पोस्ट विवरण
गुलाब के मुख्य रोग एवं उनका प्रबंधन (Main diseases of rose and their management)
गुलाब के फूल अपनी खूबसूरती और खुशबू के लिए मशहूर हैं। ये न केवल समारोहों को सजाने के लिए बल्कि अगरबत्ती, इत्र, साबुन, और सौंदर्य प्रसाधनों के निर्माण में भी उपयोगी है। गुलाब के पौधे साल भर फूल देते हैं और उनकी भंडारण क्षमता भी अच्छी होती है। हालांकि, गुलाब की खेती में कुछ प्रमुख रोगों का प्रकोप होता है, जो पौधों की वृद्धि और फूलों की गुणवत्ता पर असर डालते हैं। इन रोगों का सही समय पर नियंत्रण आवश्यक है। यहाँ हम गुलाब के प्रमुख रोगों और उनके प्रबंधन के उपायों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
गुलाब को कौन से रोग प्रभावित करते हैं? (Which diseases affect rose?)
आर्द्र गलन (Damping Off)
- यह रोग मुख्य रूप से नर्सरी के छोटे पौधों को प्रभावित करता है।
- प्रभावित पौधों का तना काला हो जाता है और सड़ने लगता है।
- पौधे जल्दी मर सकते हैं और फूलों का विकास रुक जाता है।
- यह मृदा जनित कवक रोग पिथियम, फाइटोफ्थोरा, और राइजोक्टोनिया प्रजातियों द्वारा होता है। लक्षण बीज सड़न और पौध सड़न के रूप में प्रकट होते हैं और संक्रमित पौधे जमीन के ठीक ऊपर से सड़कर गिर जाते हैं।
- नर्सरी में इसका प्रभाव 90% तक हो सकता है।
नियंत्रण:
- बुवाई से पहले प्रति किलोग्राम बीज को 3 ग्राम थायरम से उपचारित करें। यह फफूंद और बैक्टीरिया से बचाव करता है।
- पौधों को उचित सिंचाई के साथ तनाव मुक्त रखें और जलभराव से बचें। अत्यधिक या कम पानी देने से पौधे बीमारियों के प्रति संवेदनशील हो सकते हैं।
- संक्रमित पौधों के हिस्सों को हटा कर नष्ट करें, सफाई उपकरणों को स्वच्छ रखें, और स्वच्छ बढ़ते वातावरण को बनाए रखें।
- पौधों को स्वस्थ विकास के लिए छंटाई करें। अनुशंसित प्रथाओं का पालन करें और अत्यधिक छंटाई से बचें।
रतुआ रोग (Rust Disease):
- यह गुलाब की एक आम समस्या है, जिससे पौधों की पत्तियों, तनों और फूलों पर असर पड़ता है।
- यह रोग पत्तियों के नीचे छोटे, पीले या नारंगी रंग के दाने के रूप में शुरू होता है।
- पत्तियों की ऊपरी सतह पर पीले धब्बे दिखाई देते हैं, जिससे संक्रमित पत्तियां मुरझा कर गिरने लगती हैं।
- तनों और फूलों पर भी नारंगी रंग के दाने बन सकते हैं, जिससे सम्पूर्ण पौधे का विकास अवरुद्ध हो जाता है।
नियंत्रण:
- संक्रमित पौधों के हिस्सों को हटाना और नष्ट करना, सफाई उपकरणों को स्वच्छ रखना और स्वच्छ बढ़ते वातावरण को बनाए रखना।
- प्रत्येक मौसम में एक विशेष क्षेत्र में विभिन्न फसलें लगाकर मिट्टी में रोग पैदा करने वाले जीवों के निर्माण को कम करना।
- रोग प्रतिरोधी किस्मों को लगाने से रोगों की घटनाओं और गंभीरता को कम करने में मदद मिल सकती है।
- अझॉक्सीस्ट्रोबिन 18.2% + डिफेन्कोनाझोल 11.4% SC (सिम्पैक्ट-देहात) 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी।
- हेक्साकोनाज़ोल 4% + ज़िनेब 68% WP दवा को 400 ग्राम प्रति एकड़ छिड़काव करें।
- कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% WP दवा की 500 ग्राम मात्रा को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ खेत में स्प्रे करें।
पत्ती धब्बा रोग (Leaf Spot):
- तनों, पत्तियों और फूलों पर काले और बैंगनी रंग के धब्बे बनना।
- पत्तियां पीली होकर झड़ने लगती हैं।
- पत्तियों पर छोटे, गोल, हल्के से गहरे भूरे रंग के धब्बे, जो कत्थई रंग के घेरे से घिरे रहते हैं।
- धब्बे आपस में मिलकर अनियमित आकार का हो जाते हैं।
- पौधों की उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
नियंत्रण:
- प्रति लीटर पानी में 2 मिलीलीटर मैंकोज़ेब मिलाकर 15 दिनों के अंतराल पर 2 से 3 बार छिड़काव करें।
- DeM-45 (मैंकोजेब 75% WP) को प्रति एकड़ 600-800 ग्राम की मात्रा में छिड़काव करें।
- प्रभावित पत्तियों और तनों को हटा दें और रोग मुक्त पौधों के साथ संक्रमित पौधों को अलग रखें।
- स्वच्छ और प्रमाणित बीजों का उपयोग करें।
- 2 ग्राम थायरम + 1 ग्राम बाविस्टीन प्रति किलो बीज के हिसाब से बीज उपचार करें।
- थियोफानेट मिथाइल 70% डब्ल्यू /डब्ल्यू दवा को 286 ग्राम प्रति एकड़ की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।
चूर्णिल आसिता (Powdery Mildew):
- शीतल और शुष्क मौसम में उत्पन्न होता है।
- पौधों के तनों, पत्तियों और फूलों पर सफेद रंग का पाउडर जैसा परत बन जाता है।
- रोग बढ़ने पर कलियां खिलती नहीं हैं।
- पत्तियों पर सफेद से लेकर हल्के भूरे धब्बे बनते हैं, जो धीरे-धीरे बढ़कर कई पत्तियों को ढक लेते हैं।
- तनों और कलियों पर भी रोग होने पर फूल नहीं खिलते और पत्तियां झड़ने लगती हैं।
नियंत्रण:
- फसल चक्र अपनाएं; हर मौसम में एक ही स्थान पर करेला न लगाएं।
- संक्रमित पत्तियों और तनों को हटा दें और स्वस्थ पौधों को प्रभावित हिस्सों से दूर रखें।
- ज्यादा सिंचाई से बचें और संभव हो तो ड्रिप सिंचाई का उपयोग करें।
- DeM-45 (मैंकोजेब 75% WP) को प्रति एकड़ 600-800 ग्राम की मात्रा में छिड़काव करें।
- 1 मिलीलीटर हेक्साकोनाजोल 5% या 3 ग्राम सल्फर 80% WP को 12 से 15 दिनों के अंतराल पर 2 से 3 बार छिड़काव करें।
- पौधों के बीच पर्याप्त दूरी बनाए रखें ताकि हवा का अच्छा आवागमन हो सके और फसल को भीगने से बचें।
- टेबुकोनाज़ोल 6.7% + कैप्टन 26.9% एससी दवा को 400 मिली प्रति एकड़ छिड़काव करें।
क्या आप भी गुलाब की फसल में रोगों से परेशान हैं? अपना जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट करके बताएं। इसी तरह की अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'किसान डॉक्टर' चैनल को अभी फॉलो करें। और अगर पोस्ट पसंद आयी तो इसे लाइक करके अपने किसान दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)
Q: गुलाब की खेती कौन से महीने में की जाती है?
A: गुलाब के पौधे ठंड के प्रति सहनशील होते हैं इसलिए इसकी खेती आमतौर पर सर्दियों के मौसम में की जाती है। खेती का सटीक महीना विशिष्ट स्थान और जलवायु परिस्थितियों के आधार पर भिन्न हो सकता है। सामान्य तौर पर इसकी खेती अक्टूबर से मार्च महीने के बीच की जाती है।
Q: गुलाब की पैदावार कैसे बढ़ाये?
A: गुलाब की पैदावार बढ़ाने के लिए पौधों को उचित पोषण, पानी और धूप प्रदान करना आवश्यक है। नियमित रूप से छंटाई और मृत फूलों को हटाने से भी नई वृद्धि को प्रोत्साहित करने और उपज बढ़ाने में मदद मिल सकती है। इसके अतिरिक्त, जैविक उर्वरकों और कीट नियंत्रण विधियों का उपयोग करने से पौधों के स्वास्थ्य को बनाए रखने और उनकी उत्पादकता में सुधार करने में मदद मिल सकती है।
Q: गुलाब के पौधे की आयु कितनी होती है?
A: भारत में गुलाब के पौधे का जीवनकाल विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है, जिनमें इसकी किस्में और रखरखाव के तरीके शामिल हैं। आम तौर पर, अधिकांश गुलाब के पौधे उचित देखभाल और रखरखाव के साथ 5-15 साल या उससे अधिक समय तक जीवित रह सकते हैं। हालांकि, कुछ किस्मों का जीवनकाल कम हो सकता है, जबकि कुछ ऐसी किस्में भी हैं जो 35 वर्ष तक जीवित रह सकती हैं।
जारी रखने के लिए कृपया लॉगिन करें
फसल चिकित्सक से मुफ़्त सलाह पाएँ