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कृषि ज्ञान
21 June
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फ्रेंच बीन की उन्नत खेती (Advanced cultivation of French bean)


फ्रेंच बीन्स, जिसे हरी बीन्स या स्नैप बीन्स के रूप में भी जाना जाता है, भारत में एक लोकप्रिय सब्जी फसल है। यह एक महत्वपूर्ण दलहनी फसल है, जो चना और मटर की तुलना में अधिक उपज देती है। फ्रेंच बीन का उत्पादन मुख्य रूप से महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, जम्मू और कश्मीर और पूर्वोत्तर राज्यों में होता है।

कैसे करें फ्रेंच बीन की खेती? (How to cultivate French beans?)

🌦️ जलवायु : फ्रेंच बीन की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय और समशीतोष्ण क्षेत्र उपयुक्त माने जाते हैं। इसकी खेती में बेहतर उपज के लिए 16 से 24°C तापमान सबसे अच्छा माना जाता है।

🪴मिट्टी : फ्रेंच बीन की खेती करने के लिए अच्छे जल निकास वाली दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है। मिट्टी का पीएच मान 5 से 7 तक का उत्तम होता है।

⏰बुवाई का समय : फ्रेंच बींस की बुवाई का सही समय ऋतु और क्षेत्र के आधार पर अलग-अलग होता है: खरीफ (पहाड़ी क्षेत्र) में जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक बुवाई की जाती है। रबी (मैदानी क्षेत्र) में अक्टूबर के दूसरे पखवाड़े तक बुवाई की जाती है। बसंत (निचले पहाड़ी क्षेत्र) में मार्च के दूसरे पखवाड़े तक बुवाई की जाती है।

🌱किस्में : फ्रेंच बीन की किस्मों को दो समूहों में वर्गीकृत किया गया है: बौनी या झाड़ीदार और चढ़ाई वाली या खंभे वाली किस्में। राज्यवार अनुशंसित किस्में हैं: उत्तर प्रदेश में एच.यू.आर - 137, महाराष्ट्र में वरुण और एच.पी.आर - 35 3, बिहार में आई.पी.आर 96 - 4, राजस्थान में अंकुर, कर्नाटक में अर्का अनूप, गुजरात में गुजरात राजमा - 1, और उत्तराखंड में वीएल राजमश 125। तमिलनाडु में हिल्स क्षेत्रों के लिए वाईसीडी 1, ऊटी 1, ऊटी (एफबी) 2, अर्का कोमल, प्रीमियर, अर्का बोल्ड, अर्का सम्पूर्णा और अर्का कार्तिक अनुशंसित हैं, जबकि मैदानी क्षेत्रों के लिए अर्का कोमल, प्रीमियर, अर्का सुविधा, अर्का अनूप, अर्का समृद्धि और अर्का सुमन की सिफारिश की जाती है।

खेत की तैयारी:

  • खेत की तैयारी के लिए, मिट्टी को पावर टिलर या कुदाल से 2-3 बार जोता जाता है।
  • बुवाई के लिए भुरभुरी मिट्टी बनाने के लिए अंतिम जुताई के दौरान प्लैंकिंग की जाती है।
  • फ्रेंच बीन के बीज का आवरण मोटा और सख्त होता है, इसलिए इसके लिए एक अच्छे बीज बेड की आवश्यकता होती है। इसलिए बुवाई के लिए उपयुक्त आकार के बेड बनाए।
  • बीज बेड में पर्याप्त नमी होनी चाहिए, साथ ही खरपतवारों और पिछली फसल के अवशेषों से मुक्त होनी चाहिए।

उर्वरक प्रबंधन:

  • फ्रेंचबीन के बीजों की बुवाई से पहले बीज का राइजोबियम नामक जीवाणु से उपचार करें।
  • इससे जमीन जनित रोग से फसल सुरक्षित रहती है।
  • 50 से 80 किग्रा प्रति एकड़ यूरिया, 45 किग्रा प्रति एकड़ डीएपी, 33 किग्रा प्रति एकड़ एमओपी खाद दें।
  • फसल में फूल आने के समय भी 20 किलोग्राम नत्रजन प्रयोग करें।
  • खेत की तैयारी के समय 8 से 10 टन FYM प्रति एकड़ खेत में दें।
  • इससे मिट्टी में पोषक तत्वों का संतुलन बना रहता है।

💧सिंचाई प्रबंधन:

  • फ्रेंचबीन की बुवाई के समय, खेत में पर्याप्त मात्रा में नमी होनी चाहिए। इससे बीजों का अंकुरण अच्छे से होता है।
  • बुवाई के बाद, हर सात से दस दिन के अंतराल में आवश्यकतानुसार सिंचाई करें। इससे फसल का संवर्धन और विकास अच्छे से होता है।

🍀खरपतवार प्रबंधन:

  • फ्रेंच बीन की खेती में खरपतवारों का प्रकोप बना रहता है।
  • अवांछनीय पौधों को दो से तीन बार निराई व गुड़ाई करके हटा दें।
  • यदि खरपतवार का प्रकोप ज्यादा हो, तो रासायनिक उपाय भी किया जा सकता है।

🐛कीट प्रबंधन:

  • फली छेदक (Caterpillar): हल्के भूरे और छोटे हरे रंग के कैटरपिलर फली में छेद बनाते हैं और अंदर के बीजों को खाते हैं।
  • पत्ते खाने वाली इल्ली (Leaf-eating caterpillar): हरी इल्ली पत्तियों और पौधों के कोमल भागों को खाती है।
  • बिन बीटल (Bin Beetle): छोटे मुलायम शरीर वाले कीट पत्तियों, कोमल टहनियों और पुष्प कलियों से रस चूसते हैं। इसके कारण फसल मुड़ जाती है, विकृत हो जाती है और सूख जाती है।

रोग प्रबंधन:

  • एन्थ्रेक्नोज (Anthracnose): हाइपोकोटिल्स पर जमीन के ऊपर के सभी हिस्सों पर लाल या पीले किनारों के साथ काले धंसे हुए धब्बे मौत का कारण बनते हैं। फली के अंदर के बीज भी संक्रमित होते हैं।
  • जंग (Rust): पीले धब्बे गुच्छों में होते हैं जो शुरुआती लक्षण होते हैं। बाद में वे गहरे भूरे से काले रंग के अनुदैर्ध्य घावों में बदल जाते हैं। गंभीर स्थिति में पूरा पौधा नष्ट हो सकता है।
  • पत्ती धब्बा (Leaf Spot): छोटे-छोटे गोलाकार या अनियमित धब्बे पत्तियों में दिखाई पड़ते हैं।

कटाई प्रबंधन: फूल आने के दो से तीन सप्ताह के बाद शुरू कर दी जाती है। फलियों की तुड़ाई नियमित रूप से जब फलियां नर्म व कच्ची अवस्था में हो तब उसकी तुड़ाई करनी चाहिए।

🌾उपज : फ्रेंचबीन की वैज्ञानिक तकनीकों से प्रति हेक्टेयर 75-100 क्विंटल हरी फली की पैदावार की जा सकती है। बाजार में इसका भाव 120-150 रुपए प्रति किलोग्राम होता है। इस प्रकार, न्यूनतम उपज और भाव के अनुसार एक हेक्टेयर में आय 9,00,000 रुपए (75 क्विंटल × 120 रुपए) हो सकती है, जबकि अधिकतम उपज और भाव के अनुसार 15,00,000 रुपए (100 क्विंटल × 150 रुपए) तक हो सकती है।

आप फ्रेंच बीन की खेती कैसे करते हैं? अपना जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट करके बताएं। इस लेख में आपको खाद एवं उर्वरक की सम्पूर्ण जानकारी दी गयी है और ऐसी ही अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'कृषि ज्ञान' चैनल को अभी फॉलो करें। और अगर आपको ये पोस्ट पसंद आयी तो इसे अभी लाइक करें और अपने सभी किसान मित्रों के साथ साझा जरूर करें।

❓अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: बींस कौन से महीने में बोया जाता है?

A: बींस की बुवाई विभिन्न क्षेत्रों और मौसमों के अनुसार की जाती है जैसे उत्तर भारत में अक्टूबर और फरवरी के महीने में बुवाई होती है। हल्की ठंड वाले स्थानों में नवंबर के महीने में और पहाड़ी क्षेत्रों में फरवरी, मार्च, और जून के महीने में बुवाई की जाती है।

Q: बुवाई का सही समय क्या है?

A: बींस की बुवाई का सही समय ऋतु और क्षेत्र के आधार पर अलग-अलग होता है जैसे : खरीफ में जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक, रबी मौसम में अक्टूबर के दूसरे पखवाड़े तक और बसंत मौसम में मार्च के दूसरे पखवाड़े तक बुवाई की जा सकती है।

Q: फ्रेंच बीन्स को तैयार होने में कितना समय लगता है?

A: फ्रेंच बीन्स को पूर्ण रूप से बढ़ने और फसल देने में सामान्यतः 45 से 60 दिन का समय लगता है। यह अवधि बींस की किस्म और जलवायु परिस्थितियों के अनुसार थोड़ा-बहुत भिन्न हो सकती है। इस प्रकार, उपयुक्त बुवाई समय और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, फ्रेंच बीन की खेती से अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है।

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