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कृषि ज्ञान
8 May
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लेमन ग्रास की खेती (Lemon grass cultivation)


लेमन ग्रास, जिसे सिम्बोपोगन, नींबू घास, चाइना घास और मालाबार घास के नाम से भी जाना जाता है, एक प्रमुख जड़ी बूटी वाला बारहमासी पौधा है जिसकी भारत में व्यापक रूप से खेती की जाती है। इसे उसकी सुगंधित पत्तियों के कारण महत्व दिया जाता है। इसकी पत्तियों से वाष्प आसवन के द्वारा तेल प्राप्त होता है, जिसे कॉस्मेटिक्स, सौंदर्य प्रसाधन, साबुन, कीटनाशक एवं दवाओं में उपयोग किया जाता है। इस तेल का मुख्य घटक सिट्राल (80-60) प्रतिशत होता है। भारत में लेमन ग्रास की खेती उत्तर प्रदेश, केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, असम, महाराष्ट्र, कर्नाटक और राजस्थान में की जाती है।

लेमन ग्रास की खेती कैसे करें? (How to cultivate Lemongrass?)

    • जलवायु: लेमनग्रास गर्म और आर्द्र जलवायु में अच्छी तरह से पनपता है। इसके पौधों के लिए 20 से 25 डिग्री सेल्सियस के बीच का तापमान आदर्श होता है। यह 40 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान सहन कर सकता है, लेकिन 15 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान में इसकी वृद्धि धीमी हो जाती है। लेमनग्रास को अच्छी धूप की आवश्यकता होती है, कम से कम 6-8 घंटे प्रतिदिन।
    • मिट्टी: लेमनग्रास की खेती के लिए उपजाऊ, अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी उपयुक्त होती है। मिट्टी का pH 5.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए। रेतीली और दोमट मिट्टी लेमनग्रास के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है। ढलान वाले क्षेत्रों में मृदाक्षरण को रोकने में लेमनग्रास सहायक होता है।
    • उन्नत किस्में: भारत में, लेमन ग्रास की कई उन्नत किस्में हैं जो खेती के लिए उपलब्ध हैं। कुछ लोकप्रिय किस्में हैं- सिम्बोपोगान साइट्रेटस, सिम्बोपोगान डिफ्यूसस, सिम्बोपोगान कॉफे, सिम्बोपोगान नार्डस, कृष्णा, प्रगति, सीआईएमएपी एल-7, आरआरएल-16 और पीआरएल-1 इत्यादि।
  • खेत की तैयारी:
  1. सबसे पहले उचित धूप और सूखे क्षेत्र का चुनव करें, जहाँ पानी जमा न होता हो। क्योंकि लेमनग्रास जलभराव के लिए ज्यादा संवेदनशील होता है, इसलिए जलभराव वाले क्षेत्रों से बचें।
  2. उसके बाद लेमनग्रास की जड़ों को नर्सरी में लगायें। यह काम अप्रैल से मई के बीच किया जाता है।
  3. एक हेक्टेयर की नर्सरी के लिए लेमनग्रास का लगभग 10 किलो बीज लगता है। नर्सरी रोपाई के लिए 55-60 दिनों में तैयार हो जाता है।
  4. इसमें साल में दो से तीन निराई गुड़ाई करें।
  5. मुख्य खेत में गहरी जुताई करें और खेत से मलबे को हटा दें, फिर पंक्तियों के बीच 60 सेमी और पौधों के बीच 30 सेमी की दूरी के साथ पंक्तियों में लेमनग्रास कटिंग या स्लिप लगाएं।
  6. पौधों के चारों ओर जैविक गीली घास जैसे पुआल या सूखे पत्ते की एक परत लगाकर मिट्टी की नमी का संरक्षण करें।
    • निंदाई: निराई और गुड़ाई बहुत महत्वपूर्ण है इससे उपज और मिट्टी की गुणवत्ता प्रभावित होती है। प्रारंभिक अवस्था में यदि खरपतवार हो तो निंदाई करना आवश्यक होता है। आमतौर पर एक वर्ष में दो से तीन निराई-गुड़ाई करना आवश्यक हैं।
    • सिंचाई: इस को सिंचाई की आवश्यकता नहीं है। परन्तु अधिक उत्पादन लेने के लिए शुष्क ऋतुओं में सिंचाई करना आवश्यक है। प्रत्येक कटाई के बाद एक सिंचाई अवश्य करें। फसल को सतह से 10 से 15 सेंटीमीटर ऊपर काटा जाता है। ग्रीष्म काल में 15 दिन के अंतर से सिंचाई करें।
    • कीट और रोगों का नियंत्रण: नियमित रूप से खेत की निगरानी करें और कीटों और रोगों के लिए उपयुक्त जैविक कीटनाशकों और कवकनाशी का उपयोग करें।

  • लेमनग्रास खेती से लाभ :
  1. लेमनग्रास के अद्वितीय स्वाद और सुगंध के कारण बाजार में इसकी डिमांड व्यापक रूप से कई उद्योगों में तेजी से बढ़ रही है। जो इसे किसानों के लिए एक लाभदायक फसल बनाती है।
  2. लेमनग्रास एक कम रखरखाव वाली फसल है, जिन किसानों के पास कम जमीन है वह औषधीय फसलों की खेती करके अन्य फसलों की खेती के तुलना मे अधिक लाभ कमा सकते है।
  3. औषधीय पौधों की खासियत है की इनमें खरपतवार और कीटों का प्रकोप कम होता है।
  4. लेमनग्रास एक सूखा प्रतिरोधी फसल है जो कम वर्षा वाले क्षेत्रों में जीवित रह सकती है। यह इसे शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में खेती के लिए उपयुक्त फसल बनाता है।
  5. लेमनग्रास में एक गहरी जड़ प्रणाली होती है जो मिट्टी की संरचना और उर्वरता में सुधार करने में मदद करती है। यह मिट्टी के कटाव को नियंत्रित करने और मिट्टी के क्षरण को कम करने में भी मदद करता है
  6. इसकी खेती एक बार करने से लगभग पांच साल तक लाभ मिलता है।


  • लेमन ग्रास के औषधीय फायदे :
  1. लेमन ग्रास का सेवन नींद की समस्याओं को दूर करने में मदद कर सकता है।
  2. इसका सेवन वजन घटाने में मदद कर सकता है और शरीर से विषाणु पदार्थों को मूत्र के माध्यम से बाहर निकाल सकता है।
  3. लेमन ग्रास का सेवन आपकी इम्यूनिटी को स्ट्रांग कर सकता है।
  4. इसका सेवन पाचन शक्ति को मजबूत कर सकता है और स्ट्रेस को दूर करने में मदद कर सकता है। इसका सेवन पेट की सूजन, पेट फूलना, पेट में ऐठन, अपच, कब्ज, दस्त, उल्टी और ऐथन जैसी पाचन संबंधित समस्याओं में मदद कर सकता है।
  5. लेमन ग्रास में कैल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम, फास्फोरस, प्रोटीन, विटामिन बी, विटामिन सी, विटामिन ए, कार्बोहाइड्रेट, मिनरल, पोटैशियम, सोडियम, जिंक, कॉपर आदि पाए जाते हैं।
  6. लेमन ग्रास तेल का इस्तेमाल गठिया या आर्थराइटिस की समस्या में राहत प्रदान कर सकता है।

क्या आप भी लेमन ग्रास की खेती करना चाहते हैं? अपना जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट करके बताएं। इसी तरह की अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ' कृषि ज्ञान' चैनल को अभी फॉलो करें। और अगर पोस्ट पसंद आयी तो इसे लाइक करके अपने किसान दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Question (FAQs)

Q: लेमन ग्रास कब लगाएं?

A: लेमन ग्रास की खेती भारत में मानसून के मौसम में जून से जुलाई तक और सर्दियों के मौसम में अक्टूबर से नवंबर के बीच में लगाया जा सकता है।

Q: लेमन ग्रास की खेती कैसे करें?

A: सबसे पहले सूखी और उपजाऊ मिटटी का चयन करें, फिर उसकी गहरी जुताई करें। यदि आप बीज से रोपण कर रहे हैं, तो रोपण से पहले उन्हें 24 घंटे के लिए पानी में भिगो दें। यदि आप गुच्छों से रोपण कर रहे हैं, तो उन्हें छोटे वर्गों में विभाजित करें। 15-20 सेमी गहरे और 15-20 सेमी चौड़े गड्ढे खोद कर उसमें बीज या पौध लगाएं।

Q: लेमनग्रास के लिए सबसे अच्छी मिट्टी कौन सी है?

A: लेमन ग्रास 5.5-7.5 की पीएच रेंज वाली अच्छे जल निकास वाली मिट्टी में उगाया जाता है। इसके अलावा रेतीली या दोमट मिट्टी में भी इसकी खेती कर सकते हैं।

Q: लेमनग्रास का उपयोग किस लिए किया जाता है?

A: लेमनग्रास का उपयोग पारंपरिक चिकित्सा में विभिन्न बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है। इसमें लेमनग्रास की पत्तियों और तेल में विभिन्न यौगिक होते हैं जो पाचन तंत्र में ऐंठन, पेट दर्द, उच्च रक्तचाप, ऐंठन, दर्द, उल्टी, खांसी, जोड़ों में दर्द (गठिया), बुखार, सामान्य सर्दी और थकावट के इलाज में उपयोगी होते हैं। इसका उपयोग कीटाणुओं को मारने और हल्के कसैले पदार्थ के रूप में भी किया जाता है।

Q: लेमनग्रास को कैसे पहचानें?

A: लेमनग्रास एक लंबी, बारहमासी घास है। जिसके लंबे, पतले, हरे पत्ते होते हैं, और इसकी पत्तियां ब्लेड जैसी तेज नोक की होती है। जब पत्तियों या तनों को मसलते हैं, तो वे एक सुगंधित तेल छोड़ते हैं जो नींबू की तरह गंध करता है।

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