर नियंत्रण के तरीके:

  • बुवाई के लिए प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें।
  • खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था करें।
  • इस रोग को फैलने से रोकने के लिए प्रभावित पौधों को नष्ट करें।
  • प्रति किलोग्राम बीज को 6-10 मिलीलीटर ट्राइकोडर्मा विरडी (डॉ. बैक्टो डर्मस) से उपचारित करें।
  • प्रति किलोग्राम बीज को 2.5 ग्राम कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोजेब 63% डब्लूपी (बीएसीएफ कारमैन, यूपीएल साफिलाइजर, धानुका सिक्सर) से उपचारित करें।

हींग के पौधों को विभिन्न रोगों से बचाने के लिए आप क्या तरीका अपनाते हैं? अपने जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। फसलों को विभिन्न रोगों और कीटों से बचाने की अधिक जानकारी के लिए 'किसान डॉक्टर' चैनल को तुरंत फॉलो करें। इसके साथ ही इस पोस्ट को लाइक और शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: पौधे की बीमारी की पहचान कैसे करें?

A: पौधों में लगने वाले रोगों की पहचान उसकी पत्तियों, तने, शाखाओं, आदि को देख कर की जा सकती है। इसके अलावा पौधों के विकास में रुकावट या पौधों के मुरझाने से भी रोगों की पहचान की जा सकती है।

Q: पौधों से हींग कैसे निकालते हैं?

A: पौधों से हींग को निकालने के लिए जड़ों की खुदाई कर के बाहर निकाला जाता है। इसके बाद जड़ों को काटा जाता है। इससे निकलने वाले रस यानी राल को इकट्ठा किया जाता है। फिर इस राल को प्रोसेस करके हींग तैयार किया जाता है।

Q: हींग का प्रयोग कैसे किया जाता है?

A: भारतीय व्यंजनों में हींग का इस्तेमाल तड़के के तौर पर किया जाता है। इसके अलावा हींग का इस्तेमाल कई अन्य तरीकों से भी किया जाता है। इससे पौधों के लिए जैविक उर्वरक एवं कीटनाशक तैयार किया जाता है।

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