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24 July
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कुल्थी के प्रमुख रोग और उनका प्रबंधन (Major diseases of horse gram and their management)


कुल्थी दाल, जिसे हॉर्स ग्राम के नाम से भी जाना जाता है, भारत में एक महत्वपूर्ण दलहनी फसल है। यह प्रतिकूल जलवायु में भी उगाई जा सकती है और प्रोटीन, खनिज, और विटामिन का समृद्ध स्रोत है। हालांकि, फ्यूजेरियम विल्ट, जड़ गलन, चूर्णी फफूंदी, झुलसा रोग, रूट नॉट निमेटोड और एन्थ्रेक्नोज जैसे रोग इसकी पैदावार और गुणवत्ता को प्रभावित कर सकते हैं। सही समय पर रोगों की पहचान और उचित प्रबंधन तकनीकों को अपनाकर फसल की पैदावार और गुणवत्ता बनाए रखी जा सकती है।

कुल्थी के प्रमुख रोग (Major diseases of horse gram)

उकठा रोग (Fusarium Wilt):

  • खेत में छोटे-छोटे हिस्सों में बीमारी के लक्षण दिखाई देते हैं, जो धीरे-धीरे पूरे खेत में फैल जाते हैं।
  • पौधे की पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और सूख जाती हैं। पूरा पौधा मुरझा कर सूख जाता है।
  • ग्रसित पौधे की जड़ के पास काली संरचना दिखाई पड़ती है। जड़ों में काले धब्बे दिखाई देते हैं।
  • पौधे का विकास रुक जाता है और अंततः पौधा सूख जाता है।

नियंत्रण:

  • हर साल अलग-अलग फसलों की खेती करें ताकि फफूंद और अन्य रोगाणुओं का जीवन चक्र टूट सके।
  • खेत की मिट्टी को पॉलीथिन शीट से ढककर 4-6 सप्ताह तक धूप में रखें। इससे मिट्टी में मौजूद फफूंद और रोगाणुओं का नाश होता है।
  • साबु (कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% WP) दवा को प्रति एकड़ 300-600 ग्राम की मात्रा में छिड़काव करें।
  • एक्सोटिक गोल्ड (मेटालैक्सिल 8% + मैंकोज़ेब 64% WP) दवा को 1000 ग्राम प्रति एकड़ खेत में इस्तेमाल करें।

जड़ गलन (Root Rot):

  • रोग ग्रस्त पौधे सूख कर मर जाते हैं।
  • जड़ और तने के जोड़ पर सफेद फफूंद दिखाई देता है।
  • संक्रमण बढ़ने पर जड़ें सड़ कर काली पड़ती है।
  • पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और पौधा कमजोर हो जाता है।
  • पौधे सूख कर मर जाते हैं।

नियंत्रण:

  • गर्मी में गहरी जुताई करें और सही समय पर बुवाई करनी चाहिए।
  • खेत में अत्यधिक पानी जमा नहीं करना चाहिए; उचित जल निकासी की व्यवस्था की जानी चाहिए।
  • कुल्थी की रोग प्रतिरोधी किस्मों का चुनाव करें।
  • साबु (कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% WP) दवा को प्रति एकड़ 300-600 ग्राम की मात्रा में छिड़काव करें।
  • खेत में नमी की उचित प्रबंधन करें और संक्रमित पौधों को निकाल दें।
  • जैविक कवकनाशी: ट्राइकोडर्मा विरिडी जैसे जैविक कवकनाशी का उपयोग करें।

लीफ स्पॉट रोग (Leaf Spot Disease)

  • यह रोग अधिकतर गर्म और आर्द्र मौसम में होता है।
  • पत्तियों पर गोल या अंडाकार धब्बे दिखाई देते हैं जो हल्के भूरे रंग के होते हैं।
  • धब्बे बाद में भूरे या काले हो जाते हैं और धंस जाते हैं। धब्बों के चारों ओर पीला गोलाकार होता है।
  • गंभीर मामलों में, पत्तियां सूख जाती हैं और गिरने लगती है, जिससे पौधे का विकास रुक जाता है।

नियंत्रण:

  • कुल्थी के खेत को स्वच्छ बनाए रखें और संक्रमित पौधों के मलबे को हटाते रहे।
  • कुल्थी की रोग प्रतिरोधी किस्मों का रोपण करें ताकि इस रोग के प्रसार को रोका जा सके।
  • कई सालों तक एक ही जगह पर कुल्थी की फसल नहीं लगाना चाहिए फसल चक्र अपनाना चाहिए।
  • खेत में अत्यधिक पानी देने से बचें और जल निकासी की उचित व्यवस्था करें।
  • कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% डब्लू.पी दवा को 500 से 600 ग्राम प्रति एकड़ की दर से इस्तेमाल करें।
  • एज़ोक्सीस्ट्रोबिन 4.8% w/w + क्लोरोथालोनिल 40% w/w SC दवा को 1.2 किग्रा प्रति एकड़ इस्तेमाल करें।
  • एज़ोक्सीस्ट्रोबिन 18.2% + डाइफेनोकोनाज़ोल 11.4% w/w SC दवा को 200 एमएल प्रति एकड़ छिड़काव करें।
  • DeM-45 (मैन्कोजेब 75% WP) दवा को प्रति एकड़ 600-800 ग्राम की मात्रा में छिड़काव करें।

झुलसा रोग (Blight Disease)

  • पत्तियों पर पीले और भूरे रंग के धब्बे बनने लगते हैं। धीरे-धीरे धब्बे पीले या कत्थई रंग की धारियों में बदलने लगते हैं।
  • जिन पत्तियों पर संक्रमण हुआ है, वे सूख कर मुरझा जाती हैं।
  • कुल्थी के तनों पर भूरे और काले रंग के धब्बे नजर आते हैं।
  • मानसून के मौसम में रोग का प्रकोप बढ़ता है। पत्तियों के किनारे जलने के लक्षण दिखते हैं।

नियंत्रण:

  • बीजों को रोपाई करने से पहले फफूंदनाशी से उपचारित जरूर करें।
  • फसल को जलभराव से बचें और खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था बनाए रखें। इस रोग के लक्षण दीखते ही खेत से पानी निकाल दें।
  • रोपाई से पहले फसल के अवशेषों को हटाए और संक्रमित हिस्से को जला दें।
  • पायराक्लोस्ट्रोबिन 10% + फिप्रोनिल 5% एस.सी दवा को एक एकड़ में 400 एम.एल स्प्रे करें।
  • डिफ़ेनोकोनाज़ोल 25% ईसी दवा को 150 एम.एल प्रति एकड़ उपयोग करके झुलसा रोग को नियंत्रित किया जा सकता है।
  • कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% डब्लू.पी दवा को 500 से 600 ग्राम प्रति एकड़ की दर से इस्तेमाल करें।

पाउडरी मिल्ड्यू (Powdery Mildew)

  • इस रोग के कारण पौधों की पत्तियों, टहनियों, और फूलों पर सफेद, पाउडर जैसा आवरण बन जाता है। यह सफेद आवरण बाद में भूरे रंग का हो जाता है।
  • प्रभावित हिस्से में विकृति (deformation) और गिरावट (deterioration) देखी जाती है। पत्तियां, तने और फलियां विकृत हो जाती हैं।
  • रोग बढ़ने पर पत्तियां झड़ने लगती है, जिससे पौधे का विकास रुक जाता है और फलियां सही से विकसित नहीं हो पाती।

नियंत्रण:

  • हर साल अलग-अलग फसलों की खेती करें ताकि फफूंद और अन्य रोगाणुओं का जीवन चक्र टूट सके।
  • पौधों के बीच उचित वायु संचरण बनाए रखें और अत्यधिक नमी से बचें।
  • साबु (कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% WP) दवा को प्रति एकड़ 300-600 ग्राम की मात्रा में छिड़काव करें।
  • हेक्साकोनाज़ोल 5% एससी दवा को आम के पेड़ों पर 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी में अच्छे से मिलाकर छिड़काव करें।

तना गलन (Stem Rot):

  • इस रोग में पौधे के तने में गलन का लक्षण देखा जाता है, जिसके कारण पौधे कमजोर हो जाते हैं और गिर सकते हैं।
  • यह रोग ज्यादातर बरसाती इलाकों में होता है, जहां जलभराव अधिक होता है।
  • यह मृदा जनित रोग होता है और इसके लक्षण कॉलर भाग पर दिखाई देते हैं।
  • पौधे के कॉलर हिस्से पर भूरे रंग के घाव बनते हैं। पौधे पीले पड़ने लगते हैं और अंततः जमीन पर गिर जाते हैं।

नियंत्रण:

  • फसल को जलभराव से बचें और खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था बनाए रखें।
  • कुल्थी में रोग नियंत्रण के लिए फसल चक्र अपनाएं, विभिन्न फसलों को बदल-बदल कर लगाएं।
  • संक्रमित हिस्से को जला दें और खेत में उचित साफ़ सफाई रखें।
  • रोग प्रतिरोधी किस्मों का ही चुनाव करें।
  • कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% डब्लू.पी दवा को 500 से 600 ग्राम प्रति एकड़ की दर से इस्तेमाल करें।
  • साबु (कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% WP) दवा को प्रति एकड़ 300-600 ग्राम की मात्रा में छिड़काव करें।

क्या आप भी कुल्थी की फसल में रोगों से परेशान हैं? अपना जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट करके बताएं। इसी तरह की अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए 'किसान डॉक्टर' चैनल को अभी फॉलो करें। और अगर पोस्ट पसंद आयी तो इसे लाइक करके अपने किसान दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Questions (FAQs)

Q: कुल्थी कब बोई जाती है?

A: कुल्थी की बुआई का उचित समय जुलाई से अगस्त तक होता है।

Q: कुल्थी की खेती कैसे की जाती है?

A: कुल्थी की खेती के लिए पहले खेत की अच्छी तरह से जुताई करें। बुआई से पहले बीजों पर फफूंद नाशक दवा का छिड़काव करना आवश्यक है। कुल्थी की बुआई जुलाई से अगस्त के बीच करनी चाहिए। इन प्रक्रियाओं को अपनाकर आप कुल्थी की सफल खेती कर सकते हैं।

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