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कृषि ज्ञान
13 May
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कपास की खेती: उपयुक्त मिट्टी, किस्में, उर्वरक प्रबंधन | Cotton cultivation: Suitable soil, varieties, fertilizer management

नकदी फसलों में शामिल कपास की खेती से किसानों को अच्छा मुनाफा होता है। इसलिए इसे 'सफेद सोना' भी कहा जाता है। सिंचित एवं असिंचित दोनों क्षेत्रों में इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है। इसकी बेहतर उपज एवं उच्च गुणवत्ता की फसल प्राप्त करने के लिए उपयुक्त मिट्टी, बेहतरीन किस्में, खेत की तैयारी, सिंचाई एवं उर्वरक प्रबंधन, जैसी जानकारियों के लिए इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ें।

कपास की खेती कैसे करें? | How to Cultivate Cotton?

  • भूमि का चयन: इसकी खेती अच्छी जल धारण क्षमता वाली मिट्टी का चयन करें। इसकी बेहतर पैदावार के लिए रेतीली दोमट या चिकनी दोमट मिट्टी उपयुक्त है। मिट्टी का पीएच स्तर 6.0 से 7.5 के बीच होना चाहिए।
  • बुवाई का समय: उत्तर भारत में, मौसम की स्थिति के आधार पर कपास की बुवाई मध्य मार्च से मध्य अप्रैल तक की जाती है। मध्य भारत में इसकी बुवाई मई के मध्य से जून के मध्य तक की जाती है। दक्षिण भारतीय क्षेत्रों में जून-जुलाई महीने में इसकी बुवाई की जाती है। वहीं तटीय क्षेत्रों में इसकी बुवाई मई से जून महीने में की जाती है।
  • बीज की मात्रा एवं बीज उपचार: बीज की मात्रा किस्मों पर निर्भर करती है। हाइब्रिड किस्मों की बुवाई के लिए 1.25 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है। वहीं बीटी कपास की खेती के लिए प्रति एकड़ खेत में 600 ग्राम की आवश्यकता होती है। फसल को रोगों से बचाने के लिए बुवाई से पहले बीज उपचारित करना आवश्यक है।
  • बेहतरीन किस्में: लम्बे रेशे वाली कपास की किस्मे सबसे बेहतर होती हैं, जिनकी लम्बाई करीब 5 सेंटीमीटर होती है। 3.5 से 5 सेंटीमीटर लम्बी रेशे वाली किस्मों को मिश्रित कपास और 3.5 सेंटीमीटर मालनी रेशों वाली किस्मों को छोटी किस्मों में शामिल किया जाता है। इसकी किस्मों का चयन क्षेत्रों के अनुसार करना चाहिए। इसकी अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए रासी 659, कावेरी एटीएम, महिको जंगी, अजीत 155 डीसीएस 1102, मैक्स कॉट, सीड़प्रो 8694, रासी सुपर 773, क्रिस्टल 7007, महिको बलराज, आदि किस्मों का चयन कर सकते हैं।
  • खेत की तैयारी: खेत तैयार करते समय सबसे पहले फसल के अवशेषों को साफ करें। इसके बाद 6 से 8 इंच की गहराई तक 1 बार जुताई करें। इसके बाद 2 बार हल्की जुताई करके मिट्टी को भुरभुरी बना लें। खेत में जल जमाव की स्थिति से बचने के लिए जल निकासी की उचित व्यवस्था करें।
  • उर्वरक प्रबंधन: प्रति एकड़ खेत में 4 टन गोबर की खाद का प्रयोग करें। इसके साथ ही प्रति एकड़ खेत में 20 किलोग्राम यूरिया के साथ 20-30 किलोग्राम डीएपी खाद का प्रयोग करें। बेहतर पैदावार के लिए प्रति एकड़ खेत में 8 किलोग्राम 'देहात न्यूट्रीवन ज़िंक सल्फेट मोनोहाइड्रेट का प्रयोग करें।
  • बुवाई की विधि: बुवाई क्यारियों में करें। क्यारियों के बीच 48-53 इंच की दूरी रखें एवं पौधों से पौधों के बीच 12-18 इंच की दूरी रखें। बीज की गहराई करीब 5 सेंटीमीटर होनी चाहिए
  • सिंचाई प्रबंधन: कपास के फसल में सिंचाई का ध्यान रखना बहुत महत्वपूर्ण है। बीज अंकुरित होने से पहले यानी बुवाई के 2-3 दिन बाद वर्षा हुई या सिंचाई की गई तो  मिट्टी के ऊपर एक कठोर परत सी बन जाती है। जिससे अंकुरित पौधे बाहर नहीं निकल पाते हैं। फसल में पहली सिंचाई बुवाई के 4-6 सप्ताह बाद करें। इसके बाद पौधों में टहनियां बनने के समय और फूल एवं फल आने के समय सिंचाई करना आवश्यक है। बुवाई के 95-105 दिनों के बाद और 115-125 दिनों के बाद भी सिंचाई करें।
  • खरपतवार प्रबंधन: कपास की फसल में खरपतवार की समस्या से निजात पाने के लिए आवश्यकता के अनुसार निराई-गुड़ाई करें। पहली निराई-गुड़ाई बुवाई के 20 से 25 दिनों के बाद किया जा सकता है। बुवाई के 50 से 60 दिनों बाद फसल में दूसरी बार निराई-गुड़ाई करें। रासायनिक दवाओं का प्रयोग कर के भी फसल को खरपतवारों से मुक्त रख सकते हैं। लेकिन रासायनिक दवाओं का प्रयोग करते समय मात्रा का विशेष ध्यान रखें।
  • रोग एवं कीट प्रबंधन: कपास की फसल में रोग एवं कीटों का प्रकोप उपज और गुणवत्ता में कमी का बड़ा कारण बन सकते हैं। कपास की फसल में गुलाबी इल्ली, थ्रिप्स, सफेद मक्खी, हरा तोला कीट, गिडार कीट, मिलीबग, जड़ गलन रोग, फ्यूजेरियम विल्ट, जैसे कीट एवं रोगों का प्रकोप अधिक होता है। इन रोगों से फसल को बचने के लिए खेत में लगातार निरीक्षण करते रहें। किसी भी रोग या कीट के लक्षण नजर आने पर उचित दवाओं का प्रयोग करें। रोग एवं कीटों का प्रकोप बढ़ने पर तुरंत कृषि विशेषज्ञ से परामर्श करें।
  • फसल की कटाई: गूलर (फल) खिलने के बाद रूई को चुने। हर 7-8 दिनों के अंतराल पर रूई की चुनाई करें। रूई सूखे हुए पत्तों के बगैर चुने। इसके बाद रूई को अच्छी तरह साफ़ करने के बाद मंडी ले जाएं।

आप किस किस्म के कपास की खेती करते हैं और इससे आपको कितनी पैदावार प्राप्त होती है? अपने जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। कृषि संबंधी जानकारियों के लिए देहात के टोल फ्री नंबर 1800-1036-110 पर सम्पर्क करके विशेषज्ञों से परामर्श भी कर सकते हैं। इसके साथ ही इस पोस्ट को लाइक एवं शेयर करना न भूलें। इस तरह की अधिक जानकारियों के लिए 'कृषि ज्ञान' चैनल को अभी फॉलो करें।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न | Frequently Asked Question (FAQs)

Q: कपास कौन से महीने में बोया जाता है?

A: कपास आमतौर पर भारत खरीफ मौसम में यानी मई और जून के महीनों के दौरान बोया जाता है। हालांकि, बुवाई का सही समय क्षेत्र और मौसम की स्थिति के आधार पर भिन्न हो सकता है। कुछ क्षेत्रों में अप्रैल महीने में भी बुवाई की जा सकती है।

Q: कपास की खेती में कौन सा खाद डालें?

A: कपास के बेहतर विकास के लिए संतुलित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग करना आवश्यक है। फसल में उचित मात्रा में यूरिया, डायमोनियम फॉस्फेट (डीएपी), म्यूरेट ऑफ पोटाश (एमओपी) के साथ सिंगल सुपरफॉस्फेट (एसएसपी) खाद का भी प्रयोग करें।

Q: कपास कैसे बोए?

A: कपास की बुवाई से पहले कई बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है। जिसमें भूमि की तैयारी, बीज का चयन, बीज की मात्रा, बीज की गहराई, उर्वरकों का प्रयोग, आदि शामिल है।

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