बीन्स: रोग, लक्षण, बचाव एवं उपचार | Beans: Diseases, Symptoms, Prevention and Treatment
बीन्स: रोग, लक्षण, बचाव एवं उपचार | Beans: Diseases, Symptoms, Prevention and Treatment
बीन्स कृषि में एक महत्वपूर्ण फसल है, जो अनेक पोषणात्मक लाभ प्रदान करती है। हालांकि, कई बार इसमें रोग एवं कीटों का संक्रमण हो जाता है, जिससे पूरी फसल पर प्रभाव पड़ता है। इन रोगों और कीटाणु से बचाव के लिए किसानों को इनकी पहचान, इनसे होने वाले नुकसान, रोकथाम, और नियंत्रण के उपायों की पूरी जानकारी होनी चाहिए। विभिन्न रोगों एवं कीटों पर नियंत्रण के लिए जैविक और रासायनिक उपायों को अपनाना भी फायदेमंद हो सकता है। इससे न केवल फसल की उत्पादकता बनी रहती है, बल्कि किसानों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार होती है। इस पोस्ट में हम बीन्स में होने वाले कुछ प्रमुख रोगों और कीटों के बारे में चर्चा करेंगे, साथ ही उनकी पहचान, लक्षण, रोकथाम और नियंत्रण के उपायों पर भी जानकारी प्राप्त करेंगे।
बीन्स की फसल में विभिन्न रोगों एवं कीटों से होने वाले नुकसान | Damage caused by various diseases and pests in the bean crop
- बीन्स की उपज में कमी होती है।
- पौधों के विकास में बाधा आती है।
- पौधों में फूल एवं फलियों की संख्या कम हो जाती है।
- फलियों की गुणवत्ता एवं स्वाद दोनों पर नकारात्मक प्रभाव होता है।
- किसानों को आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।
बीन्स की फसल में लगने वाले कुछ प्रमुख कीट | Some major pests affecting the bean crop
फली छेदक कीट से होने वाले नुकसान
- यह कीट फलियों में छेद करके अंदर के दानों को खा जाते हैं।
- व्यस्क कीट कई बार फलियों में छेद कर के फलियों के अंदर अंडे देते हैं। जिससे फलियां उपयोग के लायक नहीं रहती हैं।
- इस कीट के कारण बीन्स की पैदावार में 30 से 40 प्रतिशत तक कमी आ सकती है।
फली छेदक कीट पर नियंत्रण के तरीके
- इस कीट पर नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ खेत में 54-88 ग्राम इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एस.जी. (देहात इल्लीगो, धानुका- इ.एम. 1) का प्रयोग करने से भी फल छेदक पर नियंत्रण किया जा सकता है।
- इसके अलावा 150 लीटर पानी में 100 मिलीलीटर लैम्डा साईहेलोथ्रिन 2.5 प्रतिशत इसी (अदामा - लैम्डेक्स) मिला कर छिड़काव करें। यह मात्रा प्रति एकड़ खेत के अनुसार दी गई है।
रस चूसक कीटों से होने वाले नुकसान
- शुरुआत में यह कीट पौधों की कोमल पत्तियों का रस चूसते हैं।
- पौधों में फूल एवं फलियां आने के बाद यह कीट फूल एवं फलियां का भी रस चूसते हैं।
- कीटों का प्रकोप बढ़ने पर पौधों के विकास में बाधा आती है।
रस चूसक कीटों पर नियंत्रण के तरीके
- रस चूसक कीटों पर नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ खेत में 40 ग्राम थियामेथोक्सम 25% डब्लूजी (धानुका- अरेवा) का प्रयोग करें।
- इसके अलावा 150 लीटर पानी में 300 मिलीलीटर फैक्स (फिप्रोनिल 0.3 प्रतिशत) मिला कर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
बीन्स की फसल में लगने वाले कुछ प्रमुख रोग | Some major diseases affecting the bean crop
मोजैक रोग से होने वाले नुकसान
- इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों में पीले रंग के छोटे-छोटे धब्बे उभरने लगते हैं।
- कुछ समय बाद धब्बों के आकार में भी वृद्धि होती है।
- यह धब्बे सामान्यतौर पर शिराओं से शुरू होते हैं।
- रोग बढ़ने के साथ पत्तियां सिकुड़ने लगती हैं।
- पौधों के विकास में बाधा आती है।
- पौधों में निकलने वाले पुष्प गुच्छों में बदलने लगते हैं।
- यदि पौधों में फल आ गए हैं तो फलों पर भी हल्के पीले रंग के धब्बे उभरने लगते हैं।
- सफेद मक्खी इस रोग को फैलाने का काम करती है।
मोजैक रोग पर नियंत्रण के तरीके
- रोग को फैलने से रोकने के लिए बुरी तरह प्रभावित पौधों को नष्ट कर दें।
- मोजैक वायरस रोग से प्रतिरोधक किस्मों का चयन करें।
- रोग की प्रारंभिक अवस्था में प्रति लीटर पानी में 2 से 3 मिलीलीटर नीम का तेल मिलाकर छिड़काव करें।
- प्रति एकड़ खेत में 300 मिलीलीटर डाईमेथोएट 30 ई.सी. (टाटा रैलिस- टैफगोर, क्रॉप ग्रोथ- क्रोगोर) मिलाकर छिड़काव करें। आवश्यकता होने पर 10 दिनों के बाद दोबारा छिड़काव कर सकते हैं।
- इसके अलावा प्रति लीटर पानी में 1 मिलीलीटर इमिडाक्लोप्रिड 200 एस.एल. (बायर- कॉन्फिडोर) मिलाकर भी छिड़काव किया जा सकता है।
- प्रति एकड़ खेत में 40 ग्राम थियामेथोक्सम 25%डब्ल्यू.जी (देहात- एसिअर) का प्रयोग करें।
एंथ्रेक्नोज रोग से होने वाले नुकसान
- सामान्य बोलचाल की भाषा में इसे धब्बा रोग या स्मज के नाम से भी जाना जाता है।
- यह एक फफूंद जनित रोग है।
- इस रोग के कारण पौधों के सभी भाग प्रभावित होते हैं।
- प्रभावित हिस्सों पर अनियमित आकार के पीले किनारों से घिरे छल्ले नजर आते हैं।
- पत्तियां विकृत या पीली हो जाती हैं।
एंथ्रेक्नोज रोग पर नियंत्रण के तरीके
- इस रोग पर नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ खेत में 300 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.3% एस.सी. (देहात एजीटॉप) का प्रयोग करें।
- इसके अलावा प्रति एकड़ खेत में 300-700 ग्राम कार्बेन्डाजिम 12% डब्ल्यूपी + मैनकोजेब 63% डब्ल्यूपी (यूपीएल- साफ, धानुका- सिक्सर) का प्रयोग करें।
आपके बीन्स की फसल में किस रोग या कीट का प्रकोप अधिक होता है? अपने जवाब हमें कमेंट के द्वारा बताएं। कृषि संबंधी जानकारियों के लिए देहात के टोल फ्री नंबर 1800-1036-110 पर सम्पर्क करके विशेषज्ञों से परामर्श भी कर सकते हैं। इसके अलावा, 'किसान डॉक्टर' चैनल को फॉलो करके आप फसलों के सही देखभाल और सुरक्षा के लिए और भी अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इसके साथ ही इस पोस्ट को लाइक एवं शेयर करके आप इस जानकारी को अन्य किसानों तक पहुंचा सकते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न | Frequently Asked Question
Q1: बीन्स कितने दिन में तैयार होता है?
A1: बीन्स को लगाने के करीब 50 दिनों बाद फलियों की पहली तुड़ाई की जा सकती है। इसके बाद हर 2 से 3 दिनों के अंतराल पर फलियों की तुड़ाई की जा सकती है।
Q2: फ्रेंच बींस कब लगाया जाता है?
A2: बीन्स की खेती ठंड के मौसम में की जाती है। इसकी खेती के लिए अक्टूबर से फरवरी तक का समय सबसे अच्छा होता है। इसकी खेती अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में की जाती है। जल जमाव वाले क्षेत्रों में तना गलन रोग के होने की संभावना अधिक होती है।
Q3: क्या बीन्स को उर्वरक चाहिए?
A3: बीन्स की बेहतर उपज प्राप्त करने के लिए उर्वरकों का प्रयोग करना आवश्यक है। हालांकि उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी की जांच के आधार पर करने से अधिक लाभ होता है। उर्वरकों के प्रयोग के समय इस बात का ध्यान रखें कि अन्य फसलों की तुलना में फलियों वाली फसल होने के कारण बीन्स में नाइट्रोजन युक्त उर्वरक का प्रयोग कम किया जाता है।
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