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4 May
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जूट की खेती: बुवाई का समय, किस्में एवं बुवाई की विधि (Jute Cultivation: Sowing Time, Varieties and Method of Sowing)


जूट पूर्वी भारत की मुख्य नकदी फसलों में से एक है, इसकी खेती विशेष रूप से पश्चिम बंगाल, बिहार, असम और ओडिशा के पूर्वी राज्यों में की जाती है और दुनिया का सबसे बड़ा जूट उत्पादक देश भारत है, जो विश्व का लगभग 60% है। यह एक लंबा, मुलायम, चमकदार वनस्पति फाइबर है जिसे मोटे, मजबूत धागे में काता जा सकता है। जूट को माल और कच्चे फाइबर के रूप में निर्यात किया जाता है। इससे ब्रिग बैग्स, कनवास, टिवस्ट, कम्बल, दरी, कालीन, ब्रुश, रस्सियां, चारकोल, और गन पाउडर आदि तैयार किए जाते हैं।

कैसे करें जूट की खेती? (How to cultivate jute?)

  • मिटटी : जूट समतल भूमि जिसमें जल निकास की अच्छी व्यवस्था होती है।  इसके अलावा दोमट तथा मटियार दोमट मिटटी इसकी खेती के लिए सबसे उपयुक्त होती है।
  • बुवाई का उचित समय : जूट एक गर्म मौसम की फसल है, और यह आमतौर पर भारत में बरसात के मौसम के दौरान बोई जाती है। जूट की बुवाई का आदर्श समय जून और जुलाई के बीच होता है, जब बारिश शुरू हो जाती है। भारत में जूट की बुवाई ढलान वाली मिटटी पर फरवरी में और ऊंचाई वाली मिटटी पर मार्च से जुलाई तक की जाती है।
  • बीज की मात्रा : जूट की बुवाई सीड ड्रिल के माध्यम से पंक्तियों में करते हैं। इसमें कैपसुलेरिस किस्मों के लिए 1.5 से 2 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ और ओलिटेरियस के लिए 1 से 2 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ आवश्यक होता है। और अगर आप छिड़काव द्वारा बिजाई करते हैं तो 2 से 3 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ लगता है।
  • बीज उपचार : जूट के बीजों को बुवाई से पहले फफूंदनाशी से बीजों को उपचारित करें।
  • बुवाई विधि : जूट के बीज पंक्तियों में बोए जाते हैं, पंक्तियों के बीच 20-25 सेमी की दूरी होती है। बीज को 2-3 सेमी की गहराई पर बोया जाना चाहिए। जूट के बीज बोने की दो विधियाँ हैं:
  1. प्रसारण : इस विधि में, जूट के बीज तैयार भूमि पर समान रूप से बिखरे हुए हैं। यह विधि छोटे पैमाने पर खेती के लिए उपयुक्त है।
  2. लाइन बुवाई : इस विधि में, जूट के बीज पंक्तियों में बोए जाते हैं, पंक्तियों के बीच 20-25 सेमी की दूरी के साथ। यह विधि बड़े पैमाने पर खेती के लिए उपयुक्त है।
  • खेत की तैयारी : मिट्टी पलटने वाले हल से खेत की एक जुताई करें उसके 2-3 दिन बाद देशी हल या फिर कल्टीवेटर से फिर जुताई  करके खेत में पाटा लगाकर भूमि को भुरभुरा बनाएं। जूट का बीज बहुत छोटा होता है इसलिए मिट्टी का भुरभुरा होना जरुरी है ताकि बीज का जमाव अच्छा हो।
  • किस्में : जूट की संकर किस्में (Hybrid varieties of jute) निम्नलिखित हैं:
  1. महाराजा : यह सुनहरे गोल्डन रंग का उच्च गुणवत्ता वाला फाइबर होता है। इसके पौधों की लम्बाई 5 से 5.5 मीटर होती है। प्रतिकूल परिस्थिति में पुष्पन न्यूनतम होता है।
  2. कैप्सुलरिस: इसको सफेद जूट या कहीं-कहीं ककिया बम्बई भी कहते हैं। इसकी पत्तियां स्वाद में कड़वी होती हैं। इसकी बुवाई फरवरी से मार्च में की जाती है।
  3. जे.आर.सी.-321: यह शीघ्र पकने वाली प्रजाति है और जल्दी वर्षा होने तथा निचली भूमि के लिए सर्वोत्तम पाई गई है। इसकी बुवाई फरवरी-मार्च में करके जुलाई में इसकी कटाई की जा सकती है।
  4. जे.आर.सी.-212: इस प्रजाति मध्य एवं उच्च भूमि में देर से बोई जाने वाली जगहों के लिए उपयुक्त है। इसकी बुवाई मार्च से अप्रैल में करके जुलाई के अन्त तक की जाए।
  5. यू.पी.सी.-94 (रेशमा): निचली भूमि के लिए उपयुक्त है और बुवाई फरवरी के तीसरे सप्ताह से मध्य मार्च तक की जाती है।
  6. जे.आर.सी.-698: निचली भूमि के लिए उपयुक्त है और इसकी बुवाई मार्च के अन्त में की जा सकती है।
  7. अंकित (एन.डी.सी.): इस प्रजाति की बुवाई 15 फरवरी से 15 मार्च तक की जाती है।
  8. एन.डी.सी.9102: इस प्रजाति में 878 के सभी गुण विद्यमान हैं और इसके अतिरिक्त अधिक उर्वरा शक्ति ग्रहण करने के कारण अच्छी पैदावार होती है।
  9. जे.आर.ओ.-632: यह देर से बुवाई और ऊची भूमि के लिए उपयुक्त है और इसकी बुवाई अप्रैल से मई के अन्तिम सप्ताह तक की जा सकती है।
  10. जे.आर.ओ.-878: यह प्रजाति सभी भूमियों के लिए उपयुक्त है और बुवाई मध्य मार्च से मई तक की जाती है।
  11. जे.आर.ओ.-524 (नवीन): इस प्रजाति की बुवाई मार्च तृतीय सप्ताह से अप्रैल तक की जाती है।
  12. जे.आर.ओ.-66: यह प्रजाति मई जून में बुवाई करके 100 दिन में अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है।

क्या आप जूट की खेती करना चाहते हैं? अपना जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट करके बताएं। इसी तरह की अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ' कृषि ज्ञान ' चैनल को अभी फॉलो करें। और अगर पोस्ट पसंद आयी तो इसे लाइक करके अपने किसान दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें।

Q: जूट का पौधा कैसे होता है?

A: जूट चावल के समान परिस्थितियों में उगता है, और यह पौधा गर्म क्षेत्रों के लिए सबसे उपयुक्त है जहां वार्षिक मानसून मौसम होता है । यह फसल कठोर जल में नहीं उग सकती, और जूट उत्पादन के लिए परिवेशीय आर्द्रता का स्तर लगभग 80% आवश्यक है।

Q: जूट की खेती कहाँ होती है?

A: जूट की फसल सात राज्यों - पश्चिम बंगाल, असम, उड़ीसा, बिहार, उत्तर प्रदेश, त्रिपुरा और मेघालय के लगभग 83 जिलों में उगाई जाती है।

Q: जुट कितने प्रकार के होते हैं?

A: जूट की कुछ अलग-अलग वनस्पति विविधताएँ हैं। दो मुख्य प्रकार सफेद जूट और गहरे जूट हैं, जिन्हें टोसा जूट भी कहा जाता है। जूट के पौधे को विशेष बढ़ती परिस्थितियों और मिट्टी की आवश्यकता होती है, जिसे वार्षिक मानसून मौसम वाले गर्म, आर्द्र जलवायु में उगाने की आवश्यकता होती है।

Q: जूट में किस मिट्टी का उपयोग किया जाता है?

A: जूट को चिकनी मिट्टी से लेकर बलुई दोमट तक सभी प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है, लेकिन दोमट जलोढ़ मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है । लैटेराइट और बजरी मिट्टी इस फसल के लिए उपयुक्त नहीं है। अच्छी गहराई की नई ग्रे जलोढ़ मिट्टी, वार्षिक बाढ़ से गाद प्राप्त करने वाली मिट्टी जूट की खेती के लिए सबसे अच्छी होती है।

Q: जूट की खेती किस मौसम में की जाती है?

A: जूट की खेती. जूट एक वर्षा ऋतु की फसल है, जिसे वर्षा एवं भूमि के प्रकार के अनुसार मार्च से मई तक बोया जाता है। इसकी कटाई जून से सितंबर तक की जाती है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि बुआई जल्दी हुई है या देर से। जूट के लिए 24°C से 37°C के बीच तापमान वाली गर्म और आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है।

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