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बागवानी फसलें
24 May
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सीताफल की खेती: उपयुक्त मिट्टी, किस्में, खेत की तैयारी (Cultivation of Custard Apple: Suitable soil, varieties, field preparation)


सीताफल, जिसे शरीफा भी कहा जाता है, एक अत्यंत स्वादिष्ट और पोषक फल है। इसमें विटामिन, मिनरल्स, और फाइबर की अच्छी मात्रा होती है, जिससे यह हमारे शारीरिक स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है। इसकी चीनी की प्रचुर मात्रा के कारण, इसका उपयोग विभिन्न प्रकार की मिठाइयों और शरबतों में किया जाता है, जिससे यह एक लोकप्रिय फल बन गया है। सीताफल की खेती किसानों के लिए एक लाभकारी व्यवसाय है, जो कम लागत में अच्छी इनकम प्रदान करता है। इसके अलावा, इसके औषधीय गुणों के कारण भी यह फल स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है।

कैसे करें सीताफल की खेती? (How to cultivate Custard Apple?)

मिट्टी (Soil) : सीताफल के पौधे लगभग सभी प्रकार की मिट्टियों में उगाई जा सकती है। इसके लिए दोमट मिट्टी जिसमें जल निकास की उचित व्यवस्था है वह मिटटी सीतफल के लिए अच्छी बढ़वार और पैदावार के लिए अच्छी मानी जाती हैं। वहीं मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 7 के बीच उपयुक्त होता है।

जलवायु (Climate) : सीताफल की खेती के लिए गर्म और हल्के शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है। ऐसे क्षेत्र जहां ज्यादा ठंड और पाला नहीं पड़ता है वहां इसकी खेती अच्छे से की जा सकती है।

बुवाई का समय (Sowing Time) : सीताफल की बुआई साल में दो बार करते हैं। पहला जुलाई से अगस्त महीने में और दूसरा फरवरी से मार्च महीने के बीच बुआई करना अच्छा माना जाता है।

किस्में (Varieties) : सीताफल की कुछ लोकप्रिय किस्मों में Co-1, Co-2, Co-3 और पंजाब चयन शामिल हैं। ये किस्में अपनी उच्च उपज और अच्छी गुणवत्ता के लिए जानी जाती हैं। इनके अलावा, सीताफल की कुछ उन्नत किस्में भी हैं जिन्हें एन.एम.के 1 (गोल्डन सुपर), अर्का सहान, बालानगर, रेड सीलेंट्रो, मेमथ, ब्रिटिश गिनी, बारबाडोस सीडलिंग आदि जैसे अनुसंधान संस्थानों द्वारा विकसित किया गया है। इन किस्मों को उनकी बेहतर उपज, रोग प्रतिरोध और अन्य वांछनीय लक्षणों के लिए जाना जाता है।

पौध प्रसारण (Plant Propagation) : सीताफल की बुवाई बीजों और कलम दोनों से कर सकते हैं। सीताफल का प्रवर्धन ज्यादातर बीज द्वारा किया जाता है। अच्छी किस्मों की शुद्धता बनाए रखने, तेजी से विकास करने और शीघ्र फसल लेने के लिए वानस्पतिक प्रवर्धन की आवश्यकता होती है।

पौधे लगाना (Planting) :

  • सीताफल को जुलाई के महीने में लगाते हैं और बीजों को बुवाई करने के 3-4 दिनों पहले पानी में भिगो देना चाहिए ताकि वह जल्दी अंकुरित हो।
  • एक जगह पर 3 से 4 बीज बोएं और जब पौधे लगभग 15 सें.मी. के हो जाएं तब खेतों में स्वस्थ पौधों को छाँटकर रखें।गर्मियों में 60 x 60 x 60 सें.मी. आकार के गड्ढे 5 x 5 मी. की दूरी पर तैयार करें और उन्हें 15 दिनों के लिए खुला रखें।
  • ऊपरी मिट्टी में 5-10 किग्रा. गोबर की सड़ी खाद, 500 ग्राम करंज की खली और 50 ग्राम एन.पी.के. मिश्रण मिलाकर गड्ढों में भरें।
  • इसके बाद गड्ढे को अच्छी तरह दबा कर उसके चारों तरफ थाला बनाकर पानी दें।
  • यदि बारिश न हो तो पौधों की 3-4 दिन पर सिंचाई करें जिससे पौधों की स्थापना अच्छी होती है।

उर्वरक प्रबंधन (Fertilizer Management) : सीताफल को अपेक्षाकृत अन्य फसलों के कम रखरखाव की जरूरत होती है और इसके लिए अत्यधिक उपजाऊ मिट्टी की आवश्यकता भी नहीं होती है। रोपण के समय अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद और नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश जैसे अकार्बनिक उर्वरकों का उपयोग अच्छे विकास और उपज के लिए जरुरी पोषक तत्व प्रदान करने में मदद करता है। अति-निषेचन और पर्यावरण प्रदूषण से बचने के लिए अनुशंसित आवेदन दरों का पालन करना जरूरी है। इसके अलावा, पोषक तत्वों के अच्छे परिणाम के लिए उचित जल प्रबंधन भी करना चाहिए।

सिंचाई (Irrigation) :

    • सीताफल में ड्रिप या फ्लड सिंचाई पद्धति का इस्तेमाल करना चाहिए।
    • गर्मियों में पौधों को अच्छी सिंचाई की जरूरत होती है इसलिए हर 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करना चाहिए।
    • सर्दियों में 15-20 दिनों के अंतराल पर पानी देने से पैदावार और पेड़ की वृद्धि में सुधार होता है।
    • सीताफल में फल आने की अवस्था में यानि सितंबर से नवंबर के बीच के महीने में सिंचाई की जरूरत होती है।

खरपतवार प्रबंधन (Weed Management) : सीताफल के बगीचे में समय-समय पर निराई-गुड़ाई करते रहना चाहिए, जिससे पौधों के आस-पास सफाई के साथ-साथ पौधों की जड़ों को वायु संचार, पानी एवं प्रकाश के लिए अच्छा सहयोग करते हैं। सीताफल के पौधों के बीच में अंतर-फसल लगाएं।

रोग और कीट प्रबंधन (Disease and Pest Management) : सीताफल की खेती में कुछ मुख्य कीट और रोग हो सकते हैं। कीटों में एफिड्स, कटवर्म, लीफमाइनर्स, सफेद मक्खी, और थ्रिप्स शामिल हैं। और रोगों में ख़स्ता फफूंदी, डाउनी फफूंदी, फ्यूजेरियम विल्ट, जड़ सड़न, और बैक्टीरियल लीफ स्पॉट आम होते हैं। इन रोगों और कीटों के विरुद्ध उचित रोकथाम उपाय अपनाने से सीताफल की उपज में सुधार हो सकता है।

कटाई (Harvesting) : सीताफल के फलों की तुड़ाई तब करें जब फलों पर दो उभारों के बीच खाली जगह ज्यादा हो जाये और उनका रंग बदलनें लगे और जब फल कठोर हों जाता है तब समझ जाना चाहिये की फल पकने की अवस्था में आ गए हैं।  ध्यान रखें फलों को पेड़ पर लम्बे समय तक न छोड़ें नहीं तो फलों के फटने की समस्या आ सकती है। इसके अलावा अपरिपक्व फलों को न तोड़ें क्योंकि इससे फल ठीक से नहीं पकते हैं और उनमें मिठास भी कम होती है।

उपज (Yield) : सीताफल के एक पेड़ से साल भर में लगभग 100 फल निकलते हैं, जिससे किसानों को अच्छी आय प्राप्त होती है।

सीताफल की खेती के बारे में अपना अनुभव और विचार हमें कमेंट करके बताएं। इसी तरह की अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'बागवानी फसलें' चैनल को अभी फॉलो करें। अगर आपको यह पोस्ट पसंद आयी तो इसे लाइक करके अपने किसान दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (Frequently Asked Questions - FAQs)

Q: सीताफल की सबसे अच्छी किस्म कौन सी है?

A: इसमें कई प्रकार की किस्में होती हैं, लेकिन 'मूर्ति', 'ट्रायडिशनल', और 'राजपुरी' सबसे लोकप्रिय हैं।

Q: सीताफल कौन से मौसम में होता है?

A: सीताफल गर्म और शुष्क मौसम में अधिक उपज देता है।

Q: सीताफल की खेती कैसे की जाती है?

A: सीताफल की खेती बीजों के रूप में या पौधों के रूप में की जा सकती है, जो बुवाई के लिए उपयुक्त मौसम के अनुसार किया जाता है। इसके बाद उचित पानी, खाद, और देखभाल की जाती है।

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