पोस्ट विवरण
सुने
रोग
कुंदरी
सब्जियां
किसान डॉक्टर
6 Sep
Follow

कुंदरू की खेती (Cultivation of Ivy gourd)


कुंदरू, जिसे तोंडली, कुंदुरी, या आइवी लौकी भी कहा जाता है, एक बहुवर्षीय लतादार सब्जी है। इसकी खेती मुख्य रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में की जाती है। कुंदरू की खेती से कई सालों तक पैदावार मिलती है, जिससे यह एक लाभदायक फसल साबित होती है। इसकी पोषण गुणवत्ता और औषधीय गुण इसे विशेष बनाती हैं, और इसकी खेती गर्म व आर्द्र जलवायु वाले क्षेत्रों में सफलतापूर्वक की जाती है।

कैसे करे कुंदरू की खेती? (How to cultivate Kunduru?)

  • मिट्टी (Soil): कुंदरू की खेती के लिए भुरभुरी, जल निकास वाली मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। रेतीली और हल्की मिट्टी इस फसल के लिए उत्तम होती है। मिट्टी का pH स्तर 6 से 7 के बीच होना चाहिए, जिससे पौधे को उचित पोषक तत्व मिल सकें।
  • जलवायु (Climate): कुंदरू की खेती के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु सबसे उपयुक्त होती है। इसे 20°C से 30°C तापमान में बेहतर विकास होता है। हालांकि, अधिक वर्षा से फसल को नुकसान हो सकता है, इसलिए उचित जल निकासी का ध्यान रखना जरूरी है।
  • बुवाई का समय (Sowing Time): कुंदरू की बुवाई मुख्यतः गर्मियों के मौसम में की जाती है। इसके बीज बोने का सही समय मार्च से मई के बीच होता है, जबकि फसल की कटाई जुलाई से सितंबर के बीच की जाती है।
  • उन्नत किस्में (Improved Varieties): कुंदरू की उन्नत किस्मों का चयन करने से इसकी पैदावार और गुणवत्ता में वृद्धि होती है। कुछ प्रमुख किस्में हैं - हरियाली, शताब्दी, इंदिरा कुंदरू-3, कुंदरू संजीवनी, अर्का नीलाचल कुंखी, इंदिरा कुंदरू-5, कुंदरू नंदिनी, अर्का नीलाचल, कुंदरू लालिमा, सबुजा काशी, एच.डी.एस-1 से 10। इनमें से अर्का नीलाचल कुंखी विशेष रूप से सलाद और सब्जी के लिए प्रसिद्ध है।
  • बीज की मात्रा (Seed Rate): कुंदरू की खेती के लिए 1 एकड़ खेत में 1 से 2 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बीजों को 2 से 3 सेंटीमीटर की गहराई में बोया जाता है। नर्सरी में पौधों की रोपाई के लिए 4000 से 5000 पौधे प्रति एकड़ लगाए जा सकते हैं।
  • खेत की तैयारी (Field Preparation): खेत की अच्छी तैयारी के लिए सबसे पहले खेत की गहरी जुताई करें और पाटा चला कर खेत को समतल कर दें ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए और उसमें नमी और पोषक तत्व अच्छी तरह मिल सके। इसके बाद खेत में गोबर की खाद या जैविक खाद का उपयोग करें। पौधों को सहारा देने के लिए खेत में 1 मीटर ऊंची बेड बनाएं ताकि पौधे फैल  (लता) के रूप में चढ़ सके।
  • खाद और उर्वरक (Fertilizer Management): कुंदरू की अच्छी पैदावार के लिए खेत में प्रति एकड़ खेत में 20 क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट, 2-3 क्विंटल नीम की खली, 86 से 130 किलोग्राम डी.ए.पी खाद, 130 से 173 किलोग्राम यूरिया, 66 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश, 15 किलोग्राम जिंक सल्फेट और 4 किलोग्राम स्टार्टर का प्रयोग करें।
  • सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management): कुंदरू की खेती में उचित सिंचाई का विशेष ध्यान रखना पड़ता है। गर्मी के मौसम में 10-15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई की जाती है। अगर ड्रिप सिस्टम का उपयोग किया जाए, तो पानी की मात्रा को नियंत्रित करना आसान हो जाता है, जिससे पौधों को पर्याप्त पानी मिलता है और पानी की बर्बादी कम होती है। बारिश के मौसम में जल निकासी का उचित प्रबंध करना जरूरी होता है ताकि खेत में पानी जमा न हो और पौधों की जड़ें सड़ने से बच सकें।
  • खरपतवार नियंत्रण (Weed Management): कुंदरू की फसल में खरपतवार की समस्या से निपटने के लिए खेत की निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। जब पौधे छोटे होते हैं, तब हाथ से खरपतवार निकालने की विधि सबसे उपयुक्त होती है। खरपतवारों की नियमित निराई से पौधों को आवश्यक पोषक तत्वों की आपूर्ति में बाधा नहीं आती और फसल का उत्पादन बढ़ता है। इसके लिए खेत को साफ-सुथरा और फसल से मुक्त रखना जरूरी होता है।
  • रोग एवं कीट नियंत्रण (Diseases and Pest Management): कुंदरू की फसल में विभिन्न प्रकार के रोग और कीट लग सकते हैं जैसे ब्लैक रॉट कैंकर, पाउडरी मिल्ड्यू, पत्ती धब्बा रोग, माहू, तना छेदक, लाल मकड़ी आदि। इन रोगों और कीटों से बचाव के लिए जैविक और रासायनिक नियंत्रण का सहारा लिया जा सकता है। जैविक उपायों में नीम का तेल और जैविक फफूंदनाशक का उपयोग प्रभावी होता है। रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल तभी करें जब रोग और कीट का प्रभाव बढ़ जाए। निवारक उपाय अपनाने से रोग और कीटों का प्रभाव कम होता है और फसल सुरक्षित रहती है।
  • तुड़ाई (Harvesting): कुंदरू की फसल की तुड़ाई 60 से 90 दिनों के अंदर की जाती है। जब फल हरे और कोमल होते हैं, तो उनकी तुड़ाई करनी चाहिए। कुंदरू की तुड़ाई हाथ से या औजारों की मदद से की जा सकती है। तुड़ाई के बाद फलों को जल्दी बाजार में पहुंचाना जरूरी होता है ताकि उनकी ताजगी बनी रहे।
  • उपज (Yield): कुंदरू की फसल की प्रति एकड़ उपज 10 से 15 टन तक हो सकती है। उपज फसल की किस्म, जलवायु, और खेती की तकनीकों पर निर्भर करती है। अच्छी देखभाल और समय पर खाद एवं उर्वरक का प्रयोग करके उपज में वृद्धि की जा सकती है।

क्या आप कुंदरू की खेती करना चाहते हैं? अपना जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट करके बताएं। इसी तरह की अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'कृषि ज्ञान' चैनल को अभी फॉलो करें। और अगर पोस्ट पसंद आयी तो इसे लाइक करके अपने किसान दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (Frequently Asked Questions)

Q: कुंदरू की खेती कैसे करें?

A: कुंदरू की खेती के लिए सबसे पहले भुरभुरी और जल निकास वाली मिट्टी का चयन करें। मिट्टी का pH स्तर 6 से 7 के बीच होना चाहिए। खेत की गहरी जुताई करें और उसमें अच्छी गुणवत्ता की गोबर की खाद या जैविक खाद मिलाएं। कुंदरू की बुवाई मार्च से मई के बीच करें, जब मौसम गर्म और आर्द्र होता है। पौधों को चढ़ने के लिए 1 मीटर ऊंची बीड बनाएं और नियमित रूप से पानी दें, लेकिन अत्यधिक पानी से बचें। उर्वरक के रूप में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश का उचित उपयोग करें। फसल के विकास के दौरान खरपतवार और कीटों का प्रबंधन करें।

Q: कुंदरू की खेती कब की जाती है?

A: कुंदरू की बुवाई का सही समय मार्च से मई तक होता है, जब मौसम गर्म और आर्द्र होता है। इस समय के दौरान तापमान 20°C से 30°C के बीच रहता है, जो कुंदरू की अच्छी वृद्धि के लिए अनुकूल है। फसल की कटाई जुलाई से सितंबर तक की जाती है, जब फल हरे और कोमल होते हैं। समय पर बुवाई और कटाई फसल की गुणवत्ता और पैदावार को प्रभावित करती है।

Q: कुंदरू का पौधा कहां मिलेगा?

A: कुंदरू के पौधे विभिन्न स्रोतों से प्राप्त किए जा सकते हैं। आप स्थानीय कृषि केंद्रों, नर्सरी या कृषि विश्वविद्यालयों से कुंदरू के पौधे खरीद सकते हैं। इसके अलावा, ऑनलाइन कृषि प्लेटफार्म पर भी कुंदरू के बीज और पौधे उपलब्ध होते हैं। पौधों को खरीदते समय उनकी गुणवत्ता और किस्म की जांच करना महत्वपूर्ण है ताकि आप उच्च उत्पादन और गुणवत्ता वाली फसल प्राप्त कर सकें।

41 Likes
Like
Comment
Share
फसल चिकित्सक से मुफ़्त सलाह पाएँ

फसल चिकित्सक से मुफ़्त सलाह पाएँ