चने के प्रमुख रोग एवं उनका प्रबंधन(Major diseases of gram and their management)

चना, जिसे Gram या काबुली चना भी कहा जाता है, भारत की एक प्रमुख दलहनी फसल है। यह फसल हमारे देश के कृषि क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। लेकिन इसके उत्पादन में कई रोग बाधा बन सकते हैं। चने की फसल में होने वाले प्रमुख रोगों और उनके लक्षणों के साथ-साथ उनके प्रभावी प्रबंधन के उपायों को विस्तार से जानते हैं।
चने में कौन-कौन से रोग लगते हैं? (Which diseases affect gram?)
जड़ गलन (Root Rot) रोग: यह मृदा जनित रोग है, जो जड़ों और तनों को नुकसान पहुंचाता है। इस रोग के कारण प्रभावित पौधों की जड़ें सख्त होकर काली पड़ जाती हैं और मूसला जड़ (Taproot) सड़ने लगती है। संक्रमण के कारण पौधे सूख जाते हैं, और जड़ों पर काले रंग के फफूंद नजर आते हैं।
नियंत्रण:
- कार्बोक्सिन 37.5% + थायरम 37.5% WS (स्वाल इमिवैक्स, वीटा वैक्स) दवा से चनें के बीजों को 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें।
- मैंकोजेब 75% WP (धानुका M45, DeM-45) दवा को प्रति एकड़ 600 से 800 ग्राम प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करें।
- कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% WP (साबू, साफ़) दवा को चनें में 300 से 600 ग्राम प्रति एकड़ खेत की दर से छिड़काव करें।
- मेटलैक्सिल-एम 3.3% + क्लोरोथलोनिल 33.1% एससी (सिंजेन्टा फोलियो गोल्ड, डॉ ब्लाइट) दवा को 200 मिलीलीटर दवा को 100 लीटर पानी में मिलाकर मिट्टी में ड्रेंचिंग करें।
झुलसा (Blight) रोग: यह रोग बीज और मिट्टी द्वारा फैलता है और पौधों के फूलने की अवस्था में सबसे अधिक नुकसान पहुँचाता है। इस रोग में पत्तियों पर छोटे-छोटे गोल, बैंगनी रंग के धब्बे दिखाई पड़ते हैं, और निचले पत्ते झड़ने लगते हैं। फूल काले पड़कर गिर जाते हैं, और फलियाँ सिकुड़कर काली हो जाती हैं।
नियंत्रण:
- मैंकोजेब 75% WP (धानुका M45, DeM-45) को प्रति एकड़ 600 से 800 ग्राम की मात्रा का छिड़काव करें।
- कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% WP (साबू, साफ) दवा को चने में झुलसा रोग नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ 300 से 600 ग्राम छिड़काव करें।
- डिफ़ेनोकोनाज़ोल 25% ई.सी. (इंपैक्ट, कंटाफ) दवा का 150 एम.एल. प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करने से रोग पर प्रभावी नियंत्रण पाया जा सकता है।
- कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% WP (ब्लू कॉपर, ब्लाइटोक्स) दवा को प्रति एकड़ 500-600 ग्राम की मात्रा का छिड़काव करें।
रतुआ (Rust) रोग: रतुआ रोग चने की पत्तियों, फलियों और तनों पर भूरे-लाल रंग के छोटे-छोटे धब्बों के रूप में दिखाई देता है। ये धब्बे शुरुआत में पत्तियों की निचली सतह पर दिखते हैं, और बाद में पत्तियों की ऊपरी सतह, तनें और फलियों पर भी फैल जाते हैं। प्रभावित पत्तियां सूख कर गिरने लगती हैं और पौधे का विकास रुक जाता है। यह रोग मुख्यतः फरवरी-मार्च के महीने में फैलता है और तेजी से फसल को नुकसान पहुंचाता है।
नियंत्रण:
- बुवाई से पहले बीज को थीरम या कैप्टान से उपचारित करें, जिससे रोग की रोकथाम की जा सके।
- मैंकोजेब 75% WP (धानुका M45, DeM-45) को जब रोग के लक्षण दिखाई दें, तो इस दवा को 600 से 800 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें। छिड़काव 10 दिनों के अंतराल पर दो बार करें।
- प्रोपिकोनाज़ोल 25% EC (धानुका ज़ेरॉक्स, क्रिस्टल टिल्ट) दवा की 200 मिली मात्रा 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। यह फसल को रोग से बचाने में कारगर है।
- थायोफिनेट मिथाइल 70% WP (बायोस्टैड रोको, सल्फर मिल्स बुलटोन) प्रति एकड़ 300 ग्राम की दर से इस दवा का छिड़काव करें।
तना सड़न (Stem Rot): इस रोग में सबसे पहले तने पर लंबे, गहरे रंग के धब्बे उभरते हैं, जहाँ रूई जैसी सफेद फफूंद विकसित हो जाती है। धीरे-धीरे पूरा तना सड़ने लगता है, और पौधा मुरझा कर सूख जाता है। पौधों का निचला हिस्सा मुलायम होकर सड़ जाता है, और यह रोग मिट्टी की नमी के कारण अधिक फैलता है।
नियंत्रण:
- बुवाई से पहले बीज को टेबुकोनाजोल 5.36% एफ.एस. (एडमा-ओरियस एफएस) दवा से 0.24 ग्राम प्रति 10 किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें।
- जैविक उपचार के लिए ट्राइकोडर्मा विरिडी 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजों का उपचार करें। यह मिट्टी जनित रोगों को रोकने में सहायक होता है।
- क्लोरोथालोनिल 75% WP (कोरोमंडल जटायु, सिंजेन्टा कवच, टाटा रैलिस ईशान) दवा को 300 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% WP (साबू, साफ़) दवा को चनें में 300 से 600 ग्राम प्रति एकड़ खेत की दर से छिड़काव करें।
उकठा (Wilt) रोग: यह रोग फ्यूजेरियम नामक फफूंद के कारण होता है, जो मुख्यतः मिट्टी और बीज से फैलता है। शुरुआत में पौधों की पत्तियां मुरझाने लगती हैं और धीरे-धीरे पीली होकर सूख जाती हैं। प्रभावित पौधों में फूल और फल नहीं बनते हैं। पौधों की जड़ें काली पड़ने लगती हैं, और उनमें पोषक तत्वों का प्रवाह रुक जाता है, जिससे वे आखिर में सूख जाते हैं।
नियंत्रण:
- जैविक उपचार के लिए ट्राइकोडर्मा विरिडी 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजों का उपचार करें।
- कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% WP (साबू, साफ़) दवा को चनें में 300 से 600 ग्राम प्रति एकड़ खेत की दर से छिड़काव करें।
चने में रोग नियंत्रण के अन्य प्रभावी उपाय (Other effective ways to control diseases in gram):
- गर्मी के मौसम में खेत की गहरी जुताई करें और मिट्टी को खुला छोड़ दें, जिससे फफूंद के बीजाणु नष्ट हो सके।
- फसल चक्र अपनाना भी महत्वपूर्ण है, जैसे चने के साथ सरसों या अलसी की अन्तः फसल लें, ताकि मिट्टी जनित रोगों की संभावना कम हो सके।
- खेत में जल निकासी का उचित प्रबंध करें ताकि ज्यादा नमी से रोग न फैलें। पौधों को उचित दूरी पर लगाएं और अधिक सघन बुवाई करने से बचें, जिससे पौधों में हवा का प्रवाह सही ढंग से हो सके।
- रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें और खेत की नियमित निगरानी करें ताकि रोगों का समय पर पता लगाकर नियंत्रण किया जा सके। इन उपायों से रोगों पर जैविक रूप से नियंत्रण पाया जा सकता है और उपज में सुधार हो सकता है।
क्या आप भी चना की खेती करते हैं? और उनमें रोगों से परेशान हैं? अपना जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट करके बताएं। इसी तरह की अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'किसान डॉक्टर' चैनल को अभी फॉलो करें। और अगर पोस्ट पसंद आयी तो इसे लाइक करके अपने किसान दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (Frequently Asked Questions - FAQs)
Q: चने में कौन-कौन से रोग लगते हैं?
A: चने की फसल में गेरुआ, तना सड़न, उकठा, जड़ गलन, और झुलसा जैसे प्रमुख रोग लगते हैं। गेरुई में पत्तियों पर भूरे-लाल धब्बे बनते हैं, जबकि तना सड़न में तने सड़ने लगते हैं। उकठा में पौधों की पत्तियां मुरझा जाती हैं, जड़ गलन में जड़ें काली पड़कर सड़ जाती हैं, और झुलसा में पत्तियों और फलियों पर बैंगनी धब्बे उभरते हैं। इन रोगों का समय पर नियंत्रण और उचित प्रबंधन जरूरी है।
Q: चने में खरपतवारों के लिए कौन सी दवा दें?
A: चने की फसल में खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए रासायनिक उपायों का उपयोग किया जा सकता है। पेंडीमेथालिन 30% ईसी दवा का 300 ग्राम प्रति एकड़ की दर से बुवाई के पहले या बीजों के अंकुरण से पहले छिड़काव करके खरपतवारों को पनपने से रोका जा सकता है। इसके अलावा, इमाज़ेथापायर 10% एस.एल. का 400 मिली प्रति एकड़ खेत में छिड़काव करने से भी प्रभावी नियंत्रण प्राप्त किया जा सकता है। मेटोलाक्लोर 50% ईसी दवा को भी 400 ग्राम प्रति एकड़ की दर से बुवाई के पहले या अंकुरण से पहले तक छिड़काव किया जा सकता है। इन दवाओं के सही प्रयोग से चने की फसल में खरपतवारों का प्रकोप कम किया जा सकता है।
Q: चना में पानी कब देना चाहिए?
A: चने की पहली सिंचाई बुवाई के 30-35 दिन बाद करनी चाहिए। दूसरी सिंचाई फूल आने के समय करें, और जरूरत के अनुसार फली बनने के समय हल्की सिंचाई करें। ध्यान रखें कि ज्यादा पानी न दें, क्योंकि चने की फसल को अधिक नमी से नुकसान हो सकता है।
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