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किसान डॉक्टर
16 Jan
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जीरा में झुलसा रोग प्रबंधन (Blight disease management in cumin)


जीरा (Cumin) भारतीय रसोई का अहम मसाला है, जो स्वाद बढ़ाने के साथ औषधीय गुणों से भी भरपूर है। यह रबी मौसम में उगाई जाती है, खासकर राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में। हालांकि, जीरा में कई रोगों का प्रकोप हो सकता है, जिनमें सबसे खतरनाक है "झुलसा रोग" (Blight Disease)। यह रोग जीरे की फसल को गंभीर रूप से प्रभावित करता है और किसानों को आर्थिक नुकसान पहुंचाता है। आइए जानें इस रोग के कारण, लक्षण और इसके नियंत्रण के उपाय।

जीरे में झुलसा रोग के कारण एवं लक्षण (Causes and symptoms of cumin blight disease)

कारण (Causes): जीरा में झुलसा रोग एक कवक जनित रोग है, जिसका मुख्य कारण "Alternaria alternata" नामक कवक होता है। यह रोग विशेष रूप से उच्च आर्द्रता और गर्मी में पनपता है। जीरे की फसल में यह रोग आमतौर पर फूल और फल आने के समय अधिक होता है, जब पौधों में नमी का स्तर बढ़ जाता है। इस स्थिति में, कवक का विकास अत्यधिक तेजी से होता है और रोग का प्रभाव भी अधिक होता है।

लक्षण (Symptoms)

  1. पत्तियों पर भूरे धब्बे: झुलसा रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं। धीरे-धीरे ये धब्बे काले रंग में बदल जाते हैं और पत्तियां सूखने लगती है।
  2. पत्तियों का मुरझाना: इस रोग के कारण पत्तियां मुरझा जाती हैं और उनका आकार सिकुड़ने लगता है। प्रभावित पत्तियां पीली होकर झड़ने लगती हैं, जिससे पौधों का सामान्य विकास रुक जाता है।
  3. तनों पर धब्बे: इसके अलावा, तनों पर भी गहरे भूरे और काले धब्बे दिखाई देने लगते हैं। यह तने की संरचना को कमजोर करता है, जिससे पौधों की स्थिरता में कमी आती है।
  4. फूल और फल पर प्रभाव: जब यह रोग जीरे के पौधों के फूल और फल में प्रवेश करता है, तो फूलों की गुणवत्ता में कमी आ जाती है। फल सिकुड़ने लगते हैं और उनका आकार विकृत हो जाता है। परिणामस्वरूप, उत्पादन में भारी गिरावट आती है।
  5. बीजों का सिकुड़ना: रोग का प्रभाव बीजों पर भी पड़ता है। प्रभावित बीज सिकुड़कर हल्के हो जाते हैं और उनका आकार असामान्य हो जाता है। इन बीजों की गुणवत्ता कम हो जाती है और ये ठीक से अंकुरित नहीं हो पाते हैं।
  6. संक्रमण का फैलाव: झुलसा रोग के फैलाव के कारण, बीजों की गुणवत्ता में गिरावट आती है और यह अन्य पौधों में भी जल्दी फैल सकता है। यह संक्रमित बीजों में हल्की हवा से उड़ने की प्रवृत्ति होती है, जिससे रोग का प्रसार तेजी से होता है।

जीरे में झुलसा रोग नियंत्रण (Control of blight disease in cumin)

  • फसल चक्र अपनाएं: लगातार एक ही खेत में बार-बार जीरा की खेती करने से इस रोग के प्रकोप की संभावना बढ़ जाती है। जीरा की फसल को इस रोग से बचाने के लिए फसल चक्र अपनाएं। अन्य तिलहन या मसाले की फसलें जैसे धनिया, मेथी आदि का उपयोग करके रोग के फैलने से बचा जा सकता है।
  • रोग रहित बीज का चयन: जीरा की खेती के लिए रोग रहित, स्वस्थ बीज का प्रयोग करें। संक्रमित बीजों से यह रोग खेत में फैल सकता है, जिससे फसल पर नकारात्मक असर पड़ता है। बीज की गुणवत्ता का विशेष ध्यान रखें।
  • प्रतिरोधी किस्में का चयन: झुलसा रोग के प्रति सहनशील या प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें। जीरा की कुछ किस्में इस रोग के प्रति अधिक प्रतिरोधी होती हैं, जो रोग के प्रकोप को कम कर सकती हैं।
  • सफाई का ध्यान रखें: झुलसा रोग से प्रभावित फसलों के अवशेष जैसे पत्तियां, तने, फल या बुरी तरह संक्रमित पौधों को खेत से बाहर निकाल कर नष्ट करें। इसके साथ ही खरपतवारों पर भी नियंत्रण करना आवश्यक है, क्योंकि वे रोग के प्रकोप को बढ़ा सकते हैं।
  • पौधों को नष्ट करें: इस रोग को फैलने से रोकने के लिए बुरी तरह प्रभावित पौधों को जला कर नष्ट कर दें। संक्रमित पौधे खेत में छोड़ने से रोग अन्य स्वस्थ पौधों में फैल सकता है, इसलिए उनका नष्ट करना महत्वपूर्ण है।
  • सही मात्रा में सिंचाई: जीरा की फसल में अत्यधिक मात्रा में सिंचाई करने से बचें। जीरा पानी की अधिकता सहन नहीं कर पाता है, और जलजमाव की स्थिति में यह रोग तेजी से फैलता है। खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था करें और यह सुनिश्चित करें कि पानी जमा न हो।
  • मैंकोजेब 75% डब्ल्यू पी (इंडोफिल- एम 45, धानुका- एम 45, यू पी एल- यूथेन) को प्रति एकड़ खेत में 600 से 800 ग्राम छिड़काव के माध्यम से प्रयोग करें।
  • टेबुकोनाज़ोल 75%WG (बायर बूनोस) प्रति लीटर पानी में 300 ग्राम प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।
  • एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.3% एससी (देहात ऐजीटॉप, अदामा कस्टोडिया) का प्रयोग प्रति एकड़ खेत में 300 मिलीलीटर छिड़काव करें।
  • प्रोपीनेब 70% डब्ल्यूपी (देहात जिनैक्टो, बायर एंट्राकोल) 600-800 ग्राम/एकड़ प्रयोग करें।
  • हेक्साकोनाज़ोल 5% + कैप्टन 70% WP (टाटा ताकत) का 300 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • मेटिरम 55% + पायराक्लोस्ट्रोबिन 5% डब्लू जी (बी.ए.एस.एफ कैब्रियो टॉप) का 600-700 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • पाइराक्लोस्ट्रोबिन 13.3% + एपॉक्सीकोनाज़ोल 5% एसई (बी.ए.एस.एफ ओपेरा) का 300 मिलीलीटर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% डब्ल्यू.पी (देहात साबू, कात्यायनी सामर्थ, अंशुल दोस्त, धानुका सिक्सर) का प्रयोग प्रति एकड़ खेत में 300-600 ग्राम करें।
  • एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 18.2% + डिफेनोकोनाज़ोल 11.4% SC (देहात सिनपैक्ट) की 200 मिलीलीटर मात्रा प्रति एकड़ खेत में  छिड़काव करें।

क्या जीरा में झुलसा रोग से परेशान हैं या इसके बारे में जानना चाहते हैं? अपने अनुभव और सवाल कमेंट में शेयर करें! फसलों को रोगों से बचाने के लिए 'कृषि ज्ञान' चैनल को फॉलो करें। अगर यह जानकारी उपयोगी लगे, तो लाइक करें और दोस्तों के साथ शेयर करें!

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (Frequently Asked question)

Q: जीरा कितने दिनों में उगता है?

A: जीरा की फसल लगभग 120 दिनों में तैयार हो जाती है। बीज अंकुरण के लिए सही तापमान और नमी की आवश्यकता होती है। सही देखभाल और समय पर सिंचाई से फसल समय पर पककर तैयार होती है।

Q: जीरे में पहला पानी कब देना चाहिए?

A: जीरे की बुवाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करना अनिवार्य है। पानी देते समय ध्यान रखें कि बहाव तेज न हो, क्योंकि तेज पानी बीजों को अपनी जगह से हटा सकता है, जिससे अंकुरण प्रभावित हो सकता है। इसके बाद, मिट्टी की नमी के अनुसार नियमित सिंचाई करें।

Q: भारत में जीरा कहां लगाया जाता है?

A: भारत में जीरा मुख्य रूप से राजस्थान और गुजरात में बड़े पैमाने पर उगाया जाता है। इसके अलावा, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में भी रबी मौसम में इसकी खेती की जाती है। इन राज्यों की जलवायु और मिट्टी जीरे की खेती के लिए उपयुक्त होती है।

Q: जीरे की कटाई कैसे की जाती है?

A: जब जीरे के बीज भूरे रंग के हो जाएं और सूखने लगें, तो फसल कटाई के लिए तैयार होती है। कटाई तनों के साथ सावधानीपूर्वक करें और उन्हें बाँधकर बैग में रखें। बीज निकालने के लिए पौधों को बैग के अंदर हिलाएं। ध्यान रखें, अधिक देर करने से बीज झड़कर जमीन पर गिर सकते हैं, जिससे नुकसान हो सकता है।

Q: जीरा 1 एकड़ में कितना निकलता है?

A: जीरे की उपज कई कारकों पर निर्भर करती है, जैसे कि मिट्टी की गुणवत्ता, जलवायु, फसल प्रबंधन और उन्नत किस्मों का उपयोग। सामान्यतः प्रति एकड़ 2.8 से 3.2 क्विंटल जीरा प्राप्त होता है। यदि उन्नत तकनीकों और उच्च गुणवत्ता वाले बीजों का उपयोग किया जाए, तो उपज को बढ़ाकर 6 क्विंटल तक भी किया जा सकता है। बेहतर उत्पादन के लिए सही समय पर सिंचाई, खरपतवार नियंत्रण और रोग प्रबंधन आवश्यक है।

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