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5 July
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इलायची की खेती की पूरी जानकारी (Complete information on cardamom farming)


इलायची, जिसे मसालों की रानी कहा जाता है, भारत में सदियों से उगाई जाती रही है। यह न केवल स्वादिष्ट व्यंजनों का स्वाद बढ़ाती है, बल्कि औषधीय गुणों से भी भरपूर है। भारत लगभग 22520 मिलियन टन इलायची का निर्यात करता है। देश के प्रमुख इलायची उत्पादक राज्य केरल, तमिलनाडु एवं कर्नाटक हैं। इलायची बीज वाली सूखी फली है और यह एक बारहमासी फसल है जो खेत में कम से कम 5 साल तक खड़ी रहती है। खाद्य परिरक्षण में भी इलायची का उपयोग प्रमुख रूप से किया जाता है।

कैसे करें इलायची की खेती? (How to cultivate cardamom?)

मिट्टी और जलवायु:

  • मिट्टी: 5.5 से 6.5 pH वाली अम्लीय, वनस्पति-समृद्ध, अच्छी जल निकासी वाली दोमट मिट्टी इलायची की खेती के लिए उपयुक्त होती है।
  • जलवायु: इलायची को गर्म और आर्द्र जलवायु पसंद है। इसकी खेती के लिए 10°C से 35°C तापमान आदर्श माना जाता है।

बुवाई का समय:

  • इलायची के पौधों को जुलाई से सितम्बर में बारिश के मौसम में लगाना सबसे उपयुक्त होता है क्योंकि इस समय सिंचाई की आवश्यकता कम होती है।
  • पौधों को हमेशा छाया में लगाएं ताकि उन्हें अधिक सूर्य की रोशनी से बचाया जा सके।
  • गड्ढों या मेड पर पौधों के बीच की दूरी 3 X 3 मीटर रखें।
  • इलायची के पौधों को खेत में तब लगाएं जब उनकी लंबाई एक फीट तक हो जाए।

किस्में: आई.सी.आर.आई 1, आई.सी.आर.आई 2, पी.वी 1, मुदिगेरे 1,आई.आई.एस.आर सुवासिनी, आई.आई.एस.आर अविनाश, अप्पांगला-1,आईआईएसआर विजेता,अर्जुन, पप्पलु आदि उन्नत किस्में हैं।

बीज की मात्रा:

  • इलायची के प्रवर्धन में, बीजों का सकर्स या कलम के माध्यम से प्रसार किया जाता है।
  • बुवाई से पहले बीजों को 20 मिनट तक सल्फ्यूरिक अम्ल या हाइड्रोक्लोरिक अम्ल से उपचारित करना चाहिए, जो उन्हें कीटों और रोगों से बचाने में मदद करता है।
  • उपचार के बाद, बीजों को अच्छे पानी से धोकर उन्हें सुरक्षित बनाया जाना चाहिए।
  • इन बीजों को फिर छाया में सुखाकर उन्हें खेत में बो दिया जाना चाहिए, ताकि वे अच्छी ग्रोथ के लिए तैयार हो सके।

नर्सरी प्रबंधन:

  • 1 एकड़ पौध तैयार करने के लिए 70-80 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
  • बीजों को 20 मिनट के लिए सल्फ्यूरिक एसिड या हाइड्रोक्लोरिक एसिड के घोल में भिगोकर उपचारित करें।
  • बीजों को धोकर छाया में सुखा लें।
  • नर्सरी को छायादार स्थान पर रखें और नियमित रूप से सिंचाई करें।
  • 5-6 महीने की प्राथमिक नर्सरी के बाद, द्वितीयक नर्सरी के लिए हम 20-25 सेमी की दूरी पर बेड नर्सरी का उपयोग कर सकते हैं या फिर हम 20 X 20 सेमी आकार के पॉलीबैग नर्सरी बैग का उपयोग कर सकते हैं।
  • 18-22 महीने में पौधे रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं।

खेत की तैयारी:

  • खेत को अच्छी तरह से जुताई करके खेत में पाटा चला कर खेत को समतल करें।
  • गोबर की खाद, नीम की खली और रॉक फॉस्फेट का उचित मात्रा में उपयोग करें।
  • खेत में 90 सेमी x 90 सेमी x 45 सेमी आकार के गड्ढे तैयार करें।
  • गड्ढों को मिट्टी से भर दें और रोपाई के लिए तैयार करें।

उर्वरक प्रबंधन:

  • रोपाई के बाद, प्रति पौधे 10 किलो पुरानी गोबर की खाद और 1 किलो वर्मी कम्पोस्ट दें।
  • रोपाई के एक साल में नीम की खली और आवश्यकतानुसार जिंक सल्फेट का प्रयोग करें।
  • संतुलित मात्रा में यूरिया 22 किग्रा, डी.ए.पी 22 किग्रा, एम.ओ.पी 33 किग्रा प्रयोग करें।

सिंचाई प्रबंधन:

  • बारिश के मौसम में, इलायची के पौधे को लगाने के बाद सिंचाई की कमी होती है।
  • अगर बारिश कम हो, तो पहली सिंचाई को पौधे लगाने के तुरंत बाद करना चाहिए।
  • गर्मी के मौसम में, पौधों को पर्याप्त सिंचाई का निर्माण करना चाहिए।
  • सिंचाई के दौरान, ध्यान दें कि पानी खेत में अधिक न भर जाए, और पानी के निकास का उचित प्रबंध करें।
  • 10-15 दिनों के अंतराल में, पौधों की आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहें ताकि खेत में उचित नमी बनी रहे।

खरपतवार प्रबंधन:

  • इलायची की खेती के दौरान, समय-समय पर खरपतवार को हटा देना चाहिए।
  • निराई-गुड़ाई करके खरपतवार को निकालना चाहिए, जिससे खेत में नमी बनी रहे और पौधे अच्छी ग्रोथ करें।

अर्थिंग अप या मिट्टी चढ़ाना:

  • इसका सबसे अच्छा समय बारिश के बाद या सुबह-सुबह होता है। इस समय पर मिट्टी नमी भर जाती है और पौधे के लिए स्थिरता प्रदान करती है। इसके लिए खुरपी, कुदाल या हाथ के उपकरणों का उपयोग करके पौधे के चारों ओर की मिट्टी को हल्का सा खोदें।
  • पौधे के तने के पास 10-15 सेमी तक मिट्टी चढ़ाएं। इससे पौधे की जड़ें मजबूत बनती हैं और वे अच्छी तरह से स्थिर रहते हैं। अर्थिंग अप के बाद पौधों को पानी दें, ताकि मिट्टी अच्छी तरह से जम जाए और नमी बनी रहे।
  • इस प्रक्रिया से मिट्टी में पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ती है, जिससे पौधे की ग्रोथ और स्वास्थ्य में सुधार होता है। खरपतवारों की वृद्धि रूकती है और पौधे तेज हवाओं या बारिश में भी स्थिर रहते हैं।

प्रूनिंग या छटाई: इलायची के पौधों की छंटाई साल में दो बार करनी चाहिए, एक बार जनवरी में और फिर मई में। जनवरी की छंटाई के दौरान, नई शाखाओं के विकास को बढ़ावा देने के लिए पुरानी पत्तियों और शाखाओं को काट दिया जाना चाहिए। मई में, पौधे को अच्छी तरह से फल देने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए लंबी और गांठदार शाखाओं को काट दिया जाना चाहिए। इलायची के पौधों की स्वस्थ वृद्धि और अच्छी उपज सुनिश्चित करने के लिए उचित छंटाई करना जरूरी है।

रोग एवं कीट प्रबंधन:

  • इलायची को कई सामान्य बीमारियों और कीटों से प्रभावित किया जा सकता है, जैसे कि इलायची मोज़ेक वायरस, फ्यूजेरियम विल्ट, पत्ती रोलर, थ्रिप्स, बोरर शूट करें, कैप्सूल बोरर, मकड़ी, रूट ग्रब, सफेद मक्खियों, और एफिड्स।
  • इन बीमारियों और कीटों के लक्षणों को पहचानना और इलायची के पौधों का नियमित निगरानी करना फसल की स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है।
  • इन बीमारियों और कीटों को नियंत्रित करने के लिए उचित उपायों को लागू करना, जैसे कि केमिकल और जैविक उपाय, पर्यावरण को हानि न पहुँचाए बिना फसल की उत्कृष्ट उपज को सुनिश्चित कर सकता है।

कटाई:

  • कटाई: इलायची के पौधों से बीज की कटाई को उसके पूरी तरह पकने से थोड़ा पहले कर लेना चाहिए। यह सुनिश्चित करेगा कि बीजों की गुणवत्ता बनी रहे।
  • सफाई: बीजों की कटाई के बाद, उन्हें अच्छी तरह से साफ करें। इससे बीजों की गुणवत्ता बनी रहेगी और व्यापक रूप से उन्हें बिक्री के लिए तैयार किया जा सकता है।
  • सुखाना: सफाई के बाद, बीजों को अच्छी तरह से सुखा लें। यह सुनिश्चित करेगा कि ज्यादा नमी न रहे और वे दीर्घकालिक रूप से उपज के लिए उपयुक्त रहें।

इलायची के औषधीय महत्व:

  • इलायची मुखशुद्धि के लिए प्रसिद्ध है और पाचन को बढ़ाती है।
  • इसके आयुर्वेदिक गुणों के कारण, यह बात, श्वास, खांसी, बवासीर और अन्य रोगों में लाभकारी होती है।
  • इलायची पाचन को सुधारता है और रुचि को बढ़ाती है।
  • यह हृदय रोग, खुजली, पथरी और बाहरी विषाक्त पदार्थों को शरीर से निकालने में मदद करती है।
  • मुंह में छाले होने पर भी इसका सेवन लाभकारी माना गया है।

इलायची की खेती की विधि के बारे में अपने सवालों का जवाब दें और खेती के अनुभव साझा करें। इस जानकारी से किसान अपनी उपज में सुधार कर सकते हैं।

आप इलायची की खेती कैसे करते हैं? अपना जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट करके बताएं। इस लेख में आपको खाद एवं उर्वरक की सम्पूर्ण जानकारी दी गयी है और ऐसी ही अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'बागवानी फसलें' चैनल को अभी फॉलो करें। और अगर आपको ये पोस्ट पसंद आयी तो इसे अभी लाइक करें और अपने सभी किसान मित्रों के साथ साझा जरूर करें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: इलायची का पौधा कितने साल में फल देता है?

A: इलायची एक बारहमासी पौधा है, जो 2-3 साल बाद फल देना शुरू करता है और 8-10 वर्षों तक फल देता रहता है। इसके छोटे काले बीज मसाले के रूप में उपयोग होते हैं। अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी और गर्म, आर्द्र जलवायु की जरूरत होती है। इसे ऊंचे पेड़ों की छाया में उगाया जाता है। कटाई के लिए कैप्सूल को हाथ से चुनना पड़ता है।

Q: इलायची कौन से महीने में लगाई जाती है?

A: इलायची आमतौर पर मई और जुलाई के महीनों के दौरान लगाई जाती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि मानसून का मौसम जून में शुरू होता है और इस दौरान होने वाली बारिश फसल की स्थापना में मदद करती है। रोपण आमतौर पर मानसून से पहले की पहली बारिश के बाद किया जाता है। हालांकि, रोपण का सही समय स्थान, मौसम की स्थिति और अन्य कारकों के आधार पर भिन्न हो सकता है। फसल की इष्टतम वृद्धि और उपज सुनिश्चित करने के लिए रोपण के लिए सही समय चुनना महत्वपूर्ण है।

Q: इलायची की खेती कहाँ होती है?

A: इलायची मुख्य रूप से दक्षिणी राज्यों केरल, तमिलनाडु, और कर्नाटक में उगाई जाती है, जहाँ की आदर्श जलवायु और मिट्टी इसकी खेती के लिए उपयुक्त है। पश्चिमी घाट पर्वत श्रृंखला इस मसाले के विकास के लिए सही वातावरण प्रदान करती है।






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