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6 July
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अंजीर: प्रमुख रोग, लक्षण, बचाव एवं नियंत्रण | Fig: Major Diseases, Symptoms, Prevention and Control

भारत में अंजीर की खेती मुख्य रूप से महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश राज्यों में की जाती है। पौधों के विकास के लिए गर्म और शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है। यह एक लोकप्रिय फल है, जिसका सेवन ताजे एवं सूखे दोनों तरह से किया जाता है। बाजार मूल्य अधिक होने के कारण इसकी खेती किसानों के लिए मुनाफे का सौदा साबित होती है। लेकिन अंजीर के पौधों में लगने वाले कुछ रोग फसल को बुरी तरह प्रभावित कर सकते हैं। अंजीर की फसल में लगने वाले कुछ प्रमुख रोगों के लक्षण एवं नियंत्रण की विस्तृत जानकारी के लिए इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ें।

अंजीर के पौधों में लगने वाले कुछ प्रमुख रोग | Some major diseases affecting fig plants

रस्ट रोग से होने वाले नुकसान: रस्ट यानी जंग रोग की शुरुआत आमतौर पर गर्मी के मौसम के अंत में होती है। वातावरण में आर्द्रता और 25.5 से 30.5 डिग्री सेल्सियस तापमान में इस कवक जनित रोग के होने की संभावना बढ़ जाती है। वर्षा के मौसम में यह रोग तेजी से फ़ैल सकता है। इस रोग के लक्षण पत्तियों पर सबसे पहले नजर आते हैं। प्रभावित पत्तियों पर पीले-भूरे रंग के जंग के सामान धब्बे उभरने लगते हैं। रोग बढ़ने के साथ धब्बे भी बढ़ने लगते हैं। कुछ ही दिनों में पत्तियां सूख कर गिरने लगती हैं।

रस्ट रोग पर नियंत्रण के तरीके:

  • बाग की साफ-सफाई करें। नीचे गिरी हुई पत्तियां, टहनियां एवं मिट्टी में पनपे खरपतवारों को निकालें।
  • इस रोग से संक्रमित पुराने गिरे हुए पत्तों को एकत्र करके जला दें।
  • रोग ग्रस्त पौधों की छंटाई करें।
  • इस रोग पर नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ खेत में 150 मिलीलीटर प्रोपिकोनाज़ोल 25% ईसी (क्रिस्टल टिल्ट, अदामा बम्पर) का प्रयोग करें।

एंथ्राक्नोस रोग से होने वाले नुकसान: इस रोग के लक्षण नए अंकुरण, नई पत्तियों एवं फूलों के साथ फलों पर भी देखे जा सकते हैं। यह एक फफूंद जनित रोग है। प्रभावित पत्तियों पर छोटे अनियमित आकार के गहरे भूरे रंग के धब्बे उभरने लगते हैं। इन धब्बों के बीच का भाग धूसर और इसके किनारे भूरे रंग के हो जाते हैं। रोग का प्रकोप बढ़ने पर पौधों के विकास में बाधा उत्पन्न होती है। गर्म तापमान और ज्यादा नमी वाले क्षेत्रों में यह रोग तेजी से फैल सकता है। इस रोग पर नियंत्रण नहीं किया गया तो उपज में करीब 80 प्रतिशत तक कमी आ सकती है।

एंथ्राक्नोस रोग पर नियंत्रण के तरीके:

  • इस रोग पर नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ खेत में 600-800 ग्राम मैंकोजेब 75% डब्लूपी (देहात डेम 45) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 450 ग्राम कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% डब्लूपी (देहात साबू) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 150 लीटर पानी में 200 ग्राम एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 18.2% +डिफेनोकोनाजोल 11.4% एस.सी (देहात सिंपैक्ट) मिला कर छिड़काव करने से भी इस रोग पर नियंत्रण किया जा सकता है।
  • प्रति एकड़ खेत में 200 लीटर पानी में 300 ग्राम क्लोरोथालोनिल 75% डब्ल्यू पी (सिंजेंटा कवच) मिला कर छिड़काव करें।
  • 200 लीटर पानी में 100 ग्राम टेबुकोनाज़ोल 50% + ट्राइफ्लॉक्सीस्ट्रोबिन 25% डब्लू जी (बायर नेटिवो) मिला कर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 300 ग्राम कैप्टन 70% + हेक्साकोनाज़ोल 5% डब्ल्यूपी (टाटा रैलिस ताकत) का प्रयोग करें।

पत्ती धब्बा रोग से होने वाले नुकसान: लीफ स्पॉट एक कवक रोग है जो कपास के पौधों की पत्तियों को प्रभावित करता है।  प्रभावित पौधों की पत्तियों पर छोटे-छोटे भूरे रंग के धब्बे उभरने लगते हैं। ये धब्बे आकार में गोल होते हैं। रोग बढ़ने के साथ धब्बे बड़े होते जाते हैं और आपस में मिल जाते हैं, जिससे प्रभावित पत्तियां झड़ने लगती हैं और उपज कम हो जाती है।

पत्ती धब्बा रोग पर नियंत्रण के तरीके:

  • प्रति एकड़ खेत में 200 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 18.2% +डिफेनोकोनाजोल 11.4% एस.सी (देहात सिनपैक्ट, गोदरेज बिलियर्ड्स, बीएसीएफ एड्रोन) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 600-800 ग्राम प्रोपिनेब 70% डब्ल्यू.पी. (देहात जिनेक्टो, बायर एंट्राकोल) का प्रयोग करें।

मोजैक वायरस रोग से होने वाले नुकसान: अंजीर के पौधों मोजैक वायरस रोग के प्रति संवेदनशील होते हैं। किसी भी अवस्था के पौधे इस रोग से प्रभावित हो सकते हैं। पौधों की नई पत्तियों पर इस रोग के लक्षण सबसे पहले नजर आते हैं। इस रोग से प्रभावित पत्तियां मुड़ने और सिकुड़ने लगती हैं। पत्तियां हरे-पीले रंग में चितकबरी होने लगती हैं। कभी-कभी पत्तियों पर गहरे हरे रंग के फफोले भी देखे जा सकते हैं। रोग बढ़ने पर पौधों का विकास प्रभावित हो सकता है। इस रोग के होने पर कुछ किस्म की अंजीर के पौधों में लगे फल गिरने लगते हैं। सफेद मक्खियां इस रोग को फैलाने का काम करती हैं।

मोजैक वायरस रोग पर नियंत्रण के तरीके:

  • बुवाई के लिए रोग रहित एवं उपचारित बीज का ही प्रयोग करें।
  • रोग की प्रारंभिक अवस्था में प्रति लीटर पानी में 2 से 3 मिलीलीटर नीम का तेल मिलाकर छिड़काव करें।
  • इमिडाक्लोप्रिड 17.8% एस एल (कॉन्फिडोर) 100 मिली प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 100 मिलीलीटर फ्लूबेंडामाइड 19.92% + थायक्लोप्रीड 19.92% (बेल्ट एक्स्पर्ट बायर) का प्रयोग करें।
  • सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए फेनप्रोपॅथ्रीन 30 ईसी (सुमितोमो मेओथ्रिन) की 100 मिलीलीटर मात्रा को 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।

अंजीर के पौधों को रोगों से बचाने के लिए आप क्या करते हैं? अपने जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट के द्वारा बताएं। कृषि संबंधी जानकारियों के लिए देहात के टोल फ्री नंबर 1800-1036-110 पर सम्पर्क करके विशेषज्ञों से परामर्श भी कर सकते हैं। इसके अलावा, 'किसान डॉक्टर' चैनल को फॉलो करके आप फसलों के सही देखभाल और सुरक्षा के लिए और भी अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इसके साथ ही इस पोस्ट को लाइक एवं शेयर करके आप इस जानकारी को अन्य किसानों तक पहुंचा सकते हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: अंजीर के पेड़ों पर फंगस का इलाज कैसे करें?

A: अंजीर के पेड़ों पर फंगस का इलाज करने के लिए उचित फफूंद नाशक दवाओं का छिड़काव करें। रासायनिक दवाओं के छिड़काव से पहले कृषि विशेषज्ञों से परामर्श करें। इसके साथ ही रोगों को फैलने से रोकने के लिए प्रभावित हिस्से को काट कर नष्ट कर दें।

Q: अंजीर के पेड़ के पत्ते भूरे हो रहे हैं तो क्या करें?

A: अंजीर के पेड़ के पत्ते भूरे होने के कई कारण हो सकते हैं। कई बार आवश्यकता से अधिक मात्रा में सिंचाई करने से पत्तियां भूरी होने लगती हैं। इसके अलावा कुछ रोगों के कारण भी पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे होने लगते हैं।

Q: अंजीर के पेड़ में जंग लगने का क्या कारण है?

A: कवक/फफूंद अंजीर के पौधों को नुकसान पहुंचाने वाला जंग रोग होने का मुख्य कारण है। इससे पत्तियों पर पीले-भूरे रंग के छोटे-छोटे धब्बे उभरने लगते हैं।

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