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किसान डॉक्टर
3 June
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धान की नर्सरी में रोग एवं कीट प्रबंधन | Disease and Pest Management in Paddy Nursery

रोगों एवं कीटों का प्रकोप फसलों की उपज में भारी कमी का कारण बनते हैं। इन रोगों और कीटों का प्रकोप बढ़ने पर फसल की उपज के साथ फसलों की गुणवत्ता में भी कमी आती है। कई बार फसलों को नुकसान पहुंचाए बिना इन पर नियंत्रण करना किसानों के लिए एक बड़ी समस्या बन जाती है। धान की फसल भी इस समस्या से अछूती नहीं है। धान की नर्सरी हो या मुख्य में पौधे लगे हों, रोगों एवं कीटों की समस्या तो होती ही है। बात करें धान की नर्सरी की तो इस अवस्था में पौधे छोटे और नाजुक होते हैं, जिससे ये रोगों एवं कीटों की चपेट में आसानी से आ सकते हैं। अगर आप भी कर रहे हैं धान की खेती तो, नर्सरी में लगने वाले कुछ प्रमुख कीटों और रोगों से होने वाले नुकसान एवं इन पर नियंत्रण की जानकारी के लिए इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ें।

धान की नर्सरी में लगने वाले कुछ प्रमुख कीट | Major pests affecting the Paddy nursery

पत्ती लपेटक कीट से होने वाले नुकसान: इस कीट का लार्वा पीले रंग का होता है। व्यस्क कीट हरे रंग के होते हैं। ये कीट धान की पत्तियों पर समूह में अंडे देते हैं। अंडों में से 6-8 दिनों में सुंडियां निकलने लगती हैं। ये कीट सबसे पहले पत्तियों के मुलायम हिस्सों को खाना शुरू करते हैं। इसके बाद अपनी लार से धागा बना कर पत्तियों को किनारे से मोड़ने लगते हैं। पत्तियों को मोड़ने के बाद यह पत्तियों को अंदर से खुरच कर खाते हैं। इसके साथ ही ये कीट पत्तियों का रस भी चूसते हैं, जिससे पत्तियां सफेद होने लगती हैं। इस कीट के प्रकोप के कारण पौधों में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया भी प्रभावित होती है। इस कीट का प्रकोप बढ़ने पर पौधों के विकास में बाधा आती है। कुछ समय बाद पौधे कमजोर हो कर नष्ट हो जाते हैं।

पत्ती लपेटक कीट पर नियंत्रण के तरीके:

  • यह कीट धान की पत्तियों पर समूह में अंडे देते हैं। यदि संभव हो तो अंडों के समूह को नष्ट करें।
  • ये कीट सबसे पहले खरपतवारों पर पनपते हैं। इसलिए खेत में खरपतवारों पर नियंत्रण रखें।
  • पत्ती लपेटक कीट पर नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ खेत में 40-80 ग्राम थियामेथोक्सम 25%डब्ल्यू.जी (देहात एसीयर) का प्रयोग करें।
  • इसके अलावा प्रति एकड़ खेत में 250-400 मिलीलीटर क्लोरपाइरीफॉस 50% + साइपरमेथ्रिन 5% ई.सी. (देहात सी स्क्वायर) का भी प्रयोग कर सकते हैं।
  • इसके अलावा प्रति एकड़ खेत में 200 से 250 लीटर पानी में 100 मिलीलीटर लम्ब्डासाइलोंथ्रिन 5 प्रतिशत ई.सी (सिंजेंटा कराटे) मिला कर भी छिड़काव कर सकते हैं।

रस चूसक कीट से होने वाले नुकसान: इस श्रेणी में सफेद मक्खी एवं थ्रिप्स जैसे कीट शामिल हैं। इस तरह के कीट पौधों की कोमल पत्तियों का रस चूस कर पौधों को कमजोर कर देते हैं। जिससे पत्तियां ऊपर या नीचे की तरफ मुड़ने लगती हैं। इन कीटों का प्रकोप बढ़ने पर पौधों के विकास में बाधा आती है।

रस चूसक कीट पर नियंत्रण के तरीके:

  • इन कीटों पर नियंत्रण के नीचे दी गई दवाओं में से किसी एक का प्रयोग करें।
  • इस कीट पर नियंत्रण के लिए 200 लीटर पानी में 100 ग्राम थियामेथोक्सम 25%डब्ल्यू.जी (देहात एसियर) का छिड़काव करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 200 लीटर पानी में 80 ग्राम एसिटामिप्रिड 20% एसपी (टाटा रैलिस माणिक) का प्रयोग करें।
  • 80 मिलीलीटर थियामेथोक्सम 12.6% + लैम्ब्डा साइहलोथ्रिन 9.5% जेड सी (देहात एंटोकिल) 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
  • 200 लीटर पानी में 300 मिलीलीटर क्लोपाइरीफोस 50% + साइपरमेथ्रिन 5% ईसी (देहात सी-स्क्वायर) का घोल बना कर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।

धान की नर्सरी में होने वाले कुछ प्रमुख रोग | Major diseases affecting the Paddy nursery

पर्ण झुलसा रोग से होने वाले नुकसान: यह एक फफूंद जनित रोग है। इस रोग के लक्षण धान की नर्सरी में ही नजर आने लगते हैं। प्रभावित पौधों का निचला भाग सड़ने लगता है। नर्सरी के अलावा मुख्य क्षेत्र में कल्ले निकलने के समय इस रोग के होने की संभावना अधिक होती है। समय यदि इस रोग पर नियंत्रण नहीं किया गया तो 50 प्रतिशत तक फसल नष्ट हो सकती है।

पर्ण झुलसा रोग पर नियंत्रण के तरीके:

  • इस रोग से पौधों को बचाने के लिए धान की नर्सरी में खरपतवारों पर नियंत्रण करें।
  • नर्सरी में साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें।
  • प्रति किलोग्राम बीज को 6-10 मिलीलीटर ट्राइकोडर्मा विरडी (डॉ. बैक्टो डर्मस) से उपचारित करें।
  • इसके अलावा प्रति किलोग्राम बीज को 5-10 मिलीलीटर स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस (डॉ. बैक्टोस फ्लूरो, टी-स्टेन्स बायोक्योर-बी) से भी उपचारित कर सकते हैं।

झोंका रोग से होने वाले नुकसान: आमतौर पर धान की रोपाई के करीब 30 से 40 दिनों बाद इस रोग का प्रकोप होता है। लेकिन इस रोग के लक्षण नर्सरी में ही नजर आने लगते हैं। यह रोग फफूंद एवं मौसम में परिवर्तन के कारण उत्पन्न होता है। शुरुआत में पौधों की पत्तियों पर मटमैले धब्बे उभरने लगते हैं। रोग बढ़ने के साथ धब्बों के आकार में वृद्धि होती है और धब्बे आपस में मिलकर पूरी पत्तियों पर फैल जाते हैं। इससे पत्तियां जली हुई सी नजर आती हैं। कुछ समय बाद पौधे कमजोर होकर टूटने लगते हैं।

झोंका रोग पर नियंत्रण के तरीके:

  • इस रोग को फैलने से रोकने के लिए रोग रहित बीज का चयन करें।
  • पौधों को इस रोग से बचाने के लिए प्रति किलोग्राम बीज को 2 ग्राम थीरम से उपचारित करें।
  • खड़ी फसल में इस रोग के लक्षण नजर आने पर प्रति एकड़ भूमि में 200 लीटर पानी में 200 मिलीलीटर कार्बेंडाजिम मिलाकर छिड़काव करें।
  • इसके साथ ही फसल की कटाई के बाद प्रभावित पौधों के अवशेष को नष्ट कर दें।

नर्सरी में धान के पौधों को विभिन्न रोगों एवं कीटों से बचाने के लिए आप क्या तरीका अपनाते हैं? अपने जवाब हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। फसलों को विभिन्न रोगों एवं कीटों के प्रकोप से बचाने की अधिक जानकारी के लिए ‘किसान डॉक्टर’ चैनल को तुरंत फॉलो करें। इसके साथ ही इस जानकारी को अधिक किसानों तक पहुंचाने के लिए इस पोस्ट को लाइक और शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: धान में कीट नियंत्रण कैसे करें?

A: धान में कीटों को नियंत्रित करने के लिए एकीकृत कीट प्रबंधन (आईपीएम) प्रथाओं का उपयोग किया जा सकता है। इसमें फसल चक्र अपनाना, प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग और प्राकृतिक शिकारियों को छोड़ने जैसी जैविक नियंत्रण विधियां शामिल हैं। कीटनाशकों जैसे रासायनिक नियंत्रण विधियों का उपयोग अंतिम उपाय के रूप में किया जाना चाहिए और विशेषज्ञों के साथ उचित परामर्श के बाद ही किया जाना चाहिए।

Q: धान का मुख्य रोग क्या है?

A: ब्लास्ट रोग भारत में धान की सबसे विनाशकारी बीमारियों में से एक है। यह मैग्नापोर्थे ओरिज़े नामक कवक के कारण होता है और इससे महत्वपूर्ण उपज हानि हो सकती है। रोग को प्रतिरोधी किस्मों, उचित फसल प्रबंधन प्रथाओं और कवकनाशी के समय पर उपयोग का उपयोग करके प्रबंधित किया जा सकता है।

Q: कीट और रोग प्रबंधन कैसे किया जाता है?

A: कृषि में कीट और रोग प्रबंधन में सांस्कृतिक, जैविक और रासायनिक तरीकों जैसी विभिन्न तकनीकों का उपयोग शामिल है। सांस्कृतिक तरीकों में फसल चक्र अपनाना, इंटरक्रॉपिंग और स्वच्छता प्रथाएं शामिल हैं। जैविक तरीकों में कीटों और बीमारियों को नियंत्रित करने के लिए शिकारियों और परजीवियों जैसे प्राकृतिक दुश्मनों का उपयोग शामिल है। रासायनिक तरीकों में कीटों और बीमारियों को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशकों और कवकनाशी का उपयोग शामिल है। विधि का चुनाव कीट या बीमारी के प्रकार और गंभीरता के साथ-साथ पर्यावरणीय और आर्थिक कारकों पर निर्भर करता है।

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