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16 Apr
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अदरक की खेती: बेहतर उपज के लिए सम्पूर्ण जानकारी (Ginger farming: Complete information for better yield)


अदरक का वैज्ञानिक नाम जिनजीबेर ओफिसिनेल है। भारत में इसे अदरक, आदा, आदू और आल्लायु जैसे अनेक नामों से जाना जाता है। अदरक की खेती मुख्यत: उड़ीसा, तमिलनाडु, केरल, असम, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश तथा उत्तराखंड में की जाती है।

कैसे करें अदरक के लिए खेत की तैयारी (How to prepare fields for ginger?)

  • तापमान : अदरक के लिए 12-35°C तापमान अच्छा माना जाता है।
  • मृदा : अदरक की खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली चिकनी, रेतली और लाल मिट्टी बेहतर मानी गयी है जिसका पीएच 6.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए।
  • बुवाई का उचित समय : बुवाई का सबसे उचित समय 15 मई से 30 मई के बीच होता है। उस खेत में अदरक की फसल ना उगाएं जहां पिछली बार अदरक की फसल उगाई गई हो। अदरक की बुवाई दक्षिण भारत में मानसून फसल के रूप में अप्रैल-मई में की जाती है। जबकि मध्य एवं उत्तर भारत में अदरक एक शुष्क क्षेत्र फसल है। जो अप्रैल से जून माह तक बुवाई की जा सकती हैं। सबसे उपयुक्त समय 15 मई से 30 मई हैं । 15 जून के बाद बुवाई करने पर कंद सडऩे लगते हैं और अंकुरण पर बुरा प्रभाव पड़ता है। केरल में अप्रैल के प्रथम सप्ताह पर बुवाई करने पर उपज 200 प्रतिशत तक अधिक पाई जाती हैं । वहीं सिंचाई क्षेत्रों में सबसे अधिक उपज फरवरी के मध्य बोने जानें पर मिलती है। पहाड़ी क्षेत्रों में 15 मार्च के आस-पास बुवाई की जाने वाली अदरक में सबसे अच्छा उत्पादन प्राप्त होता है।
  • खेत की तैयारी : खेत की जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करने के बाद खेत को धूप लगने के लिए छोड़ दें। मानसून से पहले खेत की 2 से 3 बार जुताई कर मिट्टी को भुरभुरी बना लें। इसके बाद खेत में गोबर की खाद या वर्मीकम्पोस्ट डालें। इसके बाद भूमि को समतल कर लें।
  • उन्नत किस्में : सुप्रभा, सुरभि, नदिया, अथिरा, इन किस्मों के अलावा अदरक की कई अन्य किस्मों की खेती भी प्रमुखता से की जाती है। जिनमें मरान, जोरहट, सुरुचि, महिमा, वारदा, हिमगिरी, रेजाठा, आदि किस्में शामिल हैं।
  • बुवाई : बुवाई के लिए पौधों में 15-20 सैं.मी. पंक्तियों की दूरी और एक पौधे से दूसरे पौधे की दूरी 22.5 cm होनी चाहिए। बीज की गहराई 4-5 सैं.मी. के करीब होनी चाहिए। अदरक की बिजाई सीधे ढंग से और पनीरी लगाकर की जा सकती है।
  • बीज की मात्रा : बिजाई के लिए ताजे और बीमार रहित गांठों का प्रयोग करें। बिजाई के लिए 480-720 किलो प्रति एकड़ बीज का प्रयोग करें।
  • बीज का उपचार : बिजाई से पहले गांठों को मैनकोजेब 3 ग्राम प्रति लीटर पानी से उपचार करें। गांठों को 30 मिनट के लिए घोल में भिगो दें। इससे गांठों को फफूंदी से बचाया जा सकता है। उपचार के बाद गांठों को 3-4 घंटें के लिए छांव में सुखाएं।
  • खाद : खेत की तैयारी के समय मिट्टी में सल्फर 10 किग्रा/एकड़, स्टार्टर (माइकोराइजा/जैवउर्वरक) 4 किग्रा/एकड़ 150 क्विंटल प्रति एकड़ गोबर की खाद डालें। 55 किलो यूरिया, 60 किलो सिंगल सुपर फासफेट और 16 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश का प्रयोग करें। पोटाश और फासफोरस की पूरी मात्रा बिजाई के समय डालें। नाइट्रोजन की मात्रा को दो बराबर भागों में बांटें। पहला हिस्सा बिजाई के 75 दिन बाद और बाकी हिस्सा बिजाई के 3 महीने बाद डालें।
  • जड़ों के विकास के लिए जड़ों में मिट्टी लगाएं। बिजाई के 50-60 दिनों के बाद पहली बार जड़ों में मिट्टी लगाएं और उसके 40 दिन बाद दोबारा मिट्टी लगाएं।
  • सिंचाई : अदरक की फसल की सिंचाई वर्षा की तीव्रता और आवर्ती के आधार पर करें।
  • बिजाई के बाद फसल को 50 क्विंटल प्रति एकड़ हरे पत्तों से ढक दें। प्रत्येक खाद डालने के बाद 20 क्विंटल प्रति एकड़ हरे पत्तों से फसल को दोबारा ढकें।

अदरक की खेती में खरपतवार प्रबंधन

अदरक की खेती में अन्य फसलों की तुलना में बहुत कम खर्च में अधिक पैदावार होती है। लेकिन अगर इसकी खेती करते समय ध्यान नहीं दिया गया तो खरपतवार की समस्या बढ़ सकती है। खरपतवार के कारण फसलों की पैदावार और गुणवत्ता में कमी आ जाती है।

  • कंद की बुवाई क्यारियों में या मेड़ बना कर लाइन में करें। ताकि निराई - गुड़ाई में आसानी हो।
  • रोपाई के बाद खेत में पलवार बिछा दें। इससे अंकुरण तो अच्छा होगा ही साथ ही खरपतवारों की समस्या कम हो जाती है। इसके बाद भी अगर खेत में खरपतवार निकले तो उसे निराई - गुड़ाई के द्वारा निकाल देना चाहिए।
  • जब पौधों की ऊंचाई जमीन की सतह से 20-25 सेंटीमीटर ऊपर हो जाए तब पौधों की जड़ों पर मिट्टी चढ़ाना जरूरी है।
  • पहली निराई गुड़ाई के बाद हर 25 दिन के अंतराल पर 2-3 निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। ऐसा करने से अदरक के कंद को पोषक तत्वों के साथ-साथ हवा का भी उचित आवागमन होता है।
  • अदरक के कंद बनते समय जड़ों के पास कुछ कल्ले निकलने लगते हैं। इन कल्लों को निकाल दें। इससे कंद के आकर में वृद्धि होती है। इसके लिए खुरपी की सहायता ले सकते हैं।
  • बिजाई के 3 दिन बाद खरपतवारनाशी स्प्रे करें।

अदरक में लगने वाले प्रमुख रोग और उनकी रोकथाम :

  1. प्रकंद सड़न :
  • अदरक में नरम सड़न या प्रकंद सड़न के लक्षण तने के कॉलर क्षेत्र से शुरू होते हैं और ऊपर और नीचे दोनों तरफ बढ़ते हैं।
  • प्रभावित कॉलर क्षेत्र भूरा और पानी से लथपथ हो जाता है और एक अलग सी दुर्गंध आती है। बीमारी जैसे-जैसे बढ़ती है, जड़ें भी संक्रमित हो जाती हैं।
  • प्रभावित तने को आसानी से हटाया जा सकता है। निचली पत्तियों के किनारों पर हल्का पीलापन आता है जो धीरे-धीरे पूरी पत्ती की सतह तक फैल जाता है।
  • रोग के संक्रमण के प्रारंभिक चरण के दौरान, पत्तियों का मध्य भाग हरा रह सकता है जबकि किनारे पीले हो जाते हैं। फिर पीलापन पौधे की सभी पत्तियों पर फैल जाता है, निचले क्षेत्र से शुरू होकर ऊपर की ओर बढ़ता है। प्रभावित तने मुरझा जाते हैं, मुरझा जाते हैं और सूख जाते हैं।
  1. पत्ती धब्बा रोग :
  • यह रोग जुलाई से अक्टूबर के बीच होता है। इस रोग की शुरुआत में पत्तियों पर सूखे पानी के धब्बे बनते हैं जो बाद में सफेद धब्बे के रूप में दिखाई पड़ते हैं।
  • जिसके चारों ओर गहरे भूरे रंग के किनारे होते हैं। यह धब्बे निरंतर बढ़ते है। पानी की बूंद पड़ने से यह रोग और भी प्रभावी हो जाता है। इस रोग का प्रभाव पौधे की वृद्धि पर पड़ता है।
  1. एंथ्राक्नोस :
  • एन्थ्रेक्नोज रोग में पत्तियों पर छोटे-छोटे काले धब्बे बन जाते हैं तथा पत्तियाँ झड़ने लगती हैं।
  • प्रकोप ज्यादा होने पर शाखाएं ऊपर से नीचे की तरफ सूखने लगती हैं। पके फलों पर भी बीमारी के लक्षण दिखाई देते हैं।

अदरक के मुख्य कीट और उनकी रोकथाम :

  1. पौधे की मक्खी : यदि इस मक्खी का हमला खेत में दिखे तो इसे रोकने के लिए एसीफेट 75 एस पी 15 ग्राम को 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें और 10 दिनों के बाद दोबारा स्प्रे करें।
  2. तना का कीट : यदि शाख के कीट का हमला दिखे तो  इसे रोकने के लिए डाइमैथोएट 2 मि.ली. प्रति लीटर या क्विनलफॉस 2.5 मि.ली.  प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें।
  3. रस चूसने वाले कीड़े : इन्हें रोकने के लिए नीम से बने कीटनाशक जैसे कि अझादिरैक्टिन 0.3 ई सी 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें।

कटाई : यह फसल 8 महीनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यदि फसल का प्रयोग मसाले बनाने के लिए करना हो तो 6 महीने बाद कटाई करें और यदि नए उत्पाद बनाने के लिए प्रयोग करना हो तो फसल की कटाई 8 महीने बाद करें। जब पत्ते पीले हो जायें और पूरी तरह सूख जायें तब कटाई का सही समय होता है। गांठों को उखाड़कर बाहर निकालें और 2-3 बार पानी से धोकर साफ करें। फिर 2-3 दिनों के लिए छांव में सुखाएं।

क्या आप अदरक की खेती करते हैं? अपना जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट करके बताएं। इसी तरह की अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'कृषि ज्ञान' चैनल को अभी फॉलो करें। और अगर पोस्ट पसंद आयी तो इसे लाइक करके अपने किसान दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Question (FAQs )

Q: अदरक की खेती कौन से महीने में लगाई जाती है?

A: बुआई का समय:- अदरक की फसल को सिंचाई की अवस्था होने पर फरवरी मार्च तथा असिंचित अवस्था पर मई-जून में लगाया जा सकता है।

Q: अदरक का पौधा कितने दिन में उगता है?

A: अदरक को उगने में 20 से 25 दिन का समय लगता है।

Q: अदरक को जमीन पर कैसे लगाएं?

A: अदरक की खेती के लिए एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करने के बाद, चार बार देशी हल या कल्टीवेटर से जुताई करते हैं। प्रत्येक जुताई के बाद पाटा अवश्य लगाना चाहिए। जिससे मिट्टी भूरभूरी हो जाए। अंतिम जुताई से 3 से 4 सप्ताह पूर्व खेत में 250 से 300 क्विंटल सड़ा हुआ गोबर का खाद देते है।

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