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कृषि ज्ञान
19 June
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हल्दी की खेती: मिट्टी और खेत की तैयारी (Turmeric Cultivation: Soil and Field Preparation)


हल्दी, भारतीय मसालों का अनिवार्य घटक होने के साथ-साथ धार्मिक और सामाजिक उपयोग के लिए भी महत्वपूर्ण है। हल्दी की खेती न केवल आर्थिक रूप से लाभकारी है, बल्कि यह औषधीय गुणों के कारण भी महत्वपूर्ण है, और इससे अच्छी कमाई के अवसर हैं। इससे सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से भी फायदा होता है।

कैसे करें हल्दी की उन्नत खेती? (How to do advanced cultivation of turmeric?)

जलवायु : हल्दी उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में अच्छी तरह से उगाई जाती है। हल्दी की बेहतर पैदावार के लिए 20 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त माना जाता है।

मिट्टी : हल्दी की खेती लगभग हर प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, पर इसकी बेहतरीन पैदावार के लिए लाल मिट्टी, चिकनी दोमट मिट्टी और अच्छे जल निकास वाली मिट्टी सबसे ज्यादा उपयुक्त होती है। इसके लिए मिट्टी का पीएच मान 4.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए।

बुवाई का समय : हल्दी की खेती के लिए जून से जुलाई महीना सबसे उत्तम होता है।

किस्में : हल्दी की उन्नत किस्में- राजापुरी, सलेम, आर.एच-5, राजेंद्र सोनिया, पालम पीताम्बर, सोनिया, सगुना, रोमा, कोयम्बटूर, कृष्णा, आर, एन.डी.आर-18, पंत पीतांबर आदि।

बीज दर : 9 से 10 क्विंटल गाठें एक एकड़ के लिए पर्याप्त होता है इसके लिए हल्दी की स्वस्थ गाठों का इस्तेमाल करना चाहिए। इन गांठों को बुवाई से पहले उपचारित करना चाहिए।

खेत की तैयारी : हल्दी की रोपाई के पहले खेत की जुताई एक महीने पहले देना चाहिए। जैसे ही पहली बारिश हो उसके बाद मिट्टी को भुरभुरा बनाने के लिए तीन से चार बार गहरी जुताई करके मिट्टी में पाटा चलाकर खेत को समतल कर लें और आखिरी जुताई के समय सड़ी हुई गोबर की खाद का इस्तेमाल करें।

रोपाई की विधि: हल्दी की रोपाई मेड़ और फरो विधि से की जाती है।  इसके लिए पौधे से पौधे की दूरी 25 cm और कतार से कतार की दूरी 40 से 60 cm रखनी चाहिए। मेड़ की लम्बाई 30cm और चौड़ाई 1 मीटर रखनी चाहिए। दो मेड़ों के बीच की दूरी 50 cm होनी चाहिए।

उर्वरक प्रबंधन : खेत की अंतिम जुताई के समय 120 से 150 क्विंटल सड़ी हुई गोबर की खाद, 50 किलोग्राम यूरिया, 130 किलोग्राम डी.ए.पी, एम.ओ.पी 80 किलोग्राम प्रति एकड़ खेत में अच्छे से मिलकर इस्तेमाल करें। इसके अलावा 4 किलोग्राम स्टार्टर इस्तेमाल करें।

सिंचाई: हल्दी के पौधों को प्रारंभिक अवस्था में सिंचाई की ज्यादा आवश्यकता नहीं होती है। गर्मियों में रोपाई के समय और मानसून के आगमन से पहले पौधों को पानी देना चाहिए। मिट्टी के प्रकार के आधार पर 7-10 दिनों के अंतराल पर सिंचाई कर सकते हैं। अगर ड्रिप द्वारा सिंचाई करते हैं तो 1 से 2 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें। सिंचाई के बाद पानी खेत में ठहरना नहीं चाहिए इसलिए जल निकास की उचित व्यवस्था करें। कटाई के लगभग एक महीने पहले से क्यारियो में सिंचाई करना बंद कर देना चाहिए।

खरपतवार प्रबंधन : हल्दी की फसल में खरपतवारों को नियंत्रित रखने के लिए नियमित रूप से निगरानी रखनी चाहिए और 2 से 3 बार अच्छे से निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। आवश्यकता के अनुसार खरपतवार नाशक दवा का इस्तेमाल करें। या फिर खरपतवारों को उगने से रोकने के लिए बुवाई के 3-4 दिन पहले पेंडिमेथालिन दवा का छिड़काव करें।

कीट एवं रोग प्रबंधन:

कीट:

  • तना छेदक कीट: इस कीट के लार्वा तनों में सुरंग बनाकर आंतरिक ऊतकों में प्रवेश करते हैं। प्रभावित केंद्रीय तना मुरझा जाता है और बोर छेद के पास कीटमल की उपस्थिति देखी जा सकती है।
  • प्रकंद छेदक कीट: यह कीट प्रकंदों के आवरण पर हल्के भूरे रंग के गोलाकार छेद होते हैं। इन छेदों से रस चूसकर प्रकंदों में सूखापन और सिकुड़ापन पैदा किया जाता है, जिससे अंकुरण प्रभावित होता है।
  • थ्रिप्स: थ्रिप्स पत्तियों पर हानिकारक असर डालते हैं, जिससे पत्तियां मुड़ जाती हैं, बेरंग हो जाती हैं और धीरे-धीरे सूख जाती हैं। मानसून के मौसम के दौरान, यह हमला करते हैं।

रोग:

  • पत्ती धब्बा रोग: नई पत्तियों की ऊपरी सतह पर विभिन्न आकार के भूरे धब्बे पाए जाते हैं, जो पूरी पत्ती को ढक सकते हैं और बाद में उन्हें सूखा सकते हैं।
  • पत्ती/लीफ ब्लॉच: पत्तियों के दोनों ओर छोटे, आयताकार, अंडाकार या अनियमित भूरे धब्बे दिखाई देते हैं, जो बाद में गहरे भूरे या गंदे पीले रंग में बदल जाते हैं।
  • पत्ती का झुलसा रोग: पत्ती के लेमिना पर विभिन्न आकार के सफेद कागजी केंद्र वाले नेक्रोटिक पैच होते हैं, जो बाद में पूरी पत्ती पर फैल जाते हैं और उन्हें खराब दिखने का कारण बनते हैं।

कटाई: जब पौधों की पत्तियां पीली होकर सूखने लगती है तब हल्दी खुदाई के लिए तैयार होती है। किस्मों के आधार पर हल्दी 8 से 9 महीने में पक कर तैयार हो जाती है। हल्दी की खुदाई के समय ध्यान रखें की औजारों से प्रकंदो को नुकसान न पहुंचे।

उपज: कच्ची हल्दी की पैदावार लगभग 80-90 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। जो बाद में सूख कर 20 से 25 क्विंटल प्रति एकड़ रह जाती है।

आप हल्दी की खेती कैसे करते हैं? अपना जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट करके बताएं। इस लेख में आपको खाद एवं उर्वरक की सम्पूर्ण जानकारी दी गयी है और ऐसी ही अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'कृषि ज्ञान' चैनल को अभी फॉलो करें। और अगर आपको ये पोस्ट पसंद आयी तो इसे अभी लाइक करें और अपने सभी किसान मित्रों के साथ साझा जरूर करें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: हल्दी की फसल में कितनी सिंचाई की जानी चाहिए?

A: हल्दी की फसल को गर्मियों में 4-5 बार सिंचाई की जानी चाहिए। नियमित सिंचाई से मिट्टी की नमी बनी रहती है, जो फसल के विकास के लिए आवश्यक है।

Q: हल्दी की खेती में खरपतवार का प्रबंधन क्यों महत्वपूर्ण है?

A: खरपतवार का प्रबंधन हल्दी की फसल के लिए महत्वपूर्ण होता है क्योंकि यह उत्पादकता को बढ़ाता है। खरपतवार पोषक तत्वों और पानी के लिए फसल के साथ प्रतिस्पर्धा करते हैं, जिससे फसल की वृद्धि प्रभावित होती है।

Q: हल्दी की फसल के साथ कौन-कौन सी फसलें मिलाई जा सकती हैं?

A: हल्दी के साथ नारियल, सुपारी, मिर्ची, कचालू, प्याज, बैंगन, मक्का और रागी जैसी फसलें मिलाई जा सकती हैं। ये फसलें हल्दी के साथ संगत होती हैं और मिश्रित खेती में लाभकारी साबित होती हैं।

Q: हल्दी की फसल के लिए कितना उर्वरक प्रयोग किया जाता है?

A: प्रति एकड़ जमीन में 8 टन गोबर की खाद, नीम का केक 8 क्विंटल, नाइट्रोजन 60 किलो, फॉस्फोरस 35 किलो, और पोटैशियम 35 किलो प्रयोग किया जाता है। यह उर्वरक संतुलन फसल को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करता है।

Q: हल्दी की फसल की कटाई के बाद क्या किया जाता है?

A: खेत की जुताई करने के बाद, हल्दी के प्रकंदों को हाथ से सावधानीपूर्वक इकट्ठा किया जाता है और उन्हें अच्छी तरह से साफ किया जाता है। इसके बाद, प्रकंदों को 7-10 दिनों के लिए धूप में सुखाया जाता है। सूखने के बाद, बाहरी त्वचा को हटाने के लिए प्रकंदों को थ्रेश किया जाता है और फिर उन्हें संग्रहित किया जाता है।

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