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16 Sep
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केले में खाद प्रबंधन (Fertilizer Management in Banana)


केले की खेती में खाद और उर्वरक का सही प्रयोग पौधों की स्वस्थ वृद्धि और अधिक उत्पादन के लिए बेहद जरूरी है। केले के पौधों को संतुलित मात्रा में नाइट्रोजन (N), फॉस्फोरस (P), और पोटाश (K) की आवश्यकता होती है, जिससे उनकी बढ़वार और फलों की गुणवत्ता में सुधार होता है। उचित समय पर उर्वरकों का प्रयोग न केवल पौधों को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करता है, बल्कि उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाता है। इस लेख में, आपको केले की विभिन्न अवस्थाओं में प्रयोग किए जाने वाले खाद और उर्वरक प्रबंधन के बारे में विस्तृत जानकारी देंगे।

केले में खाद कब और कैसे डालें? (How and When to Fertilize Banana)

  • खेत की तैयारी के समय: केले की खेती में खेत की तैयारी सबसे महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। इस समय मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने और पौधे की प्रारंभिक वृद्धि के लिए जैविक खाद का उपयोग काफी लाभकारी होता है। इसके लिए प्रति एकड़ खेत में लगभग 14 टन सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद डालनी चाहिए। यह खाद मिट्टी की संरचना को सुधारता है और नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश जैसी आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति करती है।
  • रोपाई के समय (बेसल ड्रेसिंग): जब केले के पौधे को मुख्य खेत में लगाया जाता है, उस समय बेसल ड्रेसिंग का सही उपयोग पौधे की प्रारंभिक वृद्धि के लिए आवश्यक होता है। प्रति पौधा 170 ग्राम यूरिया, 150 ग्राम सुपर फॉस्फेट, और 250 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश का उपयोग करें। साथ ही, प्रत्येक पौधे के लिए 15 किलो सड़ी हुई गोबर की खाद का प्रयोग करें ताकि पौधे को पोषक तत्वों की आवश्यक पूर्ति हो सके।
  • 30 दिन बाद (पहली डोज): रोपाई के 30 दिन बाद, केले के पौधे को पहले डोज के रूप में उर्वरक दिया जाता है। इस समय पौधे की वृद्धि तेजी से होती है, और उसे नाइट्रोजन की अधिक आवश्यकता होती है। प्रति पौधा 45 ग्राम यूरिया,  125 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट (SSP), और 50 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश (MOP) देना चाहिए। यह प्रारंभिक चरण पौधों की जड़ों और पत्तियों के विकास के लिए महत्वपूर्ण होता है।
  • 75 दिन बाद (दूसरी डोज): रोपाई के 75 दिन बाद पौधे को एक और उर्वरक डोज की आवश्यकता होती है। इस समय प्रति पौधा 90 ग्राम यूरिया, 125 ग्राम सुपर फॉस्फेट और 85 ग्राम MOP की आवश्यकता होती है। यह चरण पौधों के विकास के मध्य समय को कवर करता है, जब उन्हें अधिक पोषण की आवश्यकता होती है।
  • 110 दिन बाद बुवाई (DAS): इस समय पर प्रति पौधा 110 ग्राम यूरिया, 125 ग्राम SSP और 85 ग्राम MOP का उपयोग करें। यह अवधि फूलों और फलों के विकास में सहायक होती है, इसलिए पौधों को उचित मात्रा में नाइट्रोजन, फास्फोरस, और पोटाश चाहिए।
  • 150 दिन बाद बुवाई (DAS): इस चरण में फिर से प्रति पौधा 110 ग्राम यूरिया, 125 ग्राम SSP, और 100 ग्राम MOP देना आवश्यक है। यह समय फलों के आकार और गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण है।
  • 180 दिन बाद बुवाई (DAS): अब प्रति पौधा 90 ग्राम यूरिया, 125 ग्राम SSP और 100 ग्राम MOP देना होता है। यह चरण पौधों की स्थिर वृद्धि और फसल के अंतिम उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण है।
  • गुच्छों के उभरने के समय: इस खाद समय पर प्रति पौधा 85 ग्राम MOP (म्यूरेट ऑफ पोटाश) देना चाहिए। यह पोटाश फलों के आकार और उनके पोषक तत्वों की गुणवत्ता को बढ़ाने में मदद करता है।
  • फर्टिगेशन द्वारा उर्वरक प्रबंधन: फर्टिगेशन का उपयोग करके पौधों को सीधे सिंचाई के पानी के साथ उर्वरक दिया जाता है, जिससे पोषक तत्व सीधे जड़ों तक पहुंचते हैं। यह विधि ज्यादा प्रभावी होती है। फर्टिगेशन द्वारा 9 से 18 सप्ताह के पौधों पर 19:19:19 का उपयोग करें। इसके बाद 19-30 सप्ताह के पौधों को 12:61:00 , 31-42 सप्ताह के पौधों को 13:00:45 , और अंत में 43-46 सप्ताह के पौधों को 00:52:34 या 00:00:50 खाद देना चाहिए। इसके साथ ही सूक्ष्म पोषक तत्व प्रति पौधा 10 ग्राम जिंक, बोरान, और 25 ग्राम मैग्नीशियम सल्फेट 75 दिन बाद फर्टिगेशन के माध्यम से दें।

केले में बेहतरीन उपज पाने के लिए आप कब और कौन-सी खाद का इस्तेमाल करते हैं? अपना जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट करके बताएं। इसी तरह की अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'कृषि ज्ञान' चैनल को अभी फॉलो करें। और अगर पोस्ट पसंद आयी तो इसे लाइक करके अपने किसान दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: केले की खेती कौन से महीने में की जाती है?
A: केले की खेती भारत में पूरे साल की जा सकती है, लेकिन मुख्य रूप से अगस्त से दिसंबर के बीच इसे लगाया जाता है। इस अवधि में जलवायु और मौसम केले की फसल के लिए अनुकूल होते हैं। विभिन्न क्षेत्रों के आधार पर, कुछ किस्मों की कटाई मई में होती है, जबकि अन्य किस्में फरवरी के अंत तक तैयार हो जाती हैं।

Q: केले के पौधों को कौन-कौन से पोषक तत्व चाहिए?
A: केले के पौधों को स्वस्थ विकास और बेहतरीन उपज के लिए मुख्यतः नाइट्रोजन (N), फॉस्फोरस (P), और पोटाश (K) की आवश्यकता होती है। ये तीन मुख्य पोषक तत्व पौधे की जड़, तना, और फल के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसके साथ-साथ सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे जिंक, मैग्नीशियम और सल्फर का भी पौधों की वृद्धि और उत्पादन में अहम योगदान होता है।

Q: केले की खेती कौन से राज्य में होती है?
A: भारत के कई राज्य केले की खेती में अग्रणी हैं। इनमें महाराष्ट्र, तमिलनाडु, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और केरल मुख्य हैं। इन राज्यों में केले की खेती बड़े पैमाने पर होती है और यहाँ की जलवायु और मिट्टी केले की फसल के लिए उपयुक्त है। इसके अलावा, बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, और ओडिशा में भी केले की खेती की जाती है।

Q: केले में कौन-कौन से रोग होते हैं?
A: केले की फसल को प्रभावित करने वाले मुख्य रोगों में पनामा रोग, ब्लैक सिगाटोका, बंची टॉप और एन्थ्रेक्नोज प्रमुख हैं। पनामा रोग जड़ों को प्रभावित करता है, जिससे पौधे सूखने लगते हैं। ब्लैक सिगाटोका पत्तियों पर काले धब्बे उत्पन्न करता है, जिससे प्रकाश संश्लेषण प्रभावित होता है। बंची टॉप वायरस केले के पौधे की ऊंचाई को कम कर देता है, और एन्थ्रेक्नोज फल और पत्तियों पर धब्बे उत्पन्न करता है।

Q: केले का मुख्य कीट क्या है?
A: केले का मुख्य कीट केला एफिड है। यह कीट पत्तियों से रस चूसकर पौधे को कमजोर करता है, जिससे पत्तियां पीली और मुरझाई हुई दिखाई देते हैं। इसके अलावा, यह एफिड बंची टॉप वायरस को फैलाने में भी मदद करता है, जो फसल को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा सकता है।

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