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19 May
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ग्वार: प्रमुख रोग, लक्षण, बचाव एवं नियंत्रण (Guar: Major diseases, symptoms, prevention and control)


ग्वार की फसल विभिन्न प्रकार के रोगों से प्रभावित हो सकती है, जो फसल की पैदावार को काफी कम कर सकती है। इन रोगों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए, उनके लक्षणों, कारणों और रोकथाम के उपायों को समझना महत्वपूर्ण है।

कैसे करें ग्वार में रोग नियंत्रण? (How to control diseases in guar?)

एन्थ्रेक्नोज (Anthracnose) : यह फफूँदजनित रोग है जो कोलेटोट्रिकम कैप्सिकी फॉर्मेशन सायमोप्सिकोला (Colletotrichum capsici f. cyamopsicola) नमक फंगस के द्वारा फैलता है। जो तने, पत्तियाँ, और फलियाँ को प्रभावित करता है।

लक्षण:

  • यह पत्तियों, तनों और फली पर गोलाकार या अनियमित धब्बे बनाता है।
  • इस रोग से प्रभावित पूरा क्षेत्र भूरे रंग का हो जाता है, किनारों पर लाल या हल्का पीला रंग दिखाई देता है।
  • ज्यादा प्रभावित तने फटकर सड़ने लगते हैं। और पत्तियां झड़ने लगती हैं।
  • ग्वार की फलियों पर छोटे-छोटे, काले, धंसे हुए धब्बे दिखाई देते हैं।

नियंत्रण :

  • बुवाई से पहले बीजों को सेरेसान, कैप्टान, या थीरम 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें।
  • रोग के शुरुआती लक्षण दिखाई देने पर एम-45 का छिड़काव करें। इसके दवा को 7-10 दिन के अंतराल पर दोहराएँ।

जड़ गलन (Root Rot) : यह मिट्टी जनित फफूंद जैसे राइजोक्टोनिया सोलानी (Rhizoctonia solani), पायथियम प्रजातियां (Pythium spp.), और फ्यूजेरियम प्रजातियां (Fusarium spp.) के द्वारा फैलता है।

लक्षण:

  • पौधों की जड़ों पर भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं ।
  • पौधे की जड़ सड़ने लगती है, जिससे पौधों को पानी और पोषक तत्वों को ग्रहण करने में बाधा आती है।
  • पौधे मुरझाने लगते हैं और उनका विकास रुक जाता है।

नियंत्रण :

  • बीजों को बुवाई से पहले 2 ग्राम वीटावैक्स दवा प्रति किलोग्राम बीज में मिला कर उपचारित करें।
  • मिट्टी में जल निकास सुनिश्चित करें और आवश्यकता से अधिक सिंचाई से बचें।
  • ग्रीष्म ऋतु में खेत की गहरी जुताई करें, जो मिट्टी जनित रोगाणुओं को नियंत्रित करने में मदद करती है।
  • खेत में लगातार ग्वार की खेती करने से बचें।

मोजेक (Mosaic) : यह रोग वायरस ( विषाणु) के द्वारा फैलता है।

लक्षण:

  • इस रोग से संक्रमित पौधों की पत्तियों पर गहरे हरे रंग के धब्बे बनते हैं।
  • पत्तियाँ किनारों से सिकुड़ने लगती हैं और पीली पड़ जाती हैं जिससे पौधा कमजोर हो जाता है।

नियंत्रण :

  • रोगग्रस्त पौधों को जमीन से उखाड़कर नष्ट कर दें। क्योंकि ये विषाणु को फैलाने में वाहक का काम करते हैं।
  • न्यूवाक्रान या मैटासिस्टाक्स 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़कें।

चूर्णिल आसिता (Powdery Mildew) : लेविसिचलाटा स्क्लेरोटिनिया (Leveillula taurica f. cyamopsidis)

लक्षण:

  • पत्तियों, तनों, और फलियों पर सफेद धब्बे
  • सफेद चूर्णी युक्त धब्बे
  • प्रभावित पत्तियाँ सिकुड़कर गिरने लगती हैं

नियंत्रण :

  • कटाई के बाद खेत से ग्वार के अवशेषों को हटा दें।
  • खेत में उचित वायु संचार बनाए रखें।
  • घुलनशील गंधक 3 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें। या घुलनशील गंधक या कैराथेन को 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर पौधों पर छिड़कें।

बैक्टीरियल ब्लाइट (Bacterial Blight) : जीवाणु Xanthomonas campestris pv. Cyamopsidis

लक्षण:

  • पत्तियों, तनों, और फलियों पर पानी से भरे घाव
  • घाव बाद में भूरे और मृत हो जाते हैं

नियंत्रण :

  • रोगमुक्त बीजों का उपयोग करें।
  • बुवाई से पहले बीजों को 100 पीपीएम स्ट्रेप्टोमाइसिन के घोल से उपचारित करें।
  • खेत में जल प्रबंधन पर ध्यान दें। ऊपरी सिंचाई से बचें।
  • खेत में लगातार ग्वार की खेती करने से बचें।
  • विभिन्न फसलों का चक्र अपनाएं।
  • एच.जी.-365 और एच.जी.-563 जैसी बैक्टीरियल ब्लाइट प्रतिरोधी ग्वार की किस्मों को लगाने का प्रयास करें।
  • स्ट्रेप्टोमाइसिन 150 पीपीएम और 0.2% ब्लीटोक्स के मिश्रण का पत्तियों पर छिड़काव करें।

लीफ स्पॉट (Leaf Spot) : विभिन्न कवक जैसे सर्कोस्पोरा प्रजातियां (Cercospora spp.) और अल्टरनेरिया प्रजातियां (Alternaria spp.)

लक्षण:

  • पत्तियों पर गोलाकार या अनियमित धब्बे
  • धब्बे पीले, भूरे, या काले रंग के हो सकते हैं

नियंत्रण :

  • कटाई के बाद खेत से ग्वार के अवशेषों को हटा दें।
  • कॉपर ऑक्सीक्लोराइड या बोर्डो मिश्रण जैसे कवकनाशी का छिड़काव करें।
  • खेत में जल निकास सुनिश्चित करें और आवश्यकता से अधिक सिंचाई से बचें।
  • प्लीफ स्पॉट प्रतिरोधी ग्वार की किस्मों को चुनें।

उकठा रोग (Fusarium Wilt) : मिट्टी जनित कवक फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम एफ. एसपी. सायमोप्सिडिस (Fusarium oxysporum f. sp. cyamopsidis)

लक्षण:

  • पत्तियों का पीला पड़ना और मुरझाना
  • पौधे का बौना होना
  • संवहनी ऊतक का भूरा मलिनकिरण

नियंत्रण :

  • बुवाई से पहले बीजों को ट्राइकोडर्मा विरिडी जैसे जैव-कवकनाशी से उपचारित करें।
  • खेत में लगातार ग्वार की खेती करने से बचें। 3-4 साल का अंतराल देकर अन्य फसलें उगाएं।
  • उकठा रोग प्रतिरोधी ग्वार की किस्मों का उपयोग करें।
  • मिट्टी की आर्द्रता बनाए रखने और लाभकारी मृदा जीवों को बढ़ावा देने के लिए जैविक खादों का उपयोग करें।

क्या आप ग्वार की फसल में रोगों से परेशान हैं? अपना जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट करके बताएं। इसी तरह की अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ' किसान डॉक्टर ' चैनल को अभी फॉलो करें। और अगर पोस्ट पसंद आयी तो इसे लाइक करके अपने किसान मित्रों के साथ साझा करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Question (FAQs)

Q: ग्वार की फसल की बीज दर कितनी होती है?

A: भारत में ग्वार की फसल की बीज दर आम तौर पर 8-10 किलोग्राम प्रति एकड़ होती है। हालांकि, ग्वार की किस्म, मिट्टी के प्रकार और अन्य पर्यावरणीय कारकों के आधार पर सटीक बीज दर भिन्न हो सकती है। आपके स्थान और स्थितियों के आधार पर विशिष्ट सिफारिशों के लिए स्थानीय कृषि विशेषज्ञों या विस्तार अधिकारियों से परामर्श करने की हमेशा सिफारिश की जाती है।

Q: ग्वार में कौन कौन से विटामिन होते हैं?

A: ग्वार विटामिन ए, विटामिन सी और विटामिन ई सहित कई विटामिनों का एक अच्छा स्रोत है। इसमें बी विटामिन जैसे थियामिन, राइबोफ्लेविन, नियासिन और विटामिन बी 6 भी शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, ग्वार कैल्शियम, लोहा, मैग्नीशियम और पोटेशियम जैसे खनिजों का एक अच्छा स्रोत है। ये विटामिन और खनिज अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने और विभिन्न बीमारियों को रोकने के लिए महत्वपूर्ण हैं।

Q: ग्वार में लगने वाला प्रमुख रोग कौन-सा है?

A: ग्वार आम तौर पर एक हार्डी फसल है और कई बीमारियों से ग्रस्त नहीं है। हालांकि, ग्वार को प्रभावित करने वाली मुख्य बीमारियों में से एक जड़ सड़न है, जो मिट्टी से पैदा होने वाले कवक के कारण होती है। जड़ सड़न से विकास अवरुद्ध हो सकता है, पत्तियों का पीला पड़ना और पौधे का मुरझाना हो सकता है। इससे फसल की उपज और गुणवत्ता भी कम हो सकती है। जड़ सड़न को रोकने के लिए, उचित मिट्टी की जल निकासी को बनाए रखना और अधिक पानी देने से बचना महत्वपूर्ण है। फसल चक्रीकरण और रोग प्रतिरोधी किस्मों के उपयोग से भी ग्वार में जड़ सड़न को रोकने में मदद मिल सकती है।

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