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जरबेरा: रोग, लक्षण, बचाव एवं नियंत्रण | Gerbera: Disease, Symptoms Prevention and Treatment
जरबेरा एक खूबसूरत फूल है जो विभिन्न रंगों में उपलब्ध होता है और इसे गुलदस्तों, सजावट और बागवानी के लिए बहुत पसंद किया जाता है। इसकी खेती एक लाभदायक व्यवसाय हो सकती है। जरबेरा की खेती वर्ष भर सफलतापूर्वक की जा सकती है। लेकिन, इसकी खेती के लिए सबसे अच्छा समय फरवरी से अप्रैल और जुलाई से अक्टूबर के बीच होता है। खूबसूरत फूलों से भरे जरबेरा के पौधे कई रोगों के प्रति अति संवेदनशील होते हैं। बेहतर पैदावार प्राप्त करने के लिए पौधों को विभिन्न रोगों से बचाना बहुत जरूरी है। जरबेरा के पौधों में लगने वाले कुछ प्रमुख रोगों से होने वाले नुकसान एवं नियंत्रण की जानकारी के लिए इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ें।
जरबेरा में लगने वाले कुछ प्रमुख रोग | Gerbera: Diseases Symptoms Prevention and Treatment
ख़स्ता फफूंदी रोग से होने वाले नुकसान: इस रोग को चूर्णिल आसिता रोग या पाउडरी मिल्ड्यू रोग के नाम से भी जाना जाता है। इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों एवं फूलों पर सफेद रंग के पाउडर की तरह पदार्थ उभरने लगते हैं। रोग बढ़ने पर प्रभावित पत्ते पीले हो कर गिरने लगते हैं। इस रोग के कारण पौधों में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया बाधित हो सकती है। प्रभावित पौधों के विकास में बाधा उत्पन्न होती है।
ख़स्ता फफूंदी रोग पर नियंत्रण के तरीके:
- इस रोग को फैलने से रोकने के लिए प्रभावित पत्तों को तोड़ कर नष्ट कर दें।
- चूर्णिल आसिता रोग पर नियंत्रण के लिए नीचे दी गई दवाओं में से किसी एक का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 300 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.3% एस.सी. (देहात एजीटॉप) का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 200 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 18.2% +डिफेनोकोनाजोल 11.4% एस.सी (देहात सिनपैक्ट) का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 300 ग्राम टाटा ताकत (कैप्टन 70% + हेक्साकोनाज़ोल 5% WP) का प्रयोग करें।
जड़ सड़न रोग से होने वाले नुकसान: यह एक फफूंद जनित रोग है। अधिक वर्षा या अत्यधिक सिंचाई के कारण खेत में होने वाला जल जमाव भी इस रोग के होने का प्रमुख कारण है। इस रोग के कवक मिट्टी में कई वर्षों तक जीवित रह सकते हैं। इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियां धीरे-धीरे पीली से भूरी होने लगती हैं। कुछ समय बाद प्रभावित पत्तियां झड़ने लगती हैं। पौधों की जड़ें सड़ने लगती हैं, जिससे पौधे कमजोर होने लगते हैं। समय रहते इस रोग पर नियंत्रण नहीं करने से पौधे नष्ट हो जाते हैं।
जड़ सड़न रोग पर नियंत्रण के तरीके:
- बुवाई के लिए प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें।
- खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था करें।
- इस रोग को फैलने से रोकने के लिए प्रभावित पौधों को नष्ट करें।
- Tebuconazole5.4% w/w FS@4ml/kg of seed as seed dresser
- प्रति किलोग्राम बीज को 2.5 ग्राम कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% डब्ल्यू.पी (देहात साबू) से उपचारित करें।
- प्रति एकड़ खेत में 400 ग्राम कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% डब्ल्यू.पी (देहात साबू) का प्रयोग करें।
पत्ती धब्बा रोग से होने वाले नुकसान: इस रोग को लीफ स्पॉट रोग के नाम से भी जाना जाता है। इस रोग की शुरुआत में पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे उभरने लगते हैं। ये धब्बे आकार में गोल होते हैं। रोग बढ़ने के साथ धब्बों का आकार भी बढ़ने लगता है और पूरी पत्तियों को ढक लेता है। कुछ समय बाद प्रभावित पत्तियां गिरने लगती हैं। वारावरण में आर्द्रता अधिक होने पर यह रोग बहुत तेजी से फैलता है।
पत्ती धब्बा रोग पर नियंत्रण के तरीके:
- प्रति लीटर पानी में 1 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाजोल 18.3% एस.सी. (देहात एजीटॉप) का छिड़काव करें।
- प्रति एकड़ खेत में 200 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 18.2% +डिफेनोकोनाजोल 11.4% एस.सी (देहात सिनपैक्ट, गोदरेज बिलियर्ड्स, बीएसीएफ एड्रोन) का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 600-800 ग्राम प्रोपिनेब 70% डब्ल्यू.पी. (देहात जिनेक्टो, बायर एंट्राकोल) का प्रयोग करें।
बोट्रीटिस ब्लाइट रोग से होने वाले नुकसान: जरबेरा के पौधे इस रोग के प्रति संवेदनशील होते हैं। इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे उभरने लगते हैं। धीरे-धीरे ये धब्बे फैलने लगते हैं और फूलों पर भी नजर आने लगते हैं। इस रोग के कारण फूल भूरे हो कर सड़ने लगते हैं। पौधों के प्रभावित हिस्सों पर फजी ग्रे मोल्ड देखे जा सकते हैं। इस रोग के कारण पौधों की वृद्धि में कमी आती है।
बोट्रीटिस ब्लाइट रोग पर नियंत्रण के तरीके:
- प्रति एकड़ खेत में 200 मिलीलीटर क्रेसोक्सिम मिथाइल 44.3% एससी (टाटा रैलिस एर्गन, पारिजात इंडस्ट्रीज एलोना) का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 400 ग्राम कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोजेब 63% डब्लूपी (बीएसीएफ कारमैन, यूपीएल साफिलाइजर, धानुका सिक्सर) का प्रयोग करें।
जरबेरा की फसल में रोगों पर नियंत्रण के लिए क्या आप लगातार खेत की निगरानी करते हैं और रोगों के लक्षण नजर आने पर आप क्या तरीका अपनाते हैं? अपने जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। फसलों को विभिन्न रोगों एवं कीटों से बचाने की अधिक जानकारी के लिए 'किसान डॉक्टर' चैनल को तुरंत फॉलो करें। इस जानकारी को अधिक किसानों तक पहुंचाने के लिए इस पोस्ट को लाइक और शेयर करना न भूलें।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)
Q: जरबेरा का पौधा कितना बड़ा होता है?
A: जरबेरा के पौधे ऊंचाई में 1-2 फीट तक बढ़ सकते हैं और चौड़ाई में 1-2 फीट तक फैल सकते हैं।
Q: जरबेरा कब लगाया जाता है?
A: जरबेरा की खेती के लिए वर्षभर उपयुक्त समय होता है, लेकिन सबसे अच्छा समय फरवरी से अप्रैल और जुलाई से अक्टूबर के बीच होता है। यह समय फूलों की गुणवत्ता और उत्पादन को बढ़ाने में सहायक होता है।
Q: जरबेरा किस मिट्टी को पसंद करते हैं?
A: जरबेरा की खेती के लिए दोमट मिट्टी सर्वोत्तम होती है, जिसका पीएच स्तर 5.5 से 6.5 के बीच हो। मिट्टी में जैविक पदार्थों की अच्छी मात्रा होनी चाहिए और जल निकासी की व्यवस्था भी बेहतर होनी चाहिए। यदि मिट्टी भारी है, तो इसमें बालू मिलाकर हल्का बनाया जा सकता है।
Q: जरबेरा के पौधे में अधिक फूल कैसे प्राप्त करें?
A: जरबेरा के पौधे में अधिक फूल आने के लिए जरूरी है कि पर्याप्त धूप, पानी और पोषक तत्व उपलब्ध कराए जाएं।
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