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4 Feb
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पेड़ी गन्ने में खरपतवार प्रबंधन (Weed Management in Ratoon Sugarcane)


गन्ने की खेती में खासतौर पर पेड़ी गन्ने में खरपतवार एक बड़ी समस्या बन सकती है। ये पोषक तत्वों और नमी को सोख कर फसल की वृद्धि और गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं। अगर समय पर उनका नियंत्रण न किया जाए, तो गन्ने की मिठास और उपज पर नकारात्मक असर पड़ता है। इस लेख में हम आपको पेड़ी गन्ने की बेहतर पैदावार और गुणवत्ता के लिए खरपतवार प्रबंधन के आसान और प्रभावी उपाय बताएंगे।

गन्ने में खरपतवारों से होने वाले नुकसान (Damage from Weeds in Sugarcane Cultivation)

  • फसल की बढ़वार में कमी (Reduced Growth): खरपतवारों के अत्यधिक प्रकोप से गन्ने की वृद्धि धीमी हो जाती है, जिससे उत्पादन कम होता है। इससे गन्ने की फसल की सामान्य वृद्धि बाधित होती है, और किसानों को ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है।
  • मिठास में कमी (Reduced Sugar Content): खरपतवार पोषक तत्वों को अवशोषित कर लेते हैं, जिससे गन्ने में शर्कर की मात्रा कम हो सकती है, जो गुड़ और चीनी के उत्पादन को प्रभावित करता है।
  • उपज में गिरावट (Yield Reduction): खरपतवारों के कारण फसल की उपज 40% तक घट सकती है, जिससे किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है।
  • रोग एवं कीट संक्रमण (Pest & Disease Infestation): खरपतवार कई हानिकारक कीटों और बीमारियों को बढ़ावा देते हैं, जिससे फसल की सुरक्षा में कठिनाई आती है।
  • आर्थिक हानि (Economic Loss): खरपतवारों के कारण उत्पादन और गुणवत्ता में कमी आती है, जिससे किसानों की आमदनी प्रभावित होती है।
  • लागत में वृद्धि (Increased Cost): खरपतवार नियंत्रण के लिए खरपतवारनाशी (Herbicides) और कीटनाशकों के उपयोग से खेती की लागत बढ़ जाती है।

पेड़ी गन्ने में खरपतवारों पर नियंत्रण के विभिन्न तरीके | Various Methods of Weed Control in Ratoon Sugarcane

  • निराई-गुड़ाई (Manual Weeding): पेड़ी गन्ने (Ratoon Crop) में खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए बुवाई के 20 से 25 दिनों के बाद पहली निराई-गुड़ाई की जाती है। 40 से 45 दिनों बाद या जरूरत के हिसाब से दूसरी निराई की जा सकती है। इस प्रक्रिया में खरपतवारों को उखाड़कर या जमीन की सतह से काटकर निकाला जाता है। निराई-गुड़ाई से फसल को बेहतर पोषण मिलता है और मिट्टी में वायु का संचार बढ़ता है, जिससे गन्ने की फसल की गुणवत्ता में सुधार होता है।
  • सहफसली खेती (Intercropping): पेड़ी गन्ने के साथ सहफसली खेती करने से खरपतवारों की संख्या कम हो जाती है। इससे गन्ने के खेतों में अधिक पौधे होते हैं, जो खरपतवारों को फैलने से रोकते हैं। गन्ने के खेतों में मिट्टी की अच्छी तैयारी और नियमित सिंचाई भी खरपतवारों को नियंत्रित करने में मदद करती है।
  • रासायनिक नियंत्रण (Chemical Control): पेड़ी गन्ने में घास और अन्य खरपतवारों का प्रकोप अधिक होता है, जो अगर समय पर नियंत्रण न किया जाए तो गन्ने के उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। इसके नियंत्रण के लिए एट्राजिन 50% WP (एट्राफोर्स) को 400 से 800 ग्राम/एकड़ गन्ने में छिड़काव करें। या अमेट्रिन 73.1% + ट्राइफ्लोक्सिसल्फ्यूरॉन सोडियम 1.8% WG (सिंजेन्टा क्रिसमैट) दवा को 500 से 600 ग्राम प्रति एकड़ गन्ने के खेत में छिड़काव करें। या फिर एमेट्रीन 80% WDG (अदामा तमर) 1 किलोग्राम दवा प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। यह दवा खरपतवारों की जड़ों में प्रभाव डालकर उन्हें नष्ट करती है, जिससे गन्ने की फसल को पोषण मिल पाता है।

दवाओं के छिड़काव के समय रखें इन बातों का ध्यान (Things to Keep in Mind While Applying Weedicides)

  • एक ही शाकनाशी का बार-बार प्रयोग न करें: एक ही दवा का बार-बार उपयोग करने से खरपतवार इससे प्रतिरोधी हो सकते हैं। दवा का असर कम होने से बचने के लिए अलग-अलग शाकनाशी का इस्तेमाल करें।
  • एक फसल में एक बार ही रासायनिक शाकनाशी का प्रयोग करें: एक ही फसल में शाकनाशी का इस्तेमाल केवल एक बार करें ताकि फसल पर कोई विपरीत प्रभाव न पड़े।
  • निर्देशों का पालन करें: शाकनाशी दवाओं के पैकेट पर दिए गए निर्देशों को ध्यान से पढ़ें और उनका पालन करें ताकि दवा का असर सही ढंग से हो।
  • मिट्टी में नमी हो: शाकनाशी दवा का असर तभी होता है जब मिट्टी में पर्याप्त नमी हो। सही समय पर छिड़काव करें ताकि दवा पूरी तरह से फसल तक पहुंचे।
  • सही मात्रा में छिड़काव करें: छिड़काव करते समय दवा की सही मात्रा का ध्यान रखें, ताकि फसल पर कोई नुकसान न हो और दवा का असर पूरा हो।
  • कीटनाशक और फफूंद नाशक न मिलाएं: शाकनाशी दवा के साथ कीटनाशक या फफूंदनाशक न मिलाएं, क्योंकि इससे दवा का असर कम हो सकता है और फसल पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है।
  • अधिक प्रयोग से बचें: शाकनाशी दवाओं में हानिकारक रसायन होते हैं, इसलिए इनका अधिक प्रयोग खेत और पर्यावरण के लिए नुकसानदायक हो सकता है।
  • सिलिकॉन आधारित स्टिकर का प्रयोग करें: शाकनाशी दवाओं के साथ सिलिकॉन आधारित स्टिकर का इस्तेमाल करें, ताकि दवा पौधों पर अच्छे से चिपके।

गन्ने की फसल में खरपतवारों पर नियंत्रण के लिए आप कौन-सा तरीका अपनाते हैं? अपने जवाब हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। खरपतवारों पर नियंत्रण से जुड़ी अधिक जानकारी के लिए 'खरपतवार जुगाड़' चैनल को तुरंत फॉलो करें। साथ ही, इस पोस्ट को लाइक करें और अन्य किसानों के साथ शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न | Frequently Asked Question (FAQs)

Q: गन्ने की फसल में खरपतवार नियंत्रण के सबसे प्रभावी तरीके कौन-से हैं?

A: गन्ने में खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए सहफसली खेती, समय पर निराई-गुड़ाई और रासायनिक खरपतवारनाशी का प्रयोग किया जाता है। सहफसली खेती में गन्ने के साथ मूंग, उड़द या सोयाबीन जैसी फसलें उगाने से खरपतवारों का विकास कम होता है। यदि खेत में खरपतवार अधिक हो जाएं तो उचित खरपतवारनाशी दवाओं का छिड़काव करना फायदेमंद होता है।

Q: गन्ने की फसल में खरपतवारनाशी का सही समय क्या होता है?

A: गन्ने की फसल में खरपतवारनाशी का छिड़काव बुवाई के 3-4 दिन के भीतर किया जाना चाहिए, ताकि खरपतवारों का अंकुरण न हो। कुछ खरपतवारनाशी, जैसे मैट्रीब्यूज़िन और एट्राजीन, 30-35 दिन बाद भी प्रभावी रूप से खरपतवारों को नियंत्रित कर सकते हैं।

Q: खरपतवारनाशी का छिड़काव करते समय किन सावधानियों का पालन करना चाहिए?

A: खरपतवारनाशी का छिड़काव करते समय दस्ताने और मास्क पहनना चाहिए ताकि हानिकारक रसायनों का सीधा प्रभाव न पड़े। छिड़काव सुबह या शाम के समय हल्की हवा में करना चाहिए और दवा मिलाने के लिए स्वच्छ पानी का उपयोग करना चाहिए। साथ ही, छिड़काव के बाद हाथों और चेहरे को अच्छे से धोना चाहिए।

Q: गन्ने की फसल में पाए जाने वाले प्रमुख खरपतवार कौन-से हैं?

A: गन्ने में पाए जाने वाले कुछ प्रमुख खरपतवारों में चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार जैसे बथुआ, दूधी, जंगली पालक और संकरी पत्ती वाले खरपतवार जैसे मोथा, सांवा, कंडई आदि शामिल हैं। ये खरपतवार फसल के विकास में बाधा डालते हैं और पोषक तत्वों की कमी का कारण बनते हैं।

Q: गन्ने की फसल में निराई-गुड़ाई कितनी बार करनी चाहिए?

A: गन्ने की अच्छी बढ़वार के लिए कम से कम 2-3 बार निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। पहली निराई 30-35 दिन, दूसरी 60-70 दिन और तीसरी 90-100 दिन के भीतर करनी चाहिए। इससे खरपतवारों का प्रभाव कम होता है और मिट्टी में नमी बनी रहती है, जिससे फसल को लाभ मिलता है।

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