ग्रीष्मकालीन मूंगफली की खेती (Summer Groundnut Farming)

मूंगफली भारत की प्रमुख तिलहन फसल है, जिसे विभिन्न प्रकार के उपयोग के लिए लगाया जाता है। इसके दाने में 45-50 प्रतिशत तेल की मात्रा होती है और यह प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, और कई महत्वपूर्ण विटामिनों और खनिजों से भरपूर होता है। मूंगफली की खेती गर्मी में, खासतौर पर ग्रीष्म काल में, एक लाभकारी विकल्प बन सकती है, क्योंकि इस मौसम में खरपतवारों, कीटों और रोगों का प्रभाव कम होता है। इस लेख में हम ग्रीष्मकालीन मूंगफली की खेती से संबंधित सभी महत्वपूर्ण जानकारियों पर चर्चा करेंगे।
मूंगफली की बुवाई के फायदे (Benefits of Summer Groundnut Farming)
- कीट और रोगों का कम प्रभाव: गर्मी के मौसम में कीटों और रोगों का प्रकोप कम होता है, जिससे फसल को कम नुकसान होता है।
- खरपतवार नियंत्रण: ग्रीष्मकाल में खरपतवारों की समस्या कम होती है, जिससे पौधों को पोषक तत्वों की अच्छी उपलब्धता मिलती है।
- अच्छी गुणवत्ता और उन्नत उपज: गर्मियों में उपयुक्त देखभाल से मूंगफली की गुणवत्ता और उपज बेहतर होती है।
गर्मी में मूंगफली की खेती कैसे करें ? (How to cultivate groundnuts in summer?)
- मिट्टी (Soil): मूंगफली की खेती के लिए भुरभुरी दोमट और बलुई दोमट मिट्टी सर्वोत्तम होती है। यह मिट्टी पौधों की जड़ों को फैलने में मदद करती है और जल निकासी में भी सहायक होती है। मिट्टी का पीएच 6 से 7 के बीच होना चाहिए।
- जलवायु (Climate): मूंगफली की खेती के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु उपयुक्त होती है। यह फसल 25 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान में अच्छी तरह से बढ़ती है। अत्यधिक ठंड या बरसात की स्थितियों में फसल की वृद्धि प्रभावित हो सकती है।
- बीज की मात्रा (Seed Rate): मूंगफली की अच्छी फसल के लिए बीज की सही मात्रा का चुनाव जरूरी है। बंच प्रकार के लिए प्रति एकड़ 40 से 45 किलो बीज और छिड़काव विधि के लिए 38 से 40 किलो बीज पर्याप्त होता है। सही मात्रा में बीज का चुनाव करने से पौधों का अच्छा विकास होता है, जिससे फसल की गुणवत्ता और उपज दोनों में सुधार होता है।
- किस्में (Variety): जायद मौसम मूंगफली के लिए कुछ प्रमुख उन्नत किस्में हैं, जिनमें अवतार (आई.सी.जी.वी 93468), टी.जी-26, टी.जी-37, डी.एच. 86, टी.पी.जी-1, सजी-99, टाइप-64, टाइप-28, चंद्रा, उत्कर्ष, एम-13, अम्बर, चित्रा, कौशल और प्रकाश, एसजी-84, और एम-522 शामिल हैं। इन किस्मों की बुवाई सिंचाई की उचित व्यवस्था के साथ अप्रैल के अंत तक की जा सकती है। बीज रोपाई/बुवाई के लगभग 120 से 125 दिन बाद इन किस्मों से फसल तैयार हो जाती है। किसान इन किस्मों से एक हेक्टेयर के खेत से लगभग 20 से 36 क्विंटल तक औसत पैदावार प्राप्त कर सकते हैं।
- बुवाई का समय (Time of Sowing): ग्रीष्मकालीन मूंगफली की बुवाई के लिए उपयुक्त समय 15 मई से है। इस समय मिट्टी का तापमान और नमी की स्थिति बीज के अंकुरण और पौधों की बेहतर वृद्धि के लिए अनुकूल रहती है। समय पर बुवाई करने से पैदावार अधिक होती है और कीट व रोगों का प्रकोप कम होता है।
- बीज उपचारित करने की विधि (Seed Treatment Method): बुवाई से पहले मूंगफली के बीज को 2 ग्राम थीरम 75% डब्लू.एस. से उपचारित करें। इसके अलावा, 3 ग्राम कार्बेन्डाजिम से भी उपचारित किया जा सकता है। कीटों से बचाव के लिए प्रति किलोग्राम बीज को 10-15 मिली क्लोरपायरीफॉस 20 ई.सी. से उपचारित करें। फिर बीज को राइजोबियम कल्चर से उपचारित करें और 2-3 घंटे के लिए छांव में सुखाएं।
- बुवाई की विधि (Sowing Method): फसल की बुवाई के दौरान पौधों के प्रकार के हिसाब से दूरी का ध्यान रखना जरूरी है। बंच प्रकार में कतारों के बीच 25-30 सेंटीमीटर और पौधों के बीच 15-20 सेंटीमीटर की दूरी रखनी चाहिए, जबकि छिड़काव प्रकार में कतारों के बीच 45-60 सेंटीमीटर और पौधों के बीच 20-25 सेंटीमीटर की दूरी होती है। बीजों को 5 से 6 सेंटीमीटर गहराई में बोना चाहिए, ताकि वे सुरक्षित रहें और अंकुरण में कोई रुकावट न हो। बुवाई के बाद बीजों को मिट्टी से अच्छी तरह ढक देना चाहिए, जिससे अंकुरण के लिए सही वातावरण मिल सके और फसल की वृद्धि बेहतर हो। सही दूरी और विधि से फसल की अच्छी वृद्धि और उच्च उपज सुनिश्चित की जा सकती है।
- खेत की तैयारी (Field Preparation): मूंगफली का फैलाव मिट्टी के अंदर होता है, इसलिए इसकी जड़ों के विकास के लिए मिट्टी का भुरभुरा होना बेहद जरूरी है। खेत तैयार करने के लिए सबसे पहले 12 से 15 सेंटीमीटर गहरी जुताई करें। ध्यान रखें कि जुताई की गहराई 15 सेंटीमीटर से अधिक न हो, क्योंकि इससे फलियां अधिक गहराई में बनेंगी, जिससे खुदाई के समय कठिनाई हो सकती है। इसके बाद खेत को समतल और भुरभुरा बनाने के लिए 2-3 बार देशी हल या कल्टीवेटर से हल्की जुताई करें। मिट्टी का उचित प्रबंधन मूंगफली की बेहतर पैदावार सुनिश्चित करता है।
- उर्वरक प्रबंधन (Fertilizer Management): फसल को अच्छे से बढ़ाने के लिए उर्वरकों का सही प्रबंधन करना जरूरी है। सबसे पहले, बेसल डोज के रूप में गोबर की खाद (FYM) 2 टन प्रति एकड़, 12:32:16 (N.P.K) खाद 50 किग्रा प्रति एकड़, जिप्सम (Gypsum) 80 किग्रा प्रति एकड़, और सल्फर 90% WG 3 किग्रा प्रति एकड़ इस्तेमाल करें। इसके बाद, 20-25 दिन बाद सेकेंडरी डोज के रूप में स्टार्टर 4 किग्रा प्रति एकड़ दिया जाता है। फिर, तीसरी डोज 30 दिन बाद MOP (Muriate of Potash) - 20 किग्रा प्रति एकड़ के रूप में दी जाती है। इन उर्वरकों का सही तरीके से उपयोग करने से फसल तेजी से बढ़ती है और अच्छी उपज मिलती है।
- सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management): मूंगफली में सही समय और तरीके से सिंचाई करना बहुत ही आवश्यक है। सबसे पहले, अंकुरण के बाद पहली सिंचाई करें ताकि बीज अच्छी तरह से जम सके। दूसरी सिंचाई फूल आने के समय करें, जिससे फूलों का सही विकास हो। तीसरी सिंचाई बुवाई के 45-50 दिन बाद करें, जिससे पौधे मजबूत होते हैं। फली में दाने भरने के समय चौथी सिंचाई करें, जिससे दानों का आकार और गुणवत्ता बेहतर हो। सिंचाई करते समय जलजमाव से बचें, क्योंकि यह जड़ों को सड़ा सकता है और फसल की सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।
- खरपतवार प्रबंधन (Weed Management): मूंगफली की फसल में खरपतवारों का नियंत्रण बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि ये पौधों से पानी और पोषक तत्वों को अवशोषित करते हैं, जिससे फसल की वृद्धि प्रभावित होती है। खरपतवार सूर्य की रोशनी को भी ढक लेते हैं, जिससे प्रकाश संश्लेषण में दिक्कत होती है और उपज में कमी होती है। इससे बचाव के लिए समय पर निराई-गुड़ाई करनी चाहिए, और गहरे में 4-5 सेंटीमीटर से अधिक खुदाई से बचना चाहिए। मल्चिंग तकनीक, जिसमें प्लास्टिक कवर या पुआल से खेत को ढका जाता है। इसके अलावा, खरपतवार नियंत्रण के लिए खरपतवार नाशक दवाओं का छिड़काव भी किया जा सकता है।
- रोग एवं कीट प्रबंधन (Disease and Pest Management): मूंगफली की फसल में विभिन्न प्रकार के कीट और रोग हो सकते हैं, जिनमें प्रमुख कीट सफेद लट, माहू, लीफ माइनर और दीमक हैं। ये कीट फसल को अलग-अलग तरीके से नुकसान पहुंचाते हैं, जैसे कि पौधों के रस को चूसना, पत्तियों को खा जाना या जड़ों को काट देना। इसके अलावा, मूंगफली की फसल में गेरुई रोग, टिक्का रोग और जड़ सड़न जैसे रोग भी होते हैं। इन कीटों और रोगों से बचने के लिए उन्हें समय रहते पहचान कर नियंत्रित करना जरूरी है। यदि इनकी पहचान सही समय पर की जाए और नियंत्रण उपाय किए जाएं, तो फसल को बचाया जा सकता है और पैदावार में कमी नहीं होगी।
- खुदाई (Harvesting): जब मूंगफली की पत्तियां पीली हो कर और गिरने लगे, तब फसल की खुदाई करनी चाहिए। खुदाई के बाद पौधों के छोटे भागों को बांधकर धूप में सुखाएं, लेकिन दानों को तेज धूप में सूखने से बचाएं, क्योंकि इससे उनकी अंकुरण क्षमता में कमी आ सकती है।
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अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)
Q: गर्मी में मूंगफली की खेती कब करें?
A: गर्मी में मूंगफली की बुवाई जून से जुलाई महीने में की जाती है। इस समय मौसम और मिट्टी की नमी उपयुक्त होती है, जिससे पौधे अच्छे से बढ़ सकते हैं।
Q: मूंगफली कितने दिन में पक्का तैयार हो जाती है?
A: मूंगफली की फसल आमतौर पर 120 से 150 दिन में पककर तैयार हो जाती है। यह अवधि किस्म, मौसम और खेती की स्थितियों पर निर्भर करती है।
Q: मूंगफली में पानी कब देना चाहिए?
A: मूंगफली की फसल में अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती है। लेकिन जब पौधों में फूल आने लगते हैं, तब हल्की सिंचाई करनी चाहिए, ताकि फूल अच्छे से विकसित हो सके। इसके अलावा, पौधों में नमी की कमी होने पर समय-समय पर सिंचाई करनी चाहिए।
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