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9 May
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गुड़हल की खेती (Hibiscus cultivation)


गुड़हल की खेती भारत में एक महत्वपूर्ण कृषि व्यवसाय है, यह फूल आमतौर पर कई रंगों और वैरायटी के होते हैं।लेकिन भारत में लाल गुड़हल सबसे ज्यादा लोकप्रिय पौधा है। इनके फूलों को पूजा-पाठ और औषधीय उपयोग के लिए ज्यादा पसंद किया जाता है। भारत में इसकी खेती तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक सहित अन्य कई राज्यों में भी करते हैं। गुड़हल की खेती करना अपेक्षाकृत आसान है और यह गर्म जलवायु वाले क्षेत्रों में अच्छी तरह से फलता-फूलता है।

कैसे करें गुड़हल की उन्नत खेती? (How to do improved cultivation of Hibiscus?)

मिट्टी : गुड़हल की खेती के लिए रेतीली-दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। इसके अलावा अच्छी उर्वरक क्षमता और जल निकासी वाली मिटटी का चुनाव करें। जिसका मिट्टी का pH 6.5 से 7.5 के बीच हो।

जलवायु : गुड़हल उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों का मूल निवासी है। इसकी खेती के लिए गर्म एवं उमस भरी जलवायु उपयुक्त मानी जाती है। यह 20°C से 30°C के तापमान में अच्छी तरह से बढ़ता है। गुड़हल को विकास के पहले पांच महीनों के दौरान जल्दी फूल आने से बचने के लिए, इसे 12-13 घंटे की धूप की आवश्यकता होती है।

उन्नत किस्में : भारत में गुड़हल की कई किस्में सजावटी और औषधीय गुणों के लिए उगाई जाती हैं।

  • हिबिस्कस रोजा-साइनेंसिस: यह भारत में पाए जाने वाले हिबिस्कस की सबसे आम किस्म है। इसे चीनी हिबिस्कस के रूप में भी जाना जाता है और यह अपने बड़े, दिखावटी फूलों के लिए बेशकीमती है जो लाल, गुलाबी, नारंगी, पीले और सफेद सहित कई रंगों में आते हैं।
  • हिबिस्कस म्यूटाबिलिस: कॉन्फेडरेट गुलाब के रूप में भी जाना जाता है, हिबिस्कस की यह किस्म अपने बड़े, दोहरे फूलों के लिए बेशकीमती है जो उम्र बढ़ने के साथ रंग बदलते हैं। फूल सफेद या गुलाबी रंग से शुरू होते हैं और धीरे-धीरे गहरे लाल या बरगंडी में बदल जाते हैं।
  • हिबिस्कस सबदारिफा: हिबिस्कस की इस किस्म को रोसेले के रूप में भी जाना जाता है और इसके खाद्य कैलीज़ के लिए उगाया जाता है, जिसका उपयोग विटामिन सी से भरपूर एक खट्टी, लाल रंग की चाय बनाने के लिए किया जाता है।
  • हिबिस्कस स्किज़ोपेटलस: हिबिस्कस की इस किस्म को जापानी लालटेन या कोरल हिबिस्कस के रूप में भी जाना जाता है। यह अपने असामान्य, पेंडुलस फूलों के लिए बेशकीमती है जिनमें लंबी, संकीर्ण पंखुड़ियां होती हैं जो लटकन से मिलती जुलती हैं।
  • हिबिस्कस टिलियासियस: समुद्री हिबिस्कस के रूप में भी जाना जाता है, हिबिस्कस की यह किस्म आमतौर पर भारत के समुद्र तटों पर पाई जाती है। यह अपने बड़े, पीले फूलों के लिए बेशकीमती है और अक्सर पारंपरिक चिकित्सा में कई बीमारियों के इलाज के लिए उपयोग किया जाता है।

पौध रोपण विधि : गुड़हल को बीज और कलम दोनों द्वारा प्रचारित किया जाता है, और कटिंग के माध्यम से भी इसका प्रसार किया जा सकता है।

  • गुड़हल को बीज, कटिंग या ग्राफ्टिंग के माध्यम से प्रचारित किया जा सकता है। हालांकि, कटिंग विधि सबसे ज्यादा प्रचलित है।
  • गुड़हल को खेत में या गमलों में लगाया जा सकता है। खेत में, पौधों के बीच की दूरी 2-3 मीटर होनी चाहिए। गमलों में 12 इंच के गमले में एक पौधा उगाया जा सकता है।
  • गुड़हल की रोपाई करने के लिए नई शाखा से 5 से 6 इंच लंबी कटिंग का चुनाव करें। ध्यान रखें शाखा के ऊपरी हिस्से पर कुछ पत्तियां छोड़ दें।
  • कटिंग के निचले सिरे को तरल उर्वरक से गीला करके उस कटिंग को गमलों या अन्य कंटेनर में ऐसी मिट्टी में रोपा जा सकता है जिसमें उचित जल निकास हो।
  • कटिंग को छायादार जगह पर रखें और प्लास्टिक बैग से ढकें ताकि सीधी धूप से बचा जा सके।
  • कटिंग को जड़ लेने में 8 से 10 सप्ताह का समय लगता है।
  • बीजों को रात भर पानी में भिगोने के बाद, तैयार गमले या कंटेनर में रोपने से पहले उनमें छोटे-छोटे छेद करने के लिए उपयोगिता चाकू का उपयोग करें।

सिंचाई : गुड़हल उष्णकटिबंधीय पौधे होते हैं जिन्हे बेहतर विकास के लिए पानी और धूप की आवश्यकता होती है। गर्म और शुष्क मौसम में इसे प्रतिदिन पानी देना आवश्यक है। और ठंडा और गीला मौसम है तो आवश्यकतानुसार पानी देंना चाहिए। अगर पत्तियां झड़ रही हैं और पीली पड़ रही हैं तो इसका मतलब है कि पौधे को पर्याप्त पानी नहीं मिल रहा है। ध्यान रखें बरसात में पौधों के पास पानी न जमा होने दें, क्योंकि इसके कारण गुड़हल की जड़ें सड़ जाती हैं।

खाद एवं उर्वरक : गुड़हल में अच्छी पैदावर के लिए जैविक खाद जैसे वर्मीकम्पोस्ट या गोबर की खाद का प्रयोग करें।  इसके अलावा NPK उर्वरक की संतुलित मात्रा पौधों को देने के लिए आप 10-10-10, 19:19:19 या 12-12-12 इत्यादि का इस्तेमाल कर सकते हैं। मिट्टी में बोरोन, मैग्नीशियम और लोहे जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी हो सकती है। इसलिए इनकी कमी के लक्षण दिखते ही इन पोषक तत्वों के पूरक का उपयोग करें हैं।

रोग : गुड़हल की खेती में रोपण से लेकर फूलों की तुड़ाई के दौरान कई प्रकार के रोग लगते हैं जिसमें से मुख्य हैं - पत्ती धब्बा रोग, जड़ सड़न, बोटीराइटिस आदि जो फसलों को काफी नुकसान पहुंचाते हैं।

कीट : गुड़हल के पौधों में सबसे ज्यादा मकड़ी, माइलबग्स, एफिड्स और थ्रिप्स कीटों का प्रकोप होता है जो फसलों को हानि पहुंचाते हैं।

क्या आप गुड़हल की खेती करते हैं? अपना जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट करके बताएं। खेती से सम्बंधित अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'बागवानी फसलें' चैनल को अभी फॉलो करें। और अगर पोस्ट पसंद आयी तो इसे लाइक करके अपने किसान दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Question (FAQs)

Q: गुड़हल लगाने के लिए कौन सा महीना सबसे अच्छा है?

A: भारत में गुड़हल लगाने का सबसे अच्छा समय वसंत के मौसम के दौरान होता है, जो फरवरी से अप्रैल तक होता है, क्योंकि यह वह समय होता है जब तापमान बढ़ने लगता है और दिन लंबे हो जाते हैं, जिससे पौधे को बढ़ने और पनपने के लिए आदर्श स्थिति मिलती है।

Q: गुड़हल के पौधे को बढ़ने में कितने दिन लगते हैं?

A: गुड़हल के बीजों को अंकुरित होने और अंकुरित होने में लगभग 6 से 8 सप्ताह लगते हैं, और पौधे को उचित देखभाल और रखरखाव के साथ फूल उगाने और पैदा करने में कुछ महीने लगते हैं।

Q: गुड़हल को कितनी दूरी पर लगाना चाहिए?

A: गुड़हल को 3 से 6 फीट की दूरी पर लगाया जाना चाहिए।

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