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धान: तना छेदक, शीथ ब्लाइट, और जड़ गलन रोग पर नियंत्रण (Paddy: Control of stem borer, sheath blight, and root rot disease)
धान की खेती भारत में प्रमुख रूप से की जाती है, लेकिन इसके उत्पादन में कीटों और रोगों का बड़ा योगदान होता है। धान की फसल को तना छेदक (Stem Borer), शीथ ब्लाइट (Sheath Blight), और जड़ गलन (Root Rot) जैसे प्रमुख कीट और रोग नुकसान पहुंचाते हैं। इन समस्याओं का समय पर और प्रभावी नियंत्रण आवश्यक है ताकि फसल की गुणवत्ता और उपज में सुधार हो सके। इस लेख में इन समस्याओं के बारे में विस्तार से जानकारी दी जाएगी और उनके नियंत्रण के उपाय बताए जाएंगे।
कैसे करें धान में तना छेदक, शीथ ब्लाइट, और जड़ गलन का नियंत्रण? (How to control stem borer, sheath blight and root rot in paddy?)
तना छेदक (Rice Stem Borer): तना छेदक, या राइस स्टेम बोरर, एक प्रमुख कीट है जो धान की फसल को गंभीर नुकसान पहुंचाता है। यह कीट पत्तियों और तनों को खा कर उन्हें अंदर से खोखला बना देता है, जिससे पौधे पीले पड़ जाते हैं और उनकी वृद्धि रुक जाती है। तना छेदक के प्रकोप से पौधों में बालियां नहीं निकलती हैं और लार्वा धान के टिलर्स को खाते हैं, जिससे 'डेड हर्ट' या 'सूखने' जैसे लक्षण उत्पन्न होते हैं। अधिक नाइट्रोजन उर्वरक और बुवाई में देरी के कारण तना छेदक की संख्या बढ़ सकती है।
नियंत्रण:
- संक्रमण दिखते ही संक्रमित हिस्से को काट कर नष्ट कर देना चाहिए।
- एक ही खेत में हर साल धान की फसल नहीं लगनी चाहिए फसल चक्र अपनाना चाहिए।
- धान की तना छेदक कीट प्रतिरोधी किस्मों का चुनाव करना चाहिए।
- स्लेमाइट (फिप्रोनिल 0.3% जीआर) दवा को 6 से 13 किलोग्राम प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।
- हर्ल (बिफेंथ्रिन 10% ईसी) दवा को 200 से 320 एम.एल. प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।
- देहात मैक्सियन (थियामेथोक्सम 1% + क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 0.5% जीआर): इस दवा का उपयोग प्रति एकड़ खेत में 2400 ग्राम की मात्रा में करें। इसे पानी में मिलाकर धान की फसल पर समान रूप से छिड़काव करें।
- देहात कारटैप एस.पी (कारटैप हाइड्रोक्लोराइड 50% SP): प्रति एकड़ धान के खेत में 7.5 से 10 किलोग्राम की मात्रा का प्रयोग करें।
- क्लोरपाइरीफॉस 50% + साइपरमेथ्रिन 5% E.C (देहात सी स्क्वायर): प्रति एकड़ खेत में 250-400 मिलीलीटर दवा का छिड़काव करें।
- अटैक जी.आर. (क्लोरएंट्रानिलिप्रोले 0.4% जी.आर.) प्रति एकड़ धान के खेत में 4 से 7.5 किलोग्राम समान रूप से इस्तेमाल करें।
शीथ ब्लाइट (Sheath Blight): शीथ ब्लाइट एक गंभीर रोग है जो धान की फसलों को प्रभावित करता है। शुरुआत में, इस रोग के लक्षण हरे-भूरे रंग के अंडाकार घाव के रूप में होते हैं, जो पत्तियों के जलस्तर के पास दिखाई देते हैं। समय के साथ, ये घाव भूरे-सफेद केंद्र और भूरे किनारों के साथ अनियमित आकार के हो जाते हैं। यह रोग मुख्यतः बारिश के मौसम में फैलता है और उच्च तापमान, उच्च सापेक्ष आर्द्रता, अधिक नाइट्रोजन उर्वरक, और निकट रोपण की स्थितियों में अधिक प्रकट होता है।
नियंत्रण:
- फोलिक्योर (टेबुकोनाजोल 250 ई सी): 1 लीटर प्रति एकड़, 1000 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
- एज़ोक्सीस्ट्रोबिन 18.2% + डाइफ़ेनोकोनाज़ोल 11.4% एससी (सिनपैक्ट, कस्टोडिया) फफूंद नाशक को 200 एमएल प्रति एकड़ खेत में एकसमान रूप से छिड़काव करें।
- बाविस्टिन (कार्बेन्डाजिम 50% डब्ल्यू पी): 500 ग्राम प्रति एकड़, 1000 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
- टाटा अयान (क्रेसोक्सिम-मिथाइल 40% + हेक्साकोनाज़ोल 8% डब्ल्यू जी): 500 ग्राम प्रति एकड़, 1000 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
जड़ गलन रोग (Root rot): जड़ गलन रोग का मुख्य कारण वायरस हो सकता है और यह खेत में जलजमाव के कारण भी उत्पन्न होता है। यदि बीज को उचित रूप से उपचारित नहीं किया गया हो, तो फफूंद के कारण भी यह रोग हो सकता है। इस रोग से प्रभावित पौधों की जड़ें गलने लगती हैं। शुरुआत में, पौधों की पत्तियां मुरझाने लगती हैं और यदि रोग बढ़ जाता है, तो पौधे सूख कर नष्ट हो जाते हैं।
नियंत्रण:
- पौधों की रोपाई से पहले खेत में एक बार गहरी जुताई करें ताकि पानी की जमा वट कम हो सके।
- बुवाई से पहले प्रति किलोग्राम बीज को 3 ग्राम बाविस्टिन से उपचारित करें। इससे फफूंद जनित रोगों से पौधों की रक्षा होती है।
- रोग फैलने से रोकने के लिए प्रभावित पौधों को खेत से बाहर निकालकर नष्ट कर दें।
- खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था करें ताकि जलजमाव को रोका जा सके।
- जड़ गलन रोग पर नियंत्रण के लिए कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% WP (साबू, साफ़) दवा को 300 से 600 ग्राम प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।
क्या आप धान में तना छेदक कीट, शीथ ब्लाइट और जड़ गलन रोग से परेशान हैं? अपना जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट करके बताएं। इसी तरह की अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'किसान डॉक्टर' चैनल को अभी फॉलो करें। और अगर पोस्ट पसंद आयी तो इसे लाइक करके अपने किसान दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)
Q: धान के प्रमुख कीट कौन कौन से हैं?
A: धान की फसलों को कई कीट नुकसान पहुंचाते हैं, जिनमें प्रमुख हैं: स्टेम बोरर, जो तनों में छेद कर पौधों को मुरझाने और मरने पर मजबूर करते हैं; पत्ती फोल्डर, जो पत्तियों को मोड़ कर अंदर के हरे ऊतक को खाते हैं, जिससे विकास रुक जाता है; ब्राउन प्लांट हॉपर, जो पौधों का रस चूसते हैं, जिससे पत्तियां पीली होकर सूख जाती हैं; और चावल के कीड़े, जो विकासशील दानों पर फ़ीड कर अनाज को सिकुड़ा और मलिन बना देते हैं। इन कीटों से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए प्रभावी कीट प्रबंधन रणनीतियाँ आवश्यक है।
Q: धान का मुख्य रोग क्या है?
A: ब्लास्ट रोग, धान का मुख्य रोग है। यह पत्तियों, तनों, पुष्पगुच्छों और अनाज को प्रभावित करता है, जिससे पत्तियों पर छोटे, गोलाकार घाव बनते हैं जो बाद में धूसर केंद्र और भूरे रंग की सीमाओं के साथ धुरी या हीरे के आकार के हो जाते हैं। गंभीर मामलों में, पूरी पत्ती, तना और पुष्पगुच्छ नष्ट हो सकते हैं। उच्च आर्द्रता और वर्षा वाले क्षेत्रों में यह रोग उपज में महत्वपूर्ण नुकसान पहुंचा सकता है। प्रबंधन के लिए प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग, फसल चक्र और कवकनाशी का प्रयोग आवश्यक है।
Q: धान की प्रमुख किस्में कौन कौन सी है?
A: धान की कई प्रमुख किस्में हैं, जिनमें देहात डीपीएस समृद्धि, देहात डीपीएस विराट, देहात पीबी-1121, देहात पीबी-1509, देहात महामाया, और देहात बी.पी.टी-5204 ओपी शामिल हैं। ये किस्में अलग-अलग विशेषताओं के लिए जानी जाती हैं, जैसे कि उच्च उपज, बेहतर रोग प्रतिरोधक क्षमता, और विभिन्न जलवायु परिस्थितियों के लिए अनुकूलता। किसानों को अपने क्षेत्र के मौसम और मिट्टी की स्थिति के अनुसार इन किस्मों का चयन करना चाहिए।
Q: धान की बुआई के लिए प्रति एकड़ में कितना बीज लगता है?
A: धान की बुआई के लिए बीज की मात्रा चुनी गई विधि पर निर्भर करती है। यदि डी.एस.आर (डायरेक्ट सीडेड राइस) विधि का उपयोग किया जाता है, तो प्रति एकड़ 25-30 किलो बीज की आवश्यकता होती है। वही, पारंपरिक विधि से बुवाई करते समय प्रति एकड़ 6-10 किलो बीज पर्याप्त होता है। बीज की उचित मात्रा सुनिश्चित करने से पौधों का बेहतर विकास और फसल की अच्छी उपज प्राप्त होती है।
Q: धान के पौधों की रोपाई के लिए क्या दूरी रखनी चाहिए?
A: धान के पौधों की रोपाई करते समय पंक्तियों के बीच 20 सेंटीमीटर और पौधों के बीच 10 सेंटीमीटर की दूरी रखनी चाहिए। एक स्थान पर 2-3 पौधे लगाने से पौधों को पर्याप्त पोषक तत्व और स्थान मिलता है, जिससे उनका विकास अच्छा होता है। सही दूरी रखने से पौधों में रोग और कीट संक्रमण का खतरा भी कम हो जाता है, और फसल की गुणवत्ता और उपज में सुधार होता है।
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