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24 May
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लीची के प्रमुख रोगों एवं कीटों का प्रबंधन | Major Diseases and Pests Management in Litchi

लीची में पत्ती लपेटक कीट, छाल खाने वाले कीट, तना छेदक कीट, फल छेदक कीट, धूसर घुन, सेमीलूपर कीट, लीची बीज छेदक कीट आदि का प्रकोप होता है। रोगों की बात करें तो, फलों का फटना, एन्थ्रेक्नोज, पाउडरी मिल्ड्यू जैसे रोगों के प्रति लीची के पौधे अधिक संवेदनशील होते हैं। इन रोगों एवं कीटों के कारण लाल रसीले लीची के फलों की गुणवत्ता कम हो जाती है। जिससे इसकी बिक्री पर किसानों को उचित मुनाफा नहीं मिल पाता है। इन कीटों पर नियंत्रण के लिए कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा एकीकृत कीट प्रबंधन तकनीकों जैसे सांस्कृतिक विधि से नियंत्रण, जैविक और रासायनिक विधि से नियंत्रण की सलाह दी जाती है। आज के इस पोएट के माध्यम से हम लीची के पौधों में लगने वाले कुछ प्रमुख रोगों एवं कीटों की पहचान, इनसे होने वाले नुकसान एवं नियंत्रण की विस्तृत जानकारी प्राप्त करेंगे।

लीची के पौधों में लगने वाले कुछ प्रमुख कीट | Major pests affecting the Litchi Plants

स्टोन बोरर कीट की पहचान एवं प्रकोप के लक्षण: मादा कीट पत्तियों की निचली सतह या लीची के फलों में अंडे देती हैं। अंडों से निकलने वाला लार्वा सफेद रंग का होता है। छिलकों को डंठल के पास से हटाने पर यह कीट देखे जा सकते हैं। स्टोन बोरर कीट फलों को अंदर से खाते हैं। प्रभावित फलों के डंठल के पास काले रंग के धब्बे नजर आते हैं।

स्टोन बोरर कीट पर नियंत्रण के तरीके

  • जैविक विधि से स्टोन बोरर कीट पर नियंत्रण के लिए प्रति लीटर पानी में 5 मिलीलीटर नीम का तेल मिला कर छिड़काव करें।
  • वृक्षों में मंजर आने से ले कर फलों का लौंग के आकार का होने तक नीम के तेल का छिड़काव कर सकते हैं।
  • प्रति एकड़ खेत में 180-200 मिलीलीटर थियाक्लोप्रिड 21.7% एससी (बायर अलांटो) का प्रयोग करें।

लीची विभिल कीट की पहचान एवं प्रकोप के लक्षण: इस कीट को धूसर घुन के नाम से भी जाना जाता है। यह पत्तियों को खाने के साथ शाखाओं और फूलों पर भी आक्रमण करते हैं। कीट का लार्वा पेड़ के नीचे मिट्टी में रहते हैं।

लीची विभिल कीट पर नियंत्रण के तरीके

  • इस कीट के लार्वा को नष्ट करने के लिए बाग में जुताई करें।
  • कीट से प्रभावित शाखाओं एवं टहनियों को काट कर नष्ट कर दें।
  • इस कीट पर नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ खेत में 250-400 मिलीलीटर क्लोरीपाइरीपोस 50% + साइपरमेथ्रिन 5% (देहात सी स्क्वायर, लेथल सुपर 505) मिला कर प्रयोग करें।

तना छेदक कीट की पहचान एवं प्रकोप के लक्षण: तना छेदक कीट से लीची की फसल को सबसे अधिक नुकसान होता है। यह कीट पत्तियों की निचली सतह या लीची के फलों में अंडे देती हैं। इस कीट का लार्वा दूध की तरह सफेद रंग का होता है। लार्वा का सिर हल्के भूरे रंग होता है। इस कीट का का शरीर पतला होता है। अंडों से निकलने के बाद इस कीट का लार्वा फलों में छेद कर के गुदों को खाता है। प्रभावित फलों का पूर्ण विकास नहीं हो पाता है। इस कीट से प्रभावित फलों के डंठल के पास काले धब्बे देखे जा सकते हैं।

तना छेदक कीट पर नियंत्रण के तरीके

  • कीट को फैलने से रोकने के लिए प्रभावित शाखाओं को वृक्ष से तोड़कर अलग करें।
  • जैविक तरीके से नियंत्रण के लिए प्रति लीटर पानी में 5 मिलीलीटर नीम का तेल मिला कर छिड़काव करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 54-88 ग्राम इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एस.जी. (देहात इल्लीगो) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 400 मिलीलीटर लैम्ब्डा साइहलोथ्रिन 5% इसी (सिंजेंटा कराटे) का प्रयोग करें।

पत्ती लपेटक कीट की पहचान एवं प्रकोप के लक्षण

इस कीट की लंबाई करीब 10 से 15 मिलीमीटर होती है। यह कीट हरे रंग के होते हैं। वर्षा के मौसम में इस कीट का प्रकोप बढ़ जाता है। दिसंबर से फरवरी महीने में इस कीट का प्रकोप सबसे अधिक होता है। नुकसान की बात करें तो, मादा कीट कोमल पत्तियों की निचली सतह पर अंडे देती हैं।अंडों से लार्वा निकलने में 2 से 8 दिनों का समय लगता है। यह कीट लीची की पत्तियों को मोड़ने लगते हैं। इस कीट का प्रकोप बढ़ने पर पत्तियां मुरझाने लगती हैं। प्रभावित वृक्षों में मंजर काफी कम आते हैं। परिणाम स्वरुप लीची की पैदावार में कमी आती है।

पत्ती लपेटक कीट पर नियंत्रण के तरीके

  • जिन पत्तियों पर अंडे एवं लार्वा दिखे उन्हें तोड़ कर नष्ट कर देना चाहिए।
  • कीट पर नियंत्रण के लिए बाग में फेरोमोन ट्रैप लगाएं।
  • जैविक नियंत्रण के लिए प्रति पेड़ में 4 किलोग्राम अरंडी एवं 1 किलोग्राम नीम की खली का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 60-150 मिलीलीटर क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 18.5% एससी (देहात अटैक) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 180-200 मिलीलीटर थियाक्लोप्रिड 21.7% एससी (बायर अलांटो) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 400 मिलीलीटर लैम्ब्डा साइहलोथ्रिन 5% इसी (सिंजेंटा कराटे) का प्रयोग करें।

लूपर कीट की पहचान एवं प्रकोप के लक्षण

यह कीट हरे एवं गहरे भूरे रंग के होते हैं। इनकी शारीरिक लंबाई 25 से 55 मिलीमीटर तक हो सकती है। जुलाई से दिसंबर महीने में इस कीट का प्रकोप बना रहता है। सितंबर-अक्टूबर महीने में लूपर कीट का प्रकोप अपने चरम पर होता है। कीट पौधों की पत्तियों को नुकसान पहुंचाते हैं। जिससे पत्तियां सूखने लगती हैं। इसके साथ यह नए अंकुरों को भी नष्ट करते हैं।

लूपर कीट पर नियंत्रण के तरीके

  • प्रति एकड़ खेत में 100 ग्राम एसिटामिप्रिड + बायफेन्थ्रिन 25% डब्ल्यूजी (स्वाल स्पर्टो) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 60 ग्राम फ्लुबेंडियामाइड 20% डब्ल्यूजी (पीआई फ्लूटन, टाटा रैलिस तकुमी) का प्रयोग करें।

लीची के पौधों में लगने वाले कुछ प्रमुख रोग | Major disease affecting the Litchi Plants

फलों के फटने का कारण: पौधों में बोरान की कमी होने पर फल फटने लगते हैं। पानी की कमी होने पर भी फलों के फटने की समस्या उत्पन्न हो सकती है। वातावरण में अधिक गर्मी भी फलों के फटने के कारणों में शामिल है।

फलों को फटने से बचाने के तरीके

  • फलों को फटने से बचाने के लिए जब फल मटर के दाने के आकार के हो जाएं तब 1 सप्ताह के अंतराल पर नियमित रूप से सिंचाई करें।
  • बोरोन की पूर्ति के लिए प्रति लीटर पानी में 5 ग्राम 'देहात न्यूट्रीवन कैल्शियम नाइट्रेट विथ बोरोन' का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 250 ग्राम डिसोडियम ऑक्टाबोरेट टेट्राहाइड्रेट (देहात न्यूट्रीवन डीओटी) का प्रयोग करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 45 मिलीलीटर नेप्थलीन एसिटिक एसिड 4.5 एसएल (बायर प्लानोफिक्स) का प्रयोग कर सकते हैं।

एन्थ्रेक्नोज रोग से होने वाले नुकसान: इस रोग के होने का मुख्य कारण कवक का प्रकोप है। ये कवक मिट्टी में काफी लम्बे समय तक जीवित रहते हैं। यह रोग पानी के छींटे, हवा, कीड़े और दूषित उपकरण या उपकरण से तेजी से फैलता है। इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों, तनों और फलियों पर गहरे, धंसे हुए धब्बे उभरने लगते हैं। रोग बढ़ने के साथ धब्बों का आकार भी बढ़ने लगता है। पत्तियां पूरी तरह भूरी हो कर सूख जाती हैं। इस रोग का प्रकोप अधिक होने पर फलियों पर भी धब्बे हो जाते हैं जिससे दानें सड़ सकते हैं।

एन्थ्रेक्नोज रोग पर नियंत्रण के तरीके

  • इस रोग से बचने के लिए फसल चक्र अपनाएं।
  • अत्यधिक सिंचाई या जल जमाव की स्थिति से बचने के लिए जल निकासी की उचित व्यवस्था करें।
  • संक्रमित पौधों के मलबे को खेत से बाहर निकाल कर नष्ट कर दें।
  • प्रति एकड़ खेत में 200 लीटर पानी में 300 मिलीलीटर एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.3% एस.सी. (देहात एजीटॉप) मिला कर छिड़काव करें।
  • प्रति एकड़ खेत में 450 ग्राम कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% डब्लूपी (देहात साबू) का प्रयोग करें।

आपके लीची के पौधों में किस रोग या कीट का प्रकोप अधिक होता है? अपने जवाब हमें कमेंट के द्वारा बताएं। फसलों को विभिन्न रोगों एवं कीटों से बचाने की अधिक जानकारी के लिए 'किसान डॉक्टर' चैनल को तुरंत फॉलो करें। इसके साथ ही इस पोस्ट को लाइक एवं शेयर करके आप इस जानकारी को अन्य किसानों तक पहुंचा सकते हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Question (FAQs)

Q: कीट और रोग प्रबंधन कैसे किया जाता है?

A: कृषि में कीट और रोग प्रबंधन विभिन्न तरीकों जैसे सांस्कृतिक, जैविक और रासायनिक नियंत्रण के माध्यम से किया जाता है। सांस्कृतिक नियंत्रण में इंटरक्रॉपिंग एवं फसल चक्र अपना कर, रासायनिक नियंत्रण में दवाओं के छिड़काव के द्वारा कीटों और रोगों पर नियंत्रण कर सकते हैं।

Q: लीची के पौधों की देखभाल कैसे करें?

A: लीची के पौधों से अधिक मात्रा में फल प्राप्त करने के लिए उचित देखभाल की आवश्यकता है। पौधों में सही समय पर सिंचाई, उचित मात्रा में पोषक तत्वों का प्रयोग, पौधों क छंटाई, कीट एवं रोग प्रबंधन, सही समय पर फलों की तुड़ाई, आदि कर के हम बेहतर फलन प्राप्त कर सकते हैं।

Q: लीची का पेड़ कितने साल बाद फल देता है?

A: लीची के पेड़ आमतौर पर रोपाई के 5-6 साल बाद फल देना शुरू करते हैं। हालांकि, पेड़ को फल देने में लगने वाला सही समय विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है। जिसमें जलवायु, तापमान, पोषण प्रबंधन, आदि शामिल है।

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