वर्षा के मौसम में फसलों में रोग प्रबंधन | Disease Management in Crops During the Rainy Season
वर्षा का मौसम फसलों के लिए एक महत्वपूर्ण समय होता है। इस समय पौधों को पर्याप्त मात्रा में पानी मिलती है जिससे उसका विकास तेजी से होता है। लेकिन इस समय फसलों में विभिन्न रोगों का प्रकोप भी अधिक होता है, जो उनकी उपज को प्रभावित कर सकता है। बारिश के कारण मिट्टी में नमी की अधिकता, तापमान में बदलाव, हवा में नमी और आर्द्रता की अधिकता जैसे कारक रोगों के पनपने के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान करते हैं। इसलिए, किसानों के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वे वर्षा के मौसम में फसलों के रोगों से बचाव के लिए उचित प्रबंधन उपाय अपनाएं। इस पोस्ट के द्वारा हम वर्षा के मौसम में फसलों में होने वाले प्रमुख रोगों और उनके प्रबंधन के प्रभावी तरीकों पर चर्चा करेंगे, जिससे किसान अपनी फसल को सुरक्षित और उत्पादक बना सकें।
वर्षा के मौसम में फसलों में होने वाले कुछ प्रमुख रोग | Major Disease Affecting Crops During Monsoon
जड़ गलन रोग से होने वाले नुकसान: यह एक फफूंद जनित रोग है। इसके अलावा खेत में जल जमाव होने पर भी इस रोग के होने की संभावना बढ़ जाती है। इस रोग से प्रभावित पौधों की जड़ों में गलन की समस्या शुरू हो जाती है। जमीन की सतह के पास से तने भी सड़ने लगते हैं। तने भूरे रंग में बदलने लगते हैं। पौधों की पत्तियां धीरे-धीरे पीले रंग की नजर आने लगती है। कुछ समय बाद पौधा सूखने लगता है।
जड़ गलन रोग पर नियंत्रण के तरीके:
- फसल को इस रोग से बचाने के लिए बुवाई से पहले प्रति किलोग्राम बीज को 3 ग्राम कारबॉक्सिन 37.5% + थिरम 37.5% डीएस (धानुका विटावाक्स पॉवर ) से उपचारित करें।
- खड़ी फसल में रोग का प्रकोप नजर आने के बाद प्रति एकड़ खेत में 300-600 ग्राम कार्बेंडाजिम 12% + मैंकोजेब 63% (देहात साबू) का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 500 ग्राम कॉपर ऑक्सिक्लोराईड 50% WP (यूपीएल ब्लाइटोक्स) की ड्रेंचिंग करें या सिंचाई के समय प्रयोग करें।
- इस रोग पर नियंत्रण के लिए 15 लीटर पानी में 30 ग्राम रिडोमिल गोल्ड मिला कर छिड़काव करें।
चूर्णिल आसिता रोग से होने वाले नुकसान: इस रोह को पाउडरी मिल्ड्यू रोग के नाम से भी जाना जाता है। इस रोग की शुरुआत में पौधों की पत्तियों के ऊपरी भाग पर सफेद रंग के धब्बे उभरने लगते हैं। धीरे-धीरे इन धब्बों का आकार बढ़ने लगता है और पूरी पत्ती सफेद पाउडर की तरह पदार्थ से ढक जाती है। रोग बढ़ने के साथ पौधों की शाखाओं और फलों पर भी सफेद धब्बे नजर आ सकते हैं। इस रोग के कारण प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में बाधा आती है। जिससे प्रभावित पत्तियां धीरे-धीरे पीली होने लगती हैं। इस रोग से प्रभावित पत्तियां सूख कर गिरने लगती हैं। पौधों के विकास में बाधा उत्पन्न होने लगती है। इस रोग के कारण फसल की उपज और गुणवत्ता में भारी कमी देखी जा सकती है।
चूर्णिल आसिता रोग पर नियंत्रण के तरीके:
- इस रोग को फैलने से रोकने के लिए प्रभावित पत्तियों को तोड़ कर नष्ट कर दें।
- चूर्णिल आसिता रोग पर नियंत्रण के लिए नीचे दी गई दवाओं में से किसी एक का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 300 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.3% एस.सी. (देहात एजीटॉप) का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 200 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 18.2% +डिफेनोकोनाजोल 11.4% एस.सी (देहात सिनपैक्ट) का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 300 ग्राम टाटा ताकत (कैप्टन 70% + हेक्साकोनाज़ोल 5% WP) का प्रयोग करें।
उकठा रोग से होने वाले नुकसान: उकठा रोग के होने का मुख्य कारण फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम नामक कवक है। इस रोग के कारण फसल की उपज में 10 से 12 प्रतिशत तक कमी हो सकती है। रोग का प्रकोप बढ़ने पर उपज में 50 से 78 प्रतिशत तक कमी हो सकती है। उकठा रोग से अरहर, चना, मटर, गन्ना, धान, मसूर, टमाटर, बैंगन, लौकी, आम, अमरूद, आदि कई फसलें प्रभावित होती हैं। इस रोग के फफूंद बिना किसी पोषण या नियंत्रण के करीब 6 वर्षों तक जीवित रह सकते हैं। इस रोग की शुरुआती अवस्था में पौधे के निचले पत्ते मुरझा कर सूखने लगते हैं। संक्रमण बढ़ने पर पूरा पौधा मुरझा कर सूख जाता है। पौधों में यदि फल आ गए हैं तो फलों पर भी इस रोग के लक्षण नजर आ सकते हैं। प्रभावित फलों पर भूरे-काले धब्बे उभरने लगते हैं।
उकठा रोग पर नियंत्रण के तरीके:
- फसलों को इस रोग से बचाने के लिए फसल चक्र अपनाएं। संक्रमित पौधों को खेत से निकाल कर नष्ट कर दें।
- बुवाई से पहले प्रति किलोग्राम बीज को 2 ग्राम ब्यूवेरिया बेसियाना से उपचारित करें।
- पौधों की रोपाई से पहले कार्बेन्डाजिम 50% (धानुका- धानुस्टीन) प्रति लीटर पानी में 2 ग्राम मिला कर पौधों की जड़ों को उसमेन डुबाकर उपचारित करें।
- प्रति एकड़ खेत में 400 ग्राम कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% डब्ल्यू.पी (देहात साबू) का प्रयोग करें।
- इस रोग से बचाव के लिए 10 किलोग्राम बीज को 240 ग्राम 5.4% w/w एफएस (अदामा ओरियस एफएस, आईपीएल ट्रिम) से उपचारित करें।
- प्रति किलोग्राम बीज को 4 ग्राम कार्बोक्सिन 37.5% + थीरम 37.5% डब्लूएस (स्वाल इमिवैक्स, धानुका विटावैक्स पावर)से उपचारित करें।
वर्षा के मौसम में आपकी फसल में किस तरह की समस्याएं आती हैं और समस्याओं से निजात पाने के लिए आप क्या तरीका अपनाते हैं? अपने जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। फसलों में लगने वाले विभिन्न रोगों एवं कीटों से होने वाले नुकसान और उन पर नियंत्रण की अधिक जानकारियों के लिए 'किसान डॉक्टर' चैनल को तुरंत फॉलो करें। इसके साथ ही इस पोस्ट को लाइक और शेयर करना न भूलें।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)
Q: फसलों में रोग प्रबंधन क्या है?
A: फसलों में रोग प्रबंधन फसल की पैदावार और गुणवत्ता पर पौधों की बीमारियों के प्रभाव को रोकने, नियंत्रित करने या कम करने के लिए उपयोग की जाने वाली विभिन्न रणनीतियों और तकनीकों को संदर्भित करता है। इसमें रोग प्रतिरोधी फसल किस्मों, फसल चक्र अपनाना, स्वच्छता प्रथाओं पर ध्यान देना और आवश्यक होने पर कवकनाशी या अन्य रासायनिक उपचारों का उपयोग शामिल है।
Q: बरसात के मौसम में कौन कौन से रोग होते हैं?
A: भारत में बरसात के मौसम के दौरान, फसलें विभिन्न रोगों जैसे लीफ स्पॉट, ब्लाइट, जंग और पाउडर फफूंदी के लिए अतिसंवेदनशील होती हैं। ये रोग फफूंदों के कारण होते हैं जो वर्षा के मौसम की गर्म और आर्द्र परिस्थितियों में पनपते हैं। उचित रोग प्रबंधन प्रथाएं जैसे कि कवकनाशी का समय पर उपयोग और अच्छी फसल स्वच्छता बनाए रखने से इन बीमारियों को रोकने और नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है।
Q: वर्षा का फसलों पर क्या प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है बचाव के उपाय लिखिए?
A: फसल वृद्धि के लिए बारिश आवश्यक है, लेकिन अत्यधिक वर्षा फसलों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है। भारी वर्षा से जलभराव, मिट्टी का कटाव और पोषक तत्वों की कमी हो सकता है, जो फसलों को नुकसान पहुंचा सकता है और पैदावार कम कर सकता है। इसके अतिरिक्त, लंबे समय तक बारिश और उच्च आर्द्रता फसलों में फंगल और जीवाणु रोगों की घटनाओं को बढ़ा सकती है।
Q: रोग प्रबंधन का उद्देश्य क्या है?
A: कृषि में रोग प्रबंधन का उद्देश्य पौधों की बीमारियों के प्रसार को रोकना, कम करना या नियंत्रित करना है। प्रभावी रोग प्रबंधन फसल के नुकसान को कम करने और कृषि प्रणालियों के स्वास्थ्य और उत्पादकता को बनाए रखने में मदद कर सकता है।
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