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11 July
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ज्वार के प्रमुख रोग और उनका प्रबंधन (Major diseases of jowar and their management)


ज्वार भारत में एक महत्वपूर्ण अनाज की फसल है। इसकी खेती विभिन्न मिटटी और जलवायु परिस्थितियों में की जा सकती है, लेकिन ज्वार कई रोगों के लिए संवेदनशील है इन रोगों का उचित प्रबंधन न किया जाए तो उपज में भारी कमी आ सकती है।

कैसे करें ज्वार में रोगों का नियंत्रण? (How to control diseases in sorghum?)

चारकोल रॉट (Charcoal Rot) : चारकोल रॉट एक फंफूद जनित रोग है। इससे संक्रमित पौधों के तने का मध्य भाग सूख जाता है और जड़ को फाड़कर देखने पर काले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। रोग से ग्रसित पौधे कमजोर हो जाते हैं और हल्की हवा चलने पर भी टूटकर गिर जाते हैं।

नियंत्रण :

  • यह एक भूमि जनित रोग है, इसलिए फसल चक्र अपनाना महत्वपूर्ण है। इससे मिट्टी में रोगजनक की संख्या कम हो जाती है और रोग का प्रकोप कम होता है।
  • जलभराव से बचें और संतुलित सिंचाई करें ताकि मिट्टी का अत्यधिक गीलापन रोग को बढ़ावा न दे।
  • ट्राइकोडर्मा जैसे जैविक नियंत्रकों का उपयोग करें, जो फंफूद जनित रोगों के नियंत्रण में सहायक होते हैं।

एन्थ्रकनोज (Anthracnose) : यह रोग ज्वार की पत्तियों, तनों और दानें को प्रभावित करता है। इस रोग के धब्बे गोल और अण्डाकार होते हैं, जो किनारे से रंगीन और बीच में सफेद होते हैं।

नियंत्रण :

  • रोगग्रस्त बीज और पत्तियों से रोग फैलता है, इसलिए फसल अवशेषों और खरपतवार को नष्ट करना महत्वपूर्ण है।
  • इस रोग के नियंत्रण के लिए फसल चक्र अपनाना भी फायदेमंद है।
  • रोग प्रतिरोधी किस्मों का चुनाव करें जैसे सी.एस.एच.-1 और सी.एस.एच.-2 ।
  • बुवाई के पहले बीजों को उपचारित करें थाईरम 3.0 ग्राम/कि.ग्रा बीज में मिला कर या फिर कार्बानडिजिम 1.5 ग्राम/कि.ग्रा बीज में मिला कर उपचारित करें।
  • खड़ी फसल पर मेनकोजेब 3.0 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।

अर्गट (Ergot) : इस रोग के लक्षण ज्वार में भुट्टे निकलते समय दिखाई पड़ते हैं। इससे ग्रसित पौधों में गहरे भूरे रंग के सींग के समान संरचना दिखाई देती है।

नियंत्रण :

  • यह रोग भी फसल अवशेषों से फैलता है, इसलिए इन्हें नष्ट करना आवश्यक है।
  • फसल चक्र अपनाने से रोगजनक का जीवनचक्र टूट जाता है।
  • हमेशा प्रतिरोधी किस्में बोयें जैसे सी.एस.एच.-1, एस.पी.एच-1, और एस.पी.वी-191।
  • स्क्लेरोशिया मुक्त बीज बोयें। बीज को 20 प्रतिशत नमक के घोल में डुबाकर उपचारित करें।
  • फसल में रोग के लक्षण दिखाई देने पर 250 लीटर पानी में 0.2 प्रतिशत मैंकोज़ेब मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें।

ग्रेन स्मट (Grain Smut) : यह रोग फसल में दाने भरने की अवस्था में देखा जाता है। जिन पौधों पर संक्रमण होता है उनके भुट्टों में काला चूर्ण भर जाता है, जिसे तोड़ने पर चूर्ण दिखता है।

नियंत्रण :

  • फसल चक्र अपनाने से रोग का प्रकोप कम होता है।
  • फसल अवशेषों और खरपतवार को नष्ट करना आवश्यक है।
  • 3.0 ग्राम/कि.ग्रा बीज थाईरम या 1.5 ग्राम/कि.ग्रा बीज कार्बेन्डाजिम से बीज उपचारित करें।
  • खड़ी फसल में 250 ग्राम मैंकोज़ेब 3.0 ग्राम/लीटर की दर से छिड़काव करें।

डाऊनी मिल्डयू (Downy Mildew) : इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियां हल्के पीले रंग की होती हैं और इन  पत्तियों पर बहुत ही छोटे धब्बे बनते हैं। जिससे पौधे कमजोर हो जाते हैं और संक्रमण के 5-6 सप्ताह बाद पत्तियों पर सफेद धारियां दिखाई देती हैं। बाद में पत्तियां फटकर चिथड़े हो जाती हैं और पौधों की बढ़वार रूक जाती है।

नियंत्रण :

  • 4.0 ग्राम/कि.ग्रा बीज मेटालेक्सल से बीज उपचारित करें।
  • मैंकोज़ेब 3.0 ग्राम/लीटर की दर से छिड़काव करें।
  • रोग प्रतिरोधक किस्मों का चयन करें।
  • फसल चक्र अपनाने से रोगजनक का जीवनचक्र टूट जाता है।
  • रोगग्रस्त पौधों के अवशेषों को नष्ट करना जरूरी है।

लीफ रस्ट (Leaf Rust) : यह रोग ज्वार में फसल की हर अवस्था को प्रभावित कर सकता है। यह रोग पौधे की निचली पत्तियों के किनारों से शुरू होता है, धब्बे निचली सतह पर ज्यादा होते हैं। संक्रमण से पत्तियों में भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं। इससे पौधे की वृद्धि रुक जाती हैं और वह सूख जाता है।

नियंत्रण :

  • मैंकोज़ेब 3 ग्राम/लीटर की दर से 10-12 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें।
  • फसल चक्र अपनाने से रोग का प्रकोप कम होता है।
  • खेत की समय-समय पर साफ-सफाई करें।

रोगो के नियंत्रण के कुछ सामान्य उपाय :

  • फसल चक्र अपनाएं🔄: फसल चक्र अपनाने से मिट्टी में रोगजनक की संख्या कम होती है और रोग का प्रकोप कम होता है। विभिन्न फसलों की बुवाई करने से मिट्टी के पोषक तत्वों की भी संतुलन बनी रहती है।
  • खरपतवार और फसल अवशेषों को नष्ट करें🌿❌: खरपतवार और फसल अवशेषों को नष्ट करना जरूरी है क्योंकि ये रोगजनक के आश्रय स्थल हो सकते हैं। रोगग्रस्त अवशेषों को जलाने या गहरी जुताई करने से रोग का प्रकोप कम होता है।
  • प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें🌱: प्रतिरोधी किस्में रोगों के प्रति अधिक सहनशील होती हैं। इन किस्मों का चयन करके रोगों से बचाव किया जा सकता है।
  • बीज उपचार🌾: बीज उपचार करके बीज जनित रोगों से बचाव किया जा सकता है। उचित रसायनों का उपयोग करके बीज को उपचारित करें।
  • संतुलित सिंचाई और पोषण💧🍃: संतुलित सिंचाई और पोषण से पौधों की वृद्धि अच्छी होती है और वे रोगों के प्रति अधिक सहनशील होते हैं।

क्या आप ज्वार की फसल में रोगों से परेशान हैं? अपना जवाब एवं अनुभव हमें कमेंट करके बताएं। इसी तरह की अन्य रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ' किसान डॉक्टर ' चैनल को अभी फॉलो करें। और अगर पोस्ट पसंद आयी तो इसे लाइक करके अपने किसान मित्रों के साथ साझा करना न भूलें।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल | Frequently Asked Question (FAQs)

Q: ज्वार की फसल की बीज दर कितनी होती है?

A: ज्वार की फसल में बीज दर कई कारणों पर निर्भर करता है जैसे कि किस्म, मिट्टी, जलवायु और बुवाई की विधि। सामान्य तौर पर, अनुशंसित बीज दर 15-20 किलोग्राम प्रति एकड़ है जब प्रसारण विधि द्वारा बोया जाता है और 8-10 किलोग्राम प्रति एकड़ जब लाइन बुवाई विधि द्वारा बोया जाता है।

Q: ज्वार में कौन कौन से विटामिन होते हैं?

A: ज्वार विटामिन का एक अच्छा स्रोत होता है, जिसमें विटामिन बी जैसे थियामिन, राइबोफ्लेविन, नियासिन और विटामिन बी 6 पाए जाते हैं। इसमें विटामिन ई भी होता है, जो एक शक्तिशाली एंटीऑक्सिडेंट है जो कोशिकाओं को मुक्त कणों से होने वाले नुकसान से बचाने में मदद करता है। इसके अलावा, ज्वार में लोहा, मैग्नीशियम, फास्फोरस और पोटेशियम जैसे खनिज भी पाए जातें हैं।

Q: ज्वार में लगने वाला प्रमुख रोग कौन-सा है?

A: ज्वार में सबसे ज्यादा एन्थ्रेक्नोज रोग की समस्या होती है, जो फंगस कोलेटोट्रिचम सबलिनोलम के कारण होता है। यह रोग ज्वार की पत्तियों और तनों दानों को प्रभावित करता है, और अगर सही समय पर प्रबंधन नहीं किया गया तो इससे उपज में कमी हो सकती है। ज्वार में इसके अलावा डाउनी फफूंदी, रस्ट और स्मट रोग भी लगते हैं।

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