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मूंगफली: कीट एवं रोग के लक्षण, बचाव एवं नियंत्रण | Groundnut: Symptoms, prevention and control of pests and diseases
मूंगफली की बुवाई से ले कर फसल की कटाई तक कई तरह के रोग और कीटों के प्रकोप का खतरा बना रहता है। इसकी खेती मुख्यतः दाने प्राप्त करने के लिए की जाती है। मूंगफली के दानों से निकलने वाले तेल की मांग भी बहुत होती है। केवल इतना ही नहीं, मूंगफली की खली दुधारू पशुओं के लिए भी बहुत लाभदायक है। प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन, आयरन, कैल्शियम, जिंक, आदि कई पोषक तत्वों से भरपूर मूंगफली की फसल कुछ रोगों एवं कीटों के कारण खराब हो सकती है। जिससे इसकी खेती किसानों की जेब पर भारी पड़ सकती है। इस पोस्ट के माध्यम से हम मूंगफली की फसल को क्षति पहुंचाने वाले कुछ प्रमुख रोग एवं कीटों से होने वाले नुकसान और उन पर नियंत्रण की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
मूंगफली की फसल में लगने वाले कुछ प्रमुख कीट | Some major pests of groundnut crop
पत्ती सुरंगी कीट से होने वाले नुकसान: इस कीट को लीफ माइनर कीट के नाम से भी जाना जाता है। यह कीट पत्तियों में मौजूद हरे पदार्थ को खुरच कर खाते हैं। जिससे पत्तियों के अंदर सुरंग बन जाती है। इससे पत्तियों पर सफेद रंग की टेढ़ी-मेढ़ी लकीरें नजर आने लगती हैं। इस कीट के कारण पौधों के विकास में भी बाधा आती है।
पत्ती सुरंगी कीट पर नियंत्रण के तरीके:
- इस कीट पर नियंत्रण के लिए नीचे दी गई दवाओं में से किसी एक का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 200 लीटर पानी में 300 मिलीलीटर डाइमेथोएट 30% ईसी (टाटा टैफगोर) मिला कर छिड़काव करें।
- 200 लीटर पानी में 300 ग्राम कार्टैप हाइड्रोक्लोराइड 50% एसपी (धानुका कैल्डन) मिला कर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
तंबाकू इल्ली से होने वाले नुकसान: मादा कीट पत्तियों पर अंडे देती हैं। पौधों की पत्तियों और तनों को इस कीट से काफी नुकसान होता है। रात के समय यह कीट अधिक सक्रिय होते हैं। इस कीट का लार्वा पत्तियों को खाते हैं। जिससे पत्तियों पर कई छोटे-बड़े छेद नजर आने लगते हैं। भारी बारिश के बाद कीट का प्रकोप बढ़ जाता है।
तंबाकू इल्ली पर नियंत्रण के तरीके:
- यदि संभव हो तो अंडों के समूह को नष्ट कर दें।
- खरपतवारों से निजात पाने के लिए उचित प्रबंध करें।
मूंगफली की फसल में लगने वाले कुछ प्रमुख रोग | Some major diseases of groundnut crop
एन्थ्रेक्नोज रोग से होने वाले नुकसान: इस रोग के होने का मुख्य कारण कवक का प्रकोप है। ये कवक मिट्टी में काफी लम्बे समय तक जीवित रहते हैं। यह रोग पानी के छींटे, हवा, कीड़े और दूषित उपकरण या उपकरण से तेजी से फैलता है। इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों, तनों और फलियों पर गहरे, धंसे हुए धब्बे उभरने लगते हैं। रोग बढ़ने के साथ धब्बों का आकार भी बढ़ने लगता है। पत्तियां पूरी तरह भूरी हो कर सूख जाती हैं। इस रोग का प्रकोप अधिक होने पर फलियों पर भी धब्बे हो जाते हैं जिससे दानें सड़ सकते हैं।
एन्थ्रेक्नोज रोग पर नियंत्रण के तरीके:
- इस रोग से बचने के लिए फसल चक्र अपनाएं।
- अत्यधिक सिंचाई या जल जमाव की स्थिति से बचने के लिए जल निकासी की उचित व्यवस्था करें।
- संक्रमित पौधों के मलबे को खेत से बाहर निकाल कर नष्ट कर दें।
- प्रति एकड़ खेत में 200 लीटर पानी में 300 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.3% एस.सी. (देहात एजीटॉप) मिला कर छिड़काव करें।
- प्रति एकड़ खेत में 450 ग्राम कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% डब्लूपी (देहात साबू) का प्रयोग करें।
टिक्का रोग से होने वाले नुकसान: इस रोग को पर्ण चित्ती रोग के नाम से भी जाना जाता है। यह एक फफूंद जनित रोग है। छोटे पौधे इस रोग की चपेट में जल्दी आते हैं। इस रोग के लक्षण सबसे पहले पौधों की पत्तियों पर नजर आते हैं। रोग से प्रभावित पत्तियों पर छोटे-छोटे धब्बे बनने लगते हैं। यह धब्बे आकार में गोल एवं गहरे कत्थई रंग के होते हैं। धब्बों के किनारे पीले रंग की धारियां उभरने लगती हैं। रोग बढ़ने पर पत्तियां पीली होकर गिरने लगती हैं।
टिक्का रोग पर नियंत्रण के तरीके:
- बुवाई के लिए रोग रहित स्वस्थ बीज का प्रयोग करें।
- फसल को इस रोग से बचाने के लिए फसल चक्र अपनाएं।
- खेत में खरपतवार को नियंत्रित रखें।
- बुवाई से पहले प्रति किलोग्राम बीज को 2.5 ग्राम कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% डब्लूपी (देहात साबू) से उपचारित करें।
- रोग के लक्षण नजर आने पर प्रति एकड़ खेत में 200 लीटर पानी में 800 ग्राम मैंकोज़ेब 75 प्रतिशत (डाइथेन एम 45) मिला कर छिड़काव करें।
- प्रति एकड़ खेत में 300-600 ग्राम कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% डब्लूपी (देहात साबू) का प्रयोग करें।
काला सड़न रोग से होने वाले नुकसान: इस रोग का लक्षण सबसे पहले पत्तियों पर नजर आते हैं। प्रभावित पौधों की पत्तियों की शिराएं काली होने लगती हैं। धीरे-धीरे पूरी पत्तियां पीली हो कर सूखने लगती हैं। पौधों को उखाड़ने पर जड़ों में काले रंग के पदार्थ देखे जा सकते हैं। रोग बढ़ने पर पौधों की जड़ें गलने लगती हैं। कुछ समय बाद पौधा मुरझा कर नष्ट हो जाता है।
काला सड़न रोग पर नियंत्रण के तरीके:
- फसल को इस रोग से बचाने के लिए खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था करें।
- खरपतवारों पर नियंत्रण करें।
- पौधों की रोपाई क्यारियों के ऊपरी भाग पर करें।
- बुवाई के लिए रोग रहित प्रमाणित बीज का चयन करें।
- रोग को फैलने से रोकने के लिए इस रोग से प्रभावित पौधों को नष्ट कर दें।
- इसके अलावा प्रति लीटर पानी में 2.5 ग्राम कार्बेंडाजिम मिलाकर भी छिड़काव कर सकते हैं।
आपकी खेत में मूंगफली की फसल में किस रोग या कीट का प्रकोप अधिक होता है? अपने जवाब हमें कमेंट के द्वारा बताएं। फसलों को विभिन्न रोगों एवं कीटों से बचाने की अधिक जानकारी के लिए 'किसान डॉक्टर' चैनल को तुरंत फॉलो करें। इसके साथ ही इस पोस्ट को लाइक एवं शेयर करके आप इस जानकारी को अन्य किसानों तक पहुंचा सकते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Question (FAQs)
Q: मूंगफली में कौन सा कीट लगता है?
A: मूंगफली की फसल में रस चूसक कीट, दीमक, पत्ती सुरंगी कीट, तंबाकू इल्ली, बालों वाली इल्ली, आदि कीटों का प्रकोप अधिक होता है।
Q: मूंगफली में कीट नियंत्रण कैसे करें?
A: मूंगफली की फसल का लगातार निरीक्षण करें। किसी भी कीट के प्रकोप का लक्षण नजर आने पर रोकथाम के लिए उचित दवाओं का प्रयोग करें। खेत में खरपतवारों पर नियंत्रण रखें।
Q: मूंगफली में कौन कौन से रोग लगते हैं?
A: मूंगफली की फसल में कई तरह के रोगों का प्रकोप होता है। जिनमें टिक्का रोग, एन्थ्रेक्नोज रोग, काला सड़न रोग, जड़ गलन रोग, आदि प्रमुख हैं।
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