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15 May
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केले की खेती: रोग और उनका प्रबंधन (Banana Cultivation: Diseases and their Management)


भारत दुनिया में केले का सबसे बड़ा उत्पादक देश है, इसके स्वाद, पोषक तत्व और चिकित्सक गुणों के कारण यह लगभग पूरे वर्ष उपलब्ध रहता है। यह कार्बोहाइड्रेट और विटामिन, विशेष कर विटामिन बी का उच्च स्त्रोत है। केला के प्रयोग से दिल की बीमारी, गठिया, उच्च रक्तचाप, अल्सर, गैस्ट्रोएन्टराइटिस और किडनी के विकारों से संबंधित रोगियों के लिए अच्छा माना जाता है। भारत में केले की खेती मुख्य रूप से महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक सहित दक्षिणी और पश्चिमी राज्यों में केंद्रित है। केले की खेती विभिन्न बीमारियों के लिए भी संवेदनशील होती है जो फसल को काफी नुकसान पहुंचा सकती हैं।

कैसे करें केले में रोग नियंत्रण? (How to control diseases in banana)

पनामा रोग: पनामा रोग, जिसे विल्ट के नाम से भी जाना जाता है, यह रोग (फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम एफ एसपी क्यूबेंस) नामक फंगस के कारण होता है। भारत में यह रोग उत्तरी, पूर्वी और दक्षिणी सभी राज्यों में पाया जाता है।

रोग के लक्षण:

  • पनामा के कारण पत्तियाँ पीली पड़ कर मुरझा जाती हैं और यह निचली पत्तियों से शुरू होकर धीरे-धीरे ऊपर की ओर बढ़ता है।
  • इसके कारण फल समय से पहले पकने और सड़ने लगते हैं।
  • पौधों का विकास रुक जाता है जिससे उपज में कमी आती है।
  • रोगी पौधे के पर्णवृंत और तनों से सड़ी मछली की तरह दुर्गंध आती है।

नियंत्रण के उपाय:

  • केले की खेती के लिए केवल रोग मुक्त प्रकंदों का उपयोग करना चाहिए। इसके लिए टिशू कल्चर पौधों का प्रयोग करना चाहिए क्योंकि ये रोग मुक्त होते हैं।
  • बार-बार एक ही खेत में केले की फसल न लगाएं हर 2 साल फसल चक्र अपनाना चाहिए।
  • अच्छी तरह से सूखी मिटटी का उपयोग करें जिसकी जलधारण क्षमता अच्छी होती है।
  • केले की रोग प्रतिरोधी किस्मों का चुनाव करें।
  • पनामा रोग का प्रकोप ज्यादा होने पर फफूंदनाशी का उपयोग करना चाहिए।

बंची टॉप रोग: बंची टॉप रोग एक वायरल बीमारी है जो बनाना बंची टॉप वायरस (बीबीटीवी) के कारण होता है और यह एफिड (पेंटालोनिया निग्रोनर्वोसा) द्वारा फैलता है।

रोग के लक्षण:

  • केले के पौधों का विकास रुक जानें से उपज कम हो जाती है।
  • केले की पत्तियां गुच्छेदार हो कर मुड़ जाती हैं।
  • पत्तियों में पीलापन और क्लोरोसिस होता है।
  • केले की पत्तियों पर गहरे हरे रंग की धारियाँ।
  • पुष्पक्रम सही से नहीं होता है जिसके कारण छोटे, विकृत फल होते हैं।
  • संक्रमण ज्यादा होने पर जड़ गलने लगती हैं।

नियंत्रण के उपाय:

  • जहाँ पर रोग दिखाई पड़े पौधे के उस भाग को तुरंत नष्ट कर दें।
  • रोग प्रतिरोधी किस्मों का चुनाव करें।
  • रोपण  के लिए स्वस्थ प्रकंदों का उपयोग करना चाहिए। इसके लिए टिशू कल्चर वाले पौधों का इस्तेमाल कर सकते हैं।
  • यह रोग एफिड्स के द्वारा फैलता है तो सही समय पर कीटनाशकों का उपयोग करके या फिर खेतों में प्राकृतिक शिकारियों जैसे लेडीबग्स और लेसविंग का उपयोग करके केले के एफिड्स को नियंत्रित करना चाहिए।

फल सड़न: फल सड़न एक कवक रोग है जो ग्लोओरस्पोरियम और कोलेटोट्राइकम नामक फंगस की प्रजातियों द्वारा फैलता है।

रोग के लक्षण:

  • यह रोग केले के फलों को प्रभावित करता है। इसके कारण फल नरम और गूदेदार हो जाता है, और फिर सड़ जाता है।
  • संक्रमित फलों पर काले, धंसे हुए धब्बे होते हैं, जो पकने के समय बड़े होकर काले चकत्ते का रूप ले लेता है।
  • इनका संक्रमण कच्चे फूल के समय होता है, जो फलों के भंडारण के समय ज्यादा नुकसान करता है।

नियंत्रण के उपाय:

  • स्वस्थ पौधों को बनाए रखने और फलों पर तनाव को कम करने के लिए उचित सिंचाई करनी चाहिए।
  • फसलों में नुकसान से बचने और संक्रमण को कम करने के लिए फल की कटाई सही परिपक्वता चरण में करें।
  • खेतों से संक्रमित पौधों के मलबे को हटा कर नष्ट कर देना चाहिए।
  • जब फलों का गुच्छा अच्छी तरह से खुल जाता है तब आगे के फूलों वाले भाग को काटकर नष्ट कर देना चाहिए।
  • उचित तापमान पर भण्डार करें और परिवहन के समय फलों की क्षति से बचाएं।
  • फल सड़न रोग को नियंत्रित करने के लिए फफूंदनाशी का प्रयोग करें। जैसे की - कार्बेन्डाज़िम, थियोफेनेट-मिथाइल और प्रोपिकोनाज़ोल।

पर्ण धब्बा: यह एक फफूंदजनित रोग है जो सर्कोस्पोरा म्यूसी फंगस के द्वारा फैलता है। इसे सिगाटोका रोग भी कहते हैं।

रोग के लक्षण:

  • यह रोग केले के पौधे की पत्तियों को प्रभावित करता है।
  • संक्रमित पत्तियों में छोटे, काले धब्बे विकसित होते हैं जो आपस में जुड़ कर बड़े घाव बनाते हैं।
  • धब्बों के चारों ओर एक पीला घेरा बनता है। संकरण ज्यादा होने पर पत्तियां मर जाती हैं।
  • फलों का आकार छोटा और स्वाद में परिवर्तन हो जाता है।

नियंत्रण के उपाय:

  • केले के पौधों में उचित सिंचाई करनी चाहिए।
  • संक्रमित पौधों के मलबे को हटाकर नष्ट कर देना चाहिए।
  • पर्ण धब्बे रोग को नियंत्रित करने के लिए फफूंदनाशी का उपयोग करना चाहिए। इसके लिए मैंकोज़ेब और प्रोपिकोनाज़ोल जैसे कवकनाशी प्रभावी होते हैं।

क्या आप भी केले में रोगों से परेशान हैं? अपना जवाब हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। इस पोस्ट में दी गई जानकारी पसंद आई है तो इस पोस्ट को लाइक और शेयर करना न भूलें। फसलों को कीट एवं रोगों से बचाने की अधिक जानकारियों के लिए 'किसान डॉक्टर' चैनल को तुरंत फॉलो करें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: केले में कौन कौन से रोग होते हैं?

A: केले को प्रभावित करने वाले मुख्य रोगों में पनामा रोग, ब्लैक सिगाटोका, बंची टॉप और एन्थ्रेक्नोज शामिल हैं। ये रोग पौधों की वृद्धि और उपज को प्रभावित करते हैं।

Q: केले का पेड़ कितने महीने में फल देता है?

A: केले का पेड़ रोपण के बाद लगभग 9 से 12 महीने में फल देता है। हालांकि, समय विविधता, बढ़ती परिस्थितियों और जलवायु पर निर्भर करता है।

Q: केले की खेती कौन से राज्य में होती है?

A: मुख्य केले उत्पादक राज्य हैं महाराष्ट्र, तमिलनाडु, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और केरल। इसके अलावा, बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में भी खेती होती है।

Q: केले का पेड़ साल में कितनी बार फल देता है?

A: केले का पेड़ आमतौर पर साल में एक बार फल देता है। कुछ किस्में विशेष परिस्थितियों में साल में दो बार भी फल दे सकती हैं।

Q: केले की फसल कब बोई जाती है?

A: केले को सकर या टिशू कल्चर पौधों से लगाया जाता है। सकर लगाने का सबसे अच्छा समय मार्च से मई तक है, जबकि टिशू कल्चर पौधे पूरे वर्ष लगाए जा सकते हैं।

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