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कृषि ज्ञान
29 May
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कपास की खेती में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Cotton Cultivation)


कपास की खेती में सही सिंचाई प्रबंधन से फसल की पैदावार और गुणवत्ता में सुधार होता है। कपास की पानी की मांग फसल के विकास चरणों के अनुसार बदलती रहती है: प्रारंभिक चरण में कम पानी की आवश्यकता होती है, लेकिन मिट्टी की नमी बनाए रखना महत्वपूर्ण है। वृद्धि चरण में पानी की मांग बढ़ती है, जिससे पौधे मजबूत और स्वस्थ बनते हैं। प्रजनन चरण में अधिक पानी की आवश्यकता होती है ताकि फूल और फल अच्छी तरह विकसित हो सके। जल की बचत के लिए एकान्तर (कतार छोड़) पद्धति अपनाएं और बाद वाली सिंचाई हल्की करें। अधिक सिंचाई से आर्द्रता बढ़ती है, जिससे कीट एवं रोगों का खतरा बढ़ सकता है। इसलिए, कपास की खेती में सही समय और विधि से सिंचाई करना महत्वपूर्ण है।

कब और कैसे करें कपास की सिंचाई? (When and how to irrigate cotton?)

अंकुरण अवस्था (Germination Stage) :  बुवाई से (1-15 दिन) तक।

  • बुवाई के तुरंत बाद बीज बोने के 5वें दिन एक बार सिंचाई करें।

वनस्पति चरण (16-44 दिन):

  • हल्की मिट्टी: बुवाई के 20वें या 21वें दिन, निराई-गुड़ाई के तीन दिन बाद सिंचाई करें और बुवाई के 35वें या 36वें दिन पुनः सिंचाई करें।
  • भारी मिट्टी: बुवाई के 20वें या 21वें दिन, निराई-गुड़ाई के तीन दिन बाद सिंचाई करें और बुवाई के 40वें दिन पुनः सिंचाई करें।

वनस्पति चरण (16-44 दिन)

  • हल्की मिट्टी: बुवाई के 20वें या 21वें दिन, निराई-गुड़ाई के तीन दिन बाद सिंचाई करें और बुवाई के 35वें या 36वें दिन पुनः सिंचाई करें।
  • भारी मिट्टी: बुवाई के 20वें या 21वें दिन, निराई-गुड़ाई के तीन दिन बाद सिंचाई करें और बुवाई के 40वें दिन पुनः सिंचाई करें।

पुष्पन अवस्था (Flowering Stage) : संकर के लिए (45-100 दिन)।

  • हल्की मिट्टी: 48वां दिन, 60वां दिन, 72वां दिन, 84वां दिन, 96वां दिन पर सिंचाई करें।
  • भारी मिट्टी: 55वां दिन, 70वां दिन, 85वां दिन, 100वां दिन पर सिंचाई करें।

परिपक्वता अवस्था (Maturity Stage) : संकर के लिए (100 दिन से अधिक)

  • हल्की मिट्टी: 108वां दिन, 120वां दिन, 130वां दिन, 144 वां दिन पर सिंचाई करें और 150वें दिन के बाद सिंचाई बंद कर दें।
  • भारी मिट्टी: 115वां दिन, 130वां दिन पर सिंचाई करें और 150वें दिन के बाद सिंचाई बंद कर दें।

कपास में सिंचाई के तरीके (Methods of irrigation in cotton)

ड्रिप सिंचाई (Drip Irrigation) : ड्रिप सिंचाई पद्धति कपास की फसल के लिए अत्यधिक लाभकारी होती है। इसमें पानी की बचत होती है और पौधों को आवश्यकतानुसार पानी मिलता है।

  • नरमा या बीटी कपास की प्रत्येक कतार में ड्रिप लाइन डालने की बजाय कतारों के जोड़े में ड्रिप लाइन डालने से ड्रिप लाइन का खर्च आधा होता है।
  • पौधे से पौधे की दूरी 60 सेंटीमीटर रखते हुए जोड़े में कतार से कतार की दूरी 60 सेंटीमीटर रखें।
  • जोड़े से जोड़े की दूरी 120 सेंटीमीटर रखें।
  • प्रत्येक जोड़े में एक ड्रिप लाईन डालें।
  • ड्रिप लाइन में ड्रिप से ड्रिप की दूरी 30 सेंटीमीटर हो।
  • प्रत्येक ड्रिप से पानी गिरने की दर 2 लीटर प्रति घंटा हो।
  • लगातार 5 दिन तक 2 घंटे प्रतिदिन के हिसाब से ड्रिप लाईन चलानी चाहिए। इससे उगाव अच्छा होता है।
  • बुवाई के 15 दिन बाद बूंद-बूंद सिंचाई प्रारंभ करनी चाहिए।

बूंद-बूंद सिंचाई (Micro Irrigation) : बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति कपास की फसल में अत्यधिक प्रभावी होती है।

  • इस पद्धति से सिफारिश किए गए नत्रजन की मात्रा 6 बराबर भागों में दो सप्ताह के अंतराल पर ड्रिप यंत्र द्वारा देने से सतही सिंचाई की तुलना में ज्यादा उपयुक्त पायी गई है।
  • इस पद्धति से पैदावार बढ़ती है or सिंचाई जल की बचत होती है।
  • इस सिंचाई पद्धति से कपास की गुणवत्ता बढ़ जाती है और कीट भी कम लगते हैं।

वैकल्पिक फ़रो सिंचाई (Alternate Furrow Irrigation) : वैकल्पिक फ़रो सिंचाई पद्धति चिकनी मिट्टी और दोमट मिट्टी जैसी भारी मिट्टी के लिए उपयुक्त है।

  • सिंचाई के किसी भी एक चरण के दौरान वैकल्पिक नालों के एक विशेष समूह की सिंचाई की जाती है।
  • पारंपरिक कुंडों की तुलना में सिंचाई का अंतराल कम होना चाहिए।
  • अगली बार सिंचाई के दौरान, बची हुई नालियों की सिंचाई की जाएगी।

क्या आप कपास की खेती करते हैं? अपना जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट करके बताएं। इसी तरह की अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'कृषि ज्ञान ' चैनल को अभी फॉलो करें। और अगर पोस्ट पसंद आयी तो इसे लाइक करके अपने किसान दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: 1 एकड़ में कपास का उत्पादन कितना होता है?

A: भारत में, प्रति एकड़ कपास की औसत उपज लगभग 400 से 500 किलोग्राम है। हालांकि, वास्तविक उत्पादन मिट्टी की गुणवत्ता, मौसम की स्थिति, सिंचाई और खेती के तरीकों जैसे विभिन्न कारकों के आधार पर भिन्न हो सकता है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि कपास एक अत्यधिक जल-गहन फसल है और इष्टतम विकास और उपज के लिए उचित सिंचाई और निषेचन की आवश्यकता होती है।

Q: कपास कौन से महीने में बोया जाता है?

A: कपास आमतौर पर भारत में खरीफ मौसम में, यानी मई और जून के महीनों के दौरान बोया जाता है। हालांकि, बुवाई का सही समय क्षेत्र और मौसम की स्थिति के आधार पर भिन्न हो सकता है। कुछ क्षेत्रों में अप्रैल महीने में भी बुवाई की जा सकती है।

Q: कपास की खेती में कौन सा खाद डालें?

A: कपास के बेहतर विकास के लिए संतुलित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग करना आवश्यक है। फसल में उचित मात्रा में यूरिया, डाय अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी), म्यूरेट ऑफ पोटाश (एम.ओ.पी) के साथ सिंगल सुपर फास्फेट (एस.एस.पी) खाद का भी प्रयोग करें।

Q: कपास की बुवाई कैसे करें?

A: कपास की बुवाई से पहले कई बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है, जिसमें भूमि की तैयारी, बीज का चयन, बीज की मात्रा, बीज की गहराई, और उर्वरकों का प्रयोग शामिल है। बुवाई के लिए भूमि को अच्छी तरह तैयार करें, उन्नत किस्म के बीज चुनें, बीज की सही मात्रा और गहराई का ध्यान रखें, और उपयुक्त उर्वरकों का प्रयोग करें।

Q: कपास में खरपतवार का प्रबंधन कैसे करें?

A: कपास की फसल में खरपतवार के प्रबंधन के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं: नियमित रूप से निराई-गुड़ाई करें, और अगर खरपतवार की समस्या अधिक हो तो टॉप बेस्ट खरपतवार नाशक का उपयोग करें।

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