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किसान डॉक्टर
22 July
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लौकी: रोग, लक्षण, बचाव एवं उपचार | Bottle Gourd: Diseases, Symptoms, Prevention and Treatment

लौकी, जिसे विभिन्न क्षेत्रों में घीया, कद्दू, बॉटल गॉर्ड के नाम से जाना जाता है, कई पोषक तत्वों एवं औषधीय गुणों से भरपूर है। लताओं वाली सब्जियों में इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। इसके फल गोल एवं लंबे आकार के फल फाइबर, विटामिन बी, कैल्शियम, आयरन, जिंक, पोटैशियम, मैग्निशियम, मैग्नीस, आदि कई पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं।

लौकी के रोग | Bottle Gourd Diseases

लौकी की खेती से अधिक मुनाफा प्राप्त करने के लिए फसल को विभिन्न रोगों से बचाना बहुत जरूरी है। लौकी की फसल में गलका रोग, डाउनी मिल्ड्यू रोग, मोजैक वायरस रोग, पत्ती झुलसा रोग, बॉटल गॉर्ड लीफ डिजीज़ आदि का प्रकोप अधिक होता है। इन रोगों के कारण फसल की उपज में भारी कमी हो सकती है। कई बार कुछ रोग नर्सरी में ही छोटे पौधों को प्रभावित करते हैं। जिससे पौधे नष्ट हो जाते हैं और लौकी की फसल किसानों की जेब पर भारी पड़ सकता है।

लौकी के पौधों के रोग | Bottle Gourd Plant Diseases

चूर्णिल आसिता रोग से होने वाले नुकसान

  • इस रोग की शुरुआत में पत्तियों के ऊपरी भाग पर सफेद-धूसर धब्बे दिखाई देते हैं।
  • बाद में धब्बे बढ़कर सफेद रंग के पाउडर में बदल जाते हैं।
  • इससे प्रकाश संश्लेषण में बाधा आती है।
  • प्रभावित पत्तियां सूख कर गिरने लगती हैं।
  • पौधों के विकास में बाधा आती है।
  • इस रोग के कारण उपज में भारी कमी देखी जा सकती है।

चूर्णिल आसिता रोग पर नियंत्रण के तरीके

  • प्रति एकड़ खेत में 300 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.3% एस.सी. (देहात एजीटॉप) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 200 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 18.2% +डिफेनोकोनाजोल 11.4% एस.सी (देहात सिनपैक्ट) का प्रयोग करें।
  • 150 मिलीलीटर प्रोपीकोनाज़ोल 13.9% + डाइफेनोकोनाज़ोल 13.9% ईसी (सिंजेंटा ग्लो-इट) का प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 80 मिलीलीटर डाइफेनोकोनाज़ोल 25% ईसी (सिंजेंटा- स्कोर) का प्रयोग करें।
  • 450 ग्राम पायराक्लोस्ट्रोबिन 5% + मेटिराम 55% WG (पीआई इंडस्ट्रीज- क्लच) का प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।

गलका रोग से होने वाले नुकसान

  • छटे पौधे इस रोग के प्रकोप से अधिक प्रभावित होते हैं।
  • इस रोग की शुरुआत में पौधे मुरझाने लगते हैं।
  • पौधों की जड़ें एवं तने गलने लगते हैं।
  • यदि पौधों में फल आ गए हैं तो फल भी भूरे हो कर सड़ने लगते हैं।

गलका रोग पर नियंत्रण के तरीके

  • इस रोग पर नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ खेत में 600 ग्राम मैनकोजेब 75% डब्ल्यूपी (देहात DeM-45, धानुका एम-45) का प्रयोग करें।
  • रासायनिक नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ खेत में 300-600 ग्राम कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% डब्ल्यू.पी (देहात- साबू, यूपीएल- साफ) का प्रयोग करें।
  • आवश्यकता होने पर 15 दिनों के अंतराल पर दोबारा छिड़काव कर सकते हैं।

डाउनी मिल्ड्यू रोग से होने वाले नुकसान

  • रोग की प्रारंभिक अवस्था में पत्तियों की ऊपरी सतह पर अनियमित आकार के हल्के हरे रंग के धब्बे उभरने लगते हैं।
  • कुछ समय बाद धब्बों का हरा से पीला होने लगता है।

डाउनी मिल्ड्यू रोग पर नियंत्रण के तरीके

  • सर्दियों में बीजाणु फसल के अवशेषों पर रहते हैं, इसलिए पतझड़ में क्यारियों की सफाई जरुर करें।
  • किसी भी संक्रमित पौधे को खेत से तुरंत हटा दें।
  • कवक के बीजाणु हवा में लंबी दूरी तय कर सकते हैं, खासकर नम हवा में। इसलिए रोग के प्रतिरोधी किस्मों का ही चयन करें।
  • रासायनिक नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ खेत में 300-600 ग्राम कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% डब्ल्यू.पी (देहात- साबू) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 450-600 ग्राम मेटिरम 55% + पायराक्लोस्ट्रोबिन 5% डब्लूजी (बीएएसएफ कैब्रियो टॉप, पीआई इंडस्ट्रीज क्लच) का प्रयोग करें।

मोजैक वायरस रोग से होने वाले नुकसान

  • इस रोग के होने पर पौधों की नई पत्तियां सिकुड़ जाती हैं।
  • पत्तियां पीली होने लगती हैं और इसकी नसें मोटी हो जाती हैं।
  • पौधे के विकास में बाधा आती है।
  • इस रोग से प्रभावित पौधों में फूल-फल कम आते हैं।
  • पौधों में निकलने वाले पुष्प गुच्छों में बदलने लगते हैं।
  • यदि पौधों में फल आ गए हैं तो फलों पर भी हल्के पीले रंग के धब्बे उभरने लगते हैं।

मोजैक वायरस रोग पर नियंत्रण के तरीके

  • मोजैक वायरस रोग से बुरी तरह प्रभावित पौधों को खेत से बाहर निकाल कर नष्ट करें।
  • इस रोग पर नियंत्रण के लिए प्रति लीटर पानी में 1 मिलीलीटर इमिडाक्लोप्रिड 200 एस.एल. (बायर- कॉन्फिडोर) मिलाकर भी छिड़काव किया जा सकता है।
  • प्रति एकड़ खेत में 40 ग्राम थियामेथोक्सम 25%डब्ल्यू.जी (देहात- एसिअर) का प्रयोग करें।

पत्ती झुलसा रोग से होने वाले नुकसान

  • इस रोग से प्रभावित पत्तियों पर हल्के भूरे रंग के धब्बे उभरने लगते हैं।
  • बाद में यह धब्बे आकार में बड़े और गहरे हो जाते हैं।
  • प्रभावित पत्तियां झुलसी हुई यानी जली हुई सी नजर आती हैं।
  • समय रहते नियंत्रण नहीं करने पर पूरा पौधा मुरझा जाता है।

पत्ती झुलसा रोग पर नियंत्रण के तरीके

  • इस रोग पर नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ खेत में 600 ग्राम मैनकोजेब 75% डब्ल्यूपी (देहात DeM-45, धानुका एम-45, श्रीराम मैनकोजेब 45) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 600-800 ग्राम प्रोपिनेब 70% डब्ल्यू.पी. (देहात जिनैक्टो, बायर एंट्राकोल) का प्रयोग करें।

आपके लौकी की फसल किस रोग का प्रकोप अधिक होता है? अपने जवाब हमें कमेंट के माध्यम से बताएं। फसलों को विभिन्न रोगों एवं कीटों से बचाने की अधिक जानकारी के लिए 'किसान डॉक्टर’ चैनल को तुरंत फॉलो करें। इसके साथ ही इस पोस्ट को लाइक और शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न | Frequently Asked Question

Q1: लौकी में फल क्यों नहीं लग रहा है?

A1: विभिन्न रोगों की चपेट में आने के कारण लौकी की फसल में फल नहीं लगते हैं। इसके अलावा कई बार पोषक तत्वों की कमी होने पर भी पौधों में फूल-फल नहीं आते हैं या उनकी संख्या में कमी आती है।

Q2: लौकी का पेड़ क्यों सूखता है?

A2: लौकी के पौधों के सूखने के कई कारण हो सकते हैं। पौधों के सूखने के पीछे विभिन्न रोग एवं कीटों का हमला एक बड़ा कारण हो सकता है। मिट्टी में उचित मात्रा में नमी नहीं होने के कारण भी पौधे सूख सकते हैं।

Q3: लौकी के पौधों को रोग से कैसे बचाएं?

A3: लौकी के पौधों को रोगों से बचाने के लिए बुवाई से पहले बीज उपचारित करना बहुत जरूरी है। खेत में जल जमाव की स्थिति एवं खरपतवारों की अधिकता से भी रोगों के होने का खतरा बना रहता है। इसलिए उचित जल निकासी एवं खरपतवार नियंत्रण की उचित व्यवस्था करें। समय-समय पर फसलों का निरीक्षण करें और किसी भी रोग के लक्षण नजर आने पर जैविक एवं रासायनिक दवाओं का प्रयोग करें।

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