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1 July
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अश्वगंधा की खेती (Ashwagandha farming)


अश्वगंधा (Withania somnifera) एक चमत्कारी जड़ी-बूटी है जिसे उसके औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है। इसकी जड़ों से घोड़े जैसी गंध आती है, और यह शरीर को स्फूर्ति प्रदान करती है। अश्वगंधा के बीज, जड़ और पत्तियों से विभिन्न औषधि बनाई जाती हैं, जो तनाव, बुढ़ापे की बीमारी, चिंता, अवसाद, भय, सिज़ोफ्रेनिया आदि को नियंत्रित करने में मदद करती हैं। इसका वृक्ष औसत ऊँचाई में 30 सेमी से 120 सेमी तक होता है और इसकी जड़ें मांसल, सफेद-भूरे रंग की होती हैं। इसके फूल नारंगी-लाल रंग के होते हैं और पत्तियां हरे रंग की होती हैं। भारत में राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश अश्वगंधा के प्रमुख उत्पादक राज्य हैं।

कैसे करें अश्वगंधा की खेती? (How to cultivate Ashwagandha?)

मिट्टी: अश्वगंधा की खेती के लिए सबसे अच्छी रेतीली दोमट या हल्की लाल मिट्टी मानी जाती है, जिसमें जल निकास की अच्छी व्यवस्था हो और जिसका pH 7 से 8 के बीच होता है। अश्वगंधा को ज्यादा नमी और जलभराव वाली मिट्टी में लगाना कठिन होता है। मिट्टी ढीली, गहरी और अच्छी जल निकासी वाली होनी चाहिए। अच्छी जल निकासी वाली काली या भारी मिट्टी भी अश्वगंधा की खेती के लिए उपयुक्त होती है।

जलवायु: अश्वगंधा की खेती खरीफ मौसम में की जाती है। यह फसल 20-38 डिग्री सेल्सियस के बीच के तापमान को सहन कर सकती है, जबकि यह 10 डिग्री सेल्सियस तक के कम तापमान को भी सहन कर सकती है।

किस्में: जवाहर अश्वगंधा-20, पोशिता, जवाहर अश्वगंधा-134, अर्का अश्वगंधा किस्में मुख्य हैं।

बुवाई का समय: अश्वगंधा की खेती के लिए जून-जुलाई के महीने में नर्सरी तैयार करें। जब बारिश की संभावना अधिक होती है और जमीन में पर्याप्त नमी होती है। सिंचित अवस्था में बुवाई सितंबर महीने में भी कर सकते हैं।

बीजदर: अश्वगंधा की बुवाई नर्सरी द्वारा करने में प्रति एकड़ की दर से 2-5 किलो बीज की आवश्यकता होती है, और अगर अश्वगंधा की बुवाई छिटकवा विधि के द्वारा करते हैं तो लगभग 4 किलो बीज की जरूरत पड़ती है। लाइन में बुवाई करने से बीज की मात्रा कम लगती है।

बुवाई का तरीका :

  • अश्वगंधा की खेती के लिए बीजों को लगभग 1 से 3 सेमी गहराई में बोएं और पौधे से पौधे की दूरी 8-10 सेमी और पंक्ति से पंक्ति की दूरी 20-25 सेमी के बीच ही रखें।
  • नर्सरी से पौधे 5 से 6 सेमी ऊंचाई वाले पौधे रोपाई के लिए तैयार हैं। यानी 6 से 7 हफ्ते के बाद खेत में लगा दें।
  • अश्वगंधा के बीजों को नीम की पत्तियों के अर्क से उपचार करें। इससे वे फंगल संक्रमण और कीटों से सुरक्षित रहेंगे।
  • खेत को बुवाई से पहले 2-3 बार अच्छी तरह से हल करें, ताकि एक अच्छा बीज बेड तैयार हो।
  • अगस्त महीना सबसे उपयुक्त होता है बुवाई के लिए, सिंचित स्थितियों में सितंबर में भी बुवाई की जा सकती है।
  • अश्वगंधा के 3500 से 5000 पौधे की जरूरत प्रति एकड़ के लिए पड़ती है।
  • मिट्टी की उर्वरता के आधार पर दूरी और अंतराल अलग-अलग हो सकते हैं, इसे ध्यान में रखें।

खेत की तैयारी:

  • खेत में जल निकास (ड्रेनेज) की उचित व्यवस्था करें।
  • मानसून के आने से पहले खेत की 2-3 बार गहरी जुताई हल या देशी हल से करें, उसके बाद पाटा चला कर मिट्टी के ढेले तोड़ कर मिट्टी को भुरभुरा बनाएं।
  • मृदा परीक्षण के अनुसार खेत में खाद एवं उर्वरक दें।
  • खेत की तैयारी के दौरान मिट्टी में गोबर की खाद और 13 से 15 किलोग्राम यूरिया मिलाएं।

उर्वरक एवं खाद प्रबंधन:

  • फसल को खाद देने के लिए मल्चिंग, कम्पोस्ट, और जैव-उर्वरक उपयुक्त हैं।
  • अच्छी फसल लेने के लिये खेत की तैयारी के समय 4 टन गोबर की अच्छी गली-सड़ी खाद मिला दें।
  • वर्मीकम्पोस्टिंग मिट्टी में पोषक तत्व प्रदान करता है और फसल की स्वस्थ वृद्धि में मदद करता है।
  • इस औषधीय फसल के लिए उर्वरकों और खादों की अधिक मात्रा की आवश्यकता नहीं होती।
  • खेत में खाद, हरी खाद, और वर्मी कम्पोस्ट जैसी जैविक खाद उपयुक्त हैं।
  • उच्च गुणवत्ता वाली उपज के लिए, प्रति एकड़ निम्नलिखित मात्रा में N:P उपयुक्त है: 13 किलो यूरिया और 30 किलो डीएपी की जरूरत होती है।

खरपतवार प्रबंधन:

  • खेत को खरपतवारों से मुक्त करने के लिए खेत से दो से तीन बार निराई-गुड़ाई करें।
  • पहली 20 से 25 दिन में और दूसरा 40 से 50 दिन बाद एक बार फिर से निराई गुड़ाई करनी आवश्यक है।
  • खरपतवार नाशक दवा का इस्तेमाल करें।

सिंचाई प्रबंधन:

  • वर्षा के मौसम में सिंचाई की अधिक आवश्यकता नहीं होती है।
  • आवश्यकतानुसार लगभग 15 से 20 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें, ताकि फसल को प्राथमिकता से पानी प्राप्त हो सके।
  • पहली सिंचाई बुवाई के 30 से 35 दिनों के बाद करें और दूसरी सिंचाई बुवाई के 60 से 70 दिनों के बाद करनी चाहिए।

कीट एवं रोग:

  • अश्वगंधा के प्रमुख कीटों में एफिड्स, स्पाइडर माइट्स और व्हाइटफ्लाइज शामिल हैं। इसके लिए कीटनाशकों का उपयोग करें और इसके अलावा प्राकृतिक तरीकों से नियंत्रण करें, जैसे नीम के तेल या लहसुन स्प्रे।
  • अश्वगंधा में सबसे आम रोगों में जड़ सड़न, पत्ती धब्बे और पाउडर फफूंदी शामिल हैं। रोगों को नियंत्रित करने के लिए उचित जल निकास सुनिश्चित करें और पौधों को अधिक पानी देने से बचें। पौधों के आसपास अच्छे वायु परिसंचरण को बनाए रखने के लिए उचित प्रबंध करें। रोग दिखने पर कवकनाशी का उपयोग करें।

फसल पकने के लक्षण:

  • पौधों की पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं।
  • फल पककर लाल-नारंगी हो जाते हैं।

अश्वगंधा की खुदाई:

  • पौधों को खेत से उखाड़ कर अलग कर लेना चाहिए, तत्पश्चात तनों की कटाई करनी चाहिए।
  • पौधों को अधिक गहराई तक खुदाई के साथ उखाड़ा जाना चाहिए अन्यथा जड़ें टूट सकती हैं।
  • जड़ों को पानी से साफ कर धूप में सुखा लें।
  • फलों से बीज को अलग कर लें।
  • जड़ों को लंबाई एवं मोटाई के अनुसार अलग कर लें। अधिक लंबी एवं मोटी जड़ें बेहतर श्रेणी की मानी जाती हैं।
  • जड़ों की छंटाई के बाद उन्हें जूट के बोरों में भरकर हवादार और दीमक रहित स्थान पर भंडारण के लिए रख दें।

उपज:

  • बुवाई के 150 से 170 दिनों में फसल तैयार हो जाती है।
  • प्रति एकड़ खेत में 240-320 किलोग्राम सूखी जड़ प्राप्त होती है।
  • प्रति एकड़ जमीन 20 से 24 किलोग्राम बीज प्राप्त कर सकते हैं।

अश्वगंधा के लाभ:

  • यह प्राकृतिक उपाय तनाव और चिंता को कम करने में सहायक होता है।
  • अश्वगंधा रक्त शर्करा के स्तर और वसा को कम करता है।
  • नियमित सेवन से मांसपेशियों की ताकत बढ़ती है।
  • यह प्रजनन क्षमता को बढ़ाने में मदद करता है।
  • अश्वगंधा ध्यान और स्मरण शक्ति को तीव्र करता है।
  • यह हृदय स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में सहायक है।
  • एथलीटों के प्रदर्शन को बढ़ाने में मदद करता है।

आप अश्वगंधा की खेती कैसे करते हैं? अपना जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट करके बताएं। इस लेख में आपको खाद एवं उर्वरक की सम्पूर्ण जानकारी दी गयी है और ऐसी ही अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'कृषि ज्ञान' चैनल को अभी फॉलो करें। और अगर आपको ये पोस्ट पसंद आयी तो इसे अभी लाइक करें और अपने सभी किसान मित्रों के साथ साझा जरूर करें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: अश्वगंधा की खेती कितने दिन में तैयार हो जाती है?

A: अश्वगंधा की फसल बुवाई के 160-180 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है।

Q: भारत में अश्वगंधा का पौधा कहां पाया जाता है?

A: अश्वगंधा की खेती राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश देश के प्रमुख अश्वगंधा उत्पादक राज्य हैं। इसकी खेती अकेले मध्य प्रदेश में 5000 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में होती है।

Q: अश्वगंधा एक बीघा में कितना निकलता है?

A: एक बीघा भूमि (लगभग 0.33 एकड़) में अश्वगंधा की उपज मिट्टी की उर्वरता, जलवायु, सिंचाई और खेती के तरीकों जैसे विभिन्न कारकों पर निर्भर करती है। औसतन, एक बीघा भूमि में अश्वगंधा की उपज 200-300 किलोग्राम सूखी जड़ों तक हो सकती है। हालांकि, उचित प्रबंधन प्रथाओं के साथ, उपज को 400-500 किलोग्राम प्रति बीघा तक बढ़ाया जा सकता है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि अश्वगंधा की किस्म और खेती के लिए उपयोग किए जाने वाले बीजों की गुणवत्ता के आधार पर उपज भिन्न हो सकती है।

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