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23 Dec
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सिट्रोनेला की खेती: अधिक मुनाफे वाली सुगंधित फसल (Citronella Cultivation: A Profitable Aromatic Crop)


सिट्रोनेला एक लाभकारी और सुगंधित फसल है, जिसका तेल साबुन, क्रीम, कीटनाशक और अन्य उत्पादों में उपयोग किया जाता है। इसके तेल में सिट्रोनिलाल, सिट्रोनिलोल जैसे रासायनिक घटक होते हैं, जो उद्योगों में उच्च मांग में रहते हैं। सिट्रोनेला की खेती कम उर्वरक वाली भूमि में भी की जा सकती है, और यह एक बहुवर्षीय फसल है, जिससे किसान सालों तक लाभ कमा सकते हैं। यह फसल उष्ण और सम शीतोष्ण जलवायु में अच्छा उगती है। सही खेती तकनीकों और जलवायु के अनुरूप उगाई जाने पर किसानों को इससे अच्छी आय प्राप्त होती है।

सिट्रोनेला की खेती कैसे करें? (How to grow Citronella?)

  • मिट्टी (Soil): सिट्रोनेला की खेती के लिए दोमट और बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। इसका pH मान 6 से 7.5 के बीच होना चाहिए, लेकिन यह 5.8 से 6 pH तक की अम्लीय और क्षारीय मिट्टी में भी सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है। मिट्टी का जल निकासी अच्छा होना चाहिए, ताकि पानी का जमा न हो सके और जड़ों में सड़न न हो।
  • जलवायु (Climate): सिट्रोनेला की खेती के लिए सम शीतोष्ण और उष्ण जलवायु सबसे उपयुक्त मानी जाती है। यह फसल 9 से 35 डिग्री सेल्सियस के तापमान में अच्छी तरह से उगती है। वर्षा 200 से 250 सेंटीमीटर और आर्द्रता 70 से 80 प्रतिशत के बीच होनी चाहिए, ताकि पौधों को पर्याप्त नमी मिल सके और उनका विकास सही तरीके से हो।
  • किस्में (Variety): सिट्रोनेला की प्रमुख किस्में हैं: मंदाकिनी, मंजुषा, मंजरी, जावा-2, और जोरहाट-2, जो बेहतर तेल उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है।
  • बीज दर (Seed Rate): जावा सिट्रोनेला की बुवाई स्लिप से की जाती है। स्लिप तैयार करने के लिए, एक वर्ष या उससे पुरानी फसल के जूट्ठों से स्लिप निकाली जाती हैं। स्लिप्स को अलग करते समय, ऊपर के पत्ते काटकर और नीचे के सूखे पत्ते हटा दिए जाते हैं, जिससे उपयोगी स्लिप्स तैयार होती हैं। प्रति एकड़ 11200 स्लिप की आवश्यकता होती है।
  • खेत की तैयारी (Field Preparation): सिट्रोनेला एक बहुवर्षीय फसल है, जो एक बार लगाने पर 5 वर्षों तक अच्छा उत्पादन देती है। इसकी सफल खेती के लिए खेत की अच्छी तैयारी आवश्यक है। खेत की तैयारी में दो से तीन बार गहरी जुताई की जाती है। इसके बाद, 20 से 25 टन सड़ी हुई गोबर की खाद और 2 प्रतिशत मिथाइल पैराथियान पाउडर का छिड़काव किया जाता है। इसके अलावा, नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश (NPK) की सही मात्रा का उपयोग करना चाहिए। यह सुनिश्चित करता है कि पौधों को पर्याप्त पोषक तत्व मिले और वे स्वस्थ रूप से बढ़ सकें।
  • बुवाई का तरीका (Sowing Method): सिट्रोनेला की बुवाई के लिए जुलाई-अगस्त और फरवरी-मार्च का समय सबसे उपयुक्त माना जाता है। स्लिप को खेत में लगभग 10 सेंटीमीटर गहरे और ऊर्ध्वाधर तरीके से 60x45 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाया जाता है। बहुत उपजाऊ मिट्टी में 90x90 सेंटीमीटर की दूरी का पालन किया जा सकता है। बुवाई के बाद खेत में पानी छोड़ देना चाहिए, लेकिन जलभराव से बचने के लिए यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि खेत में पानी न रुके। बुवाई के लगभग दो सप्ताह के भीतर स्लिप से पत्तियाँ उभरने लगती हैं।
  • खाद एवं उर्वरक प्रबंधन (Fertilizer and Nutrient Management): सिट्रोनेला की फसल को अच्छा उत्पादन देने के लिए FYM की 4 टन प्रति एकड़, यूरिया की 56-90 किलोग्राम, DAP की 35 किलोग्राम और MOP की 27 किलोग्राम प्रति एकड़ आवश्यकता होती है। नाइट्रोजन (N) को 4 बराबर हिस्सों में बांटकर बुवाई के एक महीने बाद और फिर हर कटाई के बाद दिया जाना चाहिए।
  • सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management): सिट्रोनेला की फसल को ज्यादा पानी की जरूरत होती है, क्योंकि इसकी जड़ें गहरी नहीं होती हैं। गर्मी में हर 10-15 दिन में सिंचाई करें, जबकि सर्दी में यह हर 20-30 दिन में की जा सकती है। सिंचाई के दौरान ध्यान रखें कि जलभराव न हो, क्योंकि अतिरिक्त पानी पौधों के लिए हानिकारक हो सकता है। वर्षा के समय सिंचाई से बचें, ताकि अतिरिक्त जल न जमा हो।
  • निराई-गुड़ाई (Weed Management): सिट्रोनेला में खरपतवार नियंत्रण बहुत महत्वपूर्ण है। बुवाई के पहले 30 से 45 दिनों तक खरपतवार को पनपने से रोकने के लिए निराई-गुड़ाई करें। रासायनिक नियंत्रण के लिए ओक्सीफ्लूरोलीन का स्प्रे किया जा सकता है।
  • प्रमुख रोग और कीट प्रबंधन (Major Pests and Diseases Management): सिट्रोनेला की फसल में तना छेदक कीड़ा, लीथल एलोइंग (पत्तियों का पीला पड़ना) और लीफ ब्लास्ट (झुलसा रोग) प्रमुख कीट और रोग होते हैं। इनसे बचाव के लिए समय पर कीटनाशकों और फफूंदीनाशकों का छिड़काव करें, जिससे फसल को सुरक्षा मिलती है और उत्पादन बढ़ता है।
  • कटाई (Harvesting): सिट्रोनेला की फसल बुवाई के करीब 6 महीने बाद पहली कटाई के लिए तैयार हो जाती है। कटाई एक तेज़ दरांती से भूमि से 20-45 सेंटीमीटर ऊपर से की जाती है। पहली कटाई के बाद 90 से 120 दिनों में आगामी कटाई की जा सकती है, और इस तरह सालाना 3 से 4 फसलें ली जा सकती हैं। यह प्रक्रिया 5 साल तक चलती है।
  • पैदावार (Yield): पहले साल प्रति एकड़ 40-60 किलोग्राम हरी पत्तियां प्राप्त होती हैं। दूसरे से पांचवे साल तक प्रति एकड़ 80-100 किलोग्राम तेल मिलता है। 100 किलोग्राम पत्तियों से 800 मिलीलीटर सिट्रोनेला का तेल निकलता है।

क्या आप भी सिट्रोनेला की खेती करना चाहते हैं ? अगर हाँ तो हमें कमेंट करके बताएं। ऐसी ही रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'बागवानी फसलें' चैनल को अभी फॉलो करें। अगर आपको यह पोस्ट पसंद आयी तो इसे लाइक करके अपने किसान मित्रों के साथ साझा करें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: क्या सिट्रोनेला की खेती लाभदायक है?

A: हां, सिट्रोनेला की खेती बहुत लाभदायक है। इसका तेल विभिन्न उद्योगों में उपयोग किया जाता है, जैसे साबुन, क्रीम, कीटनाशक और इत्र निर्माण में। यह बहुवर्षीय फसल है, जिससे किसान लंबे समय तक मुनाफा कमा सकते हैं। इसके तेल की उच्च गुणवत्ता के कारण किसान अच्छा आय प्राप्त कर सकते हैं, और कम उर्वरक वाली भूमि में भी इसकी खेती की जा सकती है।

Q: भारत में सिट्रोनेला कहां-कहां लगाया जाता है?

A: भारत में सिट्रोनेला की खेती मुख्य रूप से उष्ण और समशीतोष्ण जलवायु वाले क्षेत्रों में की जाती है। यह पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम, त्रिपुरा, और दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों जैसे तमिलनाडु और कर्नाटक में उगाई जाती है। इन क्षेत्रों की जलवायु सिट्रोनेला के लिए अनुकूल होती है।

Q: भारत में प्रमुख सुगंधित पौधे कौन-कौन से हैं?

A: भारत में प्रमुख सुगंधित पौधों में सिट्रोनेला, मेंथा, लैवेंडर, गुलाब, चमेली, तुलसी, और आरेथा (सुगंधित जड़ी-बूटियां) शामिल हैं। ये पौधे तेल उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है और विभिन्न उद्योगों में इनका उपयोग किया जाता है।













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