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24 June
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अदरक की खेती की सम्पूर्ण जानकारी (Ginger cultivation complete information)


भारत में करीब 143 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में अदरक की खेती की जाती है, खासकर केरल और मेघालय में। अदरक की अच्छी पैदावार के लिए खेत की तैयारी, कंद उपचार, रोपाई की विधि और खाद एवं उर्वरक की सही मात्रा पर ध्यान देना आवश्यक है। अदरक की खेती अन्य फसलों की तुलना में कम खर्चीली और अधिक उत्पादन देने वाली होती है, लेकिन खरपतवार की समस्या से बचने के लिए उचित नियंत्रण आवश्यक है। उड़ीसा, तमिलनाडु, असम, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश तथा उत्तराखंड में भी इसकी व्यापक खेती होती है। अदरक का मुख्य उपयोग मसाले और औषधीय गुणों के लिए होता है। खेती के सही समय, तैयारी और नियंत्रण उपायों पर ध्यान देकर बेहतर फसल प्राप्त की जा सकती है।

कैसे करें अदरक की उन्नत खेती? (How to do improved cultivation of ginger?)

मिट्टी : इसकी खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। मिट्टी में भरपूर मात्रा में जीवाश्म और कार्बनिक पदार्थ होना चाहिए। इसकी खेती के लिए मिट्टी का पी.एच स्तर 5.6 से 7 होना अच्छा होता है। खेत में जल निकासी का उचित प्रबंध करें।

जलवायु : अदरक की खेती के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है। अदरक की अच्छी उपज के लिए तापमान को 20 से 30 डिग्री सेल्सियस पर रखना उपयुक्त होता है। इससे अधिक तापमान पर फसल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, जबकि कम तापमान (10 डिग्री सेल्सियस से कम) के कारण पत्तों और प्रकन्दों को नुकसान पहुंच सकता है।

बुवाई का समय :

  • दक्षिण भारत में अदरक की बुवाई का सबसे उत्तम समय अप्रैल और मई महीने है।
  • इस समय पर बुवाई करने से फसल दिसंबर महीने तक पूरी तरह से तैयार हो जाती है।
  • मध्य और उत्तर भारत में अप्रैल से जून तक बुवाई की जा सकती है, लेकिन इस समय से बाद में बुवाई करने पर कंद के सड़ने की संभावना बढ़ जाती है।
  • पहाड़ी क्षेत्रों में मध्य मार्च के आसपास बुवाई करने से अच्छी उपज हासिल की जा सकती है।

किस्में : अदरक की खेती के लिए विभिन्न किस्में उपलब्ध हैं, जिनमें हिमगिरि, वरदा, जेम्बो और रियो-डी-जनरो प्रमुख हैं। प्रत्येक किस्म की अपनी विशेषताएं और उत्पादन क्षमता होती है, जो विभिन्न जलवायु और मिट्टी की स्थितियों में उपयुक्त होती हैं।

बीज की मात्रा : अदरक की खेती के लिए प्रति हेक्टेयर 1500-1800 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बीज उपचार के लिए प्रति लीटर पानी में 3 ग्राम मैंकोजेब या कार्बेन्डाजिम मिलाएं, और इस मिश्रण में बीज कंदों को 30 मिनट तक डुबोकर रखें। फिर उपचारित कंदों को थोड़ी देर छांव में सुखाकर बुवाई करें।

खेत की तैयारी :

  • अदरक की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। जिसका पीएच मान 5.6 से 6.5 के बीच होता है।
  • खेत की तैयारी में मिट्टी को धूप में सुखाना चाहिए।
  • मानसून से पहले 2-3 बार खेत की जुताई करके मिट्टी को भुरभुरी बना लें।
  • खेत में गोबर की खाद या वर्मीकम्पोस्ट डालें।
  • फसल के लिए एक मीटर चौड़ाई, 15 सेंटीमीटर ऊंचाई और दूर क्यारी तैयार करें।
  • सिंचाई आधारित फसल के लिए 40 सेंटीमीटर ऊपर उठी हुई क्यारी बनाएं।
  • खेत की आखिरी जुताई में उर्वरकों का उपयोग करें।
  • खेत में जल निकासी का ध्यान रखें।

अदरक के कंद का चयन:

  • रोपाई के लिए 20-25 ग्राम वजन वाले प्रकंदों का चयन करें।
  • कंद में कम से कम 3 गांठ होनी चाहिए।
  • कंदों का आकार 2.5 सेंटीमीटर से 5 सेंटीमीटर तक होना चाहिए।

कंद उपचारित करने की विधि:

  • बुवाई से पहले प्रति लीटर पानी में 3 ग्राम मैंकोजेब मिला कर बीज कंदों को उपचारित करें।
  • मैंकोजेब के घोल में डालकर कंदों को 30 मिनट तक रखें।
  • उपचारित कंदों को छांव वाली जगह में 3 से 4 घंटे तक सुखाएं।

रोपाई की विधि:

  • खेत में कंदों की बुवाई क्यारियों में करें।
  • सभी क्यारियों के बीच 25 से 30 सेंटीमीटर की दूरी रखें।
  • पौधों से पौधों के बीच की दूरी भी 20 से 25 सेंटीमीटर होनी चाहिए।
  • खेत में हल्के गड्ढे तैयार करें और सभी गड्ढों में कंदों को रखें और उन्हें गोबर की खाद और मिट्टी से ढक दें।

खाद एवं उर्वरक प्रबंधन :

  • खेत की तैयारी के समय प्रति एकड़ जमीन में 10 tan गोबर की खाद मिलाएं। सड़ी हुई गोबर की खाद के बजाय आप कम्पोस्ट खाद का भी प्रयोग कर सकते हैं।
  • खेत की तैयारी के समय, प्रति एकड़ जमीन में 25 किलोग्राम यूरिया, डी.ए.पी 40 किलोग्राम, और 40 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश) की मात्रा प्रयोग करें। पोटाश और फास्फोरस की पूरी मात्रा बुवाई के समय डालें।
  • 19:19:19 दवा 5 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
  • बुवाई के 45 दिनों के बाद 25 किलोग्राम यूरिया डालें।

सिंचाई :

  • बुवाई के तुरंत बाद पहली सिंचाई करें।
  • अच्छी फसल के लिए मिट्टी में नमी की कमी न होने दें।
  • टपक सिंचाई विधि से फसल की सिंचाई करने से बेहतर फसल प्राप्त किए जा सकते हैं।

खरपतवार प्रबंधन :

  • कंद की बुवाई क्यारियों में या मेड़ बनाकर लाइन में करना चाहिए। इससे निराई-गुड़ाई में आसानी होगी।
  • रोपाई के बाद खेत में पलवार बिछा देना चाहिए। इससे अंकुरण अच्छा होगा और खरपतवारों की समस्या कम होगी।
  • पलवार बिछाने के बाद भी यदि खेत में खरपतवार निकले तो उन्हें निराई-गुड़ाई के द्वारा निकाल देना चाहिए।
  • पौधों की ऊंचाई जमीन की सतह से 20-25 सेंटीमीटर ऊपर हो जाने पर पौधों की जड़ों पर मिट्टी चढ़ाना जरूरी है।
  • पहली निराई-गुड़ाई के बाद हर 25 दिन के अंतराल पर 2-3 निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। इससे अदरक के कंद को पोषक तत्वों के साथ-साथ हवा का उचित आवागमन होगा।
  • अदरक के कंद बनते समय जड़ों के पास कुछ कल्ले निकलने लगते हैं, जिन्हें निकाल देना चाहिए। इससे कंद की वृद्धि होती है। इन्हें निकालने के लिए खुरपी का उपयोग कर सकते हैं।

रोग एवं कीट :

  • मृदु विगलन: यह रोग अदरक के पौधों के लिए खतरनाक होता है। इसमें पौधों की पत्तियां पीली होकर सूख जाती हैं, खासकर जब खेत में पानी जमा होता है।
  • पर्ण चित्ती रोग: इस रोग में पत्तों पर सफेद धब्बे हो जाते हैं। यह खासतौर पर जुलाई से अक्टूबर महीने में फैलता है और पौधों की वृद्धि पर असर डालता है।
  • जीवाणु म्लानि: इस रोग में पौधों की पत्तियां पहले नीचे से पीली होने लगती हैं और फिर ऊपर की पत्तियां भी पीली पड़ जाती हैं।
  • सूत्रकृमि: यह रोग पौधों की जड़ों में गांठ बना देता है और पौधे सूख जाते हैं, जिससे फसल खराब हो जाती है।
  • कुरमुला कीट: यह कीट अदरक की जड़ों को खाती है और फसल को हानि पहुंचाती है। इसका प्रकोप सितंबर से अक्टूबर के बीच अधिक होता है।
  • अदरक की मक्खी (मैगट): ये कीट अदरक की फसल को खेत में और भंडार घर में नुकसान पहुंचाती हैं।

खुदाई : बुवाई के बाद फसल को तैयार होने में करीब 8 महीने समय लगता है। अदरक के पौधों की पत्तियां पीली होने पर खुदाई करें। खुदाई के बाद सावधानी से अदरक के कंदों से मिट्टी अलग करें। कंदों को साफ पानी से धोकर 1 दिन धूप में सुखाएं।

उपज : अदरक की उपज मौसम,किस्म एवं अन्य कई कारकों पर निर्भर करती है। हालांकि अदरक की उपज लगभग प्रति एकड़ के हिसाब से 60 से 80 क्विंटल होती है।

भंडारण : अदरक की गांठों को लंबे समय तक भंडारित करने के लिए, सबसे पहले स्वस्थ और रोग-मुक्त गांठों का चयन करें। इन्हें Dem-45 (मैंकोजेब 75% WP) के मिश्रण से उपचारित करें और फिर 48 घंटे तक छाया में सुखा लें। गांठों को सुखने के बाद गड्ढों में रखें और पुआल या लकड़ी के तख्तों से ढक कर ऊपर से उन्हें गोबर से लेप दें, लेप करते समय एक छोटी मुँह हवा निकास के लिए अवश्य रखें।

आप अदरक की खेती कैसे करते हैं? अपना जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट करके बताएं। इस लेख में आपको खाद एवं उर्वरक की सम्पूर्ण जानकारी दी गयी है और ऐसी ही अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'कृषि ज्ञान' चैनल को अभी फॉलो करें। और अगर आपको ये पोस्ट पसंद आयी तो इसे अभी लाइक करें और अपने सभी किसान मित्रों के साथ साझा जरूर करें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: अदरक की खेती कौन से महीने में लगाई जाती है?

A: अदरक की खेती के लिए सही समय का चयन महत्वपूर्ण है। वर्षा सिंचित क्षेत्रों में, यह मई के पहले सप्ताह में लगाई जाती है ताकि पौधों को मानसून की पहली बारिश का लाभ मिल सके। सिंचित क्षेत्रों में, फरवरी से मार्च के दूसरे सप्ताह तक खेती करना उचित होता है, क्योंकि इस समय पौधों को पर्याप्त पानी और अनुकूल तापमान मिलता है।

Q: अदरक को जमीन पर कैसे लगाएं?

A: अदरक लगाने के लिए जमीन पर 8-10 इंच की दूरी पर छोटे-छोटे गड्ढे तैयार करें। इन गड्ढों में बीजों के प्रकंदों को 4-5 सेमी की गहराई पर रखें और ध्यान दें कि प्रकंदों की आंखें ऊपर की ओर हों। फिर इन गड्ढों को मिट्टी से ढक दें और हल्की सिंचाई करें, जिससे बीजों को नमी मिल सके और वे तेजी से अंकुरित हो सके।

Q: एक एकड़ में कितना अदरक पैदा होता है?

A: एक एकड़ भूमि में 60-80 क्विंटल अदरक पैदा होती है। उत्पादकता बीज की गुणवत्ता, मिट्टी की उर्वरता, सिंचाई और देखभाल की विधियों पर निर्भर करती है। आधुनिक कृषि तकनीकों का पालन करने से उपज में वृद्धि हो सकती है।

Q: अदरक को अंकुरित होने में कितने दिन लगते हैं?

A: अदरक को अंकुरित होने में लगभग 25 दिन लगते हैं। अंकुरण की अवधि मिट्टी की नमी, तापमान और बीज की गुणवत्ता पर निर्भर करती है। आदर्श तापमान और नमी मिलने पर अदरक के बीज तेजी से अंकुरित होते हैं।

Q: अदरक कितने महीने की होती है?

A: अदरक की फसल 8 से 9 महीने में पूरी तरह से तैयार हो जाती है। फसल की परिपक्वता की अवधि किस्म और जलवायु परिस्थितियों पर निर्भर करती है। सही समय पर फसल काटने से उसकी गुणवत्ता और बाजार मूल्य में वृद्धि होती है।

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