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कुल्थी: कीट, लक्षण, बचाव एवं नियंत्रण | Horse Gram: Pests, Symptoms, Prevention and Treatment
कुल्थी एक महत्वपूर्ण दलहन फसल है। भारत में कुल्थी की खेती मुख्यतः कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ एवं उत्तराखंड में की जाती है। प्रोटीन, फाइबर, आयरन, कैल्शियम, विटामिन्स और मिनरल्स से भरपूर होने के कारण इसकी दाल मानव उपभोग के लिए व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा इसका इस्तेमाल पशुओं के चारे के तौर पर भी किया जाता है। कुल्थी की खेती मुख्यतः वर्षा आधारित होती है और यह शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में अच्छी तरह से उगाई जाती है। इसकी बेहतर उपज प्राप्त करने के लिए कीटों पर नियंत्रण करना बहुत जरूरी है। कुल्थी की फसल में लगने वाले कुछ प्रमुख कीटों के नाम एवं उससे होने वाले नुकसान की जानकारी के लिए इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ें।
कुल्थी की फसल में लगने वाले कुछ प्रमुख कीट | Major pests affecting horse gram crop
फली छेदक कीट से होने वाले नुकसान: इस कीट का लार्वा फलियों में छेद करता है और फलियों के अंदर के दानों को खाता है। इस कीट का प्रकोप होने पर फलियों पर छोटे-छोटे छेद देखे जा सकते हैं। फली छेदक कीट का प्रकोप गंभीर होने पर कुल्थी की पैदावार में 80 प्रतिशत तक कमी हो सकती है।
फली छेदक कीट पर नियंत्रण के तरीके:
- इस कीट पर नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ खेत में 4-5 फेरोमोन ट्रैप लगाएं।
- प्रति एकड़ खेत में 54-88 ग्राम इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एस.जी. (देहात इल्लीगो, धानुका इ.एम. 1, अदामा अम्नोन) का प्रयोग करें।
- 80 मिलीलीटर थियामेथोक्सम 12.6% + लैम्ब्डा साइहलोथ्रिन 9.5% जेड सी (देहात एंटोकिल) को 200 लीटर पानी में मिला कर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
- 200 लीटर पानी में 120 मिलीलीटर डेल्टामेथ्रिन 2.8% ईसी (बायर डेसीस 2.8) मिला कर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- 200 लीटर पानी में 80 मिलीलीटर क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 18.5% w/w एससी (एफएमसी कोराजन) मिला कर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- 200 लीटर पानी में 300 मिलीलीटर नोवलूरॉन 5.25% + इंडोक्साकार्ब 4.5% w/w एससी (अडामा प्लेथोरा) मिला कर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
तना छेदक कीट से होने वाले नुकसान: तना छेदक कीट को स्टेम बोरर कीट के नाम से भी जाना जाता है। इस कीट का लार्वा पौधे के तने में छेद करता है। जिससे प्रभावित पौधे मुरझाने लगते हैं। समय रहते इस कीट पर नियंत्रण नहीं करने से पौधे नष्ट हो सकते हैं। इस कीट के कारण होने वाली क्षति गंभीर हो सकती है। कुछ मामलों में इस कीट के कारण कुल्थी उपज में 50 प्रतिशत तक कमी देखी जा सकती है।
तना छेदक कीट पर नियंत्रण के तरीके:
- प्रति एकड़ खेत में 120 ग्राम फ्लूबेंडियामाइड 20% डब्ल्यूजी (टाटा रैलिस ताकुमी, पीआई फ्लूटन, स्वाल काबुकी) का प्रयोग करें।
- प्रति एकड़ खेत में 400 मिलीलीटर क्विनलफॉस 25% ईसी (धानुका धानुलक्स, सिन्जेंटा एकालक्स, हाईफील्ड डिफेंडर, सुमिटोमो कैमलॉक्स) का प्रयोग करें।
माहु से होने वाले नुकसान: माहु यानी एफिड्स आकर में छोटे होते हैं और ये कीट पत्तियों एवं पौधों के अन्य कोमल हिस्सों का रस चूसते हैं। जिससे पौधों की पत्तियां मुड़ने लगती हैं और पौधों के विकास में बाधा आती है। ये कीट हनीड्यू नामक चिपचिपे पदार्थ का उत्सर्जन भी करते हैं। इस चिचिपे पदार्थ के कारण पौधों में फफूंद जनित रोगों के होने का खतरा बढ़ जाता है। इस कीट के कारण कुल्थी की पैदावार में भारी कमी देखी जा सकती है।
माहु पर नियंत्रण के तरीके:
- इन कीटों पर नियंत्रण के नीचे दी गई दवाओं में से किसी एक का प्रयोग करें।
- इस कीट पर नियंत्रण के लिए 200 लीटर पानी में 100 ग्राम थियामेथोक्सम 25%डब्ल्यू.जी (देहात एसियर) का छिड़काव करें।
सफेद मक्खी से होने वाले नुकसान: सफेद मक्खी पौधे की पत्तियों, कोमल शाखाओं, फूल एवं फलियों का रस चूसती हैं। इस कारण पौधों का विकास अवरुद्ध हो जाता है। इस कीट का प्रकोप होने पर कुल्थी की उपज भी कम हो जाती है। ये कीट वायरस जनित रोगों को भी फैलाने का काम करते हैं।
सफेद मक्खी पर नियंत्रण के तरीके:
- 300 मिलीलीटर क्लोपाइरीफोस 50% + साइपरमेथ्रिन 5% ईसी (देहात सी-स्क्वायर ) को 150-200 लीटर पानी में मिला कर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
- 1200 लीटर पानी में 300 ग्राम ऐसफेट 50% + इमिडाक्लोप्रिड 1.8% एसपी (यूपीएल लांसर गोल्ड) मिला कर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- प्रति एकड़ खेत में 200 लीटर पानी में 80 ग्राम एसिटामिप्रिड 20% एसपी (टाटा रैलिस माणिक) का प्रयोग करें।
आपके खेत में कुल्थी की फसल में किस कीट का प्रकोप अधिक होता है? अपने जवाब हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। इसके साथ ही इस पोस्ट को लाइक और शेयर करना न भूलें। फसलों को विभिन्न कीटों एवं रोगों से बचाने की अधिक जानकारियों के लिए 'किसान डॉक्टर' चैनल को तुरंत फॉलो करें।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)
Q: कुलथी कब बोई जाती है?
A: कुल्थी, जिसे हॉर्स ग्राम के रूप में भी जाना जाता है, आमतौर पर भारत में खरीफ के मौसम के दौरान बोया जाता है, जो जून से जुलाई तक होता है। यह एक सूखा-सहिष्णु फसल है जिसे मिट्टी के प्रकारों की एक विस्तृत श्रृंखला में उगाया जा सकता है, लेकिन यह अच्छी तरह से सूखा मिट्टी पसंद करती है। फसल को परिपक्व होने में लगभग 90-120 दिन लगते हैं और अक्टूबर-नवंबर में काटा जाता है। कुल्थी की खेती में वर्षा पर निर्भरता होती है, लेकिन यदि आवश्यक हो तो एक या दो सिंचाई की जा सकती है।
Q: कुल्थी की खेती कैसे की जाती है?
A: कुल्थी की खेती के लिए हल्की, दोमट और बलुई मिट्टी उपयुक्त होती है। इसे उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में उगाया जा सकता है। खरीफ मौसम में इसकी बुवाई जून से जुलाई के बीच की जाती है। रबी मौसम में इसकी बुवाई अक्टूबर से नवंबर के बीच होती है।
Q: फसल के कीट कौन कौन से हैं?
A: कुल्थी की फसल में फली छेदक, एफिड्स, सफेद मक्खियां, लीफहॉपर कीट, कटवर्म और थ्रिप्स का प्रकोप अधिक होता है। फसल को इन कीटों से बचाने के लिए उपयुक्त दवाओं का प्रयोग करें। रासायनिक दवाओं का प्रयोग करते समय मात्रा का विशेष ध्यान रखें।
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