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मसूर की खेती (lentil farming)
मसूर की खेती (Masur ki kheti) रबी के मौसम में की जाती है और यह प्रोटीन, कैल्शियम, आयरन जैसे महत्वपूर्ण पोषक तत्वों से भरपूर होती है। बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश इसके प्रमुख उत्पादक राज्य हैं। मसूर को मुख्य दाल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, जो गहरे संतरी और संतरी पीले रंग की होती है। यह दाल विभिन्न पकवानों में उपयोग होती है और कपड़ों व छपाई के लिए स्टार्च का स्रोत भी प्रदान करती है। गेहूं के आटे में मिलाकर इससे ब्रेड और केक भी बनाए जाते हैं। भारत, दुनिया का सबसे बड़ा मसूर उत्पादक देश है। यदि आप भी रबी के मौसम में मसूर की खेती करना चाहते हैं, तो उपयुक्त मिट्टी, बीज की मात्रा और खेत की तैयारी की विधियों की जानकारी प्राप्त करें।
मसूर की खेती कैसे करें? (How to cultivate lentils?)
- मिट्टी: मसूर की खेती लगभग सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन अच्छी पैदावार के लिए रेतीली दोमट और दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। यह सभी मिट्टियाँ उचित जल निकास वाली होती हैं। गीली और भारी मिट्टी में मसूर की फसल की वृद्धि प्रभावित हो सकती है, क्योंकि इन स्थितियों में जड़ों को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है।
- जलवायु: मसूर की खेती के लिए आदर्श तापमान 18°C से 20°C होता है। बुवाई के समय, यह तापमान फसल के स्वस्थ विकास के लिए महत्वपूर्ण है। फसल के विकास के लिए वर्षा की मात्रा 100 सेमी होनी चाहिए। कटाई के समय आदर्श तापमान 22°C से 24°C होना चाहिए। इस तापमान रेंज में फसल का पकाव अच्छा रहता है और दाने गुणवत्ता में सुधार होता है।
- बुवाई का समय: मसूर की बुवाई का उचित समय मध्य अक्टूबर से लेकर नवंबर के पहले सप्ताह तक होता है। इनके बीजों को पंक्तियों में 22 सेंटीमीटर की दूरी पर बोना चाहिए, और अगर बिजाई देर से की जा रही हो तो पंक्तियों की दूरी कम करके 20 सेंटीमीटर कर देनी चाहिए। बुवाई के लिए बीजों की गहराई 3-4 सेंटीमीटर होनी चाहिए। इसके अलावा, इसे हाथों से छिड़काव करके भी बोया जा सकता है।
- बीज की मात्रा: मसूर की बुवाई के लिए छोटे दाने वाली किस्मों के लिए लगभग 12 किलोग्राम प्रति एकड़ बीज की आवश्यकता होती है। और अगर बड़े दाने वाली किस्मों के लिए लगभग 16 किलोग्राम प्रति एकड़ बीजों की जरूरत होती है।
- उन्नत किस्में: मसूर की कई उन्नत किस्में है जैसे- जे.एल - 3, जे.एल - 1, आई. पी. एल 81, पंत एल 209, एल.4594, वी.एल. मसूर 4 और मल्लिका आदि उन्नत किस्में हैं।
- खेत की तैयारी: मसूर की खेती करने से पहले खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें। इसके बाद 2-3 बार देशी हल या कल्टीवेटर से जुताई करें। आखिरी जुताई के समय प्रति एकड़ खेत में 6-8 टन सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद मिलाएं। इसके अलावा, प्रति एकड़ खेत में 8 किलोग्राम नाइट्रोजन, 16 किलोग्राम फॉस्फेट और 8 किलोग्राम गंधक (सल्फर) मिलाएं। जुताई के बाद पाटा लगाकर खेत की मिट्टी को समतल और भुरभुरी बनाएं। इसके बाद खेत में 10 सेंटीमीटर की दूरी पर बीज की पंक्तियों में बुवाई करें। पंक्तियों के बीच 25 सेंटीमीटर की दूरी रखें।
- खाद एवं उर्वरक: मसूर की खेती के लिए खेत में खाद का उचित प्रबंधन आवश्यक है। प्रति एकड़ 12 किलोग्राम यूरिया, 50 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट, और 5 किलोग्राम नाइट्रोजन (12 किलोग्राम यूरिया) और 8 किलोग्राम फास्फोरस (50 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट) की आवश्यकता होती है। बुवाई के समय इन खादों को खेत में डालना चाहिए। इसके अलावा, बिजाई से पहले बीजों को राइजोबियम से उपचारित करना आवश्यक है। यदि बीजों का राइजोबियम से उपचार नहीं किया गया है, तो फास्फोरस की मात्रा को दोगुनी कर देना चाहिए। यह सुनिश्चित करने से फसल की गुणवत्ता और उत्पादन में वृद्धि होती है।
- सिंचाई प्रबंधन: मसूर की फसल आमतौर पर बारानी क्षेत्रों में उगाई जाती है, लेकिन सिंचित क्षेत्रों में इसे बेहतर तरीके से उगाया जा सकता है। बुवाई के 40 से 45 दिनों के अंतराल पर पहली सिंचाई और फली भरने की अवस्था पर दूसरी सिंचाई करनी चाहिए। इस फसल की महत्वपूर्ण अवस्था फूलों और फलियों का बनना होता है, इसलिए सही समय पर सिंचाई करना आवश्यक है। हालांकि, अत्यधिक सिंचाई से फसल उत्पादन पर विपरीत प्रभाव भी पड़ सकता है, इसलिए जल प्रबंधन का ध्यान रखना बेहद जरूरी है।
- खरपतवार प्रबंधन: खरपतवार नियंत्रण फसल की गुणवत्ता और उत्पादन पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है। उर्वरकों और पोषक तत्वों का सही उपयोग सुनिश्चित करने के लिए, विभिन्न नियंत्रण विधियाँ अपनाई जाती हैं। सस्य क्रियाओं में गर्मी में गहरी जुताई और फसल चक्र अपनाना शामिल हैं, जो मिट्टी की गुणवत्ता सुधारने में सहायक होते हैं। यांत्रिक विधियों में खुरपी से निराई-गुड़ाई प्रमुख है, जो खरपतवारों को प्रभावी ढंग से हटाती है। रासायनिक विधियों में प्री एमेर्जेंस हर्बीसाइड का छिड़काव करें और 15 से 25 दिन बाद छिड़काव खरपतवारों पर नियंत्रण के लिए पोस्ट एमेर्जेंस हर्बीसाइड का इस्तेमाल करें। खेत को बुआई के पहले 45 से 60 दिनों तक खरपतवार मुक्त रखना आवश्यक है, जिससे फसल की गुणवत्ता और उपज में सुधार होता है और उत्पादन लागत कम होती है।
- रोग एवं कीट: मसूर की खेती में मुख्य रोगों में कॉलर रॉट, जड़ सड़न, और गेरुई रोग शामिल हैं। कालर रॉट में पौधे का तना भूमि सतह के पास सड़ जाता है, जबकि जड़ सड़न में पौधों की जड़ें काली पड़कर सड़ जाती हैं। गेरुई रोग में पत्तियों और तनों पर भूरे या गुलाबी रंग के फफोले दिखाई देते हैं। मसूर की फसल में मुख्य रूप से माहु तथा फल छेदक कीट का प्रकोप होता है।
- कटाई: मसूर की फसल के पककर पीली पड़ने पर कटाई करें। पौधों के पककर सूख जाने पर दाने और फलियाँ टूटकर झड़ने से उपज में कमी आ जाती है। फसल को अच्छी प्रकार से सुखा कर बैलों के दाँए चलाकर मड़ाई करें और औसाई करके दाने को भूसे से अलग करें। कटाई सही समय पर करनी चाहिए। जब पौधे के पत्ते सूख जाएं और फलियां पक जाएं तब फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है। देरी करने से फलियां झड़नी शुरू हो जाती है। इसकी कटाई द्राती से करें। दानों को साफ करके धूप में सुखाकर 12 प्रतिशत नमी पर स्टोर कर लें।
- उपज: मसूर की फसल से 20-25 कु./हे. दाना और 30-40 कु./हे. भूसे की उपज प्राप्त होती है।
क्या आप मसूर की खेती करते हैं ? अगर हाँ तो अपना जवाब हमें कमेंट करके बताएं। ऐसी ही रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'कृषि ज्ञान' चैनल को अभी फॉलो करें। अगर आपको यह पोस्ट पसंद आयी तो इसे लाइक करके अपने किसान मित्रों के साथ साझा करें।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न | Frequently Asked Questions (FAQs)
Q: मसूर में कितने दिन में पानी देना चाहिए?
A: मसूर की खेती असिंचित और बरानी क्षेत्रों में सफलतापूर्वक की जा सकती हैं। यदि सर्दियों में एक बार वर्ष हो जाती है तो सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। सिंचाई की व्यवस्था हो ता हल्की प्रथम सिंचाई बुवाई के 40-45 दिन बाद तथा दूसरी सिंचाई फलियों में दाने भरते समय करें।
Q: मसूर की बुवाई कब की जाती है?
A: मसूर की बुवाई का उचित समय रबी के मौसम में होता है, जो कि मध्य अक्टूबर से लेकर नवंबर के पहले पखवाड़े तक होता है। बुवाई का सही समय फसल की वृद्धि और उपज पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है, इसलिए इसे समय पर करना चाहिए।
Q: मसूर की सबसे अच्छी किस्म कौन सी है?
A: मसूर की कई उन्नत किस्में है जैसे- जे.एल - 3, जे.एल - 1, आई. पी. एल 81, पंत एल 209, एल.4594, वी.एल. मसूर 4 और मल्लिका आदि उन्नत किस्में हैं।
Q: 1 एकड़ में मूंग कितना होना चाहिए?
A: मूंग की उपज कई कारकों पर निर्भर करती है, जैसे कि मिट्टी की गुणवत्ता, जलवायु, और कृषि प्रबंधन। सामान्यतः, 1 एकड़ में मूंग की फसल से प्राप्त उपज होती है: दाना 8 से 12 कुंटल और भूसा 12 से 15 कुंटल। उपज बढ़ाने के लिए सही खेत प्रबंधन, उर्वरक का प्रयोग, और सिंचाई का ध्यान रखना आवश्यक है। उचित जुताई, पोषक तत्वों का उपयोग, और सिंचाई की सही योजना से आप अपनी फसल की गुणवत्ता और मात्रा में सुधार कर सकते हैं।
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