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कलौंजी की खेती (Cultivation of Kalonji)
कलौंजी, जिसे निगेला सैटिवा के नाम से भी जाना जाता है, एक उच्च मूल्य वाली फसल है जिसका व्यापक उपयोग विभिन्न पाक और औषधीय उत्पादों में होता है। इसकी खेती भारत में राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में प्रमुखता से की जाती है। कलौंजी की समय-समय पर सिंचाई की आवश्यकता होती है और इसे सर्दियों के मौसम में बोया जाता है। फसल का विकास लगभग 100-120 दिनों में होता है और बीज पकने के बाद उतारा जाता है, जिससे इसका उत्पादन किसानों के लिए फायदेमंद साबित होता है।
कैसे करें कलौंजी की खेती? (How to cultivate Kalonji?)
- मिट्टी: कलौंजी की खेती विभिन्न प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन कार्बनिक पदार्थों से भरपूर बलुई दोमट मिट्टी इसके लिए सबसे उत्तम मानी जाती है। इसके लिए मिट्टी भुरभुरी और उचित जल निकास वाली होनी चाहिए, जिसमें जलभराव की समस्या न हो।
- जलवायु: कलौंजी की फसल उत्तर भारत में रबी की फसल के रूप में बोई जाती है। इसकी प्रारंभिक वृद्धि के लिए ठंडा मौसम अनुकूल होता है, जबकि बीज के परिपक्व होते समय शुष्क और गर्म मौसम उपयुक्त होता है। इस फसल के लिए दिन का तापमान 20-25 डिग्री सेल्सियस और रात का तापमान 10-15 डिग्री सेल्सियस सर्वोत्तम होता है। उत्तरी भारत में बुआई का सबसे अच्छा समय मध्य सितंबर से मध्य अक्टूबर तक होता है।
- उन्नत किस्में: कलौंजी की कई उन्नत किस्में हैं जैसे: एन.आर.सी.एस.एस.एन.-1, आजाद कलौंजी, एन.एस.-44, एन.एस.-32, अजमेर कलौंजी, काला जीरा और इसके अलावा अन्य किस्में राजेन्द्र श्याम, पंत कृष्णा शामिल हैं।
- बीज दर एवं बीज उपचार: सीधी बुवाई करने के लिए 2 से 2.5 किग्रा. बीज प्रति एकड़ खेत के लिए पर्याप्त होता है। बीज की बुआई कतार विधि से करनी चाहिए, जिसमें कतार से कतार के बीच की दूरी 30 सेमी. और पौधे से पौधे की दूरी 15 सेंटीमीटर होनी चाहिए। बीज बोते समय यह ध्यान रखें कि बीज की गहराई 2 सें.मी. से ज्यादा न हो, अन्यथा जमाव पर असर पड़ सकता है। बीज को बुआई से पूर्व कैप्टॉन, थीरम और बाविस्टीन से 2.5 ग्राम प्रति किग्रा. की दर से उपचारित करना चाहिए।
- बुआई का समय एवं विधि: कलौंजी रबी सीजन की फसल है, और इसकी बुवाई अक्टूबर आरंभ से अक्टूबर अंत तक की जा सकती है। उत्तर भारत में बुवाई के लिए मध्य सितंबर से मध्य अक्टूबर का समय सबसे उपयुक्त माना जाता है। बुआई की विधि के तहत, कतार विधि का उपयोग किया जाता है, जिसमें बीजों की बुवाई 30 सें.मी. की दूरी पर बनी कतारों में की जाती है। बीज बोते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि गहराई 2 सें.मी. से अधिक नहीं होना चाहिए, अन्यथा बीजों के जमाव पर असर दिखाई पड़ता है।
- सिंचाई: कलौंजी में बेहतर पैदावार पाने के लिए इसमें 3 से 4 बार सिंचाई पर्याप्त होती है। कलौंजी में सिंचाई मिट्टी, मौसम, और फसल की अवस्था पर भी निर्भर करती है। सिंचाई हमेशा सुबह जल्दी या देर शाम को करें, जब तापमान ठंडा हो। सिंचाई के लिए ड्रिप विधि का उपयोग करें। अगर यह संभव न हो तो पौधों की कतारों के बीच नालियां बनाकर पानी दें। ध्यान रहे कि अधिक पानी न दें, इससे जलभराव और जड़ सड़ने की समस्या हो सकती है।
- खाद व उर्वरक: कलौंजी की फसल के लिए, खेत में अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद और कम्पोस्ट 4 से 5 क्विंटल प्रति एकड़ की दर से डालें। इसके साथ ही, प्रति एकड़ 35 किग्रा यूरिया, 20 किग्रा डी.ए.पी, और 14 किग्रा एम.ओ.पी उर्वरक का प्रयोग करें। यूरिया खाद को दो भागों में बांटकर बीज बुआई के 30 और 60 दिनों बाद खड़ी फसल में सिंचाई के साथ दें। इससे पौधों को आवश्यक पोषक तत्व मिलेंगे और फसल की वृद्धि और पैदावार बेहतर होगी।
- खरपतवार नियंत्रण: फसल की वृद्धि और विकास को सुचारू बनाने के लिए खरपतवार नियंत्रण महत्वपूर्ण है। जब फसल 30-35 दिनों की हो जाए, तो कतारों से अतिरिक्त पौधों को हटा दें। इसके बाद, 60-70 दिनों के अंतराल पर दूसरी निराई-गुड़ाई करें और यदि आवश्यक हो, तो एक और निराई-गुड़ाई करें। रासायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण के लिए, पेन्डिमेथालिन दवा के 1 किग्रा सक्रिय तत्व को 500-600 लीटर पानी में घोलकर मृदा पर छिड़काव करें। इस विधि से अच्छे परिणाम प्राप्त करने के लिए यह सुनिश्चित करें कि भूमि में पर्याप्त नमी हो।
- रोग और कीट: कलौंजी की फसल में कुछ रोग और कीट का प्रकोप होता है। कलौंजी में लगने प्रमुख रोग अल्टरनेरिया ब्लाइट, जड़ सड़न और ख़स्ता फफूंदी है। इसके अलावा कलौंजी की फसल को प्रभावित करने वाले कीट की बात करें तो एफिड, थ्रिप्स, सफेद मक्खी और दीमक हैं।
- उपज: कलौंजी का उत्पादन एक एकड़ खेत में लगभग 3 से 5 क्विंटल किया जा सकता है। इसकी उपज मिट्टी के प्रकार, जलवायु, सिंचाई और फसल प्रबंधन जैसे विभिन्न कारकों के आधार पर भिन्न हो सकती है। उचित देखभाल और प्रबंधन के साथ, उपज बढ़ाई जा सकती है।
- कटाई: कलौंजी की फसल आमतौर पर बुवाई के बाद 120-140 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। फसल की कटाई तब की जाती है जब बीज की फली पीले-भूरे रंग की हो जाती है और खुलने लगती है। कटाई के बाद, फसल को 5-6 दिनों के लिए धूप में या अच्छी तरह हवादार खलिहान में सुखाया जाता है। एक बार जब फसल पूरी तरह से सूख जाती है, तो बीजों को फली से छड़ी से पीटकर अलग किया जाता है। फिर अलग किए गए बीजों को साफ किया जाता है और आगे उपयोग के लिए ठंडी, सूखी जगह पर संग्रहित किया जाता है।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न | Frequently Asked Question
Q: कलौंजी कब उगाए?
A: कलौंजी रबी सीजन की फसल है, और इसकी बुवाई अक्टूबर आरंभ से अक्टूबर अंत तक की जा सकती है। उत्तर भारत में बुवाई के लिए मध्य सितंबर से मध्य अक्टूबर का समय सबसे उपयुक्त माना जाता है।
Q: कलौंजी भारत में कहां उगाई जाती है?
A: भारत में कलौंजी उगाए जाने वाले कुछ प्रमुख राज्यों में उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, पंजाब और मध्य प्रदेश शामिल हैं।
Q: कलौंजी 1 एकड़ में कितने निकलती है?
A: कलौंजी का उत्पादन एक एकड़ खेत में लगभग 3 से 5 क्विंटल किया जा सकता है।
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