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किसान डॉक्टर
8 Aug
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चीकू: प्रमुख रोग, लक्षण, बचाव एवं नियंत्रण | Chiku Fruit: Major Disease, Symptoms Prevention and Treatment

चीकू की खेती भारत के कई राज्यों में की जाती है, जिनमें महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और गोवा शामिल हैं। महाराष्ट्र भारत में चीकू का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। चीकू के पौधों को सही देखभाल और पोषण देने के बावजूद, कई प्रकार के रोगों का प्रकोप इन पौधों को नुकसान पहुंचा सकता है। ये रोगों न केवल पौधों की वृद्धि को प्रभावित करते हैं, बल्कि फल उत्पादन पर भी बुरा असर डालते हैं। इस पोस्ट में हम चीकू के पौधों में लगने वाले कुछ प्रमुख रोगों और उनसे होने वाले नुकसान की विस्तार से जानकारी प्राप्त करेंगे, जिससे किसान इन रोगों की पहचान कर समय रहते उचित उपाय कर सकें।

चीकू के पौधों में लगने वाले कुछ प्रमुख रोग | Some Major Diseases Affecting Chiku Fruit (Sapota) Plants

पत्ती धब्बा रोग से होने वाले नुकसान: इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों पर अनियमित आकार के धब्बे उभरने लगते हैं। ये धब्बे गुलाबी-भूरे रंग के होते हैं और धब्बों का केंद्र सफेद रंग का होता है। रोग बढ़ने के साथ धब्बों का आकार भी बढ़ने लगता है। कुछ समय बाद प्रभावित पत्तियां गिरने लगती हैं। इस रोग के कारण पौधों के विकास में बाधा आती है। यह रोग चीकू की उपज में कमी का एक बड़ा कारण बन सकता है।

पत्ती धब्बा रोग पर नियंत्रण के तरीके:

  • प्रति एकड़ खेत में 600-800 ग्राम मैनकोजेब 75% डब्लूपी (देहात DeM 45) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 600-800 ग्राम प्रोपिनेब 70% डब्ल्यू.पी. (देहात जिनेक्टो, बायर एंट्राकोल) का प्रयोग करें।
  • प्रति लीटर पानी में 1 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाजोल 18.3% एस.सी. (देहात एजीटॉप) का छिड़काव करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 200 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 18.2% +डिफेनोकोनाजोल 11.4% एस.सी (देहात सिनपैक्ट, गोदरेज बिलियर्ड्स, बीएसीएफ एड्रोन) का प्रयोग करें।

शूटी मोल्ड रोग से होने वाले नुकसान: यह एक फफूंद जनित रोग है। चीकू की फसल में इस रोग का प्रकोप अधिक होता है। सफेद मक्खी एवं मिलीबग जैसे रस चूसक के द्वारा स्रावित हनीड्यू के ऊपर यह फफूंद तेजी से पनपते हैं और पौधों को नुकसान पहुंचाते हैं।

शूटी मोल्ड रोग पर नियंत्रण के तरीके:

  • इस रोग पर नियंत्रण के लिए यहां बताई दवाओं में से किसी एक का प्रयोग करें।
  • प्रति पौधे में 30 ग्राम मैंकोजेब 75% डब्ल्यूपी (देहात DeM 45, इंडोफिल एम 45, श्रीराम मैंकोजेब) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 600 ग्राम कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% डब्ल्यू.पी (देहात साबू, इंजन इनकम, यूपीएल साफिलाइजर, यूपीएल साफ) का प्रयोग करें।

एन्थ्रेक्नोज रोग से होने वाले नुकसान: नए पौधों और कोमल पत्तियों के साथ फलों पर भी इस रोग के लक्षण देखे जा सकते हैं। यह एक फफूंद जनित रोग है। इस रोग से प्रभावित पत्तियों पर छोटे अनियमित आकार के गहरे भूरे रंग के धब्बे उभरने लगते हैं। इन धब्बों के बीच का भाग धूसर और इसके किनारे भूरे रंग के हो जाते हैं। रोग का प्रकोप बढ़ने पर पौधों के विकास में बाधा उत्पन्न होती है। गर्म तापमान और ज्यादा नमी वाले क्षेत्रों में यह रोग तेजी से फैल सकता है।

एन्थ्रेक्नोज रोग पर नियंत्रण के तरीके:

  • इस रोग से बचने के लिए फसल चक्र अपनाएं।
  • अत्यधिक सिंचाई या जल जमाव की स्थिति से बचने के लिए जल निकासी की उचित व्यवस्था करें।
  • संक्रमित पौधों के मलबे को खेत से बाहर निकाल कर नष्ट कर दें।
  • प्रति एकड़ खेत में 200 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 18.2% +डिफेनोकोनाजोल 11.4% एस.सी (देहात सिनपैक्ट) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 300 ग्राम कासुगामाइसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 45% डब्ल्यूपी (धानुका कोनिका) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 450 ग्राम कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% डब्लूपी (देहात साबू) का प्रयोग करें।

आपके चीकू के पौधों में किस रोग का प्रकोप अधिक होता है और रोगों पर नियंत्रण के लिए आप किन दवाओं का प्रयोग करते हैं? अपने जवाब हमें कमेंट के द्वारा बताएं। इसके साथ ही 'किसान डॉक्टर' चैनल को फॉलो करके आप फसलों के सही देखभाल और सुरक्षा के लिए और भी अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। अगर यह महत्वपूर्ण लगी है तो इस पोस्ट को लाइक एवं शेयर करके आप इस जानकारी को अन्य किसानों तक पहुंचा सकते हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: चीकू के पौधे में कौन सा खाद डालें?

A: चीकू के पौधों के लिए संतुलित मात्रा में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश का उपयोग करने की सलाह दी जाती है। इसके अलावा आप गाय का गोबर, वर्मीकम्पोस्ट और बोन मील जैसे जैविक उर्वरकों का भी प्रयोग कर सकते हैं।

Q: चीकू का पौधा कितने दिन में फल देने लगता है?

A: चीकू के पौधे आमतौर पर रोपण के 3-4 वर्षों के अंदर फल देना शुरू कर देते हैं। हालांकि, सटीक समय विभिन्न कारकों के आधार पर भिन्न हो सकता है जैसे कि पौधे की उम्र, बढ़ती परिस्थितियां और चीकू की विविधता। स्वस्थ विकास और फल उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए पौधे को उचित देखभाल और रखरखाव प्रदान करना महत्वपूर्ण है, जिसमें नियमित रूप से पानी देना, निषेचन और छंटाई शामिल है।

Q: चीकू के पौधों की देखभाल कैसे करें?

A: चीकू के पौधों की देखभाल के लिए, उन्हें नियमित रूप से पानी देना महत्वपूर्ण है, खासकर शुष्क मौसम के दौरान। हर 3-4 महीने में जैविक खाद या खाद के साथ पौधे को खाद दें। अपने आकार को बनाए रखने और स्वस्थ विकास को बढ़ावा देने के लिए पौधे की नियमित रूप से छंटाई करें। आवश्यकतानुसार प्राकृतिक उपचार या कीटनाशकों का उपयोग करके पौधे को कीटों और बीमारियों से बचाएं।

Q: चीकू का पौधा कौन से महीने में लगाना चाहिए?

A: भारत में चीकू लगाने का सबसे अच्छा समय वर्षा के मौसम के दौरान होता है, जो आमतौर पर जून में शुरू होता है और सितंबर तक रहता है। चीकू लगाने का आदर्श समय जुलाई या अगस्त में होता है, जब मिट्टी नम होती है और मौसम बहुत गर्म नहीं होता है। इससे पौधे की जड़ों का अच्छी तरह से विकसित होता है। हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि रोपण का समय विशिष्ट स्थान और जलवायु परिस्थितियों के आधार पर भिन्न हो सकता है।

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