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ज्वार: प्रमुख कीट, लक्षण एवं बचाव (Sorghum: Pests, Symptoms and Prevention)
ज्वार भारत में एक महत्वपूर्ण अनाज की फसल है, और यह कई प्रकार के कीटों के प्रति संवेदनशील होती है जो फसल को महत्वपूर्ण नुकसान पहुंचा सकते हैं। ज्वार के कुछ प्रमुख कीट कौन-कौन से हैं, उनके लक्षण क्या है और उनकी रोकथाम कैसे करें इसकी सम्पूर्ण जानकारी इस पोस्ट में मिलेगी।
ज्वार में कैसे करें कीट प्रबंधन? How to manage pests in sorghum?
तना मक्खी (Stem Fly):
- यह पीले रंग के कीट होते हैं जो छोटी पत्तियों पर अंडे देता है।
- प्रभावित पौधे में साइड टिलर पैदा होना।
- उखाड़ने पर पौधा आसानी से निकल जाता है और उससे दुर्गंध आती है।
- एक से छह सप्ताह के पौधे इस कीट के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।
- शूट फ्लाई कीट का प्रकोप ज्वार के अंकुरण अवस्था में होता है।
- यह पौधों के विकास बिंदु को काटता है और सड़े हुए ऊतकों को खा जाता है।
- संक्रमित पत्ती मुरझा जाती है और सूख जाती है।
नियंत्रण:
- बारिश के मौसम की शुरुआती अवस्था में उचित बीज दर का उपयोग करें।
- अंतर फसल लगाएं जैसे: ज्वार के साथ अरहर की फसल 2:1 का अनुपात में लगानी चाहिए।
- इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यू एस (Dehaat Contropest) दवा से 7 मि.ली प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित करें।
तना छेदक(Cutworms) :
- यह कीट फसल के अंकुरण के दूसरे सप्ताह से लेकर फसल पकने तक फसल पर आक्रमण करता है।
- ज्वार की पत्तियों पर अनियमित आकार के छेद दिखाई देते हैं।
- तने अंदर से गहरे होने लगते हैं जो एक सुरंग की तरह दिखाई देता है।
नियंत्रण :
- पिछली फसल के डंठलों को उखाड़कर जला दें या फिर नष्ट करें।
- लोबिया के साथ ज्वार की अंतर-फसल को भी लगाएं।
- क्लोरोपाइरीफॉस 50% + साइपरमेथ्रिन 5% ईसी (DeHaat C Square) दवा को 2 मिली प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
- इमामेक्टिन बेंज़ोएट 5% SG ( Dehaat Illigo) दवा का उपयोग 0.5 ग्राम एक लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
- संक्रमण ज्यादा होने पर (DeHaat Ataque) क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 18.5% SC दवा को 0.3 मिली प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
फॉल आर्मीवर्म कीट (Fall Armyworm):
- एक गंभीर कीट है जो भारत में ज्वार की फसलों को काफी नुकसान पहुंचा सकता है।
- इस कीट के लार्वा ज्वार के पत्तों पर भोजन करते हैं जो पत्तियों पर होल करके क्षति पहुंचाते हैं।
- यह पत्तों पर मल-मूत्र छोड़ता है जो फफूंद जनित बीमारियों को फैलने में मदद करता है।
- पत्तियां कटी-फटी होने लगती हैं जिससे पौधों में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया सही से नहीं होती है इस कारण पौधों का विकास रुक जाता है।
नियंत्रण:
- खेत की गहरी जुताई करें ताकि फॉल आर्मीवर्म के लार्वा और प्यूपा धूप और प्राकृतिक शत्रुओं के संपर्क में आए, जिससे उन पर नियंत्रण पाया जा सके।
- खेत में 6 फेरोमोन ट्रैप प्रति एकड़ की दर से लगाएं।
- बीजों को बुवाई के पहले उपचारित करना चाहिए।
- इमामेक्टिन बेंज़ोएट 5% SG ( Dehaat Illigo) दवा का उपयोग 0.5 ग्राम एक लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
- सायंट्रानिलिप्रोल 10.26% OD दवा का उपयोग 5 मिली प्रति लीटर पानी मिलाकर छिड़काव करें।
- गंभीर संक्रमण के मामले में (DeHaat Ataque) क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 18.5% SC दवा को 0.3 मिली प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
ईयर हेड कैटरपिलर (Ear Head Caterpillar):
- उसके अंडे मलाईदार सफेद और गोलाकार होते हैं।
- कीट हल्के भूरे-पीले रंग का होता है।
- फसल की बालियां खा लेती हैं।
- ईयर हेड बग बनने के समय, दानों में दूध बनने की अवस्था होती है, जिससे दाने सिकुड़ जाते हैं और काला रंग आ जाता है।
- कान के सिर पर बड़ी संख्या में निम्फ देखे जाते हैं, जो पतले, हरे रंग के होते हैं।
नियंत्रण:
- प्रकाश जाल लगाएं ताकि संक्रमण की तीव्रता का पता चल सके।
- प्रति एकड़ की दर से 6 फेरोमोन ट्रैप का प्रयोग करें ताकि नर पतंगों को आकर्षित किया जा सके।
- इमामेक्टिन बेंज़ोएट 5% SG ( Dehaat Illigo) दवा का उपयोग 0.5 ग्राम एक लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
- थियामेथोक्साम 12.6% + लैम्ब्डा साइहलोथ्रिन 9.5% ZC दवा को 0.4 मिली प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
सोरघम मिज (Sorghum Midge):
- मिज मक्खी छोटे मच्छर के आकार की होती है, जिसका पेट चमकीला नारंगी होता है।
- मिज मक्खी के कीड़े विकासशील दानों को खाते हैं, लार्वा अंडाशय को खा कर विकासशील दानों को नष्ट कर देता हैं।
नियंत्रण:
- प्रकाश जाल लगाएं ताकि मिज मक्खी को आकर्षित किया जा सके।
एफिड्स (Aphids):
- एफिड्स पुरानी पत्तियों और उनकी छोटी पत्तियों को खाना पसंद करते हैं।
- बूट चरण के दौरान भी हमला करते हैं, जिससे पुष्पगुच्छ का परिश्रम कम हो सकता है।
- शिशु और वयस्क दोनों ही रस चूसते हैं।
- अत्यधिक संक्रमित पत्तियों पर पीले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं।
- पत्तियों के किनारों पर परिगलन हो सकता है।
- एफिड्स प्रचुर मात्रा में शहद का उत्पादन करते हैं, जो पौधे को कालिख और अन्य छिटपुट कवक रोगजनकों के लिए प्रेरित करता है।
- नमी के तनाव की स्थिति में गंभीर क्षति हो सकती है, जिससे पत्तियां सूखने के साथ-साथ पौधे भी मर जाते हैं।
नियंत्रण:
- लाइट ट्रैप लगाएं ताकि संक्रमण की तीव्रता का पता चल सके।
- प्रति एकड़ की दर से 6 फेरोमोन ट्रैप का प्रयोग करें ताकि नर पतंगों को आकर्षित किया जा सके।
- इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यू एस (Dehaat Contropest) दवा से 7 मि.ली प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित करें।
- क्लोरोपाइरीफॉस 50% + साइपरमेथ्रिन 5% ईसी (DeHaat C Square) दवा को 2 मिली प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
आप ज्वार की फसल में कौन-कौन से कीटों से परेशान हैं? अपना जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट करके बताएं। इसी तरह की अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ' किसान डॉक्टर ' चैनल को अभी फॉलो करें। और अगर पोस्ट पसंद आयी तो इसे लाइक करके अपने किसान दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)
Q: ज्वार का दूसरा नाम क्या है?
A: ज्वार को जोन्हरी, जुंडी आदि भी कहते हैं। इसके डंठल और पौधे को चारे के काम में लाते हैं और 'चरी' कहते हैं।
Q: ज्वार की बुवाई कब की जाती है?
A: सिंचित इलाकों में ज्वार की फसल 20 मार्च से 1- जुलाई तक बो देनी चाहिए। जिन क्षेत्रों में सिंचाई उपलब्ध नहीं हैं वहां बरसात की फसल मानसून में पहला मौका मिलते ही बो देनी चाहिए। अनेक कटाई वाली किस्मों/संकर किस्मों की बीजाई अप्रैल के पहले पखवाड़े में करनी चाहिए।
Q: ज्वार कितने दिन में उगती है?
A: हरे चारे की सबसे उन्नत किस्मों में से एक एमपी चरी भी है, ये दूसरा सबसे उन्नत ज्वार किस्म है जो हरे चारे की पैदावार के लिए उपयुक्त है। इस किस्म के ज्वार की पहली कटाई 55 से 60 दिन बाद ले सकते हैं। इसके बाद दूसरी कटाई के लिए 35 से 40 दिन का इंतजार कर सकते हैं।
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