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7 Oct
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बेबी कॉर्न की खेती (Baby Corn Farming)


बेबी कॉर्न न केवल अपने स्वाद के लिए बल्कि स्वास्थ्यवर्धक गुणों के कारण भी बहुत लोकप्रिय है। इसमें कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, प्रोटीन, और विटामिन प्रचुर मात्रा में होते हैं। इसे कच्चा या पकाकर खाया जा सकता है, और इसका उपयोग विभिन्न प्रकार के व्यंजनों में होता है। बेबी कॉर्न की खेती किसानों के लिए एक लाभकारी विकल्प होता है, क्योंकि इसका बाजार दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। बेबी कॉर्न के पौधे का उपयोग चारे के लिए भी किया जाता है, जो पोषण से भरपूर होता है। इसके सूखे पत्ते और भुट्टे को ईंधन के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

बेबी कॉर्न की खेती कैसे करें? (How to Cultivate Baby Corn)

  • मिट्टी (Soil): बेबी कॉर्न की खेती के लिए दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है, जिसमें जल निकासी की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए। मिट्टी की पीएच मात्रा 5.5 से 7.0 के बीच होनी चाहिए।
  • जलवायु (Climate): बेबी कॉर्न की खेती के लिए गर्म एवं आर्द्र जलवायु अच्छा माना जाता है। जहाँ का तापमान 25°C से 35°C के बीच होता है। इसके लिए ज्यादा ठंड और जलभराव वाली स्थिति में बेबी कॉर्न की फसल को नुकसान हो सकता है।
  • किस्में (Varieties): बेबी कॉर्न की गुणवत्ता और उपज में सुधार के लिए सही प्रजाति का चयन महत्वपूर्ण है। बेबी कॉर्न की प्रमुख किस्में: महिको- गोल्डन बेबी कॉर्न, विवेक सीड्स- हाइब्रिड बेबी कॉर्न 9, कावेरी सीड्स-कावेरी 25 एन, सिंजेन्टा-जी-5414, नथ बायो जीन्स-एच.एम-4, गंगा 9, एच.आई.एम 128, डेक्कन-1, डी.एच.एम-107, पूसा अर्ली हाइब्रिड मक्का-1, पूसा अर्ली हाइब्रिड मक्का-2, के.जे.एच-3459 पूसा अर्ली हाइब्रिड मक्का-3. विवेक हाइब्रिड -9, प्रकाश, पायनियर-एच.एम 10 ये प्रजातियाँ भी बेबी कॉर्न की खेती के लिए उपयुक्त है।
  • बुवाई का समय (Sowing Time): उत्तर भारत में बेबी कॉर्न की बुवाई दिसंबर और जनवरी को छोड़कर पूरे साल की जाती है, जबकि जनवरी के आखिरी सप्ताह में बुवाई सबसे उपयुक्त मानी जाती है। दक्षिण भारत में मौसम को ध्यान में रखते हुए इसकी खेती पूरे साल की जा सकती है।
  • बीज दर (Seed Rate): बेबी कॉर्न की बुवाई के लिए 8-10 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करना चाहिए।
  • खेत की तैयारी (Field Preparation): खेत की अच्छी तैयारी के लिए 3  से 4 बार गहरी जुताई करनी चाहिए इसके बाद मिट्टी को भुरभुरा बनाने के लिए खेत में पाटा लगाकर खेत को समतल किया जाता है। ऐसा करने से खरपतवार नष्ट हो जाते हैं और मिट्टी में पोषक तत्व बेहतर ढंग से मिलते हैं। बुवाई के समय बीजों की दूरी 15 सेमी (पौधे से पौधे) और 45 सेमी (पंक्ति से पंक्ति) होनी चाहिए। बीज को 3-4 सेमी गहराई में बोना चाहिए और मेड़ों को पूरब से पश्चिम दिशा में बनाना चाहिए ताकि सूर्य की किरणों का अधिकतम लाभ मिल सके।
  • खाद और उर्वरक प्रबंधन (Fertilizer Management): बेबी कॉर्न की खेती में प्रभावी उर्वरक प्रबंधन करना आवश्यक है। मिट्टी की तैयारी के समय 3 से 4 टन सड़ी हुई गोबर की खाद डालें। इसके साथ ही 130 किलोग्राम यूरिया, 52 किलोग्राम डीएपी, और 26 किलोग्राम एम.ओ.पी का उपयोग प्रति एकड़ की दर से करें। यूरिया को तीन भागों में डालें पहला बेसल डोज में और बाकी का हिस्सा बुवाई के 3 सप्ताह बाद 20-25 दिनों के बाद और 40-45 दिनों के बाद तीन चरणों में उपयोग करें। इस तरह से सही समय पर उर्वरकों का उपयोग करके फसलों की वृद्धि और उपज में सुधार किया जा सकता है।
  • सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management): बेबी कॉर्न की फसल जलजमाव को सहन नहीं कर सकती, इसलिए खेत में जल निकास की उचित व्यवस्था जरूरी है। फसल के दौरान, विशेष रूप से पौधों की वृद्धि और फल बनने के समय, नियमित सिंचाई आवश्यक होती है। बारिश के मौसम में यदि लंबे समय तक सूखा न हो, तो सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। पहली सिंचाई बुवाई से पहले करें ताकि बीज के अंकुरण के लिए मिट्टी में पर्याप्त नमी बनी रहे। बुवाई के 15 से 20 दिन बाद, जब पौधों की ऊंचाई 10 से 12 सेंटीमीटर हो जाए, तब दूसरी सिंचाई करें। गर्मियों की फसल में हर 8 से 10 दिन के अंतराल पर सिंचाई जारी रखें।
  • कीट और रोग (Pest and Disease): बेबी कॉर्न की फसल में मुख्य रूप से शूट फ्लाई, पिंक बोरर, और तना छेदक कीट लगते हैं। इन कीटों को नियंत्रित करने के लिए उचित समय पर कीटनाशक और फफूंद नाशक का छिड़काव करना चाहिए।
  • खरपतवार नियंत्रण (Weed Control): बेबी कॉर्न की फसल को खरपतवारों से होने वाले नुकसान बचाने के लिए खेतों में नियमित रूप से निराई-गुड़ाई करते रहना चाहिए। खरपतवारों की संख्या ज्यादा होने इनके नियंत्रण के लिए बुवाई के तुरंत बाद खरपतवार नाशक का उपयोग करना चाहिए। पहली निराई-गुड़ाई बुवाई के 2 सप्ताह बाद की जानी चाहिए और दूसरी निराई 3-4 सप्ताह बाद मिट्टी चढ़ाने के साथ करनी चाहिए।
  • अंतर्वर्ती फसलें (Intercropping): बेबी कॉर्न के साथ अंतर्वर्ती फसल लगाना फायदेमंद होता है। आलू, मटर, राजमा, चुकंदर, प्याज, लहसुन, पालक, मेथी, फूलगोभी, ब्रोकली, मूली, और गाजर जैसी फसलें बेबी कॉर्न के साथ उगाई जा सकती हैं। इससे न केवल मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ती है बल्कि अधिक मुनाफा भी प्राप्त होता है।
  • तुड़ाई (Harvesting): बेबी कॉर्न की तुड़ाई बुवाई के लगभग 45 से 50 दिन बाद करें जब भुट्टों में सिल्क (रेशम) आने के 1-3 दिन बाद भुट्टों का आकार लगभग 8-10 सेमी हो जाता है। इस समय भुट्टो को हाथ से तोड़ा जाता है। भुट्टो के ऊपर की पत्तियां नहीं हटानी चाहिए ताकि यह ताजगी बनाए रख सके। खरीफ के मौसम में प्रतिदिन और रबी के मौसम में एक दिन के अंतराल पर तुड़ाई करनी चाहिए।

क्या आप बेबी कॉर्न की खेती करते हैं? अपना जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट करके बताएं। इसी तरह की अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'कृषि ज्ञान' चैनल को अभी फॉलो करें। और अगर पोस्ट पसंद आयी तो इसे लाइक करके अपने किसान दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (Frequently Asked Questions - FAQs)

Q: बेबी कॉर्न कैसे लगाया जाता है?
A: बेबी कॉर्न की बुवाई 60x20 सेमी की दूरी पर की जाती है। बीज को 3-4 सेमी गहराई में बोया जाता है। इसके साथ ही ध्यान रखना चाहिए कि बुवाई के लिए सही समय और सही विधि का पालन किया जाए, ताकि फसल की गुणवत्ता और उपज बेहतर हो।

Q: स्वीट कॉर्न भारत में कहां लगाया जाता है?
A: स्वीट कॉर्न का प्रमुख उत्पादन भारत के महाराष्ट्र, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, पंजाब, और बिहार में होता है। इन राज्यों की जलवायु और मृदा इस फसल के लिए अनुकूल मानी जाती है।

Q: बेबी कॉर्न की कटाई कब की जाती है?
A: बेबी कॉर्न की कटाई भुट्टों में सिल्क (रेशम) आने के 1-3 दिन बाद की जाती है। इसे आमतौर पर बुवाई के 50-60 दिनों बाद तोड़ा जाता है, जब भुट्टे का आकार 8-10 सेमी लंबाई और वजन लगभग 7-8 ग्राम हो।

Q: स्वीट कॉर्न और बेबी कॉर्न में क्या अंतर है?
A: स्वीट कॉर्न का भुट्टा पूरी तरह से विकसित होता है और इसका स्वाद मीठा होता है। इसे पकने के बाद तोड़ा जाता है। वहीं, बेबी कॉर्न को अधपका और छोटे आकार में ही तोड़ लिया जाता है। इसके भुट्टे का उपयोग बिना पकाए या हल्का पकाकर किया जाता है।

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