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11 Apr
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सूरजमुखी की खेती | Cultivation of Sunflower

सूरजमुखी के फूल देखने में जितने आकर्षक होते हैं उतने की लाभदायक भी होते हैं। कई औषधीय गुणों के कारण सूरजमुखी की बीज से प्राप्त तेल का प्रयोग खाने के लिए किया जाता है। इसके अलावा इससे कई तरह के सौंदर्य प्रसाधन भी तैयार किए जाते हैं। कम समय में अधिक मुनाफा के लिए कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और बिहार के किसान बड़े पैमाने पर इसकी खेती करते हैं। इसकी खेती वैसे तो सभी मौसम में सफलतापूर्वक की जाती है। लेकिन फरवरी-मार्च में इसकी खेती करने पर रोग एवं कीटों का प्रकोप कम होता है। सूरजमुखी की खेती की विस्तृत जानकारी के लिए इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ें।

सूरजमुखी की खेती कैसे करें? | Cultivation Practices for Sunflower

सूरजमुखी की बुवाई के लिए उपयुक्त समय

  • सूरजमुखी की खेती रबी, खरीफ एवं जायद सभी मौसम में की जाती है।
  • जायद मौसम में खेती के लिए इसकी बुवाई जनवरी महीने से लेकर फरवरी महीने के पहले सप्ताह तक करें।
  • खरीफ में खेती के लिए इसकी बुवाई फरवरी से मार्च महीने में करनी चाहिए।
  • रबी मौसम में खेती करने के लिए अक्टूबर से नवंबर महीने में बुवाई करें।

उपयुक्त मिट्टी एवं जलवायु

  • फसल पकने के समय शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है।
  • इसकी खेती लगभग सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है।
  • अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए इसकी खेती भारी मिट्टी एवं दोमट मिट्टी में करें।
  • अम्लीय एवं क्षारीय मिट्टी में खेती करने से बचें।
  • मिट्टी की जल धारण करने की क्षमता अधिक होनी चाहिए।
  • जल जमाव बीज के अंकुरण एवं पौधों के विकास के लिए नुकसानदायक है। इसलिए खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था करें।

बीज की मात्रा

  • प्रति एकड़ भूमि में संकुल किस्म की खेती करने के लिए 4.8 से 6 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
  • वहीं प्रति एकड़ भूमि में संकर किस्मों की खेती के लिए 2 से 2.4 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।

बीज उपचारित करने की विधि

  • बुवाई से पहले 5 से 6 घंटों तक बीज को पानी में भिंगों कर रखें। इससे अंकुरण में आसानी होती है।
  • बुवाई से पहले प्रति किलोग्राम बीज को 2 ग्राम थीरम से उपचारित करें।
  • बुवाई से पहले बीज को 12 घंटों तक पानी में भिंगो कर रखें।
  • इसके बाद बीज को 3 से 4 घंटों तक किसी छांव वाली जगह पर सूखाने के बाद बुवाई करें।

बीज की दूरी

  • संकर किस्मों की खेती के लिए कतारों के बीच 60 सेंटीमीटर की दूरी होनी चाहिए।
  • उन्नत किस्मों की खेती के लिए कतारों के बीच 45 सेंटीमीटर की दूरी रखें।
  • पौधों से पौधों की दूरी 30 सेंटीमीटर होनी चाहिए।

खेत तैयार करने की विधि

  • खेत में पर्याप्त नमी नहीं होने पर पलेवा करने के बाद मिट्टी पलटने वाली हल से गहरी जुताई करें।
  • इसके बाद देशी हल या कल्टीवेटर के द्वता 2 से 3 बार अच्छी तरह जुताई कर के मिट्टी को भुरभुरी बना लें।
  • आखिरी जुताई के समय प्रति एकड़ भूमि में 2.8 से 3.2 टन अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद मिलाएं।
  • इसके अलावा सिंचित क्षेत्रों में 52 से 64 किलोग्राम यूरिया, 150 किलोग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट एवं 26 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश  करें।
  • उर्वरक प्रयोग करते समय यूरिया को 3 बराबर भागों में बांटे और 2 भाग यूरिया के साथ सिंगल सुपर फॉस्फेट एवं पोटाश की पूरी मात्रा का प्रयोग करें।
  • बचे हुए 1 भाग यूरिया का छिड़काव बुवाई के 30 से 35 दिनों बाद खड़ी फसल में करें।

सिंचाई

  • बुवाई के 20-25 दिनों बाद फसल में पहली सिंचाई करें। जल जमाव की स्थिति से बचने के लिए हल्की सिंचाई करें।
  • इसके बाद आवश्यकता के अनुसार 10-15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें।
  • फूल आने के समय बहुत हल्की सिंचाई करें। इससे पौधे गिरने से बचेंगे।
  • खेत में सिंचाई के लिए ड्रिप विधि का प्रयोग करें। इससे पानी की बचत होती है और सिंचाई में होने वाले खर्च में भी कमी आती है।

फसल में मिट्टी चढ़ाना

  • सूरजमुखी के फूल आकार में बड़े होते हैं। इसके भार से पौधों के गिरने का खतरा बना रहता है। ऐसे में पौधों को गिरने से बचाने के लिए जमीन की सतह से करीब 10 से 15 सेंटीमीटर की ऊंचाई तक मिट्टी चढ़ाएं।

खरपतवार नियंत्रण

  • बेहतर पैदावार के लिए खरपतवारों पर नियंत्रण करना आवश्यक है।
  • खरपतवार की अधिकता से सूरजमुखी के पौधों को उचित मात्रा में पोषक तत्व नहीं मिल पाता है। ऐसे में पैदावार एवं गुणवत्ता पर बुरा प्रभाव होता है।
  • खतपतवारों पर नियंत्रण के लिए निराई-गुड़ाई एक बेहतर विकल्प है। निराई-गुड़ाई करने में लागत भी कम आती है और खेत की मिट्टी भी भुरभुरी होती है।

रोग एवं कीट प्रबंधन

  • सूरजमुखी की फसल में दीमक, हरा फुदका कीट, फली बेधक जैसे कीटों का प्रकोप अधिक होता है।
  • फसलों को रोग एवं कीटों से बचाने के लिए प्रकोप के लक्षण नजर आते ही उचित दवाओं का प्रयोग करें।

फसल की कटाई

  • फूलों के झड़ने के बाद या फूल के पिछले हिस्से पीले होने के बाद इसकी कटाई करें।
  • सभी फूल एक साथ नहीं झड़ते या सभी फूलों का पिछला हिस्सा एक साथ पीला नहीं होता। इसलिए कुछ दिनों के अंतराल पर कटाई करते रहें।
  • कटाई के बाद फूलों को छांव में अच्छी तरह सूखा लें। इसके बाद डंडे से पिटाई कर के या सूरजमुखी थ्रेशर के द्वारा बीज निकालें।

भंडारण

  • बीज निकालने के बाद उसे अच्छी तरह सूखा लें। 8 से 10 प्रतिशत तक नमी रहने पर बीज को भंडारित करें।
  • बीज से 3 महीने के अंदर तेल निकालें। तेल निकालने में अधिक देर होने पर तेल में कड़वाहट आने लगती है।

सूरजमुखी की फसल में आप किन उर्वरकों का प्रयोग करते हैं? अपने जवाब हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। इस तरह की अधिक जानकारियों के लिए 'बागवानी फसलें' चैनल को तुरंत फॉलो करें। इसके साथ ही इस पोस्ट को लाइक और शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न | Frequently Asked Question (FAQs)

Q: सूरजमुखी की बुवाई कौन से महीने में होती है?

A: सूरजमुखी की खेती वर्ष में 3 बार की जा सकती है। इसकी बेहतर उपज के लिए फरवरी-मार्च महीने में इसकी बुवाई करें।

Q: कौन सा राज्य सूरजमुखी की खेती में अग्रणी है?

A: भारत में सूरजमुखी के उत्पादन में कर्नाटक को पहला स्थान प्राप्त है।

Q: सूरजमुखी कितने दिन में तैयार होती है?

A: सूरजमुखी की फसल के तैयार होने का समय इसकी किस्मों पर निर्भर करता है। सामान्यतः बुवाई के बाद सूरजमुखी की फसल को तैयार होने में करीब 90 दिनों का समय लगता है।

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