पोस्ट विवरण
सुने
कृषि
करेला
सब्जियां
कृषि ज्ञान
15 July
Follow

करेला की खेती से पहले जानें उपयुक्त मिट्टी, किस्में एवं खेत की तैयारी। (Know suitable soil, varieties and field preparation before cultivating bitter gourd.)


करेला भारत में एक प्रमुख सब्जी है जिसका सेवन रसेदार जूस, भरवां या तले हुए शाक के रूप में किया जाता है। उसके फलों में औषधीय गुणों का भी उच्च स्तर होता है, जो पेट की कीटों को खत्म करने में मदद कर सकते हैं। यह फसल विभिन्न पोषक तत्वों का भी उच्च स्रोत होती है जैसे कि विटामिन B1, B2, B3, बीटा-कैरोटीन, जिंक, आयरन, फास्फोरस, पोटेशियम, मैग्नीशियम, फोलेट और कैल्शियम। करेले की बढ़ती हुई मांग के कारण, करेले की खेती किसानों के लिए आर्थिक रूप से लाभकारी होती है।

कैसे करें करेले की खेती? (How to cultivate bitter gourd?)

मिट्टी: करेले की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी और जलोढ़ मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। इनमें पोषक तत्व उपलब्ध होते हैं और उर्वरक क्षमता भी अच्छी होती है। करेले की बुवाई के लिए मिट्टी का पी.एच. मान 6 से 7 के बीच होना चाहिए।

तापमान: करेले के लिए अच्छा उत्पादन पाने के लिए 20 से 40 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान उपयुक्त माना जाता है। यहाँ ध्यान देने वाली बात है कि ज्यादा तापमान की आवश्यकता नहीं होती, और खेतों में नमी की अच्छी उपलब्धता होनी चाहिए।

उन्नत किस्में: करेले की उन्नत किस्में जैसे DSH-2115, DSH-2150, DHS-2180, MBTH 102, MBTH 101, Mahyco Mahy 19, F1 लुशी, VNR F1 हाइब्रिड, और झालरी करेले के बीज किसानों के लिए उत्पादन और गुणवत्ता में सुधार करने में मदद करती हैं। इन किस्मों का चयन करके किसान अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं और बेहतर बाजार मूल्य प्राप्त कर सकते हैं।

बुवाई का समय: करेले की बुवाई ग्रीष्म के मौसम में जनवरी से मार्च के महीने में बुवाई करते हैं और बारिश के मौसम में करेले की बुवाई जून और जुलाई में करनी चाहिए।

खेत की तैयारी:

  • जुताई: बुवाई से पहले खेत को 2-3 सेंटीमीटर की गहरी जुताई करें और खेत को समतल करने के लिए पाटा चला कर मिट्टी को भुरभुरा कर लें। सड़ी हुई गोबर खाद को मिट्टी में मिलाएं।
  • बुवाई की दूरी: बुवाई के लिए 1.5 मीटर चौड़े बेड बनाएं और बीजों की बुवाई के लिए 45 सेंटीमीटर की दूरी में करें।
  • बीज की गहराई: गड्ढे में 2.5 से 3 सेंटीमीटर की गहराई पर बीज बोएं।
  • बुवाई का तरीका: गड्ढा खोदकर बुवाई की जानी चाहिए।
  • बीज की मात्रा: प्रत्येक एकड़ में लगभग 1.8 किलो बीज का उपयोग करना चाहिए।
  • बीज की बुवाई: तैयार की गई पंक्तियों में बीजों को लगभग 2-2.5 सेंटीमीटर गहराई में बोएं। पंक्तियों के अंदर बीजों के बीच लगभग 1-1.5 मीटर की दूरी बनाएं।
  • बीज का उपचार: बुवाई से पहले बीज को 25-50 पी पी एम जिब्रेलिक एसिड और 25 पी पी एम बोरोन में 24 घंटे के लिए भिगोकर रखें।

सिंचाई प्रबंधन: करेले की फसल के बिजाई के तुरंत बाद सिंचाई आवश्यक है। गर्मियों में हर 6-7 दिनों में और बारिश में जरूरत पड़ने पर ही सिंचाई करें। करेले की फसल में कुल 8-10 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। सिंचाई के दौरान जलजमाव से बचें और मिट्टी की नमी बनाए रखें। फूल और फल बनने के समय में विशेष ध्यान दें और हल्की सिंचाई करें। फसल की स्वास्थ्य के लिए जल निकासी का सही प्रबंधन करें।

खरपतवार नियंत्रण: खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए, नदीनों को हाथ से निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। पौधों के प्रारंभिक विकास के समय में 2-3 बार गुड़ाई करनी चाहिए। खाद डालने के समय, मिट्टी में गुड़ाई की प्रक्रिया को अपनाना चाहिए, बारिश के मौसम में करनी चाहिए।

खाद और रासायनिक उर्वरक: अच्छी सडी हुई गोबर की खाद (FYM) प्रति एकड़ के लिए 10 किलो (20 टन / एकड़) खेत में दें। करेले के प्रति एकड़ खेत में 43 किलो यूरिया, 50 से 58 किलो डी.ए.पी, और 16 से 24 किलो एम.ओ.पी का इस्तेमाल करना चाहिए।

रोग एवं कीट: करेले की खेती में रोग और कीट प्रबंधन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि ये फसल की वृद्धि और उपज पर बुरा प्रभाव डाल सकते हैं। करेले के प्रमुख रोगों में करेला मोज़ेक वायरस, ख़स्ता फफूंदी, फल मक्खी, एफिड्स और सफेद मक्खियां शामिल हैं। इन रोगों और कीटों को नियंत्रित करने के लिए सांस्कृतिक, जैविक, और रासायनिक प्रबंधन करना चाहिए।

तुड़ाई: करेले की फसल को समय पर और सही तरीके से तुड़ाई करना बहुत जरुरी है। इसे बुआई के बाद लगभग 60-70 दिनों में कर लेना चाहिए, जब फल मुलायम और छोटे होते हैं। तोड़ते समय फल की डंठल लंबी रखनी चाहिए, जिससे वे लंबे समय तक ताजे बने रहे। तुड़ाई को सुबह के समय करना अच्छा रहता है, ताकि फसल को दिनभर की गर्मी और धूप से बचाया जा सके। इस तरह से उचित देखभाल से, किसान बेहतर उत्पादन और उच्च गुणवत्ता वाले करेले की फसल प्राप्त कर सकते हैं।

क्या आप करेले की खेती करते हैं? अपना जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट करके बताएं। इसी तरह की अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'कृषि ज्ञान' चैनल को अभी फॉलो करें। और अगर पोस्ट पसंद आयी तो इसे लाइक करके अपने किसान दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: करेला कितने दिन में फल देने लगता है?

A: करेले के बीज बोने के लगभग 55 से 60 दिनों के बाद पौधों में फल आने लगते हैं। इसे फलों के रंग, आकार और साइज के अनुसार भी किया जाता है।

Q: करेले कौन से महीने में लगाना चाहिए?

A: करेले की बुवाई के लिए सबसे उचित समय बरसात का होता है इसलिए इसकी बुवाई मई से जून के महीने में करनी चाहिए और अगर आप सर्दियों में करेले की खेती करना चाहते हैं तो जनवरी से फरवरी का महीना अच्छा माना जाता है।

Q: करेले की खेती में उर्वरक की मात्रा कितनी होनी चाहिए?

A: करेले की फसल में उर्वरक देते समय यह ध्यान दें कि बुवाई के समय नाइट्रोजन की आधी मात्रा, सल्फर और पोटाश की पूरी मात्रा देनी चाहिए। बची हुई नाइट्रोजन की आधी मात्रा टॉप ड्रेसिंग के रूप में बुवाई के 30-40 दिन बाद दी जानी चाहिए।

Q: भारत में करेला किन राज्यों में उगाया जाता हैं?

A: करेले की खेती भारत में कई राज्यों में उगाया जाता है। यह प्रमुखतः छत्तीसगढ़, तेलंगाना, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, पंजाब, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम, उत्तर प्रदेश, और बिहार में मुख्यतः लगाया जाता है।

Q: करेले के पौधे में कितना पानी देना चाहिए?

A: करेला की फसल के लिए बुवाई के तुरंत बाद सिंचाई करें। गर्मियों में हर 6-7 दिनों में और बारिश में जरूरत पड़ने पर ही सिंचाई करें। कुल 8-10 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। सिंचाई के दौरान जलजमाव से बचें और मिट्टी की नमी बनाए रखें। इससे फसल की वृद्धि और उत्पादन में सुधार होगा।





40 Likes
Like
Comment
Share
फसल चिकित्सक से मुफ़्त सलाह पाएँ

फसल चिकित्सक से मुफ़्त सलाह पाएँ