दलहनी और तिलहनी फसलों के साथ मिश्रित खेती के फायदे (Benefits of Mixed Farming with Pulses and Oilseeds)

दलहनी और तिलहनी फसलों की मिश्रित खेती किसानों के लिए लाभदायक होती है। दलहनी फसलें मिट्टी में नाइट्रोजन स्थिर करती हैं, जिससे उर्वरता बढ़ती है, जबकि तिलहनी फसलें तेल उत्पादन और मिट्टी की गुणवत्ता सुधारने में मदद करती हैं। यह विधि जल संरक्षण, कीट-रोग नियंत्रण और खाद पर खर्च कम करने में सहायक होती है। इसके जरिए किसान कम लागत में अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं, जिससे उनकी आय बढ़ती है। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने में भी यह पद्धति कारगर है। इस लेख में हम इसके सभी महत्वपूर्ण लाभों की पूरी जानकारी देंगे।
मिश्रित खेती क्या है? (What is Mixed Farming?)
मिश्रित खेती वह प्रक्रिया है जिसमें दो या अधिक फसलों को एक साथ एक ही खेत में उगाया जाता है। यह प्रणाली भूमि के अधिकतम उपयोग और अधिक उत्पादन प्राप्त करने में सहायक होती है। दलहनी और तिलहनी फसलों की मिश्रित खेती से किसानों को दोहरी उपज मिलती है और मिट्टी की उर्वरता में सुधार होता है।
दलहनी और तिलहनी फसलों के साथ मिश्रित खेती के लाभ (Benefits of Mixed Farming with Pulses and Oilseeds)
- मिट्टी की उर्वरता में सुधार: दलहनी फसलें जैसे अरहर, मूंग, उड़द और चना राइजोबियम जीवाणुओं की सहायता से वायुमंडलीय नाइट्रोजन को मृदा में स्थिर करती हैं, जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है। तिलहनी फसलें जैसे मूंगफली, सरसों, तिल और सूरजमुखी गहरी जड़ प्रणाली वाली होती हैं, जो मिट्टी की संरचना सुधारती हैं और पोषक तत्वों की संतुलित खपत सुनिश्चित करती हैं।
- पोषक तत्वों का संतुलित उपयोग: दलहनी फसलें गहरी जड़ों से पोषक तत्व अवशोषित करती हैं, जबकि तिलहनी फसलें सतही स्तर से पोषण लेती हैं। इससे मिट्टी के पोषक तत्वों का संतुलन बना रहता है। दलहन प्रोटीन प्रदान करते हैं, जबकि तिलहन आवश्यक वसा प्रदान करते हैं, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में संतुलित आहार की उपलब्धता बढ़ती है।
- उर्वरकों पर खर्च में कमी: नाइट्रोजन स्थिरीकरण के कारण दलहनी फसलों को अतिरिक्त नाइट्रोजन उर्वरकों की आवश्यकता नहीं होती, जिससे किसानों का खर्च कम होता है। तिलहनी फसलें मिट्टी में जैविक तत्व जोड़ती हैं, जिससे भूमि की दीर्घकालिक उर्वरता बनी रहती है।
- जल संरक्षण में सहायक: दलहनी और तिलहनी फसलों की जल आवश्यकताएं अलग-अलग होने के कारण खेत में नमी संतुलित रहती है। तिलहनी फसलें कम पानी में भी अच्छी उपज देती है, जिससे यह सूखा प्रभावित क्षेत्रों के लिए लाभकारी होती हैं।
- कीट एवं रोग नियंत्रण: मिश्रित खेती से खेत में जैव विविधता बनी रहती है, जिससे कीट और रोगों का प्रकोप कम होता है। दलहनी फसलों के साथ सरसों या मूंगफली उगाने से प्राकृतिक जैविक नियंत्रण बढ़ता है, जिससे कीटनाशकों की आवश्यकता कम होती है।
- आर्थिक रूप से लाभदायक: इस विधि से किसान एक ही समय में दलहन और तिलहन दोनों की फसल प्राप्त कर सकते हैं, जिससे उनकी आय में वृद्धि होती है। तिलहन और दलहन फसलें बाजार में अच्छी कीमत पर बिकती हैं, जिससे किसानों को अधिक मुनाफा मिलता है।
- जलवायु सहनशीलता: दलहनी फसलें सूखा-सहिष्णु होती हैं, जबकि तिलहनी फसलें आर्द्रता में भी अच्छी उपज देती हैं। मिश्रित खेती मौसम की अनिश्चितताओं से निपटने में मदद करती है और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करती है।
- भूमि के अधिकतम उपयोग की संभावना: दलहनी और तिलहनी फसलों की वृद्धि दर और परिपक्वता अवधि अलग-अलग होती है, जिससे एक ही खेत से अधिकतम उत्पादन संभव होता है। इससे कृषि भूमि का प्रभावी उपयोग किया जा सकता है और उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है।
मिश्रित खेती के अच्छे जोड़े (Best Combinations for Mixed Farming)
- चना + सरसों – चना मिट्टी में नाइट्रोजन बढ़ाता है और सरसों तेल उत्पादन के लिए बढ़िया फसल है।
- मूंग + मूंगफली – ये दोनों कम पानी में अच्छी पैदावार देती हैं और खेत की उर्वरता बनाए रखती हैं।
- अरहर + तिल – सूखा प्रभावित इलाकों में यह मिश्रण बेहतर काम करता है।
- मसूर + सरसों – सर्दियों में उगाने के लिए अच्छा विकल्प है और मिट्टी को उपजाऊ बनाए रखता है।
दलहनी और तिलहनी फसलों का महत्व (Importance of Pulses and Oilseeds)
- दलहनी फसलें (Pulses Crops): अरहर, चना, उड़द, मूंग, मसूर और मटर जैसी फसलें मिट्टी में नाइट्रोजन बढ़ाने में मदद करती हैं, जिससे खेत की उपजाऊ क्षमता बनी रहती है और कम खाद की जरूरत पड़ती है।
- तिलहनी फसलें (Oilseeds Crops): सरसों, तिल, मूंगफली, सोयाबीन और सूरजमुखी जैसी फसलें किसानों को अच्छा मुनाफा देती है और तेल उत्पादन से पोषण भी मिलता है।
मिश्रित खेती की प्रक्रिया (Process of Mixed Farming with Pulses and Oilseeds)
- खेत की तैयारी (Field Preparation): खेत की अच्छी तरह जुताई करें और समतल बनाएं। पानी निकासी की सही व्यवस्था करें ताकि फसलों को जरूरत के अनुसार नमी मिल सके। बुवाई के लिए फसलों की पंक्तियां सही दूरी पर रखें।
- बीज चयन और बुवाई (Seed Selection and Sowing): उच्च गुणवत्ता वाले दलहनी और तिलहनी फसलों के बीजों का चयन करें। अरहर और मूंगफली की मिश्रित खेती में 1:1 या 2:1 अनुपात अपनाएं। चना और सरसों की मिश्रित खेती के लिए चने की 2 पंक्तियों के बाद 1 पंक्ति सरसों लगाएं।
- सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management): दलहनी और तिलहनी फसलों को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती। फसल की बढ़त के अनुसार 8-10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें।
- उर्वरक प्रबंधन (Fertilizer Management): मिट्टी जांच के आधार पर सही मात्रा में खाद डालें। दलहनी फसलें मिट्टी में नाइट्रोजन बढ़ाती हैं, जिससे उर्वरकों की जरूरत कम होती है।
- खरपतवार नियंत्रण (Weed Management): खेत में घास-फूस अधिक न बढ़ने दें। समय-समय पर निराई-गुड़ाई करें और जैविक या रासायनिक विधियों से खरपतवार हटाएं।
- कटाई और भंडारण (Harvesting and Storage): पहले दलहनी फसल की कटाई, फिर तिलहन फसल की कटाई करें। कटाई के बाद दानों को अच्छी तरह सुखाकर सुरक्षित जगह पर रखें।
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अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)
Q: दलहनी और तिलहनी फसलों के साथ मिश्रित खेती क्या है?
A: दलहनी और तिलहनी फसलों की मिश्रित खेती एक कृषि प्रणाली है, जिसमें एक ही खेत में इन दोनों प्रकार की फसलें एक साथ उगाई जाती हैं। यह पद्धति मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने और अधिक उत्पादन प्राप्त करने में मदद करती है।
Q: दलहनी और तिलहनी फसलों की मिश्रित खेती के क्या लाभ हैं?
A: इस विधि से खेती करने पर मिट्टी की उर्वरक क्षमता बढ़ती है क्योंकि दलहनी फसलें नाइट्रोजन स्थिरीकरण में मदद करती हैं। तिलहनी फसलें किसानों को अच्छा मुनाफा देती हैं और तेल उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण होती हैं। मिश्रित खेती से भूमि का अधिकतम उपयोग संभव होता है और उत्पादन लागत में भी कमी आती है।
Q: दलहनी और तिलहनी फसलों की मिश्रित खेती कैसे करें?
A: मिश्रित खेती करने के लिए दलहनी और तिलहनी फसलों का सही संयोजन चुनना जरूरी है। उदाहरण के लिए, चना + सरसों या मूंग + मूंगफली जैसे संयोजन लाभकारी होते हैं। खेत की तैयारी के दौरान जल निकासी और उर्वरक प्रबंधन पर ध्यान दें। बुवाई एवं कटाई का समय फसलों के अनुसार निर्धारित करें, ताकि दोनों फसलें एक साथ अच्छी उपज दे सके।
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